Adrashya Humsafar - 19 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 19

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अदृश्य हमसफ़र - 19

अदृश्य हमसफ़र.…

भाग 19

ममता जो सोई तो उसे उठाने में भाभी को पसीने बहाने पड़ गए। लाजमी भी था, रुकी हुई नींद, अनुष्का के ब्याह की थकान ऊपर से अनुराग के जीवन से जुड़ी बातें सुनकर जो मानसिक संताप से घिर कर सोई तो उठ नही पा रही थी। आंखे मलते हुए धीरे धीरे उठ बैठी। उनींदी अवस्था में जमहाइयाँ लेते लेते 5 मिनट लगे उसे वर्तमान में आने में। ढंग से आंखे खुली तो सामने भाभी हाथ में पानी का गिलास लेकर खड़ी थी। उनकी बगल में देविका भी मंद मंद मुस्कुराती हुई खड़ी थी। ममता की नजर देविका के चेहरे पर ठहर गयी। सोने से पहले देविका सँग हुए समस्त वार्तालाप के संवाद और दृश्य मस्तिष्क पटल पर जीवंत हो गए। अपलक उसे देखती जा रही कि भाभी ने टोका-" क्या देख रही हो जिज्जी?"

ममता ने देविका को देखते हुए ही जवाब दिया-" कितना शांत चेहरा है देविका का । देखो न भाभी। मंद मंद मुस्कुराती हुई साक्षात देवी स्वरूपा ही लग रही है। "

देविका के गाल शर्म से गुलाबी हो गए और उसने मुस्कुराते हुए शरमा कर गर्दन झुका ली।
भाभी-" सही कह रही हो आप, देविका रूप, गुण और स्वभाव सभी में देवी स्वरूपा ही है। "

" जिज्जी, ये लो पानी...जल्दी से कुल्ली करकर बाहर आ जाइये। सभी का खाना हो चुका, बस हम महिलाएं ही बची हैं। अब आप आएं तो हम सब भी खाना खाएं। " -कमरे में आते हुए सुनीता भाभी कह उठी।

ममता-" जी भाभी, आप चलिए मैं आती हूँ। "

भाभी तो कमरे से बाहर चली गयी लेकिन देविका वहीं खड़ी रह गयी।

ममता ने उसकी तरफ देखा तो ममता ने आंखों ही आंखों में सवाल किया-" क्या हुआ? कुछ कहना चाहती हो?"

देविका ने भी सहमति में गर्दन हिलाकर ही जवाब दिया।

ममता-" अरे तो बोलो देवी, सोच क्या रही हो?"

देविका-" अनुराग दो बार मुझसे पूछ चुके हैं, आप उठ गई या नही। दो चक्कर आपके कमरे के लगा चुके हैं जिज्जी। वह आपसे बात करने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। "

ममता-" देवी, क्या बजा है अभी?"

देविका-" जी तीन बजकर तीस मिनट हो चुके हैं। "

ममता-" ओह, इतनी देर सोती रही मैं। "

देविका-" आप शारीरिक थकान के कारण नही, मस्तिष्क पर पड़े आघात से अचेतन अवस्था में थी। "
हल्की हंसी को अपनी बात में मिश्रित करते हुए देविका ने बात पूरी की-" इसे सोना नही कहते जिज्जी। "

ममता-" बहुत सयानी हो तुम देवी, कौन कहेगा तुम महज बारहवीं पास हो। "

कहते कहते ममता ने देविका की पीठ पर प्यार से थपकी दी और अपनी बात फिर से आरम्भ की-

" तुम तो रूप और गुणों का शानदार संगम हो देवी। ज्ञान का शिक्षा से कोई सम्बन्ध नही इस बात का जीवंत उदाहरण हो। जरूरी नही शिक्षित ही ज्ञानी हो, कम शिक्षित भी ज्ञान का अतुलनीय भंडार हो सकता है। नमन तुम्हें देवी। "- कहते कहते ममता ने हाथ जोड़ लिए।

देविका ने तुरन्त ममता के जोड़े हुए हाथ अलग किये और कह उठी-" जिज्जी, इंसान हूँ वही बनी रहने दीजिए। देवी नही देविका कहकर बुलाइये। साथ ही इतनी तारीफ भी न कीजिये, ऐसा न हो कहीं कि मुझमें गुरुर आ जाये।

सहन नही कर पाऊंगी मैं, आपसे प्रेम और आशीर्वाद की चाह है बस, यूँ अजनबी न बनाइये मुझे। "

ममता ने तुरंत देविका को खींचकर गले से लगा लिया और उसके कानों में बुदबुदाई-" जिसने भी यह कहा कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है वही अगर आज तुम्हें देखे तो अपने कहे पर लज्जित हो जाये। तुम्हे तो भूल कर भी कोई भूल नही पाये देविका। मिली भी तो ऐसे वक्त पर हो कि तुम्हें मनचाहा आशीर्वाद दूँ तो पहले माता रानी से जी भर कर जंग करलूँ। "

ममता ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा -" तुम चलो बाहर सभी के साथ बैठो, मैं आती हूँ। बस 2 मिनट में ही। "

"जी"-कहते ही देविका कमरे से बाहर जाने लगी।

ममता कमरे की बगल में बने स्नानघर में पहुंची। हाथ मुंह धोकर जब शीशे में चेहरा देखा तो खुद को देखकर ही चौंक गयी। आंखे रोने की वजह से सूजी हुई दिख रही थी, चेहरे की कांति गायब थी। इससे पहले की विचारों की उलझन में उलझती उसे देविका की बातें याद आयी। अनुराग उससे बात करने को लालायित घूम रहे थे। मुंह पोंछते ही तुरन्त बाहर आई तो दोनो भाभी, काकी और देविका खाने के लिए उसी के इंतजार में बैठी थी।

खाना खाते वक़्त एक शांत सी चुप्पी वहां छाई हुई थी। ममता ने जल्दी जल्दी खाना खत्म किया और सबसे पहले उठ गयी। उसकी नजरें देविका पर जाकर ठहर गयी।

ममता-" देविका, अनुराग कहाँ हैं? मुझे बात करनी है। "

देविका-" जिज्जी बड़े भैया का जो कमरा था वह अब हमारा है, आप वहीं चली जाइये। "

ममता-" बड़ी भाभी, आप कौनसे कमरे में चले गए। मुझे तो कुछ पता ही नही। "

ममता के सवाल का जवाब काकी ने दिया।

"मुंन्नी, जब अनुराग को तुम्हारा कमरा दिया तो तुमने हल्ला मचा दिया था। बाबा ने फिर तुम्हारे कमरे में अपना सामान रखवाया, अपना कमरा बड़े भाई को और अनुराग को बड़े भाई का कमरा दे दिया था। अब बड़े भैया और जीजी नही रहे तो तुम्हारा कमरा खाली रहता है। "

ममता गर्दन को हिलाती हुई जाने लगी। अचानक मुड़कर देविका से कहा-" देविका, खाना खाकर वही आ जाना तुम भी। "

देविका ने बस हल्की सी मुस्कान के साथ ऐसे गर्दन हिलाई की किसी को सहमति तो किसी को असहमति नजर आयी।

ममता के कदम तेजी से बड़े भैया के कमरे की तरफ उठने लगे। उद्वेलित मन की आशंकित भावनाओं के साथ घटती बढ़ती धड़कनों को सामान्य करने की कोशिशों के साथ बढ़ती जा रही थी। जैसे ही कमरे के सामने पहुंची एक पल को ठिठक गयी। धौंकनी सी चलती सांसों को व्यवस्थित करने की पुरजोर कोशिशें जारी थी। अब वह पहले वाली बात नही थी, अनुराग के मन की बातों को जान चुकी तो एक झिझक महसूस कर रही थी।

उसने जैसे ही दरवाजे की तरफ खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया, अंदर से आवाज आई।

"अंदर आ जाओ मुंन्नी, तुम्हे दरवाजा खटखटाने की जरूरत कबसे पड़ने लगी।" - अनुराग की आवाज उसके कानों से टकराई।

"जी, आ रही हूं, तुम्हें कैसे पता चला अनुराग की मैं आई हूँ। दरवाजा भी न खटखटाने दिया। "-

ममता के गले से घुटी घुटी सी आवाज निकली।

अनुराग ने हल्की हंसी को आवाज में घोलकर जवाब दिया -"तुम्हारे चलने से हवाएं रुख बदलती हैं मुंन्नी। मैं उन बदली हवाओं को पहचानता हूँ बस और क्या। "

कदमों की तेजी लगभग खत्म हो चुकी थी। एक एक पैर का वजन जैसे एक एक मन(40किलो) का हो गया था। कदम लड़खड़ाने भी लगे थे। किसी तरह धीरे धीरे लगभग घिसटती सी चाल से कमरे में पहुंची। सामने अनुराग अपने बिस्तर से उठने लगे थे कि ममता ने हाथ के इशारे से रोक दिया।

ममता-" तुम लेटे रहो। मैं यहीं कुर्सी पर बैठ रही हूं। "

अनुराग-" अरे नही नही, मैं भी बैठता हूँ न। "

अब तक ममता काफी सम्भल चुकी थी उसने एकदम से आँखे तरेरी और गुर्राई-" कहा न लेटे रहिये। "
"अरे", अनुराग ने वापिस लेटते हुए कहा-" अरे बाबा रे, लगता है बचपन की शेरनी वापस जग गयी है"। और हंस दिए।

ममता की नजरें सहसा झुक गयी थी, साहस नही जुटा पा रही थी अनुराग से नजरें मिलाने का। उसे याद था कि देविका को मना किया था कि जाहिर न होने पाए कि उसे अनुराग की मनःस्थिति का पता चल चुका है और अब वह खुद को नियंत्रित नही करेगी तो अनुराग को स्थिति से अवगत होते समय नही लगेगा।

कुछ कहने को हुई तो लगा कि आवाज गले में फंस रही है। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि ऐसे तो अनुराग सब पकड़ जाएंगे। ये ख्याल आते ही फटाक से नजरें उठाई और गर्दन घुमाकर कमरे का मुआयना करने लगी।

कमरा बेहद नफासत से सजा हुआ था। स्टडी टेबल की बगल में एक अलमारी पूरी किताबों की भरी हुई थी।

बेड के सिरहाने एक पारिवारिक चित्र दीवार पर लगा था जिसमें अनुराग, देविका सँग दोनो बच्चे प्रसन्नचित मुद्रा में दिखे। चित्र को देखते ही उसमें खो सी गयी वह। बेटी हूबहू अनुराग की ज़िरोक्स कॉपी तो बेटे में देविका की झलक उसे नजर आयी। मुंह से अचानक ही निकल गया कि-" वाह, कितना प्यारा परिवार है। ईश्वर हर बुरी नजर से रक्षा करे। "

पारिवारिक चित्र वाली दीवार के ठीक सामने वाली दीवार पर टंगी एक तस्वीर ने ममता को अपनी और खींच लिया। ममता उस तस्वीर पर अटक गई। बड़ी ही अनोखी तस्वीर थी। ममता ने आज तक ऐसी तस्वीर नही देखी थी।

ममता-" अनुराग, ये तस्वीर कहाँ से लाये तुम। "

अनुराग-" कहीं से नही, देविका ने बनाई है। "

ममता-" देविका ने ; बहुत खूबसूरत लेकिन थोड़ी अलग हटकर है।

अनुराग-" अलग हटकर है ये तो मैं नही जानता । हाँ इतना जानता हूँ कि देविका पेंटिंग में दक्ष है। "
ममता-" मैंने आज तक कृष्ण के साथ राधा और मीरा एक ही तस्वीर में नही देखी हैं। "

अनुराग-" ये पेंटिंग हमारे ब्याह के बस कुछ दिन बाद की ही है। "

ममता-" लेकिन ऐसा क्या सोचा जो देविका ने यह पेंटिंग बनाई?"

अनुराग-" वह दरअसल बात कुछ ऐसी थी कि (अनुराग के स्वर में झिझक का पुट था) पहली रात जब मेरी देविका से कुछ बात हुई तो उसी पर ये पेंटिंग बनी थी। "

ममता-" क्या मुझे बताओगे, ऐसी क्या बात हुई जो देविका ने ऐसी पेंटिंग की कल्पना की जिसमें कृष्ण के साथ राधा और मीरा। तुम्हें कुछ विचित्र नही लगा अनुराग?"

अनुराग-" नहीं, यह तो पेंटिंग बनाने वाला जाने। "

अनुराग ने अनभिज्ञता से कंधे उचका दिए।

ममता को बात आरम्भ करने का इस पेंटिंग से बढ़िया माध्यम और कुछ नजर नही आ रहा था।

अभी तक आराम से लेटकर बात कर रहे अनुराग का घ्यान अब इस बात पर गया कि ममता उसे अनु दा कहकर नही पुकार रही थी साथ ही आप से तुम के सम्बोधन पर आ गयी थी। अनुराग उठकर बैठ गये।

"मुंन्नी सुन तो"..

ममता पलटी-" हाँ कहिये अनुराग"

अनुराग-" तुम्हारी देविका से कोई बात हुई क्या?"

ममता-" हाँ, हुई न। घर की बच्चों की। बहुत प्यारी, सुलझी, समझदार और शांत स्वभाव की है

देविका। लेकिन इसमें तुम क्यों इतने परेशान हुए जा रहे हो?"

अनुराग का दिल धड़क उठा।

अनुराग-" क्या मेरे बारे में भी कोई बात हुई?"

ममता-" हाँ हुई न, तुम्हारी तबियत कब से खराब हुई और बचपन के जो हमारे झगड़े वगैरा होते थे।

"कहते कहते ममता की हंसी खनक उठी अनुराग की बेचैनी और बढ़ गयी तुरन्त सवाल कर उठे-" मुंन्नी, तुम मेरा नाम लेकर क्यों पुकार रही हो? अनु दा क्यों नही कह रही हो?"

ममता-" तो, क्या ये कोई गुनाह है?"

अनुराग-" आप से तुम पर आ गयी हो। "

ममता-" तो, क्या ये भी कोई जुर्म है?"

अनुराग-" आज तुम्हारे बात करने का तरीका बदल गया है। "

ममता-" तो, इसमें आश्चर्य की क्या बात है?"

अनुराग-" एक दिन में इतना बदलाव? कोई तो वजह होगी?"

ममता-" एक दिन। एक दिन नही अनुराग 32 साल। पूरे 32 साल बाद मिल रहे हैं हम। छोटा वक़्त नही है ये। बहुत कुछ बदल जाता है इतने वक़्त में।

इतने साल मुंबई जैसे शहर में रह रही हूं। बदलाव तो प्रकृति का नियम है मैंने तो सिर्फ सम्बोधन ही बदला है। अब मैं 7 साल की बच्ची मुंन्नी नही, न ही 21 साल की ममता जो हर बात के लिए आपको पुकारती थी। दो बहुओं की सास हूँ, एक पोती भी है मेरी। हमारी उम्र में भी ज्यादा फर्क नही है, महज तीन साल का ही तो अंतर है। जब मैं मनोहर जी को नाम से पुकार सकती हूँ तो तुम्हें क्यों नही। "

अनुराग उलझ गया था कि ममता को क्या हो गया है।

तभी ममता आगे बढ़ी और अनुराग का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया। अनुराग बुरी तरह से सिहर गए और सांसे उथल पुथल होने लगी।

ममता-" अनुराग, आज औपचारिकताओं की दीवार मैने बीच में से हटा दी है। मुझे लगता है अब जरूरी है मेरा यह कदम। हम नाती पोते वाले हो गए हैं तो कम से कम नाम लेकर तो पुकार ही सकते हैं। तुम्हारी आँखों मे मुझे जो दिखाई दिया तो अहसास हुआ कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनमें सम्बोधन बाधक बन जाते हैं अतःएव मैने सीधा तुम्हारा नाम लिया। उम्मीद है तुम्हें बुरा नही लगा। "

अनुराग-" नही, मुझे बुरा तो नही लगा लेकिन चौंकना स्वाभाविक है मेरा। "

ममता-" अब यह सब छोड़ो और मुझे बताओ कि देविका ने यह पेंटिग तुम्हारी किस बात पर बनाई?"

अनुराग अब उलझन में दिखे कि बात कहाँ से आरम्भ करे, बस यही भूमिका बनाने में जुट गए।

क्रमशः

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