Mahabharat ke kuchh prasang ke bhav in Hindi Spiritual Stories by Ajay Kumar Awasthi books and stories PDF | महाभारत के कुछ प्रसंग के भाव

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महाभारत के कुछ प्रसंग के भाव

महाभारत के कुछ प्रसंग जिनके निहितार्थ बड़े काम के हैं :-
1. सामना जब अपने प्रतिद्वंदी से हो तब आपकी तैयारी कितनी है यह ध्यान रखना बेहद महत्वपूर्ण है । जब युधिष्ठिर और दुर्योधन में द्यूत क्रीड़ा अर्थात पासे का खेल खेला गया तब दुर्योधन ने अपनी ओर से उसके माहिर खलाड़ी मामा शकुनि को लगा दिया । पांडवो को लगा कि इस खेल में हम ही काफी हैं सो उन्होंने यहीं चूक कर दी ,उन्होंने अपने चतुर सखा कृष्ण को भुला दिया और ये उनकी हार की एक बड़ी वजह बनी । माहिर खलाड़ी से माहिर खिलाड़ी को भिड़ा देते तो पांडवो की ऐसी दुर्गति नही होती अर्थात यदि उन्होंने श्री कृष्ण को अपनी ओर से खेलने के लिए नियुक्त कर दिया होता तो हार होती ही नही ,,,,कहने का मतलब ये की तैयारी में जरा सी चूक बड़ी हार का कारण बन जाती है । जो भी कोशिश हो ,तैयारियां हों वह 100 फीसदी तक हो साथ ही अपने सामर्थ का आकलन होना चाहिए ,,,

2. भीष्म जब बाणों की शैया पर सोए थे भीषण कष्ट में उनके प्राण अटके थे तब अर्जुन नित दिन उनकी सेवा में हाजिर होते कुछ ज्ञान लाभ लेते एक दिन वे श्री कृष्ण के साथ पितामह से मिलने आये । बातो ही बातो में (भीष्म पितामह के मन मे कहीं न कहीं अपनी इच्छामृत्यु का अभिमान शेष था ) उन्होंने अर्जुन से कहा कि....अर्जुन तुममे कहाँ इतनी सामर्थ थी कि तुम मुझे मार पाते मेरी इच्छा हुई इसलिए तुम्हारे तीर मुझे लगे ,,,इस पर भगवान ने कहा कि पितामह वो इच्छा कहाँ से आई ?
और तब पितामह को अहसास हुआ कि वो इच्छा भी उनके कारण ही जन्मी कहने का भाव यह कि हम केवल निमित्त बनते हैं हमे नचाने वाले वे ही हैं । जब तक वे नाटक में हमे पात्र बनाते हैं हम बनते है जब हमारा पात्र नही रह जाता तब वे हम पर पर्दा गिरा देते हैं इसलिए किस बात का अभिमान,,,?
.....रुकता नही तमाशा रहता है खेल जारी,,,
उस पर कमाल देखो दिखता नही मदारी.....

3. हालात उनकी कृपा से अनुकूल होते हैं ,,,,
अर्जुन जब द्रौपदी स्वंयवर के समय जल में मछली के प्रतिबिंब से मछली की आंख पर निशाना लगाने जाते हैं तब उनके मित्र कृष्ण अनेक तरह से उन्हें समझाते हैं उनकी बातें सुनकर अर्जुन कहते हैं कि यदि सब मैं कर लिया तो फिर आपकी जरूरत क्या है ?
तब भगवान ने कहा कि जो तुम्हारे वश में नही है उन्हें मैं वश में करूंगा अर्थात हिलते डुलते जल को मैं स्थिर करूंगा । कहने का भाव यह कि सब कुछ आपके हाथ मे नही होता आप केवल बेहतर से बेहतर कोशिश कर सकते हैं, उन्हें मुकाम तक पहुंचाना ईश्वर के हाथों में है ।

जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा लेने के बाद सूर्यास्त के पहले अर्जुन उसे मार नही पा रहे थे क्योंकि वह बाहर ही नही आ रहा था तब सूर्यास्त का भ्रम पैदा कर उसे बाहर आने के लिए विवश करने का काम भगवान ने किया ।

अस्तु, इन कथा प्रसंगों से जीवन को एक दृष्टि मिलती है हमारी राहें स्पष्ट होती हैं ,,हम ज्यादा सटीक होते जाते हैं ,,,सटीक निशाना ही लक्ष्य भेदन कर सकता है,,,,