कमसिन
सीमा असीम सक्सेना
(2)
बुआ जी का दो कमरे का घर, वैसे तो काफी बड़ा घर है, चार मंजिल तक बना हुआ पर और कमरे किराये पर उठे हुए हैं ! वे अकेले ही रहती है, उनके दोनों बेटे इंडिया से बाहर जॉब पर हैं ! एक बेटी जिसकी शादी हो चुकी थी !
दीदी, मतलब उनकी बेटी अपने बच्चों के साथ छुट्टियों में आई हुई थी ! पूरा घर एकदम से भरा भरा लग रहा था ! बुआ जी बेड पर लेटी हुई थी ! उनका बी पी हाई हो गया था ! और एक किरायेदार महिला उनके सर और पैर के तलवों पर तेल मल रही थी ! तभी घर का काम करने वाली एक लड़की ट्रे में चाय रखकर ले आई, सबको दी और फिर उसकी तरफ भी ट्रे कर दी ! हालाँकि मन नहीं था, पर ले ली, कहीं बुआ जी बुरा न मान जाये ! कितनी खुश हो गयी हैं उसे देखकर !
सब कुछ भरा भरा सा, एकदम उमस भरा माहौल ! चार मंजिल तक बना हुआ मकान पर उनके पास सिर्फ छोटे छोटे दो कमरे ! किचिन, लैट्रिन, बाथरूम और सामने को थोड़ी सी बालकनी ! बाकी सारा घर किराये पर उठा हुआ ! सब लेबर क्लास लोग !
चाय पी कर राशी बुआ जी के पास आकर बैठ गयी ! उन्होंने उसे अपने पास बेड पर लिटा लिया और उसकी आँखों को हलके हलके हाथों से सहलाती हुई बोली, सो जा बेटी ! थक गयी होगी न ! चल आराम कर ले ! उसे बड़ा अपनापन सा महसूस हुआ !
कैसे आना हो गया अचानक से ? बुआ जी ने पूछा !
बुआ सिंगिंग कम्पटीशन है हिमाचल में, वही जा रही हूँ !
और कौन जा रहा है साथ में ?
पूरा ग्रुप है ! बस से जा रहे हैं ! यहीं पास से बस जाऐगी इसीलिए यहाँ आ गयी थी !
ठीक है ! चलो इसी बहाने आना तो हुआ ! सब लोग ठीक हैं न घर में ?
बुआ मैं तो हास्टल से आ रही हूँ !
चल ठीक है, अभी सो जा बेटा, फिर बाद में बात करेंगे !
कितने प्यार से सबकुछ जान लिया ! ये बड़े लोग ऐसे ही तो होते हैं !
वो थकी हुई तो थी ही और वाकई उसे नींद भी आ गई !
जब आँख खुली तो देखा शाम के 6 बज रहे थे ! बुआ जी सो रही थी और सामने के सोफे पर बैठी दीदी भिन्डी काट रही थी !
लाइए दी, मैं काटती हूँ भिन्डी ! राशी उनके पास आकर बैठ गयी !
नहीं, रहने दो, मैं काट रही हूँ, तुम हाथ मुँह धो लो !
राशी ने बैग से टावल निकाली और सुबह पहनने वाले कपड़े निकाल कर ऊपर रखने लगी ! परन्तु चुन्नी और कुरते के साथ रखी लेगिंग नहीं मिली ! पूरे बेग के कपड़े निकाल कर देख लिए पर लेगिंग नहीं निकली ! ओह शायद होस्टल के कमरे में ही रह गयी है !
क्या हो गया ? सारे कपड़े क्यों उलट पुलट कर रही हो ? कुछ सामान रह गया ?
हाँ दी !
क्या कोई जरुरी सामान रह गया ?
दी, मैचिंग की लेगिंग रह गयी !
अरे इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है ! नीचे पूरा मार्किट है चलो वहां से दिलवा देती हूँ!
वह मुँह हाथ धोकर दी के साथ उस बाजार में पहुंची जो किसी गाँव के बाजार जैसा लग रहा था !
बड़ी बड़ी खुली खुली दुकानें और बाहर तक फैला हुआ सामान ! नारियल, चुन्नी और पूजा का अन्य सामान बहुत अधिक मिल रहा था ! दी से पूछने पर पता चला कि यहाँ के लोग देवी माँ को बहुत मानते हैं ! इसलिऐ इन सब चीजों की बहुत जरूरत पड़ती है !
फिर एक दुकान से ओरेंज कलर की लेगिंग लेकर, वही पास में मोमोज कार्नर से मोमोज पैक कराये और घर वापस आ गये !
उसका मन नहीं था मोमोज खाने का, फिर भी एकाध टुकड़ा खा लिया हालाँकि उसे भूख तो लग रही थी !
राशी तुझे भूख तो नहीं लग रही है बेटा ? बता देना अपना ही घर है !
ये बड़े बुजुर्ग मन की बातें कैसे जान लेते हैं ? उसे समझ नहीं आ रहा था !
ठीक है बुआ ! अपना ही घर है तभी तो आई हूँ !
घर के सारे काम करने वाली उस लड़की ने ही खाना बनाया था !
खाना खाते खाते रात के 11 बज गये थे उसे सुबह जल्दी उठकर तैयार भी होना था ! अतः वो सो गयी ! दीदी और उनके बच्चे टीवी देखने लगे !
सुबह 4 बजे का अलार्म लगाया था लेकिन उसकी आँखें उससे पहले ही खुल गयी ! अक्सर ऐसा ही होता है जिस समय का अलार्म लगाओ आँख उससे पहले ही खुल जाती हैं ! शायद मन में फ़िक्र लगी होती है जो सोते समय भी हमारे अचेतन मन में जाग्रत रहती है !
उठ जाउँ ? उसने मन में सोचा ! वैसे अभी उठने का कोई औचित्य नहीं है ! 6 बजे जाना है और उसे तैयार होने में मात्र 20 मिनिट ही लगेंगे ! उसने करवट बदल कर आँखें बंद कर ली, कहीं नींद न आ जाये, यह सोंचकर मोबाइल के मेसेज पढने लगी ! क्योंकि नींद आ गयी तो फिर कौन जगायेगा ! इस समय उसे मनु की बहुत याद आई क्योंकि उसे जगाने और उठाने का काम उसके ही जिम्मे था ! तभी मोबाईल की घंटी अपनी मधुर धुन में गुनगुना उठी ! कानों में लय घोलती धुन अपनी मधुरता के चरम तक सुख दे रही थी ! ये आवाज तो उसे कभी नहीं भाती अगर रात के समय पर बजती ! पर शायद आज सबकुछ अलग था, मन के हिसाब से था इसीलिए ये भी मन को भा रही थी ! लेकिन पास में लेटी दीदी के कुनमुनाने से वह मोबाईल लेकर बाहर आ गयी !
गुड मार्निग जी ! फोन उठाते ही कानों में यह मधुर आवाज गूंजी !
गुड मार्निंग, कहकर उसके अधरों पर मुस्कान खेलने लगी !
आप जाग गए ?
जाग गया हूँ यार, तभी बात कर रहा हूँ !
अच्छा यह बताओ, कितने बजे निकलोगी ? मैं तैयार होने जा रहा हूँ !
जी 6 बजे तक ठीक रहेगा, तब तक मैं भी तैयार हो जाउंगी !
और सुनों मैं तुम्हारे लिए भी नाश्ता पैक करवा ले रहा हूँ !
अरे रहने दीजिए, हो जायेगा !
क्या हो जायेगा ?
उधर से रवि कुछ और कहते उससे पहले ही वो बोल पड़ी, ठीक है जी !
अच्छा चलो अब तैयार हो जाओ ! मैं ठीक 6 बजे तुम्हें ले लूँगा !
ठीक है ! राशी ने कहा और फोन कट कर दिया !
उत्साह से लबरेज हुई जाती राशि ने अपनी 3 दिनों की थकान को न जाने कहाँ छूमंतर कर दिया ! सही में उनकी आवाज उसके बदन में आक्सीजन का काम करती है ! उसने टाइम देखा घडी में 5 बज रहे थे ! अब तो रेडी हो जाना चाहिये ! नहीं तो फिर जल्दी जल्दी होगी तब तो न ठीक से तैयार हो पायेगी न कुछ !
फ्रेश होकर, नहा कर वह अपने बाल बनाने लगी, तभी दीदी का बेटा उठ गया !
तुम बहुत जल्दी उठ गए बेटा ?
वो मासी मैं न अपने दोस्तों के साथ खेलने जाऊंगा !
शान्तम, बुआ जी ने आवाज लगाते हुए कहा ! वे भी उठ गयी थी !
हाँ नानी !
बेटा, तुम राशी बेटा को उसके साथियों तक छोड़ आना !
और हाँ जब तक वे लोग आ न जाये, तुम आना नहीं ! बुआ ने दीदी के बेटे को हिदायत देते हुए कहा !
ये हमारे बुजुर्ग एक छत्रछाया जैसे हमारे सर पर होते हैं ! अगर इनको थोड़ी भी इज्जत दी जाए तो यह हमें अपने सर आँखों पर बिठा लेते हैं ! वैसे भी प्यार के दो बोल बोलने में क्या जाता है !
हमारे बुजुर्ग बस प्यार के ही तो भूखे होते हैं ! उम्र के अंतिम पड़ाव पर ये छायादार वृक्ष, कभी भी टूट कर गिर सकते हैं ! वह जब तक हैं तब तक हम क्यों नहीं इनकी स्नेहसिक्त शीतल छाया का आनंद लेते ! सचमुच वे लोग कितने लकी होते हैं जिनके सर पर बुजुर्गों का हाथ होता है ! लेकिन कुछ लोग इसकी कीमत नहीं समझते और उनका निरादर करते हैं ! उनकी भावनाओं से खेलते हैं ! इनकी भावनाओं को बस जरा सा आदर देकर देखो, देखना ये आशीषों की बौछार कर देंगे और तुम्हारा मन भी ख़ुशी से खिल जायेगा, उनकी स्नेह भरी फुहारों से !
राशी तैयार होकर बुआ जी का आशीर्वाद लेकर शान्तम के साथ निकल गयी ! बुआ की तबियत ठीक न होने पर भी वे देर तक बालकनी में खड़े होकर उसे तब तक देखती रही जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गयी !
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