Ghumakkadi Banzara Mann ki - 2 in Hindi Travel stories by Ranju Bhatia books and stories PDF | घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 2

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घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 2

घुमक्कड़ी बंजारा मन की

(२)

पुष्कर रिजॉर्ट

( राजस्थान की यात्रा )

तपते राजस्थान में यदि जाने की कल्पना की जाए तो जहन में सब कुछ गर्मी में झुलझता ही घूम जाता है और जुलाई के उमस भरे मौसम में तो यह सोचना कि पुष्कर और अजमेर जाना है तो लगता है कि जाने यह कैसा बेहूदी सी सनक है, पर कहते हैं न की जब कहीं जाने का बुलावा और दाना पानी है तो जाएंगे ही।

ऐसे ही जुलाई के उमसते मौसम में ब्रह्मा जी और अजमेर दरगाह जाने के न्योता मिला तो मन की घुम्मकड़ी झट से अपना झोला तैयार करके चलने को तैयार यह सोच के हर जगह अपने मौसम के हिसाब से देखी जाए यह जरुरी तो नहीं, विपरीत मौसम में भी जाने का आनंद लेना चाहिए। सुबह ६ बजे की शताब्दी से सफर शुरू हुआ। रेलवे के सुधरे हुए नाश्ते और ऐ सी डिब्बे में पहुंचने तक तो उमस को भूल गए। अजमेर स्टेशन पर उतरते ही उस का एहसास हुआ। ठहरने का स्थान था पुष्कर रिजॉर्ट गांव गनहेरा मोतीसर, रोड, पर।

जब वहां पहुंचे तो लगा ब्रह्मा ने सृष्टि को रचा और उसके रचने वाले रचीयताओं ने भी कम कमाल नहीं किया है। अजेमर से घूमते पहाड़ी रस्ते पर हरियाला सा यह स्थल वाकई पहली नजर में दिल को राहत दे गया। मुझे लगता कि इंसान घुम्मकड़ तो पहले से ही था पर वक़्त के साथ साथ उस घुम्मकड़ी में अपनी सुविधाओं को भी जोड़ता गया, कहीं कोई कमी न महसूस हो इसी को ध्यान में रखते हुए बनाने वालों ने यह रिजाॅर्ट बना दिए और हर सुविधा से इसको सजा दिया संवार दिया।

अजमेर पुष्कर के रस्ते में और पुष्कर में इस वक़्त ४५ रिजॉर्ट है। सबके अलग अलग नाम और दाम है। सुविधाएं हैं और हरियाली से भरपूर है। हमें पुष्कर रिजॉर्ट में रुकने था और वह हरे भरे आम, जामुन और नारियल के पेड़ो से सजा हुआ एक "ओएसिस" सा लगा। रिस्पेशन पर पहुँचते ही ठंडा गुलाब शरबत पेश किया गया। राजस्थानी रंग में सजा यह कोना आने वालों को जैसे सन्देश दे रहा था सही जगह आये आप लोग। शताब्दी के नाश्ते को कब का हज़म कर चुके थे भूख ने अपने होने का एहसास करवाया तो फटाफट से अपने रूम में फ्रेश होने और डाइनिंग हाल में जाने की इच्छा ने जोर पकड़ लिया। कमरे तक बने हुए रस्ते में स्विमिंग पूल अपने साफ़ नीले पानी से वहीँ रुकने का संकेत दे रहा था और मौसम ने भी करवट ले कर भरे बादलों को आसमान में यहाँ वहां छिटका दिया था।

यह रिजॉर्ट हरे भरे घास का मैदान पर सजा हुआ विदेशी, देसी फलों के बगीचे के साथ 15 एकड़ पर बना हुआ है, अंतरराष्ट्रीय श्रेणी सुविधाओं के साथ 40 शानदार वातानुकूलित कॉटेज. प्रत्येक कमरे में डायरेक्ट डायलिंग सुविधा के साथ उपग्रह लिंक और टेलीफोन के साथ एक मिनी बार, टेलीविजन है. कमरे की साज सज्जा में राजस्थानी मटकों, टोकरियों और कठपुतली के साथ मिल कर सजाया गया देसी विदेशी दोनों का अनूठा संगम दर्शाता है। साफ़ सुथरे बाथरूम में ठंडा पानी कहीं से यह एहसास नहीं करवाता की आप राजस्थान में है। डाइनिंग हाल पुराने राजस्थान की याद दिलाते फोटो से सजे हैं और खाना यहाँ का वाकई बहुत स्वादिष्ट है। राजस्थानी गट्टा करी, और चूरमा लड्डू का स्वाद भूला नहीं जा सकता है..

कमरे में आ कर खिड़की से झाँका तो सामने कुछ दूर पहाड़ी पर सावित्री जी का (ब्रह्मा जी की पहली पत्नी ) मंदिर दिखा उसके दूसरी तरफ ही गायत्री (दूसरी पत्नी) का मंदिर बीच में स्वयं ब्रह्मा जी विराजे हुए हैं। कुछ देर विश्राम के बाद पुष्कर झील और मंदिर दर्शन के लिए ऊंट गाडी की सवारी पर चल पड़े। गांव के बीचो बीच से अपनी कमर को संभालते कुछ देर तो यह सफर बहुत ही मनोरम लगा। ऊंट गाडी चलाने वाला नन्हा बालक सूरज जो सुबह अपनी नौवीं कक्षा की पढ़ाई करता है और शाम को यह कार्य रिजॉर्ट के पर्यटकों को घुमाने का। बड़ी बड़ी सुन्दर आँखों में कई सपने लिए एक परफेक्ट गाइड की तरह रास्ते में पड़ने वाले पुष्कर मेले की जगह बतायी, मंदिर के बारे में बताया और ऊंट गाडी के पीछे भागते लड़की जो बहुत ही सुन्दर लहजे में परफेक्ट इंग्लिश बोल कर चाकलेट और चिप्स मांग रही थी उसको राजस्थानी भाषा में हड़काया। बस अजीब लगा की संसार की रचना करने वाले ब्रह्मा का इकलौता निवास स्थान और उसके साये में पलने वाले लोग किस कदर दो वक़्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं, सुख सुविधा तो बहुत दूर की बात है रहने के लिए बेसिक कोई पक्का ठिकाना तक नहीं, पीने के लिए पानी की आसान सुविधा नहीं, दूर सामने पहाड़ी पर बने मंदिर भी कोई संसार को रचने वाली शक्ति से परिचय नहीं करा रहे थे, दीन हीन और असहाय से यह मंदिर स्तम्भ और इसकी ओट में पलने वाले लोग कुछ क्या बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं

मंदिर से कुछ दूर उसने सधे हुए ढंग से ऊंट गाडी को रोक कर कहा अब आपको यहाँ से पैदल ही मंदिर तक जाना होगा, आप लोग इतनी देर बैठ कर आये हैं न अब थोड़ा चल ले "सुन कर मुस्कान खुद आ गयी कमर का बैंड बज चुका था और वापस इसी पर रिजॉर्ट तक जाना है सोच कर पैदल जितना चल ले वही अच्छा। वहीँ भी रिजॉर्ट द्वारा ही एक दूसरे गाइड ने हमें मंदिर के बहुत सुन्दर दर्शन करवाये। राजस्थानी लहंगों। , चादरों, आदि बाजार से गुजरते हुए पुष्कर झील पहुंचे तो बादल अब धीमी धीमी फुहार लिए इस झील को और सुन्दर बना रहे थे चारों और पहाड़ो से घिरी यह झील वाकई मनोरम और पवित्र लगती है। यह कैसे बना यह मनोरंजक कथा सुनने के बाद एक पंडित जी ने पूजा विधि विधान से करवाई वहां तक सब अच्छा लगा पर उसके बाद उनके कहे अनुसार दान दक्षिणा देने की ज़िद ने अजीब सा महसूस करवाया पर कोई भी हिन्दू तीर्थ स्थान इस से अलग नहीं है।

वापसी धीमे बरसते बादलों में फिर से ऊंट गाडी पर शुरू की और तेज भागते हुए कुछ ही देर में हम वापस रिजॉर्ट में थे। और कुछ ही देर में वहां कलबेलिया डांस, सोंधी खुशबु लिए गर्म स्नेक्स और धीमी बरसती बारिश। वाकई पूरा माहौल बेहद खूबसूरत लगा। यहाँ पर खूब शादियां भी होती है अधिकतर मारवाड़ी लोग इस तरह के रिजॉर्ट बुक करवा लेते हैं। अभी इस वक़्त तो हम ही थे सुबह उठने पर जरूर कुछ विदेशी पर्यटक दिखे।

सुबह खुशनुमा थी जो जल्द उमस भरी गर्मी में तब्दील हो गयी। स्पा की सुविधा भी है यही उसका भी भरपूर आनंद लिया। देसी विदेशी हर तरह का खाना, देसी विदेशी माहौल का मिश्रण यह स्थान वाकई वीकेंड को एन्जॉय करने का बेहतर तरीका है। स्टाफ हर वक़्त आपकी सेवा में हाजिर रह कर आपके इस प्रवास को और भी ख़ास मेहमान होने का एहसास करवाता है। नाश्ते स्पा आदि के बाद वापसी दरगाह देखनी की हुई। अजमेर शहर रमजान के महीने में और भी पवित्र लगा। पर यहाँ भी मांगने वालों की गुहार ने आस पास सही से देखने का मौका ही नहीं दिया। गरीब नवाज़ को माथा टेकने के बाद वहां पर बनी देगों ने बहुत आकर्षित किया। वापसी शताब्दी ने फिर से घर का रास्ता याद दिलाया और घुम्मकड़ी का एक रास्ता और मेरी डायरी के पन्नो में दर्ज़ हो गया।

तेज गर्मी के महीनो को छोड़ कर आप यहाँ कभी भी जा सकते हैं। वैसे बेस्ट मंथ अक्टूबर से फरवरी तक हैं। यहाँ की बुकिंग के लिए आप यहाँ पुष्कर रिजॉर्ट sewara से पता कर सकते हैं

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