दस दरवाज़े
बंद दरवाज़ों के पीछे की दस अंतरंग कथाएँ
(चैप्टर - पांच)
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दूसरा दरवाज़ा (कड़ी-2)
नसोरा : ग़र तेरे काम आ सकूँ
हरजीत अटवाल
अनुवाद : सुभाष नीरव
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एक दिन नसोरा मुझसे कहती है -
“तेरी बात सच है कि अकेले रहना बहुत कठिन होता है।“
“नसोरा, अगर कहे तो किसी लड़के को तुझसे मिलवाऊँ?“
“लवी, मुझे लड़कों की कमी नहीं, मेरे इर्दगिर्द बहुत लड़के हैं।“
“जिस लड़के की मैं बात कर रहा हूँ, वह उनसे अलग है। वो तुझे बहुत खुश रखेगा।“
“खुश रहना मेरी नहीं, किसी और की समस्या हो सकती है।“ कहते हुए वह हँसती है और फिर कहती है - “लवी, मैं तेरे संग बाहर जा सकती हूँ, घूम-फिर सकती हूँ, पर साथ मैं तेरे भी नहीं रह सकती। किसी के साथ रहना कोई आसान बात नहीं होती। यदि मुझे रहना भी हुआ तो मुझे अपनी किस्म का मर्द चाहिए, किसी का सुझाया हुआ नहीं।“
मुझे नसोरा की साफ़गोई बहुत अच्छी लगती है। मैं सोचता हूँ कि मोहन लाल का सपना तो गया कुएँ में।
एक दिन मैं उससे पूछता हूँ -
“किसी दिन फिल्म देखने चलें?“
“फिल्म में बहुत वक्त खराब होता है। अगर चाहता है तो किसी पब या रेस्तरां में चलते हैं, वहाँ बैठकर बातें तो कर सकेंगे।“
“ठीक है।“
मुझे भी उसकी बात सही लगती है। किसी को मिलने का मकसद होता है, बातें करके एक-दूसरे को जानना। हम दिन सुनिश्चित करके शैफ्टबरी पब में चले जाते हैं। इस पब में रेस्टोरेंट भी है। बियर पीते हुए वह मेरे विषय में पूछती है, मेरे अतीत, मेरे वर्तमान और भविष्य के बारे में भी। मैं जगीरों से अपनी अलहदगी की कहानी बताता हुआ उससे पूछता हूँ -
“तू जाम्बिया में किस जगह की रहने वाली है?“
“तू गया है कभी जाम्बिया?“
“नहीं, नक्शा ही देखा है। तेरा कौन-सा इलाका है? समुद्र के नज़दीक कहीं?“
“मैं नहीं जानती। समुद्र तो मैंने यहाँ इंग्लैंड में आकर देखा पहली बार... शायद, लुसाका के करीब कोई जगह हो।“
“तेरे माता-पिता कहाँ रहते हैं?“
“पता नहीं, वे सिविल वार में मारे गए थे। मुझे तो होश भी एक अनाथालय में आई थी। उसके बारे में मुझे याद है।“
“आय एम सॉरी नसोरा! इसका मतलब, तूने बहुत कठिन ज़िन्दगी देखी है।“
“मैंने ज़िन्दगी देखी नहीं, नरक भोगा है।“ कहती हुई वह चुप हो जाती है। कुछ देर बाद मैं उसका हाथ पकड़ते हुए कहता हूँ -
“कुछ बताना चाहेगी? अपने बारे में मेरे साथ कुछ साझा करना चाहेगी?“
“क्या है साझा करने वाला! कुछ भी नहीं। बल्कि साझा करके दोस्त गवां बैठती हूँ।“
“मेरे बारे में चिन्ता न कर, मैं नहीं गुम होने वाला। तू अपने बचपन के बारे में कुछ बता। अपने बारे में कुछ और इंग्लैंड कैसे आई?“
“लवी, छोड़ भी!“
“नसोरा, प्लीज़!... बचपन की कोई बात, कोई याद।“
मैं जिद्द करते हुए कहता हूँ। वह एक पल के लिए कुछ सोचती है और फिर कहने लगती है -
“मुझे बचपन की पहली बात जो याद है, वह यह है कि मेरे जिस्म में कोई भारी-सी चीज़ धकेली जा रही थी और मेरी जांघों में से खून बह रहा था, मैं रो रही थी।“ कहकर वह खिड़की से बाहर देखने लगती है।
मैं पत्थर हुआ बैठा हूँ। बड़ी मुश्किल से मैं अपनी बियर का घूंट भरता हूँ। वह दो मिनट तक नहीं बोलती। मैं ही उससे पूछता हूँ -
“मदद करने वाला कोई नहीं था?“
“मदद करने वाले ही तो यह काम कर रहे थे... मैं ही नहीं, वहाँ हर लड़की के साथ आए दिन यही काम होता था। अनाथाश्रम के कर्मचारी करते थे और बाहर से भी लोग आते थे। मुझे याद है कि कई बार हम खून से सनी टांगों सहित इधर-उधर चला-फिरा करती थीं। कभी जब किसी को आना होता तो हमें साफ़ किया जाता था।“
उसकी आँखें ज़रा-सी नम होती हैं, पर शीघ्र ही खुश्क हो जाती हैं। वह फिर कहती है -
“जब किसी को हमारे कैंप में आना होता था, तो हम एक-दूसरे के पीछे छिपती फिरती थीं... इस तरह पता ही नहीं चला कि वक्त कैसे गुज़र गया।“
“यह तो बहुत दुःखभरी कहानी है।...तेरी पढ़ाई-लिखाई?“
“हमें पढ़ाया जाता था, बस यूँ ही नाम का ही। कक्षाएँ लगती थीं, पर कोई खास नहीं। हाँ, कुछ सिखाने के नाम पर काम बहुत लिया जाता था। अगर काम न करो तो मार भी पड़ती थी।“
फिर, हम दोनों चुपचाप बैठे रहते हैं। कभी-कभी बियर के घूंट भर लेते हैं। मैं एक और बियर का आर्डर देता हूँ। वह कहती है -
“सॉरी लवी! पहली ही मुलाकात में मुझे ये बातें नहीं करनी चाहिए थीं। मैं तो तुझे अभी अच्छी तरह जानती भी नहीं, पर फिर भी पता नहीं क्यों मुझसे ऐसा हो गया।“
“नसोरा, यह अच्छा ही हुआ। अब मैं तुझे बेहतर समझ सकता हूँ। तू इंग्लैंड कैसे आई?“
“पैट्रिक टौवर हम दो बहनों को अपने साथ इंग्लैंड ले आया था।“
“तेरी बहन भी थी?“
“मेरे खून के रिश्ते में कौन होगा या कौन नहीं, कुछ नहीं पता, पर अनाथाश्रम की सभी लड़कियाँ आपस में बहनें ही तो थीं।“
“यह पैट्रिक टौवर कौन था?... तुम्हें यहाँ कैसे ले आया?“
“एक अंगरेज़ था, ले आया... अडॉप्ट करके। असल में, अनाथाश्रम में लोग बच्चों को अडॉप्ट करने आते रहते हैं। ख़ासतौर पर युरोपियन लोग। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को अधिक अडॉप्ट किया जाता था।“
“क्यों?“
“क्योंकि लड़कियों को वो सैक्सुअल ओबजेक्ट के तौर पर इस्तेमाल करते थे।“
“पर अडॉप्ट करने से पहले अधिकारी सब कुछ देखते होंगे कि बच्चे को कौन ले जा रहा है और क्यों ले जा रहा है!“
“नहीं, शायद कुछ डॉलर दे देते होंगे। हमें पैट्रिक ले आया और हमारे साथ वही कुछ करता था जो कुछ आश्रम में होता था, पर वह कम हिंसक था और हमें बहुत बार तंग नहीं करता था।“
“कैसा आदमी था पैट्रिक?“
“पैट्रिक बहुत अच्छा आदमी था, दयावान था। हमारी उसने पूरी देखरेख की, खाने-पीने और पहनने को अच्छा देता था। अंगरेज़ी बोलना भी सिखाया। हम उसको डैडी कहा करती थीं। कागजों में उसकी बेटियाँ थीं। वह वापस इंग्लैंड आया तो हमें संग ही ले आया।“
“अब तू कैसा महसूस करती है?“
“अब सोचती हूँ कि बुरे दिन बहुत पीछे रह गए। और फिर तेरे संग बात करके मन ज़रा हल्का हो गया।“
कहकर वह मुस्कराती है। उसका यूँ मुस्कराना मुझे बहुत अच्छा लगता है। फिर वह पैट्रिक टौवर के बारे में बताने लगती है कि जब वह ज्यादा बूढ़ा हो गया और सैक्स करने के योग्य न रहा तो उसने नसोरा को किसी नर्सिंग होम में सफ़ाई का काम दिलवा दिया और फिर कुछ देर बाद उसकी बहन मागला को भी बाहर काम मिल गया। अब पैट्रिक टौवर किसी वृद्धाश्रम में रहता है। वे कभी-कभी उसको देखने जाया करती हैं, कभी फोन भी कर लिया करती हैं।
मुझे यह सब अजीब-सा और अविश्वसनीय लगता है, पर सच मेरे सामने नसोरा के रूप में बैठा है। मैं उसके दोनों हाथ पकड़कर कहता हूँ-
“नसोरा, तू बहुत मजबूत लड़की है। मैं दुआ करता हूँ कि तेरा भविष्य बहुत उज्जवल हो।“
“पता नहीं मेरा भविष्य कैसा होगा, पर न तो मैं बच्चा पैदा करने के काबिल रही हूँ और न ही मैं अन्य लड़कियों की तरह सीधा सोच सकती हूँ। मेरे बचपन ने मेरे अन्दर बहुत कुछ तोड़-मरोड़ दिया है।“
“इतना बहुत है कि तू जीती-जागती है और इस देश में है... सोचने में यह तोड़-मरोड़ कोई बड़ी बात नहीं होती। कई बार हम यूँ महसूस करने लगते हैं। बच्चे की भी चिन्ता न कर, समय आने पर कोई अडॉप्ट कर लेना।“ मैं तसल्ली देने के लिए कहता हूँ।
पहले बनाये कार्यक्रम के अनुसार हम खाना खाकर उसके निवास पर पहुँच जाते हैं। वह किसी के घर में किराये पर एक कमरा लेकर रह रही है। हम दोनों दबे पांव घर में घुसते हैं कि लैंडलॉर्ड के आराम में कोई खलल न पड़े। दसेक मिनट के बाद उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक होती है और बाहर से भारी-सी आवाज़ में कोई पूछता है -
“नसोरा, तू अपने साथ कोई गैस्ट लेकर आई है? यह काम यहाँ नहीं चलेगा, यह कोई अड्डा नहीं।“
नसोरा दरवाज़ा खोलती है। मुझे लगता है कि अभी कोई झगड़ा हो जाएगा। नसोरा उस व्यक्ति को कहती है -
“अपनी बकवास अपने पास रख!... मैंने आंटी को बताया था कि मेरा दोस्त रात में मेरे साथ रहेगा और इसका मैंने उसे फालतू किराया भी दिया हुआ है। जाकर पूछ उसको।“
वह व्यक्ति चला जाता है। नसोरा गुस्से में दरवाज़ा बंद करते हुए कहती है -
“जिस दिन से इस घर में आई हूँ, यह बंदा मेरे पीछे ही पड़ा हुआ है। मैं कई बार कह चुकी हूँ कि मैं तुझे पसंद नहीं करती, पर समझता ही नहीं। किसी दिन इसकी औरत को सब बता दूँगी, फिर रोयेगा।“
“शांत हो नसोरा, ऐसे आदमी बहुत हैं दुनिया में।“
“मुझे ऐसों के साथ खूब निपटना आता है। असल में, मैं यहाँ जेसन के जेल जाने के बाद ही आई हूँ। तुझे पता नहीं जेसन का! लोग उसके नाम से डरते हैं। मैं उसके परिचित लोगों से दूर चले जाना चाहती हूँ।“
धीरे-धीरे हम सहज हो जाते हैं और आपस में बातें करने लगते हैं। मैं उसको बांह से पकड़कर अपनी ओर खींचता हूँ तो वह कहती है -
“लवी, शायद मैं तेरे लिए दूसरी औरतों जैसी न होऊँ।“
मैं उसकी बात का कोई जवाब नहीं देता।
अगले दिन वह मुझे काम पर कैंटीन में बैठी मिलती है जैसे वह मेरी ही प्रतीक्षा कर रही हो। मैं पूछता हूँ-
“हाय ब्युटिफुल, क्या हाल है?“
“तू मुझे अभी भी सुन्दर कहता है?“
“क्यों न कहूँ! बल्कि तू तो मेरी उम्मीद से कहीं अधिक सुन्दर निकली। कल इतना आनन्ददायक वक्त देने के लिए शुक्रिया।“
“तेरा भी साथ देने के लिए धन्यवाद।“
“सच नसोरा, मेरा इतना खूबसूरत अनुभव पहले कभी नहीं हुआ।“
“यह तेरे लिए ख़ास ट्रीटमेंट थी, नहीं तो मैं आम व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं करती।“
“पर तू तो पूरी अनुभवी है।“ मैं कहता हूँ।
वह कुछ नहीं बोलती और अचानक हँसने लगती है। फिर कहती है -
“यह सारी ट्रेनिंग हमें पैट्रिक की दी हुई है। मैं अपनी बहन से ज्यादा तेज़ थी इसलिए वह मुझे ज्यादा पसंद करता था।“
“तब तो फिर मुझे पैट्रिक का धन्यवादी होना चाहिए।“ कहते हुए मैं भी हँसता हूँ।
(जारी…)