अदृश्य हमसफ़र
भाग 17
ममता को अब भरी महफ़िल में भी तन्हाई का अहसास हो रहा था। मन उचाट हो चला था कि कैसी पहेली है यह। ब्याह में नही बुलाया था यह तो सुलझी भी नही थी कि एक और नई खड़ी हो गयी थी। क्या कारण हो सकता है कि देविका से किसी ने भी उसका परिचय नही कराया जबकि कितनी बार सभी से उसने पूछा भी था । उलझनें एक के बाद बढ़ती जा रही थी। सुलझाने के लिए सिर्फ एक ही सिरा नजर आ रहा था, "अनु दा। "
ममता सोच के चक्रव्यूह से बाहर आई जब एक जोरदार ठहाका उसके कानों तक पहुंचा। काकी बच्चों को उसकी शरारतें सुना रही थी । बता रही थी कि मुन्नी सारा दिन घर में कैसे उधम मचाती घूमती रहती थी और कैसे वह अनुराग पर दोषारोपण करती थी। आंगन में लगे अमरूद के पेड़ से एक अमरूद खाना होता था लेकिन दस बर्बाद करती थी। पूछने पर नाम अनुराग का ही लेना तय था। अनुराग भी बेचारा अपने बालों को बचाने के लिए चुपचाप इल्जाम अपने सिर पर ले लेता था। काकी की बातों को बच्चे बड़ा रस लेकर सुनते जा रहे थे।
अचानक ममता ने मन मे कुछ सोचा और काकी को टोक दिया-" काकी, ये बच्चे मुझे बाद में बहुत तंग करेंगे। इन्हें सारी बातें मत बताइये। "
काकी-" अरी तो क्या हुआ। यही छोटी छोटी बातें ही तो जीवन मे रस लेकर आती हैं। ऐसे चुटीले किस्से न हों तो जीवन कितना नीरस हो जाएगा। "
ममता-" काकी अब वक्त बदल गया है। ये बच्चे बहुत सयाने हो गए हैं। माँ पापा की बचपन की शरारतों में रस लेने की जगह उन्हें अपने बचाव में ढाल की तरह इस्तेमाल करते हैं। एक पल में कह देते हैं कि आप भी तो कितनी शरारतें करते थे।
ममता ने सभी बच्चों को वहाँ से रुखसत किया ये कहते हुए कि सब नहा धोकर थोड़ा आराम करो। ममता के दोनो बेटे और बहू शाम की फ्लाइट से वापस जाने वाले थे। बस आज का दिन बीच में था आने वाले कल को अनुष्का को पग फेरे के लिए आना था। ममता बस इसी उधेड़बुन में थी कि अनुष्का के आने से पहले अनुराग से सारी बातें उगलवा ले।
बैठक में अब ममता के अलावा देविका, दोनो भाभियाँ और काकी ही रह गए थे। काकी ममता की माँ को याद किये जा रही थी।
काकी -" जब बड़ी जीजी थी तो मुझे कोई फिक्र नही रहती थी। मुन्नी, तेरी माँ के जाने के बाद बहुत अकेली पड़ गयी मैं। "
ममता-" सही कहा काकी आपने। आपकी तो सुबह से रात तक कि दुनिया माँ के पल्लू से बंधी रहती थी। "
काकी-" सच तो यही है मुंन्नी । अनुराग के ब्याह के बाद, बड़के का ब्याह फिर सूरज का ब्याह, सभी बहुओं की जचगी, मुझे तो बस बड़ी जीजी का कहा मानना होता था। किसी बात की फिकर न होती थी उनके रहते। "
मुंन्नी-" काकी आज मुझे अनु दा के ब्याह के बारे में बताओ न कुछ। "
काकी-" बड़े नखरे किये थे छोरे ने। वह तो तेरे बाबा थे जिन्होंने डरा धमका कर ब्याह के लिए राजी किया, नही तो कहता था ब्याह न करूंगा। "
मुंन्नी-" बाबा ने किस बात की धमकी दी थी काकी?"
आज अपनी आदत के विपरीत ममता सवाल पर सवाल करती जा रही थी। आज तो अपनी खाई हुई कसम भी तोड़ डाली थी कि अनुराग के विषय में कोई सवाल नही करेगी।
काकी ने कुर्सी पर टेक लगाते हुए बताया कि अनुराग को बाबा ने बड़े जतन से राजी किया था । एक तो छोरा बोलता बहुत कम था और धीर गम्भीर सुभाव का था तो ये बच्चे तो बचपन से ही उससे डरते थे। एक तू ही तो थी जो उसे नचा डालती थी या फिर बाबा की सुनता था। लड़की देखने भी न गया। देविका तुम्हारे बाबा की ही पसन्द है। है तो जात की ठाकुर हमारी तरह लेकिन लच्छन पूरे पंडिताइन के हैं इसके। जब कभी तुम आती थी तो अनुराग और देविका अपने पैतृक मकान में रहने चले जाते थे। वहीं अपनी सगी सास से सब सीखा इसने। "
काकी मुंन्नी को बताती जा रही थी एक के बाद एक घटनाक्रम और देविका बस ममता को निहारे जा रही थी। इस बीच दोनो भाभी ये कहकर उठ गई कि दोपहर के भोजन का इंतजाम करने जा रही हैं। देविका उनकी मदद को उठने लगी तो सुनीता भाभी ने वापिस बैठा दिया कि आज मुंन्नी जिज्जी के पास बैठिए आप।
काकी ने बताया कि अनुराग के ब्याह के दो बरस तक उनको कोई बच्चा न हुआ तो माँ देविका को बड़े अस्पताल ले जाना चाहती थी। न तो देविका जाने को राजी थी और न ही अनुराग उसे भेजने को राजी।
एक दिन खूब गरमा गर्मी हुई इस बात पर तब जाकर अनुराग ने एक साल की मोहलत मांगी थी कि अगर एक साल में बच्चा न हुआ तो अस्पताल जाएंगे। अनु का ब्याह पहले हुआ था और अनुष्का घर की सबसे बड़ी बच्ची कहलाई। बड़ी बहू ने सवा साल भीतर ही हमें दादी बना दिया था।
ममता का कौतूहल चरम पर था। काकी को बीच में हो टोक दिया उसने-" तो क्या काकी देविका को अस्पताल लेकर जाना पड़ा ?"
काकी-" अरी ना, अनुराग ने एक साल का टेम मांगा तो था लेकिन दसवें महीने ही चाँद से लड़के को जन्म दिया देविका ने फिर बिटिया दो साल बाद आई। "
ममता को न जाने क्यों सीने में ठंडक का अहसास हुआ। अनु दा के दो बच्चे भी हैं। उसकी नजर बैठक के दरवाजे के पार उनको तलाशने लगी। निराश होकर नजरें वापिस आकर देविका के चेहरे पर ठहर गयी। उस मृगनयनी की चंचल आंखों में नमी तैरने लगी थी।
ममता एक पल को सोचने लगी कि काकी से और बात निकलवाये या देविका की आंखों में छलक आयी नमी का कारण पूछे।
काकी अपनी रौ में बताए चली जा रही थी लेकिन ममता का सारा ध्यान देविका के चेहरे पर उभर आई पीड़ा पर था। उसने काकी से कहा कि थोड़ी देर में आती हूँ काकी और देविका को पीछे आने का इशारा कर के उठ कर अपने कमरे की तरफ चली। देविका भी यंत्रवत सी उठकर उसके पीछे पीछे हो ली।
अपने कमरे में जाकर ममता ने देविका का एक हाथ पकड़ कर तेजी से खींच लिया। इससे पहले कि कोई देखता या आता, ममता ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
ममता ने बिना कोई भूमिका बांधे सीधा सवाल देविका की तरफ उछाल दिया-".देविका, क्या बात है? मुझसे खुल कर कह सकती हो लेकिन मेरे एक सवाल का जवाब आपको देना होगा । भले ही आपको बुरा लगे। आपके और अनुराग के सम्बंध कैसे हैं?"
ममता के सीधे सवाल से देविका को आश्चर्य नही हुआ अपितु एक शांति का भाव उसके चेहरे पर आया।
बेझिझक कह उठी-" मुंन्नी जिज्जी, जितना आपके बारे में सुना उझसे बढ़कर पाया। सरल, बेबाक और समझदार।
आपको खुलकर बताती हूँ। "
देविका जैसे जैसे कहती गयी ममता के चेहरे के भाव बदलते गए। उसने कहना आरम्भ किया-" जिज्जी, मैं अनुराग की पसन्द से नही, बाबा की पसन्द से इस घर में आई। बहुत सौभग्यशाली समझती थी खुद को कि कामदेव के समान रूपवान पति है मेरा जबकि मेरी रंगत दबी हुई। सभी के अपार स्नेह से अनुग्रहित अनुराग अच्छी सरकारी नौकरी पर भी थे जबकि मैं साधारण सी गांव की लड़की जिसने कभी कालेज की सूरत भी न देखी थी। अपने भाग्य पर अच्छे से इतराने का मौका भी न मिला कि जोरदार कुठाराघात हो गया। पहली रात को ही अनुराग ने मुझे अपने बारे में सब बताया कि कैसे वह आपके घर में रहने आये। साफ साफ कह दिया कि घर के किसी सदस्य को शिकायत का मौका नही देना है विशेषकर बाबा का। उन्होंने मुझसे कहा कि वह किसी और लड़की से प्रेम करते हैं और जीवन भर उसे नही भूल सकते। मुझे पत्नी के सभी अधिकार मिलेंगे लेकिन उनके प्रेम पर मेरा कोई अधिकार नही होगा। इन सब बातों के साथ ही चेतावनी भी कि घर में किसी से जिक्र नही करना है।
ब्याह को दो साल होने को आये थे, माँ रोज पूछती थी कि कोई खुशखबरी कब देने वाली हो। इस बीच बड़े भैया का ब्याह भी हुआ और भाभी ने अनुष्का को जन्म दिया।
मैं किसी से क्या कहती कि इन्होंने मुझे हाथ तक नही लगाया है तो बच्चा क्या हवा में पैदा करूँ। चेहरे पर इतनी गम्भीरता रहती थी कि कभी कुछ पूछने की हिम्मत नही कर पाई। "
"मेरी सोई किस्मत तो तब जागी जब एक दिन ये दफ्तर से घर आये तो बड़ी माँ मुझे समझा रही थी। दो साल हो गए देविका, अब अनुराग को बांधना है तो बच्चा बना ले। सर्वगुण सम्पन्न है मेरी बहु बस गोद हरी हो जाये तो देवी माँ को नारियल चुन्नी चढ़ाऊँ, कढ़ाई भी कर दूं देसी घी की। "
" इनको अंदर आते देख मैं बुरी तरह से हिल गयी थी और मेरी आँखें भर आई। दौड़कर अपने कमरे में आकर पलंग पर औंधी गिर कर रोने लगी। उस दिन पहली बार मुझे इनका स्पर्श मिला। मेरी पीठ सहलाते हुए कहने लगे, देविका...तुमने मुझे बताया क्यों नही कि तुमसे ऐसे सवाल जवाब किये जाते हैं। अब मैं घबरा उठी थी कि कहीं ये बाबा या माँ से कुछ न कह दें। झटपट उठी और इनसे मिन्नतें करने लगी कि माँ से कुछ न कहना। सभी के अरमान होते हैं कि पोते पोती के साथ खेलने के। उनका कोई कसूर नही हैं।
पहली बार इन्होंने मुझे मुस्कुरा कर देखा उस दिन।
मुझे लगा कि शायद अब मेरे दिन बदलने वाले हैं और बदले भी। उस रात मेरे अरमानों की डोली फिर से सजी। ये मेरे पास आये। इनकी छुअन की हिचकिचाहट मुझसे छुपी न रह सकी लेकिन मैं चुप रही। पहली बार पतिसुख को आत्मसात किया मैंने लेकिन एक अधूरेपन के साथ कारण कि अंत में इनके मुंह से एक आह निकली और साथ में उस लड़की का नाम भी जिससे इन्होंने टूटकर प्रेम किया। जिसका आधा अधूरा परिचय मेरे पास था लेकिन नाम नही था। "
ममता खुद को रोक पाने में असमर्थ साबित हुई और तड़प कर पूछ उठी-" कौन थी वह लड़की देविका? अगर अनुराग उससे इतना ही प्यार करते थे तो बाबा को खुल कर क्यों नही बताया? बाबा अनुराग के साथ इतना बड़ा अन्याय कभी नहीं करते और न ही दो जिंदगियों को दांव पर लगाते। "
देविका की आह निकल गयी। बोली -" उस लड़की को ही कहाँ पता था कि अनुराग उसे इतनी गहराई से प्रेम करते हैं। वह तो अपनी नादानियों में ही उलझी हुई खुश रहती थी। "
ममता के मन में अनन्त आशंकाएं जन्म लेने लगी थी। उसने देविका के दोनो कंधे पकड़ कर हिला डाले।
"देविका नाम जानना है मुझे?"
देविका-"सुन सकोगी आप?"
ममता-"तड़प रही हूँ जानने के लिए। "
देविका-"रहने दीजिए, ऐसा न हो तूफान आ जाये और आप सम्भाल न पायें। "
ममता-" देविका, मनोहर जी को खोने के बाद ऐसा कोई तूफान नही जो मुझे हिला सके। वक़्त ने
बेहद मजबूत बना दिया है मुझे। "
देविका -" तो सुनिए फिर.."
क्रमशः
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