film review jabariya jodi in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | फिल्म रिव्यू ‘जबरिया जोडी’- बेकार की भेजाफोडी

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फिल्म रिव्यू ‘जबरिया जोडी’- बेकार की भेजाफोडी

बिहार के कुछ हिस्सों में व्यापक 'पकड़वा विवाह' पर आधारित ‘अंतर्द्वंद’ तथा ‘सब कुशल मंगल है’ जैसी फिल्में हम देख चुके है. 'पकड़वा विवाह' वो होता है जहां पेशेवर गुंडे पैसे लेकर कुंवारे लडके का अपहरण करते है और फिर उसकी शादी जिस से पैसे लिए होते है उस परिवार की लडकी के साथ जबरन करवा देते है. इसी विषय पर हल्के-फुल्के अंदाज में बनी है ‘जबरिया जोडी’ जिस में पटना का गुंडा अभय सिंह (सिद्धार्थ मल्होत्रा) होशियार-होनहार दूल्हों की किडनैपिंग करके उनकी शादी उन लड़कियों से करवाता है, जिनके परिवार वाले मोटा दहेज देने में असमर्थ होते हैं. अभय के हिसाब से इस काम से वो समाज का भला कर रहा है. एक दिन उसकी मुलाकात होती है दबंग लडकी बबली यादव (परिणीति चोपड़ा) से और दोनों के बीच का रिश्ता कुछ यूं उलझता है की दूसरों की जबरन शादी करवानेवाले अभय सिंह की खुद की नौबत आ जाती है ‘जबरिया’ शादी करने की.

‘जबरिया जोडी’ की शुरुआत मजेदार अंदाज में होती है. काबिल और पढ़े-लिखे लडकों का अपहरण करो और फिर जबरन उनकी शादी करवा दो, और इस काम के लिए तगडा माल कमाओ. कहानी का कोन्सेप्ट तो मस्त है, और फिल्म के पहेले हाफ में घटनाएं भी एसी घटती रहेती है की मजा आता है. इस भाग की लिखावट भी अच्छी है. कोमेडी पंच आते रहेते है और दर्शकों को हंसाते रहेते है.

प्रोब्लेम शुरु होती है इन्टरवल के बाद, जहां फिल्म के लेखक और निर्देशक दोनों बौखला से जाते है. कहानी किस दिशा में जा रही है, किसी को कोई आइडिया नहीं रहेता. कोमेडी का स्थान ड्रामा ले लेता है और फिल्म निहायती वोरिंग बनती जाती है… बनती जाती है… बनती ही जाती है…

अंत आते आते तक तो फिल्म इतनी प्रेडिक्टेबल बन जाती है की बोरियत अपनी चरमसीमा पर पहुंच जाती है. और आखिरकार बिना कोई असर छोडे ही खतम हो जाती है ये सो-कोल्ड रोमेन्टिक-कोमेडी.

फिल्म में अगर कुछ अच्छा है तो वो है इसका एक्टिंग डिपार्टमेन्ट. परिणिती चोपरा का काम बढिया है. न केवल वो खूबसूरत दीखीं, बल्कि उनका अभिनय भी एक नंबर है. उनके मुंह से फूटी बिहारी सुनने में बडा मजा आया. जावेद जाफरी, संजय मिश्रा, नीरज सूद, चंदन रोय सान्याल, शीबा चढ्ढा जैसे अदाकारो नें अपनी भूमिका को अच्छे से न्याय दिया है. लंबे समय के बाद पर्दे पर दिखे शरद कपूर बिमार से लगे. न तो उनके पात्र में कोई दम था, न ही उनके अभिनय में. हिरो/हिरोइन के साइडकिक के रोल्स में टाइपकास्ट हो चुके अपारशक्ति खुराना की अभिनय-शक्ति यहां बिलकुल भी अपार नहीं लगी. एकाद-दो शेर अच्छे से बोलने के अलावा उनके हिस्से में ज्यादा कुछ करनेलायक नहीं आया. एली अवराम एक आधे-अधूरे गाने में आकर दो-तीन ठुमके लगाकर कब नौ-दो-ग्यारह हो गई, पता ही नहीं चला.

और कौन बचा..? अरे, हां… फिल्म का हिरो. सिद्धार्थ मलहोत्रा..!

अब सिद्धार्थ बाबु की तारीफ में क्या कहें..? ये एक एसा बंदा है (उसे एक्टर कहने का पाप तो हमसे नहीं होगा) जो लाख कोशिश कर ले फिर भी गिनेचुने दो-ढाई हावभाव से ज्यादा एक्सप्रेशन्स उसके चहेरे पर आनेवाले नहीं है. अरे सिद्धार्थ भैया, हिरोइन के तौर पर अपना डेब्यू करनेवाले टाइगर श्रॉफ भी अब तो थोडी-बहोत एक्टिंग शीख गए है. आप कब शीखोगे..? और अगर लगातार, बारबार कोशिशो के बाद भी नहीं हो रही तो एक्टिंग छोड काहे नहीं देते? फिल्म इन्डस्ट्री में एक से बढकर एक टेलेन्टेड लौंडे लाइन लगाकर खडे है, इस चाह में की उन्हें एक मौका मिल जाए तो बात बन जाए. उनको चान्स नहीं मिलता और एक मिस्टर मलहोत्रा है जिसे इतनी घटिया एक्टिंग के बावजूद एक के बाद एक फिल्में मिलती ही जाती है. ना, मुन्ना ना. एक्टिंग आपके बस की बात नहीं है. आप एक काम करो, जहां से आए हो वहीं वापिस चले जाओ और छोटी-मोटी दुकान खोल दो. शायद वो चल जाए, क्योंकी आपकी एक्टिंग की दुकान तो कतई चलनेवाली नहीं. कम से कम इस जनम में तो नहीं. सिद्धार्थवाले रोल में वरुण धवन जैसा कोई मंजा हुआ कलाकार होता तो इस रोल को काफी मनोरंजक ढंग से पेश कर सकता था. खैर, छोडो…

एक्टिंग के अलावा डायलोग्स में कोमेडी पंच है, जो की ज्यादातर फर्स्ट हाफ में ही है. निर्देशक प्रशांत सिंह का काम निहायती कमजोर है. न तो वो सिद्धार्थ-परिणिती के बीच की केमेस्ट्री को पूरी तरह से भुना पाए है, न ही फिल्म के विषय को किसी दिशा में ले जाने में सफल हुए है.

फिल्म में कुल मिलाकर पांच संगीतकारो ने काम किया है लेकिन मजाल है जो एक भी गाना सही बना हो. सब के सब इतने टेलेन्टेड है की दर्शकों के सर को पकाने में किसी ने कोई कसर नहीं छोडी. रितेश सोनी की एडिटिंग के बारे में कुछ ना ही कहें तो बहेतर होगा. कोस्च्युम्स और केमेरा वर्क बस ठीकठाक से ही है. गानों की कोरियोग्राफी गानों के बोल जितनी ही घटिया है.

मनोरंजन के नाम पे खरी नहीं उतरनेवाली इस फिल्म को मेरी ओर से 5 में से केवल 2 स्टार्स. कोई जरूरत नहीं पैसा और समय बर्बाद करने की. दो घंटे घर पे लं…बी नींद ले लेना बहेतर है.