कहते हैं ना मजबूरी इंसान को बहुत कुछ करवाती है जिंदगी में पहली बार उसने अपने भाइयों से मदद मांगी..
मरने से तो यह रास्ता उचित ही था l अब घर की चिंता नहीं थी मगर एक बात थी जो उसको खाए जा रही थी..l कोठी गिरवी पड़ी थी उसका सॉल्यूशन भाइयों से पैसा लेना हरगिज़ नहीं था l
क्योंकि अपने ही हाथों से अपनी बर्बादी की वह नीव रखना नहीं चाहती थी..l
संपत्ति का बंटवारा होने के बाद मुश्किलें बढ़ गई थी क्योंकि वो तो बिल्कुल नक्कारा था..l गृहस्ती को चलाया जा सके उतना भी घर में लाकर वो नहीं देता था l
अपनी कमाई के पैसे वो आखिर कहां खर्च करता था आज तक कोई जान नहीं पाया था l उसकी आदतों से दोनों बडे भाई वाकिफ थे l तभी तो जब प्लोट और जमीन बट रही थी तब यह सोचकर उसके नाम पर कुछ नहीं किया की कहीं मालिकाना हक हासिल होते ही वो सब कुछ बेच बटोर कर खाली ना हो जाए l
अपने हिस्से में कोठी आई थी प्लोट का बंटवारा नहीं किया गया l बड़े भाई ने नजदीक आकर फुसफुसाते हुए कहा l
अपनी दुकानों के जो प्लॉट है उसको अभी नहीं बांटने है जब भी तुम्हारे बच्चे बड़े हो जाएं तब हम उसे बेचकर तुम्हारा हिस्सा दे देंगे..! तुम अपने बच्चों का शान से ब्याह कर पाओगी..!
"ठीक है भाई साहब आप को जो अच्छा लगे..!"
उनकी बात मानने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था..!
मगर आज उस पैसों की जरूरत आन पड़ी थी l
उसने तुरंत एक कड़ा फैसला लिया l
अपने बच्चों को खाना खिला कर उसने रज्जो से कहा l
"रज्जो मुझे ओटो तक छोड दो..! मैं आज फिर अपने ससुराल जाना चाहती हूं..l"
"ठीक है मैम साहब पहले आप अपनी दवाई ले लो..l फिर चलते हैं..!
मैं बच्चों को यहीं छोड कर जा रही हूं तुम घर पर ही रहना कुछ काम है निपटा कर वापस आ जाऊंगी..l
" ठीक है मेडम जी..!"
धीरे धीरे दिमाग की नसों में दर्द होने लगा.. यह दर्द किस बात का था वो जानती थी..!
जब उसने फिनाइल घटक लिया था तब बॉडी में बहुत सारा नुकसान हुआ था ब्लड काफी खराब हो गया था, दिमाग की नसों में ब्लड में गठ्ठे बन गए थे ! जिन नसों में ब्लड सरक्युलेशन जरा सा भी अवरोध आता था तो सिर में भारी दर्द होने लगता था l
रज्जो ने याद से सारी दवाई उसे पिलाई !
फिर वो ओटो तक छोड़ने आई..! मलाल उसको इस बात का था की परिवार के लोगों उसे विलन मान रहे थे क्योंकि कुदरत ने उसकी झोली भर दी थी..! जबकि दोनों भाइयों का आंगन सुना था..! सभी अपने घर को रोशन करने के लिए उस पर डोरे डाले बैठे थे जेठ की नापाक हरकतों को उसने बाज आने नहीं दिया था तबसे वो सबके लिए आंख का कंकर बन गई थी
कभी-कभी उसे अपनी किस्मत पर हंसी आती थी अपने वारिस को तरसते हुए परिवार को ईकलौता वारिस देने के बाद भी सबकी ईर्षा का वो केंद्र थी!
ऑटो से ही उसने मां को कॉल लगाई!
मां ने भी उसे यही कहा की अपने जेठो से पैसे मांग लो मिल्कत में तुम्हारा हिस्सा भी मौजूद है!
एक बार हम तुम्हें पैसे देकर मकान छुड़ा भी दे पर वो तो तूम्हारे पति के लिए दोबारा कर्ज़ माथे करने का सबब बन जाएगा..!
"हां वही तो बात है मेरी चिंता की वजह भी यही है..!"
"उन लोगों के पास जाकर तुझे जरा सख्ती से पेश आना होगा बाकी तुम्हारे हिस्से के रुपए तुम्हें मिलने वाले नहीं है..! "
पहली बार उसे लगा आज मां को उसकी चिंता हो रही थी !
ज्वाइंट फैमिली से अलग होने के बाद पहली बार वह अपने ससुराल आई!
जेठ जेठानी ससुर और ननद हर कोई उसे पहली निगाहों से देख रहा था जैसे वह एक मुजरिम रह चुकी हो और जेल से छूटकर सीधी घर आई हो..!
उससे बदतमीजी करने वाला जेठ उसे देख कर भीतर चला गया..!
इसकी शरीर की हालत देखकर किसी को उस पर जरा भी तरस नहीं आया..!
"अब क्या लेने आई हो तुम..? मेरे बेटे की अगर शिकायत करने आई हो तो वापस लौट जाओ तुम खुद संभाल लेना उसे. .!
जैसे वह लोग पहले से ही समझ गए थे !
"शिकायत तो मुझे करनी ही है..! क्योंकि वह पहले आपका बेटा है..!
दो बच्चों का बाप हो गया है फिर भी उसे सही फैसले लेने की समझ नहीं है..l आपने जो बंटवारे में मुझे कोठी दी थी उसको वह गिरवी रख चुका है..l और अब लॉरी घुमाता है..l उसने मुझे नशीली दवाइयां देकर मेरा हाल खराब कर रखा था क्योंकि उसकी मनमर्जी में कहीं में आडे ना आउं..!
अब आप ही बताएं मुझे कहीं का उसने नहीं छोड़ा है हर रास्ते पर ला कर रख दिया है..! फाइनेंसर आकर मुझे धमकी दे गया है की आप लोग कोठी खाली कर दो वरना मैं आप लोगों को धक्के मार कर बाहर निकाल लूंगा और सामान बाहर फेंक दूंगा..!
आप लोग यह बात भूल रहे हैं कि मेरा बेटा आपके परिवार का पहला असली वारिस है ! मुझे मेरा घर वापस दिलाओ आप कुछ भी करो अपने बेटे को कंट्रोल करो वरना मुझसे बुरा कोई नहीं है..!
उसका आक्रोश चेहरे पर सिमट आया था !
उसके सास-ससुर और जेठ जेठानीयां सहम कर तमाशा देख रही थी..!
"हम उसमें क्या कर सकते हैं..!"
सास की आवाज दबी हुई थी!
बस आप इतना करो फाइनेंसर को उसके पैसे लौटा कर मेरा घर छुड़वालो..! क्योंकि आपको इतनी तो समझ होनी चाहिए कि एक बड़े घराने की बहू अपने ही घर से बाहर हो जाए तो लोग क्या कहेंगे बिरादरी में आपका क्या नाम रहेगा..?
अपनी मुश्किले खुद देखो हम लोग तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकते.. ! तुम उसी दिन हमारे लिए पराई हो गई थी जिस दिन तुमने हमारे घर के खिलाफ बोला था और बंटवारे की मुहिम लगाई थी..! तुम्हारा हिस्सा तुम्हे दे दिया है अब कुछ भी नहीं है..!
वह समझ चुकी थी की जेठ दुकानों के प्लॉट अपने नाम पर कर के बैठा था तो कानूनी तौर पर अब वह कुछ भी नहीं कर सकती थी..! फिर भी उसका जमीर उसे पीछे हट करने नहीं दे रहा था वह आज लड़ लेने के मूड में थी..!
अगर मेरा हिस्सा मुझे नहीं दिया गया तो पूरे शहर में तुम सब का जुलूस निकालूंगी..! मैं घर से बेघर हो गई तो चौराहे पर अपने बच्चों को लेकर बैठ जाऊंगी और भीख मांगूंगी...! शहर के लोग भी तो जानना चाहेंगे अमीर घराने की बहु आखिर भिखारन कैसे बन गई..?"
सब को जैसे सांप सूंघ गया..! परिवार का बहोत बड़ा नाम था उसके ससुराल वाले समझ चुके थे अगर बहू ऐसा करती है तो पूरे शहर में बनी बनाई इज्जत की धज्जियां उड़ जाएगी जिसका सीधा असर कारोबार पर पड़ेगा..!
कुछ देर तो सभी काले पीले हो गए .. आखिर बात उसकी माननी हीं पड़ी..!
उसका जेठ तिजोरी से पांच लाख रुपए निकाल कर ले आया साथ में एक कोरा कागज भी था..!
एक जगह पर नीचे उसके सिग्नेचर लेकर उसे पैसा दे दिया गया..! उन सिग्नेचर का मतलब था उन लोगों ने कोई मदद नहीं की थी बल्कि किसी ना किसी मिल्कत से उसे बेदखल कर दिया गया था..!
वह ससुराल से वापस लौटी तब आंखों में सैलाब उमड़ आया था.! उसने सोच लिया कुछ करना होगा कुछ ऐसा की कभी अपने कहलाने वाले लोगों के सामने हाथ फैलाने ना पड़े..!
वो लोग मेरी हाजरी के लिए तरस जाए..! अब कभी पीछे मुड़कर नहीं देखूंगी.. ना किसी के सामने अपने हाथ फैलाउंगी..!
एक दृढ़ निश्चय करके वो वापस आई..!
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एक बहुत बड़ी जंग वो जीत कर आई ..!
मन बहुत संतुष्ट था क्योंकि वह लड़ाई उसने अपने बच्चों के लिए लड़ी..
क्या किस्मत पाई थी उसने.. ! अपने हिस्से की रोटी को भी बचाना था l अपने साथ हुए अन्याय को वह सह गई थी मगर जब बात अपने बच्चों की आई तो एक मां प्रताड़ित करने वाले परिवार के सामने विद्रोह पर उतर आई थी ! वह समझ गई थी खून का कोई भी रिश्ता अपना नहीं था l क्योंकि जो रिश्ते उसके लिए सलामती की छत की तरह होने चाहिए थे वो सिर्फ मतलब के होकर रह गए थे..!
बच्चों ने अपनी रक्षा और सिक्योरिटी के लिए मां का संघर्ष देखा! सीधी सी बात थी मां का जीवन उनके लिए जीवन दर्पण था !
फाइनेंसर को पांच लाख रुपये देकर अपनी कोठी को उसने मुक्त करवाया l
फिर उसने स्ट्रिक्टली पति को बोल दिया !
"अपनी इज्जत और बच्चों के पापा बन कर रहना चाहते हो तो मुझे कोई भी लफड़ा नहीं चाहिए वरना आज तक कि तुम्हारी सारी हेकड़ी निकाल दूंगी जितने भी जुल्म मैंने सहे हैं उसको सूत समेत लौटाऊंगी..!
तुम्हें तय करना है बच्चों के पीछे तुम्हारा नाम बनाए रखना है या नहीं..!"
उसके तीखे तेवर देखकर वो कुछ नहीं बोला था ! वह समझ गया था अब पलट कर जवाब देने का सीधा मतलब था घर और परिवार से हाथ धो बैठना..!
कॉमर्स के साथ उसने ग्रेजुएशन की थी ! दो-चार प्राइवेट स्कूलों में अपना बायोडाटा लेकर वह घूमी..!
शायद उसका नसीब अच्छा था !
उसकी क्वालीफिकेशन देख कर एक नामी स्कूल से जॉब मिल गई..!
आरंभिक सैलरी थोड़ी कम थी लेकिन संभालने के लिए वह काफी थी अपने बच्चों का भी उसने वहीं पर एडमिशन करवा लिया !
धीरे-धीरे हालात ठीक होने लगे ! उसने कुछ कमजोर बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का जिम्मा उठा लिया !
कहते हैं ना अपने अच्छे कर्मों का फल हमें जल्द ही मिलता है..!
तकरीबन पांच छह बच्चे थे वह सभी स्कूल में टॉपर रहे ! हमेशा अव्वल रहने वाले कुछ स्टूडेंट्स और उनके पीछे मेहनत करने वाले टीचरों ने अपने दांतो तले उंगलियां दबा ली..!
एक नाम सबके सामने उभर कर आया वह था अपनी कहानी की बेनाम नायिका का..! जब स्कूल प्रशासन को पता चला यह सारा चमत्कार उसकी वजह से हुआ है तो स्कूल में उसका सम्मान करते हुए उसे एक जिम्मेदारी और सांप दी..!
स्कूल की ही कोचिंग क्लासेस की एक बड़ी संस्था थी जिसका प्रमुख होद्दा अपनी नायिका को सौंप दिया गया..!
अब सैलरी तगड़ी थी..! किसी से कोई शिकायत नहीं थी ! एक इंटरनेशनल बैंक में मिली जॉब का ऑफर अपनी मजबूरियों की वजह से अपना मन मार कर ठुकराया था..! उस बात का फल उसे आज मिला था..!
कहते हैं ना सपने उन्हीं के सच होते हैं जिस के सपनों में जान होती है !
समय हर दर्द की दवा होता है अब उसे जिंदगी से भी शिकायत नहीं थी..! दोनों बच्चे उसी के सांचे में ढल रहे थे ना कि अपने पिता के..! अपने आदर्श अपने ही संस्कार और श्रेष्ठ गुणों का प्रतिबिंब उसने बच्चों में पाया..! सबसे बड़ी खुशी उसे इसी बात की थी कि पिता के साथ रहते भी उनका एक भी अवगुण बच्चों में नहीं उतरा था..! वो अपनी तपस्या में सफल हुई थी..! भले ही आज पति का खानदान उसको ज्यादा महत्व नहीं देता था ! पर उसने साबित कर दिया था की वह कमजोर नहीं है अपने बलबूते पर अपने बच्चों की परवरिश कर सकती है ! और उन्हें एक ऐसा अच्छा इंसान बना सकती हैं जो बड़े-बड़े पैसे वाले लोग भी अपने बच्चों की ऐसी परवरिश के लिए तरस जाते हैं..!
स्नेह की एक ऐसी डोर उस ने बांधी थी अपनी जबान की वो मिठास उसने चारों तरफ फैलाई थी की बड़े बुड्ढे तो क्या बच्चे भी उसका सम्मान करते थे ! इन सब से रिश्ता अपनेपन का था मन का था और यही लोग थे जो उसका अच्छा बुरा समझते थे..! खून के रिश्तो से हमेशा मन के रिश्ते बड़े होते हैं !
सारंग और गुड़िया अब बड़े हो चुके थे दोनों मां की बहुत केर करते थे..!
स्टाफ के ही एक टीचर ने सारंग के लिए एक लड़की का सुजाव दिया..!
फिर क्या था बात आगे बढ़ी ! बच्चों को मिलाया गया ! सारंग थोड़ा लंबा गोरा और उंचा था जबकि लड़की की ऊंचाई कम थी और थोड़ी शाम थी.. फिर भी दोनों ने एक-दूसरे को पसंद किया क्योंकि उन्हें जो संस्कार मिले थे उसमें कहीं भी दिखावे की सुंदरता का कोई मोल नहीं था..!
लड़की का परिवार पैसों के मामले में थोड़ा कमजोर था ! मगर यह बात उसके लिए कोई भी मैटर नहीं रखती थी ! लड़की के मां बाप को पूछ कर आपस में सहमति से बच्चों का रिश्ता जोड़ा गया !
अपने दम पर कुछ ही दिनों में फिर से कोठी हवेली की तरह लगने लगी थी ! कोठी को रंग बिरंगी लाइट्स डेकोरेट करके सजाया गया था ! रात के अंधेरे में कोठी की सुंदरता देखते ही बनती थी !
सारंग की शादी थी ! आस पड़ोस वाले जान पहचान वाले स्कूल का पूरा स्टाफ उसके सभी दोस्त मस्ती में नाच रहे थे..!
और वही पंजाबी गाना आज फिर बज रहा था..!
"आंखों की सारी मस्तियां मेह में मेरे निचोड दे
दो घुट पिला दे साथिया बाकी मुझ पे रोड दे.. !"
अच्छी फैमिली की यही पहचान थी पीने पिलाने की महफिल सजी थी और जाम फ्रूट जूस और शरबत के थे..!
सारंग के पिता सूट बूट लगाकर बेटे की शादी का लुफ्त उठा रहे थे..!
( समाप्त)
कहानी के अंत मैं लेखक के दो शब्द..
पहले तो सब से क्षमा मांगता हूं की यह कहानी अपने एक-एक पार्ट के बीच लंबे अंतराल पर प्रकाशित हुई !
समय के अभाव के कारण यह हुआ था !
दास्तान ए इश्क को काफी सराहा गया इस कहानी ने लेखन क्षेत्र में मेरी हॉरर स्टोरी की बनी बनाई इमेज पर सीधा धावा बोल दिया !
बहुत सी औरतो ने लीखा कहानी उनके जीवन से मिलती-जुलती है तो किसी ने दर्द से भरा दरिया कहकर छोड़ दिया..! कुछ लोग थे जो हमेशा नायिका के जीवन में खुशियों की बहार देखने के लिए तरसते रहे..! यकीन मानिए मैं भी यही चाहता था..!
जब कहानी की नाईका से मिला.. उनकी जिंदगी के बारे में जाना तो मुझे भी यही लगा था..! ऐसा कैसे हो सकता है की पूरे जीवन में कोई भी मौका खुशी का आए ही नही..!
ज़िंदगी हकीकतो से कोसों दूर होती है जब हम दर्द की दास्तान को पढ़ नहीं सकते तो उस दर्द की दास्तान मैं ढल जाने वाले इंसान को लाख लाख सलाम है..! बहुत कम लोग होते हैं जो अपने माता पिता की खुशियों के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दे ! उनके भी सब्र की इंतहा हो गई थी तो कहा इतना सारा दर्द कहानी में उड़ेलना ठीक नहीं होगा.. इसे यहीं समाप्त कर दो..!
आप सुख सब का शुक्रगुजार हूं की ऐसी दर्द की कहानी को भी आपने पढ़कर सराहा अब एक नई हॉरर कहानी जिंदा कब्रस्तान लेकर हाजिर हुं जो "कहानियों की दुनिया" नाम की एप्लीकेशन पर आ रही है पढ़ना ना भूले
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