कहानी है अभी से दो हजार साल पहले की,बिहार में एक राजा हुआ करते थे,उनका नाम था चंदन सिंह । वे पराक्रमी राजा थे । वे अपनी प्रजा को अपने संतान के समान मानते थे,और उनका हर दुख-सुख में मदद करते थे । वे न्यायप्रिय और बहुत ही शक्तिशाली राजा थे । उनके सामने हाथी भी कुछ नही था ।उनके तीन पुत्र थे ।उनके राज्य में एक पुराना परंपरा था,की अगर कोई राजा किसी कारणवश मारा जाता है,अगला राजा उसका बेटा बनेगा । राजा चंदन सिंह बूढ़े हो गए थे । उनका सपना था की उनके बाद उनका बड़ा बेटा राजा बने । उन्होने घोषणा कर दिया,की आने वाले पूर्णिमा के दिन पुराने परंपरा के अनुसार मेरे बड़े बेटे श्री राजू सिंह नीलमनी हीरा लाने जाएंगे । उनके पास कूल तीन महिने समय होंगे,अगर वे सारे कठिनाईयों को पार करके हीरा ले आएँगे,तो वे राजा बन जाएंगे । अगर वे तीन महिने के भीतर हीरा लेकर नही आएँगे,तो मेरे दूसरे पुत्र श्री उज्जवल सिंह जाएंगे ।
राजकुमार राजू सिंह पूर्णिमा के दिन नीलमनी हीरे को ढूँढने निकले,निकलते समय उनके पिताजी बोले:-बेटा रास्ते में तुम्हे सात परेशानियों का सामना करना पड़ेगा,घबराना नही,नही तो तुम मारे जाओगे । पिताजी की बातों को याद रखकर राजकुमार निकल पड़े । वे कुछ दिनों के बाद एक पहाड़ के पास पहुँचे । वे जैसे ही पहाड़ को पार करना चाहे,पहाड़ से आवाज आई:-सावधान,आगे मत बढ़ो,नही तो मारे जाओगे । बड़े राजकुमार यह आवाज सुनकर डर गए,और उल्टा दिशा में भागने लगे,आगे खाई थी ।वे बिना देखे ही कूद गए,और मारे गए ।
इधर तीन महीना पूरा हुआ,राजकुमार का कोई खबर नही आया,तो राजा साहब उदास हो गए और अपने दूसरे बेटे राजकुमार रतन सिंह यात्रा पर निकल पड़े,वे शक्तिशाली थे,और समझदार भी थे । वे भी पहाड़ के पास पहुँचे,और पहाड़ पर चढ़ना चाहे,तो पहाड़ से आवाज आई:-रूको,नही तो मारे जाओगे । वे डर रहे थे,पर अपने हौंसले को बनाए रखे । पहाड़ तीन सवाल पूछा,राजकुमार सभी सवालों के जबाब दे दिए,और आगे बढ़ गए । दूसरे पड़ाव में जल से उनका मुलाकात हुआ,वे जल को भी पार कर गए,पर तीसरे पड़ाव पर एक बहुत बड़ा राक्षस से उनका मुलाकात हुआ,वे डर गए,और हृदयाघात से उनका मौत हो गया ।
राजा साहब अपने बेटे का इन्तजार करते-करते बिमार हो गए,दो महीना पूरा हो गया । राजकुमार का कोई खबर नही आया,राजा साहब डर गए,की कहीं उनका दूसरा बेटा भी तो..............!
तीन महीना हो गया,राजा साहब संतोष करके रह गए ।
अब उनके तीसरे और सबसे छोटे बेटे की बारी थी । राजा साहब छोटे राजकुमार को नही देना चाहते थे । वे बोले:-राजकुमार आपके दोनो बड़े भाई शायद मारे गए,उनका कोई खबर नही आया । आप नही जाइए,मै पुराने परंपरा को बदल दूंगा,आप मेरे बुढ़ापे के लाठी हैं,अगर आपको कुछ हो गया,तो मै किसके सहारे जीउंगा । राजकुमार बोले:-पिताजी आप निश्चिंत रहें,मै अपने हौंसले को बरकरार रखूंगा,और अपने बुद्धिमता के बदौलत नीलमनी ले आऊंगा । और छोटे राजकुमार यात्रा पर निकल गए,महाराज उन्हें देखते रह गए । राजकुमार पहले पड़ाव के पास पहुँचे,वहाँ पर उन्होने सभी सवालों का सही-सही जबाब दे दिया,और दूसरे पड़ाव के पास पहुँचे,वहाँ पर जल के बीचो-बीच एक कमल का फूल था,नदी में बिना जाए हुए ही उस कमल को बाहर लाना था,और बाहर नदी के किनारे रखना था,तभी तीसरे पड़ाव का रास्ता मिलता,कमल के पास एक बन्दर बैठा था,राजकुमार ने दिमाग लगाया,और अपने धनुष से एक तीर बन्दर की ओर छोड़ा,बन्दर को तीर लगा और वह चिल्लाया । बन्दर को कुछ नही दिखा,तो वह कमल चला के राजकुमार को मारना चाहा । कमल आकर किनारे पर गिरा । राजकुमार तीसरे पड़ाव पर पहुँच गए । वहाँ पर भी वे अपने बुद्धि और हौंसला से आगे बढ़ गए,इसी तरह राजकुमार छठे पड़ाव तक पूरे कर लिए,और आखिरी यानी सातवे पड़ाव पर पहुँच गए ।
सातवे पड़ाव पर उन्हे आठ भीमकाय राक्षस दौर कर उनकी ओर आते हुए दिखाई पड़े,राजकुमार डर गए,तभी पिताजी की कही हुई बात याद आ गई,और वे अपना हौंसला बरकरार रखने में सफल हुए,अपना दिमाग लगाए और जैसे ही सभी राक्षस उनके पास आए,वे थोड़ा सा झुक गए और सारे राक्षस एक दूसरे से टकराकर मारे गए । और राजकुमार नीलमनी हीरा लेकर अपने घर वापस आ गए,और वे राजा बने । अगर वे अपना हौंसला बरकरार ना रखते तो कभी वे राजा ना बन पाते ।।