Aatmsamman in Hindi Women Focused by Saroj Prajapati books and stories PDF | आत्मसम्मान

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आत्मसम्मान

मम्मी जीजा जी का फोन आया है।"
" तू बात कर मैं अभी आई । "
नहीं मम्मी कह रहें हैं जरूरी बात करनी है आपसे जल्दी आओ।" यह सुन कमलेश जी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा कि ऐसी कौन सी बात हो गई कि सिर्फ मुझसे ही बात करनी है । उन्होने कांपते हाथों से फोन पकड़ा, फोन सुनते ही उनके चेहरे पर घबराहट फैल गई। रश्मि को कुछ समझ नहीं आ रहा था। अपनी मां के फोन रखते ही वह बोली "मम्मी क्या हुआ दीदी को सब ठीक है ना?"
"हां, सब ठीक है ! तू अपने पापा को फोन कर शाम को जल्दी घर आ जाए। दीदी के घर जाना है।" यह कह वह
रसोई में लग गई लेकिन काम में उनका मन नहीं लग रहा था। रह-रह कर उसका मन किरण से मिलने को मचल रहा था।
दो ही संताने थी उनकी, किरण और रश्मि । जिसे उन्होंने लड़कों से बढ़कर पाला था । दोनों ही बेटियां पढ़ने लिखने में बहुत तेज थी और रूप व गुणों में भी उनका कोई सानी ना था। सभी रिश्तेदार व पड़ोसी उनकी खूब प्रशंसा करते हुए कहते थे कि देखना इतनी सुंदर व सुशील लड़कियों का रिश्ता तो घर बैठे ही आएगा।
सबकी बातें सही भी निकली । किरण के लिए घर बैठे बिठाए ही एक बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया था। लड़के व उसके परिवार वालों ने उसे एक शादी समारोह में देखा था। वह उसके रूप व गुणों से बहुत प्रभावित हुए थे।
सुधीर जी तो अपनी बेटी की किस्मत पर फूले नहीं समा रहे थे । उन्होंने इस बारे में किरण से बात की तो वह बोली "पापा अभी तो मेरी पढ़ाई पूरी हुई है, मैं नौकरी करना चाहती हूं और कुछ बन आपका नाम रोशन करना चाहती हूं ।"
अपनी बेटी की बात सुन सुधीर जी भावुक होते हुए बोले "मैं तेरी भावनाओं की कद्र करता हूं बेटा , लेकिन हर बाप की तरह मेरा भी सपना है कि मेरी लाडली शादी कर एक अच्छे घर जाए। तेरे लिए तो इतने अच्छे घर से रिश्ता आया है। मैंने खुद उनसे बात की है, बड़े अच्छे लोग हैं । लड़का भी अच्छे पद पर है । उन्होंने तो साफ शब्दों में कहा है कि उन्हें लड़की के अलावा कुछ नहीं चाहिए।"
अपने पिता की बातें सुन किरण ने ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा और उनकी खुशी के लिए हां कर दी। खूब धूमधाम से सुधीर जी ने किरण की शादी की। शादी के कुछ दिन बाद जब किरण पहली बार घर रूकने आई तो उसकी मां ने महसूस किया कि किरण सबके सामने तो खुश रहती है लेकिन अकेले में अक्सर वह उदास सी रहती थी। नई नवेली दुल्हन की रौनक भी उसके चेहरे पर ना थी।पहले तो उन्होंने यह सोचा शायद शादी ब्याह की थकावट होगी और अभी नए घर में उसे व्यवस्थित होने में समय लग रहा होगा। लेकिन जब दो-तीन महीने तक भी हर बात पर चहकने वाली किरण ज्यादा ही गुमसुम रहने लगी तो उनसे ना रहा गया।
उन्होंने इस बारे में अकेले में उससे बात करनी चाही तो वह फीकी सी हंसते हुए बोली "आपके बिना मन नहीं लगता न मम्मी ।"
"बेटा मैं तेरी मां हूं, बिन बोले ही तेरी आंखें पढ़ लेती हूं। मुझे नहीं बताएगी लाडो अपने मन की बात ।"
यह सुन किरण रोने लगी अपनी बच्ची को यूं रोता देख कमलेश जी का कलेजा फटने लगा । उन्होंने उसे गले लगाकर किसी तरह शांत किया । थोड़ी देर बाद किरण ने कहा " मम्मी मेरे सास ससुर बहुत अच्छे हैं। मेरी बहुत फिक्र करते हैं ,जैसे मैं उनकी बहू नहीं बेटी हूं।"
" तो फिर मेरी बच्ची तुझे क्या दुख है !क्या रितेश ने कुछ कहा।" थोड़ा चुप रहकर किरण बोली "मम्मी रितेश भी अच्छे हैं और मेरा बहुत ख्याल रखते हैं ।"
"तो किस गम में घुले जा रही है तू?"
" मां सब कहते थे ना कि मैं बहुत सुंदर हूं तो मेरा यही रूप रंग मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है।"
" क्या मतलब ?" कमलेश जी ने आश्चर्य से पूछा।
" मम्मी रितेश वैसे तो बहुत अच्छे हैं पर उसे किसी से भी मेरा हंसना बोलना पसंद नहीं । हर बात पर शक करते हैं।
एक दिन तो हद हो गई मेरे सास ससुर किसी काम से बाहर गए हुए थे और यह ऑफिस में । तभी उनका एक दोस्त जो शादी में नहीं आ सका था, घर आया। मैंने उसे अंदर बुलाकर चाय नाश्ता करा दिया। शाम को जब यह आए तो इस बात पर उन्होंने खूब कोहराम मचाया कि हम सब की गैरमौजूदगी में तुमने अकेले उसे अंदर क्यों बुलाया । मेरे ससुर ने मेरा पक्ष लेते हुए उसे खूब समझाया कि इसमें गलत क्या है! इसने हम से पूछ कर ही उसे अंदर बिठाया था, क्या अच्छा लगता कि तुम्हारे दोस्त को यह दरवाजे से ही लौटा देती ।लेकिन उनके दिमाग में शक ने ऐसी जगह बना ली थी कि वह किसी की भी सुनने को तैयार नहीं थे।"
किरण की बातें सुन कमलेश जी का दिल धक से रह गया। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था जिस बेटी की किस्मत पर वह नाज कर रही थी ,वह ऐसे तिल तिल कर जल रही है ।उन्होंने किसी तरह खुद को संभालते वह कहा " बेटा शादी दो अनजान लोगों का मिलन है, जिसमें साथ रहते हुए हम धीरे-धीरे एक दूसरे को समझते हैं। हो सकता है रितेश तुम्हें अभी अच्छे से समझ ना पाया हो। लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरी किरण अपने व्यवहार से जल्दी ही उसके मन में बैठी गलतफहमी दूर कर देगी ।"
किरण ने हां में सिर हिला दिया ।किंतु कमलेश जी व किरण यह अच्छी तरह से जानती थी कि शक का कीड़ा अगर एक बार मन में बैठ जाए तो उसे चाह कर भी निकालना असंभव सा ही है ।लेकिन दोनों ही अपने मन को झूठी तसल्ली दे बैठी थी और आज फोन। दिल बैठा जा रहा था उनका ।अपने पति के आते ही वह किरण के घर पहुंचे ।
घर पर सभी मौजूद थे किरण के पिता ने अपने समधी जी को नमस्कार कर बात पूछनी चाही लेकिन उन्होंने बिना कुछ कहे सिर झुका लिया ।तब उन्होंने रितेश की तरफ देखा रितेश ने गुस्से से कहा "मैं किरण को अपने साथ नहीं रख सकता। मैं उससे तलाक लेना चाहता हूं।" इतना सुनते ही उनके पैरों तले से जमीन निकल गई। उन्होंने थोड़ा धैर्य रखते हुए इसका कारण जानना चाहा तो वह गुस्से से बोला "जाकर अपनी बेटी से ही पूछो ।"
किरण के पिता कुछ समझ नहीं पा रहे थे उन्हें लगा शायद छोटा-मोटा झगड़ा हुआ होगा दोनों के बीच। हाथ जोड़ते हुए कहा "बेटा कोई किरण से गलती हुई है तो हमें बताओ हम समझाएंगे उसे ।"
"मुझे कुछ नहीं समझना आप अपनी बेटी को ले जा सकते हैं। अब हम साथ कभी नहीं रह पाएंगे "यह कह वह बाहर चला गया ।
दोनों उठ अंदर किरण के पास गए।किरण अपने नवजात बेटे को गोद में लिए शांत भाव से बैठी थी । किरण की मां उसे देख रोने लगी। किरण ने कहा" मां मैंने कहा था ना आपसे कि शक्की आदमी को कितना भी समझाओ पर उसका शक का कीड़ा हमेशा कुलबुलाता ही रहता है और आज उसकी अति हो गई। कल शाम इनके कुछ दोस्त हमारे बेटे को देखने आए थे ।उनमें वह दोस्त भी था जो उस दिन आया था।सारे दोस्त पार्टी के लिए जिद करने लगे तो उस दोस्त ने सबके सामने हंसते हुए यह कह दिया कि रितेश के बेटे होने की खुशी में आज मेरी तरफ से पार्टी है। यह सब सुन इनके पुरुषत्व पर चोट पहुंच गई ।उनके जाते ही इन्होंने मेरे चरित्र पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया और इल्जाम लगाने लगे कि उस ने मेरा बेटा होने पर अपनी तरफ से पार्टी देने की क्यों कही ! इसका मतलब यह बच्चा मेरा नहीं! मैंने और मेरे ससुर ने इन्हें खूब समझाया किंतु यह अपने शक में अंधे हो मेरे चरित्र के चिथड़े करते रहे और मुझसे अलग होने की धमकी दे डाली।
पापा औरत हर ज़ुल्म बर्दाश्त कर सकती है, पर उसके चरित्र पर कोई लांछन लगाए यह वह कभी सहन नहीं कर सकती। क्योंकि इसका अर्थ है ,उसके माता-पिता के संस्कारों को गाली ‌। पापा मैंने इस इंसान के साथ हर तरह से निभाने की कोशिश की लेकिन अब और नहीं। मैंने भी फैसला कर लिया है कि मैं इसके साथ नहीं रहूंगी ।अपने बेटे की परवरिश मैं खुद करूंगी बिना अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता किए ।क्या आप मेरा साथ देंगे?"
किरण की बात सुन सुधीर जी ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा "बेटा मैंने शुरू से ही तुम्हें आत्मसम्मान के साथ जीना सिखाया है तो आज क्या मैं तुम्हें समाज के डर से अकेला छोड़ दूंगा । पति पत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास का होता है और जब यही नहीं रहा तो इस रिश्ते को जबरदस्ती ढोने का कोई फायदा नहीं। मेरी बच्ची, इस फैसले में हम तुम्हारे साथ हैं।"