Adrashya Humsafar - 16 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 16

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अदृश्य हमसफ़र - 16

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 16

अनुराग की चेतना जैसे लुप्त हो गयी थी। उन्होंने कभी ख्वाबों में भी ममता के इतने करीबी स्पर्श
की कामना नही थी। प्रेम तो किया उन्होंने लेकिन कभी भी अपनी मर्यादा को नही छोड़ पाये। आज जब भावातिरेक में ममता ने अनुराग को कस कर पकड़ा और उनकी गोदी में सिर रखकर रोने लगी तो उन्हें कुछ समझ ही नही आया कि क्या करें?

आज अनु दा बनकर ममता को सम्भालने की मंशा पर उसमें छुपी अपनी प्रेयसी के संग कुछ पल जीने की चाह हावी हो गयी। उन्होंने ममता को जी भर कर रोने दिया। इन कुछ पलों में अनुराग ने असख्यं पलों को जीया।

रोते रोते जब ममता का मन हल्का हुआ तो उसने अपना सिर उनकी गोद से उठाया। ममता का सिर अपनी गोदी से उठते देख अनुराग की जड़ता भी वापिस चेतना में लौटी। आज अनुराग नही चाहते थे कि ममता वहाँ से उठे लेकिन हमेशा की तरह भावनाओं पर संस्कार भारी पड़ने लगे।

अनुराग ने मुन्नी को दोनो बाहों से पकड़ा उसे उठाया और सामने की कुर्सी पर बैठा दिया। गिलास में पानी भरकर उसके होठों से लगा दिया। पानी पीते पीते ममता काफी हद तक शांत हो चुकी थी। अपने आजू बाजू देखा उसने लेकिन कुछ दिखाई न दिया तो साड़ी का पल्लू की पकड़ लिया। जैसे ही पल्लू से अपने आंसूं पोंछने को हुई हमेशा की तरह अनुराग का हाथ सामने आ गया। अपने रुमाल से उसके आँसू पोंछने लगे थे अनुराग।

अनु दा -" वैसे तो हमेशा पेरफ़ेक्टली तैयार रहती हो मुन्नी लेकिन रोने के बाद तुम्हें मेरा ही रुमाल गन्दा करना होता है। अब नाक न पोंछना इससे, गन्दी बच्ची। "

ममता की हंसी फिर से छूट गयी और बोली-" अब तो नाक भी जरूर पोछूँगी इससे देखना। जब गन्दी बच्ची बोल ही दिया है मुझे तो । "

माहौल को हल्का बनाने में महारत हासिल थी अनुराग को। मौके की नजाकत के हिसाब से ममता को एक दो चुटकुले सुनाए और ममता भी एकदम से सामान्य स्थिति में लौट आयी।

ममता-" अनु दा, मुझे कई बार ऐसा महसूस होता है कि जैसे मैं कोई गुड़िया थी चाबी वाली जिसकी चाबी आपके हाथ मे रही हमेशा। रोती हुई को हँसाना और हँसती हुई को रुलाना आपके बाएं हाथ का खेल रहा। बस जरा चाबी घुमाओ और ममता का मूड बदलो। "

अनु दा-" थी से क्या मतलब है बावली। देख तो, आज भी तो वैसी की वैसी ही हो तुम। जरा भी तो नही बदली हो।

अभी दो मिनट पहले ही कितना रो रही थी और अब जैसे तुमने एक आंसू नही बहाया। ममता मुस्कुरा कर बस सहमति में सिर हिलाकर रह गयी। "

कुछ देर फिर से इधर उधर की बातें होती रही कि अचानक से अनु दा की नजर आसमान की तरफ उठी। तारों का टिमटिमाना अपने अंतिम चरण पर था। आकाश पर हल्की हल्की लालिमा दिखने लगी थी। उन्होंने अपने आस पास नजर घुमाई तो अंधेरा भी लगभग छंट चुका था। भोर होने हो आई थी और उन दोनों को कोई होश ही नही था। उन्होंने मुन्नी का हाथ पकड़ा और कहने लगे-" मुन्नी, छत के दूसरे छोर पर चलो, आज तुम्हे उगता हुआ सूरज दिखाता हूँ देखो। छत के पूर्वी कोने से इतना खूबसूरत दिखता है कि अक्सर मैं सूर्योदय के वक़्त यहाँ आने का मोह नही छोड़ पाता। उठो उठो, जल्दी चलो। बस कुछ पल का ही खेल होता है फिर तो सूरज अपने रंग में आ जाता है। "

ममता उठी और तेज कदमों से अनुराग के साथ छत के पूर्वी छोर की ओर बढ़ने लगी।

ममता ने महसूस किया कि अनुराग ने उसका हाथ जिस हक़ से और सख्ती से पकड़ा है पहले कभी नही पकड़ा था। वह तेजी से चलने के बावजूद लगभग खींची सी चली जा रही थी।

सामने की छटा एकदम से निराली थी। सतरंगी इन्द्रधनुष के रंग आसमान पर फैलने लगे थे। रात की स्याही धीरे धीरे कम से कमतर होती जा रही थी। इंद्रधनुषी रेखा विस्तार लेते हुए अपनी परिधि को बढ़ाती जा रही थी। वहीं बीच में से एक नारंगी रंग की गेंद उभरने लगी थी जो धीरे धीरे बड़ी होती जा रही थी।

" उई माँ " - कहते कहते ममता की आंखे विस्मय से बड़ी हो गयी और मुंह पूरा का पूरा खुल गया। दोनो बस खामोशी से उगते सूरज का नजारा देखने में खो गए । निःशब्दता हावी हो गयी और खुशनुमा खामोशी ने अपने पैर पसार दिए। ये खामोशी खुशी के अहसास से दोनो को ही सरोबार कर रही थी।

नारंगी रंग की गेंद धीरे धीरे बड़ी होती हुई सूरज में तब्दील होने लगी। उगते हुए सूरज की नरमी बस कुछ पल का ही खेल था। जैसे जैसे थोड़ा वयस्क होना आरम्भ किया सूरज ने अपनी अटखेलियां आरम्भ कर दी। अब उसका तेज आंखों के लिए असहनीय होने लगा तो एक साथ ही दोनो एक दूसरे की तरफ धूमे।

" देखा मुंन्नी "- अनुराग ने पूछा

"हाँ, देखा न। सच कहती हूँ आज से पहले सूर्योदय का इतना बेहद खूबसूरत नजारा कभी नही देखा था। "- ममता के मन की खुशी उसके चेहरे के साथ साथ उसके शब्दों में भी झलक रही थी।
अनुराग-" चलो ममता, अब नीचे चलते हैं। सब उठने लगे होंगे। तुम भी थोड़ा आराम कर लो। अभी बहुत सी बातें बची हैं कहने को। दोपहर के खाने के बाद बात करेंगे।

ममता ने हँसते हुए कहा-" मेरा हाथ तो छोड़िए अनु दा, तभी तो जाऊंगी न। "

"अरे हाँ" - कहते हुए अनुराग ने ममता का हाथ तो छोड़ दिया लेकिन मन की पीड़ा चेहरे पर उभर आई। आज न जाने वक़्त ने क्या करिश्मा दिखाया था जो उन्होंने ममता का हाथ अचानक से पकड़ लिया। अब छोड़ने का मन ही नही था लेकिन मजबूरी थी।

ममता उनसे नीचे आने को कहकर चली गयी। आप आ जाइये तब तक चाय नाश्ता रखवाती हूँ।
अनुराग बस सहमति में गर्दन हिलाते हुए उसे जाते हुए देखते रहे।

ममता जैसे ही नीचे आई, सूरज भैया से सामना हुआ उसका।

"राम राम जिज्जी" - वह बोले

ममता- " राम राम सूरज भैया, हमेशा खुश रहिये। "

सूरज भैया-" आज इतने बरसों बाद अनु दा आपके सामने आए हैं। बिना लड़े तो छोड़ा नही होगा आपने। "

ममता-" अरे नही । मेरी तो शिकायतें लड़ाई पर भारी पड़ गयी। लड़ ही नही पाई मैं तो। "

तभी बड़े भैया वहाँ आ चुके थे, हँसते हुए बोले-" हमें तो लगा था कि आज अनु दा के बचे खुचे बाल भी नही बचेंगे। उनके बालों से तो तुम्हारी खास दुश्मनी जो रही। "

ममता ठुनक उठी-" बड़े भैया, अरे घुघराले बाल हैं न तो हाथों में अच्छे से पकड़ में आ जाते थे बस। और क्या। तो जब गुस्सा आता था वही खींच देती थी। "

बड़े भैया तपाक से बोले-" वैसे जिज्जी, आपको उन पर गुस्सा कब नही आता था। "

मुन्नी ने झूठ मूठ का गुस्सा और नाराजगी दिखाई तो सभी हँसने लगे।

रात को जो घर बेटी की बिदाई के बाद से उदास हो गया था उसी घर के आंगन में ठहाके गूंज रहे थे।

तभी दोनो भाभियाँ भी चाय नाश्ता लेकर आ गयी।

बड़ी भाभी ने ममता को पुकारा-" जिज्जी आपने तो एक पल भी आराम नही किया। दो बार गए थे ये आपको बुलाने लेकिन आप दोनो को बातों में मशगूल देख कर बिना बुलाये लौट आये। कहने लगे आज अनु दा की खैर नही। सालों बाद मुन्नी के हत्थे चढ़े हैं। हम तो उन्हें कुछ कह नही पाते लेकिन जिज्जी बख्शेगी नही। "

भाभी ने जिस अंदाज से बात कही सभी फिर से हँसने लगे।

अनुराग भी नीचे आ चुके थे।

ममता ने मुस्कुराते हुए उन्हें देखकर कहा-" सही कहा भैया ने, अभी तो मुझे मेरे ढेर सारे सवालों के जवाब लेने हैं। वह मिल जाये फिर असल मुन्नी वाला रूप दिखाउंगी इन्हें। सजा तो मिलनी चाहिए न। ऐसे कैसे मुझे बीच मझदार में छोड़कर गायब हो गए थे। "

अनुराग की जान उछल कर हथेली पर आ गयी थी। मुन्नी ने पहली बार ऐसे मुस्कुरा कर उनकी तरफ देखा था नही तो जब देखती थी चंडी रूप अख्तियार किया होता था।

अनुराग मन ही मन सोचते जा रहे थे कि ममता अभी भी बेहद खूबसूरत है जबकि जिंदगी का सबसे बड़ा तूफान भी झेल चुकी है। मनोहर जी का जाना भी चेहरे की मासूमियत कम नही कर पाया था।

"अनु दा, चाय"- सोच के भंवर से बाहर आये अनुराग तो ममता उनके लिए चाय का कप लेकर खड़ी थी।

"अनु दा, आप दो घण्टे आराम कर लीजिए फिर आपकी क्लास लगनी तय है। "- ममता कह रही थी।

अनुराग ने कोई जवाब नही दिया, बस एक फीकी हंसी के साथ कप पकड़ लिया।
बैठक में मंडली जम चुकी थी। सभी चाय पीते पीते पुराने किस्सों का पोथा खोलकर बैठ गए थे।

काकी लगी हुई थी एक के बाद एक सभी बच्चों की पोल खोलने उनके बच्चों के सामने।

ममता की नजर तभी दरवाजे की तरफ उठी तो एक महिला को अंदर आते देखा। बहुत जोर लगाया दिमाग पर लेकिन पहचान नही पाई, बस इतना कि देखा तो हुआ है इनको।

उत्सुकता वश सुनीता भाभी से पूछ बैठी-" सुनीता...ये कौन है?"

"अरे जिज्जी, आपने पहचाना नही। देविका भाभी हैं ये। अनुराग भैया की पत्नी। "

ममता चौंक गयी-" मैँ कैसे पहचान लूँ सुनीता, मुझे क्या कभी किसी ने मिलवाया इनसे। जब भी किसी समारोह में आई तो इन्हें देखा तो है लेकिन कौन है यह कैसे जान पाऊंगी आप सभी के बताए बिना। "

"अनुराग की पत्नी" इन तीन शब्दों ने उसके मन को खींच लिया। गौर से निहारने लगी सब कुछ भूलकर।

इकहरा बदन,

हल्का साँवला पन लिए हुए रंगत,

नयन नख्श गज्जब के तीखे,

आंखे बेहद आकर्षक और बड़ी बड़ी।

कुल मिलाकर बेहद खूबसूरत लग रही थी। चेहरे पर इतना आकर्षण कि ममता नजर ही नही हटा पायी। सांवली रंगत भी ख़ूबसूरती को और बड़ा रही थी। सलीके से साड़ी पहनी हुई और करीने से बाल बनाये हुए। माथे पर केसर का तिलक, कुल मिलाकर अपने नाम को सार्थक कर रही थी

देविका। नहा धोकर प्रातः पूजन के वाद नाश्ते पर आयी थी।

ममता उठी और देविका को गले से लगा लिया। कुछ पल बस यूं ही लिपटी रही उससे।

अपनी बगल में जगह बनाते हुए बोली, देविका -" आप यहाँ बैठिए मेरे पास। माफी चाहूंगी, मुझे किसी ने कभी बताया ही नही आप अनु दा की पत्नी हैं। "

देविका हंस दी -" कोई बात नही, क्या हुआ फिर भी हम मिलते तो थे न । "

मुन्नी का अंदाज शिकायती लहजें में परिवर्तित हो गया-" लेकिन वैसे तो नही न जैसे आज मिले। "

देविका ने कहा कि अनुराग नही चाहते थे हमारा आपस में परिचय हो।

इतना सुनते ही ममता की सारी खुशी काफूर हो गयी। उसे लगा एक जोरदार धमाका हुआ है कहीं जिसकी आवाज उसके कानों में गूंज रही है।

मजबूर हो गयी फिर से सोचने पर कि अनु दा ने ऐसा क्यों किया?

उसने आग उगलती नजरों से अनुराग की तरफ देखा तो अनुराग ने हाथ से इशारा करते हुए बस इतना कहा कि- "सब बताऊंगा सब, दोपहर को फिर बैठेंगे न। चंडी रूप ईख्तियार न करो बस। "

ममता अब बैचैन हो उठी थी। दोपहर का इंतजार भी उसे भारी पड़ रहा था।

क्रमश

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