Kasoor ? in Hindi Moral Stories by zeba Praveen books and stories PDF | क़सूर ?

Featured Books
Categories
Share

क़सूर ?

आज एक अजीब सी उदासी छायी थी रामु के चेहरे पर, कल उसकी बेटी के ससुराल से फ़ोन आया था, यह याद दिलाने के लिए कि दहेज़ का पचास हजार अभी देना बाकी हैं | शादी के एक साल होने वाले थे, रामु ने जो पैसे सुनीता की शादी में खर्च किये थे वो अभी चुका नहीं पाया था कि और खर्चे उभर कर आने लगे थे,कल तक तो सुनीता ही याद दिलाती थी लेकिन आज उसके ससुराल वालो ने भी फ़ोन करके याद दिला दिया,रामु ने जब सुनीता के ससुराल वालों से कहा की उसके पास पैसे नहीं हैं तो उनलोगो ने धमकी दिया की वो सुनीता को नहीं रखेंगे।

बेटी का घर बसाना था, पैसे कहा से लाये अभी तो छोटी बेटी भी शादी के लिए तैयार हो रही थी,उसके लिए पैसे जुटाए या सुनीता के ससुराल वाले को दे,यही चिंता रामु को सताए जा रही थी,रामु बैठा सोच रहा था "दामाद जी की तो अपनी दूकान हैं, पक्का घर हैं, फिर भी शादी के समय तीन लाख रूपए दे दिए थे, उस समय सुनीता की माँ की तबियत ख़राब हो गयी थी तो उसके ऑपरेशन में वो पचास हज़ार खर्च हो गए थे लेकिन उनलोगो ने तो बोला था कि बाकी पैसे नहीं देने के लिए लेकिन अब क्या हो गया हैं उन लोगो को" रामु ने अपनी चिंता अपनी पत्नी के सामने रखी,रामु की पत्नी टीवी की मरीज़ थी,हर समय खासती रहती थी, लाखो रूपए रामु ने अभी तक उस पर खर्च कर दिए थे लेकिन फिर भी ज़्यादा सुधार नहीं था |

रामु एक फैक्ट्री में काम करता था,उसको मामूली सी तन्खा मिलती थी लेकिन घर के खर्चे उसकी तन्खा से दुगुने थे,कर्जो से उसका तन ढाका हुआ था, पूरा दिन खटता तब उसे सात हज़ार का महीना नसीब होता था,कुछ घंटे ओवरटाइम करके उसकी तन्खा नौ हज़ार तक पहुंच जाती लेकिन उसी पैसो में ही बेटिओ की शादी,बीमार पत्नी का इलाज और कर्जे वालो का कर्जा चुकाना और फिर घर भी चलाना था, इस चिंता में रामु अभी से ही बीमारी और कमजोरी का शिकार होता जा रहा था |

रामु को सुनीता के ससुराल से फ़ोन आये एक दिन ही हुए थे,अगले शाम को ही उसके घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आयी,रामु की छोटी बेटी बबली दौड़ कर दरवाज़े के पास गयी,देखा तो सुनीता के घर वाले उसे लेकर आये थे,उसने माँ को आवाज लगाते हुए कहा, "अम्मा,देख जीजी के ससुराल वाले आये हैं" सुनीता की माँ अंदर से दौड़ी-दौड़ी उनका स्वागत करने को आती हैं,गाड़ी के अंदर से ही सुनीता के गिड़गिड़ाने की आवाज़े आ रही थी,जो आसपास के खड़े लोग भी सुन रहे थे,"माँ जी,प्लीज,ऐसा मत कीजिए,बहुत बदनामी होगी मेरे बाबू जी की,प्लीज ये अनर्थ मत कीजिए,आपकी बहु हूँ मैं"सुनीता अपने बाप की इज़्ज़त की भीख मांग रही थी लेकिन फिर भी वो लोग सुनीता को धकेल कर गाड़ी से बाहर निकाल देते हैं और उसके सामान को सड़को पर फेंक देते हैं,चारो तरफ से लोग इकठ्ठा होकर देख रहे थे,सुनीता की माँ का सदमे से चेहरा उतर गया था,वो तड़ाक से ज़मीन पर बैठ गयी,सुनीता अपनी माँ को देखकर दौड़ कर रोते हुए उसके पास गयी और उसे सँभालने लगी"अम्मा.....,क्या हुआ आपको,आप ठीक तो हो न"

सुनीता की माँ उसका हाथ झिटकते हुए कहती हैं"मत छू तू मुझे,पुरे मोहल्ले में हमारा नाक कटवा दिया हैं,समझाया था न तुझे,एक बार जो लड़की अपने ससुराल चली जाती हैं तो उसके बाद सिर्फ़ उसकी अर्थी ही निकलती हैं वहां से"सुनीता अपनी माँ के तीख़े तंज से हक्का-बक्का रह जाती हैं.........

सुनीता"अम्मा,वो लोग मुझे रोज़ मारते थे, टॉचर करते थे पैसो के लिए,मैं क्या करती वहां अम्मा,वो लोग मुझे यहाँ लाने से पहले भी बहुत मारे थे और ज़बरदस्ती खींच कर लाये हैं यहाँ"

"अरे नहीं सह सकती यह सब तो मर क्यूँ नहीं जाती हैं,क्यूँ अपने बाप को मारना चाहती हैं,जब से तेरी शादी हुई हैं इसी चिंता में रोज़-रोज़ मर रहे हैं,अब क्या चाहती हैं चैन से साँस भी न ले वो"

"अम्मा,ऐसा क्यूँ कह रही हो आप,आप लोगो की मर्ज़ी से ही तो मैंने उनसे शादी की थी,अब आप लोग भी नहीं मुझे अपनाओगे तो मैं कहाँ जाउंगी"

".....कही भी जा,जाके मर जा,लेकिन इस घर में अपना मनहूस कदम मत रख,यहाँ से जाने के बाद भी तूने हम लोगो को चैन से नहीं रहने दिया हैं,और तो और अब तेरे ससुराल वाले, वो भी हमें फ़ोन कर-कर के परेशान करने लगे हैं,रोज़-रोज़ तेरी वहज से इस घर में कलेश होता रहता हैं,अब क्या चाहती हैं,मर जाए हम लोग"

"नहीं अम्मा,तुम लोगो क्यूँ मरोगी,मर तो मैं रही हूँ,तुम्हारा ही पसंद था न वो,उस समय तो वो तुझे लाखो में एक दिखता था, अब वो लोग मुझ पर ज़ुल्म कर रहे हैं तो वो मेरी किस्मत हैं,हैं न,अरे ऐसे घर में पैदा होने से पहले मर क्यूँ नहीं गयी मैं,किसी लायक नहीं बनाया है की अपनी ज़िन्दगी खुद कमा कर चला सकू,रोज-रोज इसी ताने से जी रही हूँ मैं पिछले एक साल से"(सुनीता ने भी गुस्से में अपने दिल में छुपे सारे भड़ास को बाहर निकाल दिया)

सुनीता की माँ,अपनी छोटी बेटी को घर के अंदर खींच कर दरवाज़ा बंद कर लेती हैं,सुनीता रोते हुए अपना सामान अपने घर के चौखट पर रख कर चली जाती हैं | रात को जब रामु काम पर से वापस आता हैं तब दरवाज़े के बाहर सुनीता का सामान देखकर हैरान रह जाता हैं,सामान को अंदर ले जाते हुए रामु अपनी पत्नी से पूछता हैं "ये सुनीता का सामान बाहर क्यूँ रखा हैं,सुनीता आयी हैं क्या,कहा हैं वो ?"

रामु की पत्नी मुँह फेरते हुए घर के अंदर चली जाती हैं,कोई उत्तर न मिलने पर वो अपनी छोटी बेटी से पूछता हैं " बिट्टू,यह सामान बाहर क्यूँ पड़ा था ,सुनीता कहा हैं"रामु की बेटी सारी बातें उससे बता देती हैं,रामु उसी वक़्त अपनी बेटी को ढूंढने चला जाता हैं,रामु सारी जगह उसे ढूंढ़ता हैं लेकिन उसे सुनीता नहीं मिलती हैं,रामु गुस्से से आकर अपनी पत्नी को एक थप्पड़ लगाता हैं,और उससे पूछता हैं कि उसने ऐसा क्यूँ किया।

रामु पूरी रात अपनी बेटी कि चिंता में सो नहीं पाया,सवेरा होते ही वो अपनी छोटी बेटी के साथ उसे ढूंढने निकल गया,रामु को परेशान देख कर उसके आस पड़ोस के लोग भी सुनीता को ढूंढने लग जाते हैं,उसी गांव के पोखड़ के पास कुछ लोग भीड़ लगा कर खड़े थे,रामु और उसकी बेटी दोनों उस पोखड़ के नज़दीक जाते है,उनलोगो ने पोखड़ में झाँक कर देखा तो सुनीता कि लाश पानी में में तैर रही थी,रामु के जैसे पैरो तले ज़मी ही खिसक गयी हो,वहां खड़े लोगो ने सुनीता कि लाश को पोखड़ से बाहर निकाला,काफ़ी देर पानी में रहने से उसका शरीर फ़ूल चुका था, रामु अपनी बेटी कि लाश को देख कर बर्दास्त नहीं कर पाया,उसे भी दिल का दौड़ा पड़ गया,गांव वाले उसे उठा कर हॉस्पिटल ले जाते हैं,रामु ने हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही अपना दम तोड़ दिया,सुनीता के घर में अब बचे थे सिर्फ उसकी माँ और उसकी छोटी बहन, रामु ने सुनीता की शादी के समय जो कर्जे लिए थे वो सभी लोग अपना कर्जा वापस लेने आ गए और जब उन लोगो ने सुना की उनके पास पैसे नहीं हैं तो उन लोगो ने उन दोनों माँ बेटी को घर से बाहर निकाल कर उस घर पर अपना ताला लगा दिया |