PROOF in Hindi Moral Stories by Pranav Vishvas books and stories PDF | सबूत

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सबूत

मै गहरी नींद में सो रहा था और रोज़ की तरह अमित आया और चिल्लाया

उठ जा भाई आर्डर आ गया है तेरी पोस्टिंग LOC पर हो गयी है,

मेरी नज़र टेबल तो रखी मेरी रिस्ट वाच पर गई, देखा 5:16 बज रहे हैं, और मैं बिस्तर पर ही उठकर बैठ गया और मैने बोला...

तू फिर से सुबह सुबह परेशान करने आ गया?

मै गया ही कब था? और सिर्फ सुबह ही नहीं तेरी पूरी ज़िन्दगी तुझे परेशान करूँगा, चल अब उठ जा शाम को कश्मीर के लिए निकलना है,

5 महीने पहले ही तो कश्मीर से जैसलमेर आये थे अब फिर से कश्मीर जाना है, यार मेरा मन नहीं है कश्मीर जाने का,

क्यों भाई फौजी होकर भी डरता है? या फिर घर जाना है? हाँ भाभी से मिले भी तो काफी अरसा हो गया...

नहीं यार ऐसी बात नहीं है, तू सब कुछ जनता है फिर भी ऐसे सवाल क्यों करता है? खैर जाना तो पड़ेगा ही, आर्डर इज़ आर्डर.!

तो फिर उठिये साहब जाइये फ्रेश होकर नाश्ता कर लीजिए..

यार आज उठने का भी मन नहीं है, तू भी जाकर सो जा, ये बोलते ही मैं फिर लेट गया,

तब अमित बोला, ओ श्री श्री सत्येंद्र चौहान जी अब बिस्तर छोड़िये नहीं तो मैं अभी पूरी बाल्टी तेरे ऊपर डालता हूँ, और कल से सोने का भी वक़्त नहीं मिलेगा, दुश्मन की गोलियां सोने नहीं देंगी...

उठता हूँ यार! परेशान कर रखा है बिलकुल, पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब तुझसे मिला था,

हाँ चल बहुत हो गया तेरा ड्रामा, उठ जा अब.!

और मैं उठकर बाथरूम में चला गया..

अब सुबह के 7 बज चुके थे, और राम सिंह भी दरवाज़े पर आ गया था

जय हिन्द साब..

जय हिन्द! आओ राम सिंह कैसे हो,

ठीक हूँ साब

नाश्ता टेबल पर ही रख दो मैं ले लूंगा.(मैंने राम सिंह से कहा)

और राम सिंह ने टेबल पर नाश्ता रखा और सल्यूट करके चला गया.!

.मैंने देखा अमित खिड़की से बाहर की तरफ कुछ देख रहा है और कुछ सोच रहा है,

तब मैंने कहा- क्या सोच रहा है?

अमित बोला- तेरा घर जाने का मन नहीं करता? पिछले एक साल से तू घर नहीं गया, कब तक चलेगा ऐसा?

घर जाने का मन किसका नहीं करता, बस हिम्मत नहीं जुटा पाता हूँ, मेरे घर से पहले तेरा घर आता है न रास्ते में, इसलिए., वहाँ जाऊँगा तो तेरे और मेरे घर वाले सिर्फ तेरे बारे में ही सवाल पूछेंगे और मैं कुछ कह नहीं पाउँगा,

तभी अचानक मेरा फ़ोन बजने लगा, और मैंने फ़ोन की स्क्रीन में देखा और फ़ोन काट दिया..

ये देखकर अमित बोला- फ़ोन क्यों नहीं उठाया? भाभी का फ़ोन था क्या? बात कर ले!

मैंने कहा- भाभी का फ़ोन तो था, लेकिन तेरी भाभी नहीं मेरी भाभी का..!

बड़बोला अमित थोड़ी देर शांत रहा फिर बोला- सुमन का फ़ोन...!

फिर 2 मिनट के लिए सब कुछ शांत सा हो गया..

फिर अमित बोला- तू यार नाश्ता कर कर ले ठंडा हो रहा है.. कहाँ ये सब बातें करने लगे हम.!

और मैं भी नाश्ता करते करते उसी 1 साल पुरानी कश्मीर की उसी घटना के बारे में सोचने लगा जहाँ से ये सब कुछ शुरू हुआ था,

मैं, अमित और हमारे कुछ साथी उस दिन लद्दाख के पॉइंट 07 सेक्टर 38 में कुछ आतंकवादी घुसपैठ रोकने गए थे, हम जब वहाँ पहुंचे तो वहाँ एक स्कूल के अंदर से कुछ आतंकवादी लगातार फायरिंग कर रहे थे, कुछ बच्चे और कुछ टीचर अभी भी स्कूल के अंदर थे, मैं मिशन लीड कर रहा था इसलिए मैंने रणनीति बनाई

हमारे 4 साथी स्कूल के पीछे से स्ट्राइक करेंगे, 4 सामने से लगातार उनपर फायरिंग करेंगे, और मैं, अमित और हमारे दो और साथी मैन डोर से अंदर जायेंगे,

सब कुछ प्लान के हिसाब से ही चल रहा था, हम अंदर की ओर बढ़ रहे थे और हमने सीढ़ियों के पास कुछ बच्चो और टीचर को देखा और मैंने हमारे एक साथी को उन्हें बाहर ले जाने को कहा, दोनों तरफ से फायरिंग अभी भी चल रही थी, हम धीरे धीरे ऊपर गए और उन आतंकवादियों को भनक भी नहीं लगी कि हम अंदर आ चुके हैं,

वो 6 थे, हम उनपर बिलकुल आसानी से निशाना लगा सकते थे, हमने अपनी अपनी पोजीशन ली और हमले के लिए तैयार हो गए, और अचानक से हमने हमला कर दिया, और सारे आतंकी अब मर चुके थे, हम एक दूसरे को मिशन की बधाई देने लगे तभी पीछे से एक और आतंकवादी ने फायरिंग शुरू कर दी उसने मुझपर गोली चलाई और अमित मेरे सामने आ गया और गोली अमित के सिर के पार चली गई, तभी हमारे तीसरे साथी ने उस आतंकी को भी मार दिया, अमित मेरे ऊपर गिर पड़ा उसने मेरी जान बचने के लिए अपनी जान दे दी,

मेरी एक गलती की वजह से मैंने अपने दोस्त को खो दिया, वहाँ 6 नहीं 7 आतंकवादी थे...

हमे मिशन में कामयाबी ज़रूर मिल गई थी लेकिन मैंने इस मिशन की बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी...

और तब से अमित मेरे साथ हमेशा रहता है, मुझसे बात करता है, डाँटता है, परेशान करता है.,

उस दिन के बाद मैं कभी घर नहीं गया, यही सोचकर कि अमित के घरवालों को क्या जवाब दूँगा? मेरी गलती की वजह से उसकी जान गई, कैसे सामना करूँगा उसकी पत्नी सुमन के आंसुओं का? उसके पिता से नज़रें कैसे मिलाऊँगा? सुमन मुझे फ़ोन करती है लेकिन मैं उससे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.!

काश उस दिन वो गोली मुझे लगी होती...

हम अपने देश को बचाने के लिए न जाने कितने दोस्तों और भाइयो को खो देते है,

हमारी कामयाबी का जशन पूरा देश मनाता है लेकिन हमारे दिल टूट जाते हैं जब

कुछ लोग हमारी इस कीमत का सबूत मांगते हैं!

प्रणव विश्वास