Achchhaiyan - 29 in Hindi Fiction Stories by Dr Vishnu Prajapati books and stories PDF | अच्छाईयां – २९

Featured Books
Categories
Share

अच्छाईयां – २९

भाग – २९

कोलेज से बहार निकलते ही सूरज मुस्ताक को फिर से मिलना चाहता था, मगर वो कहीं दूर निकल गया था | सूरज को लगा की अभी ओर कई सच्चाई मुस्ताक जानता था मगर शायद मौका देखकर वो दूर चला गया था | उसकी और सरगम की बात से ये तय था की मुस्ताक गुलशन को प्यार करता था और उस वजह से शायद वो कुछ भी करके श्रीधर से उसे दूर करना चाहता था | सरगमने भी कहा था की श्रीधर और गुंजा याने गुलशन के सर के पीछे चोट के गहरे निशान थे जो एक्सीडेंट के नहीं थे | यानी दोनों का क़त्ल हुआ था और उसके पीछे भी कोई राझ जरुर होगा...!

क्या श्रीधर से वो नफ़रत करने लगा था इसलिए मुस्ताकने ही उनका खून किया होगा ?

क्या गुलशन के पिताजी सुलेमान भी इन दोनों के मौत के जिम्मेदार थे ?

सरगमने एक बात भी कही थी की वे लोग श्रीधर का मजहब बदलना चाहते थे, तो क्या वो भी उनकी मौत का कारण था ?

‘सरगमने ये भी बताया था की उनकी मौत के कुछ दिन पहले श्रीधर उससे मिलने आया था और अपनी सारी बात कही थी, वो गुलशन के लिए अपना मजहब बदलने के लिए राजी भी हो गया था... और उसने उस दिन अपना संगीत छोड़ देने का भी कहा था.... और उसने अपनी बांसुरी जो उनको जान से प्यारी थी वो सरगम को दी थी..., यानी उसवक्त श्रीधर सबकुछ जान गया था की उनके साथ क्या होनेवाला है ?’ सूरज का दिमाग उसके पैरो की रफ़्तार से तेज चल रहा था |

पहले मेरा ड्रग्स के साथ परदेश में फंसना..! फिर यहाँ श्रीधर और गुलशन का क़त्ल होना...! मुस्ताक का सुलेमान के साथ काम करना..! गुलाबो का मेरी जिन्दगी में आना...! मेरे पास करोडो के हीरे है ऐसी बात न मुझे पता थी और न तो मुस्ताक को..., यानी सालो पहले ड्रग्स के साथ हीरे थे वो गए कहाँ? वो शायद अब तक किसी को मालूम नहीं...! तेजधार, डी.के, अनवर सभी आज मेरी चारो और मंडरा रहे है | यानी अभी भी कुछ सच्चाईया ऐसी है जो मुझे साफ़ साफ़ दिखाई नहीं देती...!

सूरज को लगा की उसकी जिन्दगी शतरंज जैसी हो गई है | उस गेम में डी.के. राजा है..! रानी की जगह पर गुलाबो काम कर रही है, मगर वो मेरे साथ है या वो भी हीरे के लिए मेरा साथ दे रही है ? वो तो मैं भी नहीं जानता | इन्स्पेक्टर तेजधार घोडे जैसी टेढ़ीमेढी चाल चल रहा है...! मुस्ताक और अनवर ऊंट की तरह उसको दबोचने के लिए बेताब थे..! सुलेमान हाथी के जैसा था वो अभी कोने में बैठा था...! उनके सैनिक में बच्चू और उसके आदमी थे |

अपनी ओर से सूरज खुद राजा है...! जिसको हराने के लिए सामनेवाले सभी मोहरे धीरे धीरे सब अपनी चाल चलने लगे थे | अभी तो मेरी रानी याने मेरी सरगम का मुझे साथ है...! और मेरे साथ कौन है ? वो भी मुझे पता नहीं |

‘मेरी सच्चाई और मेरी अच्छाई’ यही मेरे लिए सबसे ताकतवर मोहरे है, और इन दोनों की ताकत से मुझे ये शतरंज खेलना है और जीतना भी है |

‘मगर तुम्हे जीतने के लिए सामनेवाले मोहरे को मारना भी पड़ेगा....!’ सूरज के अन्दर से जैसे बिजली निकली हो वैसे एक आवाज बहार आई और सूरज के शरीर को कुछ देर के लिए सून कर दिया |

‘हां.. जरुर..., और सामने जो बुराई है उसको मारकर मैं मेरी अच्छाई की जीत दिलवाके रहूँगा...!’ सूरजने आज ठान ली की अब ये शतरंज की चाल में वो जीतेगा जरुर |

सूरज को लगा की आगे जो कुछ भी हो मगर मैं खुद की सच्चाई के लिए आखरी दम तक लडूंगा |

सूरजने देखा के सामने रास्ते पर एक लड़का खिलौने बेच रहा था, उसको देखकर सूरज को छोटू की याद आई | छोटू को मिले कई दिन हो गए थे | सूरज को पता था की वो उस रेल्वे स्टेशन के आसपास ही मिलेगा | काफी दिन हो गए थे उसे मिले इसलिए सूरजने उस लडके के पास से छोटू के लिए एक खिलौना खरीदा और उसे देने चल पड़ा...!

_______________________

उधर छोटू ज्यादा से ज्यादा भीख इकठ्ठी करने के लिए दिनभर काम कर रहा था | ड्रग्स के उस हादसे के बाद वो ओर कोई काम करने के लिए राजी नहीं था और कल्लू भी अब छोटू को सबसे दूर रहने को बोल रहा था |

रंगा की हालत ज्यादा बिगड़ रही थी, उसकी बीमारी और दवाई के लिए ज्यादा पैसे की जरुरत पड़ने लगी थी | कल्लूने कई बार छोटू को सूरज के बारे में पूछा था मगर छोटू तो कुछ ज्यादा जानता नही था |

कल्लू को अनवर के आदमीने परेशान करके रखा था | वो एडवान्स वापिश मांग रहे थे | कल्लू को कभी कभी मार मारते थे | कल्लू अब समझ चूका था की बड़े लोगो से या गैरकानूनी धंधो से वो दूर ही रहेगा |

मगर चंदू चिकना अनवर को चोरी छीपे मिलता था और शहरमें उसके माल को इधर उधर दे रहा था | उसके जो पैसे मिलते उससे वो तास खेलता था | एक दो बार तो वो शराब की बोतल ले के आया था और सब को पीने को बोल रहा था | छोटू उसे ये सब करने को मना करता था मगर चंदू चिकना किसी की नहीं सुनता था |

छोटू अपनी वही जिन्दगी वैसे ही जी रहा था | वो भीख मांगना, अपनो की मदद करना और खुद में कोई बुराई न आये उसका ख्याल रखना...!

सूरज छोटू की पुरानी जगह जहाँ वो भीख मांगता था वहां पहुंचा | सूरजने देखा की छोटू अपने दोनों हाथो की उंगलियों में पत्थर लगाके उसको बजा रहा था और आते जाते लोगो के पास पैसे मांग रहा था | उसने नए नए गीत भी शीख लिए थे | छोटू के पास संगीत का कोई ज्ञान नहीं था मगर वो हर धून सही तरीके से बजा रहा था |

छोटू को ऐसे हाल में देखकर सूरज की आँखे भर आई | कुछ्देर बाद वो उसके सामने गया और प्यार से बोला, ‘ छोटू.....!’

सूरज को देखते ही वो खुश हो गया और बोला, ‘ अरे तूनतूनेवाले दोस्त...! इतने दिन कहाँ खो गए थे ? तुम्हारी बहुत याद आती थी...!’ उसकी आँखे बहुत प्यारी थी और आवाज भी उसके जैसी मीठी थी |

‘कुछ दिन दूर चला गया था..! मगर आज तुम्हे मिलने आया हूँ...’ सूरजने कहा |

‘कल्लूदादा भी तुम्हे याद करते थे, मैंने कहा था की तुमने मुझे बचाया तो वो भी तुम्हे मिलना चाहते है |’ छोटूने मिलते ही अपनी बात कही |

सूरज कुछदेर सोचता रहा और बोला, ‘तुम्हारे कल्लूदादा को बाद में मिलेंगे मगर आज ये तुम्हारे लिए खिलौना लाया हूँ और मुझे भूख लगी है... कीसी होटल में चले |’

होटल की बात निकलते ही छोटूने गुलाबजामुन को याद किया और कहा, ‘गुलाबजामुन भी कुछ दिनों से दिखाई नहीं दी...!’

‘उस दिन तुम मुझे चाय पे ले गए थे आज मैं तुम्हे खाने पे ले जाता हूँ... मेरी ओर से पार्टी...!’ सूरजने छोटू को कहा |

‘अच्छा आज तुम्हारा बर्थ डे है ,क्या ? इसकी पार्टी दे रहे हो ?’ छोटूने मुश्कुराते हुए कहा |

‘हां...!’ सूरजने झूठमूठ कहा |

‘क्या मैं रंगा को साथ ले लू, उसने भी कई दिनों से होटल का खाना नहीं खाया...!’ छोटू रंगा की बहुत फ़िक्र करता था |

‘हाँ..’ सूरजने हां करते ही छोटू तुरंत दौड़ के आगे गया | वहां से थोड़े दूर रंगा भीख मांग रहा था | सूरजने देखा तो रंगा काफी दुबला हो गया था |

छोटू रंगा का हाथ थाम के सूरज के पास ले आया और बोला, ‘रंगा, आज मेरे दोस्त की बर्थ डे है और हम पार्टी में जायेंगे...!’ रंगा की आँखों में ये सुनकर चमक आई |

सूरजने फिर दोनों को साथ लिया और एक होटल में ले गया | वो शहर की सबसे महंगी फाइव स्टार होटल थी | बहार से देखते ही छोटूने कहा, ‘दोस्त, इस होटल में ज्यादा खर्चा हो जाएगा... तुम्हारा बर्थ डे कोई सस्ती होटल में मनाते है... !’ ये सुनकर सूरज अपनी हँसी रोक नहीं पाया और छोटू का हाथ थामे होटल के गेट तक पहुँच गया |

शहर की शान और जिसको पांच तारे मिले थे ऐसी होटल देखकर तो रंगा और छोटू दोनों के कदम रुक गए |

‘दोस्त, हमारे ऐसे फटे कपड़ो में ऐसी होटलमें अन्दर जाने नहीं देंगे...!’ छोटू सही कह रहा था | सूरजने उसको अनसुना कर दिया और दोनों की उंगलिया पकड़कर होटल की ओर खींचने लगा |

छोटू जैसा कह रहा था वैसा ही हुआ | बहार एंट्रंस पर ही वोचमेनने दोनों लडके को रुकने का ईशारा कर दिया | ‘तुम भागो यहाँ से....!’ उसकी जुबान से और आँखों से इन बच्चो के लिए नफ़रत दिखाई दे रही थी |

‘क्या आपके यहाँ कोई खाने पे आते है तो आप ऐसा व्यवहार करते हो..?’ सूरजने उसके साथ सन्मान के साथ बात की |

‘ये तो...!’ वो बच्चो के हाल पे ईशारा करके कुछ कहने जा रहा था तभी सूरजने बीच में उसको रोका और कहा, ‘उनको मैं खाने पे लाया हूँ, आपकी होटल को इतराज है तो तुम्हारे मालिक को बुलाओ...!’ सूरजने उसको ऐसे कहा तो उसने दरवाजा खोला और उनको अन्दर ले जाने को कहा |

छोटू और रंगा तो होटल को चारो और से देखते रहे | सूरज जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था तो अन्दर बैठे कई लोग इन मैलेघैले बच्चो को बारबार देखने लगे | अन्दर वेईटर के कप्तानने उन तीनो के एक कोने में जगह दिखाई | सूरज समझ चुका था की वे सबकी नजर से दूर रखना चाहते थे |

उस टेबल से सामने एक अमीर परिवार खाना खा रहा था | उसका एक छोटा लड़का बारबार छोटू और रंगा को देखने लगा और बोला, ‘ मम्मा, उस लडके के कपडे फटे हुए क्यों है ?’

उसकी मम्मीने ये सुना और उसने भी देखा और कहा, ‘ तू चुप कर... अपने खाने में ध्यान दे...!’

तभी वेइटर सूरज के पास आया और ऑर्डर के लिया पूछा |

सूरजने ऑर्डर लिखाया तो छोटूने इतना ही कहा, ‘मेरे लिए चावल कैसे भी चलेंगे मगर रंगा के लिए पके चावल लाना, उसका पेट दर्द करता है...!’ ये सुनकर वेइटर अपनी हंसी रोक नहीं पाया |

छोटू तो सामने बैठे उसके जैसे लडके को देख रहा था | वो अपने मम्मी पापा के साथ प्यार से खाना खा रहा था और मम्मी उसको थोड़ी थोड़ी देर बाद एक एक निवाला उसके मुंह में दे रही थी |

‘देख रंगा... माँ ऐसे खिलाती है....!’ छोटूने जब ये कहा तो सूरज छोटू की आँखों में देखने लगा | उसकी आँखों में माँ के प्यार की कमी साफ़ साफ़ झलक रही थी...!

क्रमश: .....