Phone ki ghanti - 1 in Hindi Short Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | फोन की घंटी - 1

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फोन की घंटी - 1

फोन की घंटी
संडे का दिन यानी कि सप्ताह का सबसे व्यस्त दिन और अगर आप वर्किंग वूमेन है तो समझ लीजिए ! मैं भी उनमें से एक ही हूं। दोपहर के 3:00 बज गए । मैंने जल्दी जल्दी हाथ चलाना शुरू कर दिया। पता था 3:30 बजे जरूर मम्मी का फोन आ जाएग
वैसे भी व्यस्त रहने के कारण पूरे सप्ताह किसी से बात ही नहीं हो पाती तो संडे का दिन फिक्स था ,तब हम मां बेटी खुलकर अपने दिल की बातें करते। वैसे भी शादी के बाद मां -बेटी सहेलियां ही तो बन जाती है और ‌जैसे ही मैं काम खत्म कर बैठी बज गई मम्मी के फोन की घंटी मैंने फोन उठाते ही कहा" नमस्ते मम्मी ,कैसी हो ?"
"मैं अच्छी हूं ,तू सुना घर में सब कैसे हैं?"
" सब बढ़िया है मम्मी, आराम कर रहे हैं सब।पापा कैसे हैं मम्मी ?"
"पापा की तो तू पूछ मत सुधा लगता है सठिया गए हैं बुढ़ापे में ।"
"आप हो ही इतनी सुंदर तो इसमें पापा की क्या गलती!" मैं हंसते हुए बोली ।" " चुप कर शैतान शर्म नहीं आती तुझे अपनी मां से छेड़खानी करते हुए ।"मां बनावटी गुस्से से बोली ।
ओ हो !लगता है मम्मी शरमा गई, अच्छा बताओ क्या कर दिया अब पापा ने ।"
"चटोरे हो गए हैं तेरे पापा, सारा दिन बच्चों की तरह नयी चीजें चाहिए उन्हें खाने के लिए और मीठे के तो पीछे हाथ धोकर पड़े रहती है।"
" मम्मी इसमें परेशानी की क्या बात है बल्कि आपको तो खुश होना चाहिए कि पापा अब रोटी सब्जी के अलावा भी कुछ खाने लगे हैं ।"
वह तो ठीक है, पर देखना जब खाने के दिन थे तो कुछ नहीं खाया और अब बुढ़ापे में! बहुएं भी ना जाने क्या सोचती होगी ।"
"यह आप क्या कह रही हो मम्मी यकीन नहीं होता । घर में जब भी कभी मिठाई आती या पकवान बनते और पापा खाने से मना कर अपना सादा खाना खाते तो आप कितना दुखी होती थी पापा ने हम सब का भविष्य संवारने के लिए जैसे अपनी इच्छाएं ही मार दी थी अब जब वह सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो अपना शौक पूरा करना चाहते हैं तो इसमें गलत क्या है।"
" कह तो तू सही रही है पर वह!"
पर वर कुछ नहीं मम्मी ,खुशियों की कोई उम्र नहीं होती । लोग क्या कहेंगे इस डर से हम सदा ही अपनी इच्छाएं मारते हैं ।उम्र हो गई तो क्या हुआ दिल तो बच्चा ही रहता है ।कहने का मतलब यह है ,मेरी मां पापा जैसे जीना चाहते हैं या खाना चाहते हैं, उन्हें खाने दो और आपका भी तो कितना मन करता था सिनेमा पर फिल्में देखने का। मैं तो कहती हूं आप भी पापा के साथ जाकर 1-2 रोमांटिक फिल्में देखी ही डालो ।वैसे भी आज कल पापा कुछ ज्यादा ही आपके नाम की माला जपते हैं।"
" चुप कर पगली तू कभी नहीं सुधरेगी "मां हंसते हुए बोली फोन पर ही साफ पता चल रहा था कि वह इस बात पर कैसे लजा रही थी ।मैंने फिर कहां "एक बात तो रहे) ही गई "अब क्या रह गया तेरा?"
" यही कि हमेशा बहुएं खराब नहीं होती । आपकी बेटी भी किसी की बहू है। तो आप भी उन्हें बेटी समझिए फिर देखना फिर कैसे वह कुछ कहती हैं।"
" अच्छा मेरी मां समझ गई ।"कह जोर जोर से हंसने लगी ।
सरोज
मौलिक व स्वरचित