DASTANE ASHQ - 29 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क - 29

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दास्तान-ए-अश्क - 29

मेम साहब कलयुग के इस काले दौर में लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं कि अपने खून के रिश्तो का भी लिहाज नहीं करते जान लेने की नौबत आये तो भी ले लेते हैं।
और आपका तो अपना ही सिक्का खोटा निकला! दिमाग से पैदल है बाबूजी.. वरना आप जैसी औरत को पाकर उनकी जिंदगी जन्नत थी! वाकई मुझे ऐसे लोगों पर तरस आता है जिन्हें अपना बुरा भला नजर नहीं आता।
मैं कुछ ज्यादा बोल गई हूं तो माफ करना, पर मुझसे आप की ये हालत देखी न गई।
आपने उस वक्त मेरा हाथ थामा था जब मुझे काम की भी सख्त जरूरत थी, आपने तो मेरी परेशानियों को हल्का कर दिया था!
कोई भी इंसान जरूरत के वक्त उसे हेल्प करने वाले फरिश्ते को जिंदगी भर नहीं भूलता..! आपका रुण तो नहीं चुका सकती मगर मेरी कोशिश यही रहेगी की पूरे मन से आपकी सेवा में लगी रहुं..।
रज्जो की आवाज में उसका द्रढ निश्चय झलक रहा था!
सारंग और गुड़िया स्कूल से आ गए थे!
गुड़िया कुछ ज्यादा ही परेशान थी। मां को देखते ही वह उससे लिपट गई।
"कितनी देर लगा दी आपने ममा..? वो एक आदमी है जो कब से अपने घर के चक्कर काट रहा है!"
"कौन था मेरी गुड़िया? उसे तुमने पहले कभी देखा है..? "
सारंग बोला ।
पापा के साथ उसे मैंने एक बार देखा था! शायद कोई पैसों की लेनदेन थी ममा..!"
उसके माथे पर बल पड़ गए..। फिर उसने कोई नई मुसिबत खड़ी कर दी होगी। जिसका खामियाजा उसे ही भुगतना था।
"फिर तुम्हारे पापा ने क्या किया उस पैसो का तुम जानते हो सारंग..?"
"पापा जी लोरी लाए हैं मम्मा..।अपनी खुद की लोरी लेकर वह गुजरात गए हुए हैं..। एक-दो दिन में जरूर लौट आएंगे.।
"ओह माय गॉड..!"
वो सोफे पर ढेर हो गई..!
रज्जो पानी लेकर आई आप ज्यादा टेंशन ना लो मैमसाहब आपका ब्लड प्रेशर काफी अप डाउन हो रहा है।
उसी वक्त 6 फीट लंबे, गोल मटोल काले से शख्स ने प्रवेश किया!
तकरीबन उसकी उम्र 45 साल रही होगी।
अपनी भारी मूछों पर ताव देता हुआ बोला।
आप लोग घर खाली कब कर रहे हो..? सुबह से यह मेरा तीसरा चक्कर है! क्या मैंने पैसे देकर कोई गलती की है ? टाइम लिमिट कल परसों खत्म हो रही है मुझे मेरे पैसे चाहिए या फिर आप लोग जल्द से जल्द घर खाली कर दीजिए..।
ये आप क्या बोल रहे हो भाई साहब ? आपने किस को पैसे दिए..? और किस बात के पैसे दिए..?"
"लो करलो बात... अब ये मत कहना कि मुझे कुछभी पता नहि..। आपस में बिना रजामंदी के कभी कुछ नहीं होता..।"
"जलेबी की तरह बात को घुमाओ मत भाई साहब..! मैं सीधी बात समझती हूं, मुझे साफ-साफ बताएं ,आखिर ये चक्कर क्या है..?"
तुरंत ही उसने अपनी जेब से एक एग्रीमेंट निकाला और उसके हाथों में रख दिया।
इसने कोठी को गिरवी रख कर पांच लाख रुपया लिया था।
उसका करारनामा था!
"मैं नहीं मानता कि इतना बड़ा फैसला तुम्हारी मर्जी के बिना लिया गया हो..। कोई नानी-सुनी रकम नहीं है 5 लाख रु का सवाल है! इस कोठी को गिरवी रख कर उसने लिए हैं और इस एग्रीमेंट में साफ-साफ लिखा है कि 6 माह के अंदर मेरे पैसे वापस ना लौटाए
गए तो उन्हें कोठी खाली करनी पड़ेगी।
उस गंजे इंसान की बात सुनकर उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई उसने सोचा भी नहीं था की अपना बसेरा तक वो गिरवी रख सकता है।
पता नहीं इतने सारे पैसों का उसने क्या किया..?"
"भाई साहब..।"
युद्ध में सब कुछ हार गए इंसान की तरह वो बोली!
मुझे इस बारे में जरा भी मालूम नहीं था आप मुझे कुछ दिनों की मोहलत दीजिए मैं कुछ करती हूं आप बेफिक्र हो जाइए आपके पैसे आपको जल्द ही वापस लौटा दूंगी
वह किस हौसले से बोली थी उसे भी पता नहीं था पर मन में इतना तय थाकि अब किसी से जलील नहीं होना है!
ठीक है मुझे आपको देखकर तरस आ रहा है मैं इतना बुरा इंसान नहीं हूं की किसी को एक मौका भी ना दु..
आपको 10 दिन दे रहा हूं कैसे भी करके आप मेरे पैसे लौटा देना मैं आप की कोठी आपको वापस कर दूंगा!"
अपनी बात कहकर वह गंजा आदमी एक पल भी रुका नहीं!
वो बुरी तरह कांप रही थीl
कैसे इंसान से पाला पड़ा था जो अपने बच्चों का भी खयाल नहीं करता थाl
सारंग अपनी मां के करीब आयाl मां की भरी हुई आंखें देख कर बोलाl
"मम्मा पापा जी इन पैसों से लोरी खरीद कर लाए हैं और वही गड्डी लेकर वो गुजरात गए हैं!"
वह उधार के पैसों से लोरी ले आया है मगर घर में एक भी पैसा लाकर दिया नहीं है..!
इस वक्त उसे अपने आप पर ध्रुणा सी हो गई!
उसकी मां ने हमेशा उसके मन को तार-तार कर रखा था और अब खुद से भी कैसे गलती हो गई?
दवाइयों के नशे में अपने आप को बेहोश रखकर अपने बच्चों का बचपन को अपने हाथों से सवारने का मौका गवा दिया!
उस दिन बच्चों को खाना खिला कर वह अपनी बेड पर लेटी थी मगर उसे नींद कहां आने थी?
तकदीर ने उसका सब कुछ लूट लिया था जीने का जरा भी मन नहीं था सोच रही थी अपने बच्चों के साथ खुद भी जहर पीकर मर जाए.. फिर दूसरी तरफ एक ख्याल उसके मन में ऐसा भी आया कि अगर बच्चों को कुछ हो जाता है और वह खुद जिंदा बच जाती है तो उसकी जिंदगी का कोई मतलब नहीं था और वह मर जाती है बच्चे जिंदा बच जाते हैं फिर भी बच्चों का भविष्य ऐसा बाप क्यासवारे गा जो पहले से ही सारे फसाद की जड़ बना हुआ हैl
अगर तीनों बच जाते हैं और जहर की वजह से तीनों के शरीरों में कोई ना कोई नुक्स रह जाता है तब भी जीना दुश्वार हो जाएगा!
नो नो नो मृत्यु समस्याओं का हल हरगिज़ नहीं है!
एक दौर था जब वह दैनिक भास्कर के संपादक अश्विन भैया के विचारों से लबरेज थी!
जुल्म ढाने वाले और जुल्म सहने वाले लोगों पर उसके शब्द तलवार बनकर टूट पड़े थे!
फिर अपने लिए ऐसी कमजोर बात कैसे सोच सकती हैं l
मन ही मन उसने ठान लिया जिंदगी को चान्स देना चाहिए मर जाने से अच्छा है एक बार हालात के सामने झुक जाए और जो आज तक अपने स्वाभिमान को बचा कर रखा है अपने विचारों को कुछ पल ताक में रखकर एक मां बनकर सोचना है!
एक मक्कम फैसला करके वह सो गई!
जब सुबह उठी तब उसका मन पूरी तरह साफ और बोज मुक्त था!
उसने अपने अरबपति भाइयों को कॉल लगाई!
हमेशा अपने भाइयों से कभी कुछ ना लेकर खुद्दारी से जीने वाली मां ने अपने घर के बिगड़े हुए हालातों का चिट्ठा खोल कर रख दिया!
बड़ा भाई उसकी बात सुनकर पिघल गया!
इतना सब कुछ हो गया और तू हमें आज बता रही है हमने न जाने कितने परिवारों को दान धर्म किया है मगर अपनी ही बहन की ऐसे हालत देखकर हमें बहुत तकलीफ हुई है क्या हम तुम्हारे कुछ भी नहीं लगते तुमने हमें पराया कर दिया है बहना..?
भाई की बात सुनकर उसकी आंखें भी बरस रही थी!
काश भाइयों को पहले ही बता देती तो बात यहां तक नहीं पहुंचती!
उस दिन दोनों भाई घर पर आ गएl
उसको सीने से लगा कर बहुत रोएl
अपने भाइयों को उसने आज सब कुछ बताया!
दोनों भाइयों ने कहा भी कि अपने बच्चों को लेकर तू घर आजा इसको हम देख लेंगे!
पर नहीं इसको अपनी इज्जत प्यारी थीl
भाइयों को उसने कह दिया जब तक मैं ठीक नहीं हो जाती मेरे घर का राशन पानी भरवा दो!
बस बस उसके बोलने की ही देरी थी
भाइयों ने साल भर का राशन घर में डलवा दिया और इतने पैसे दे दिए की उसकी तकलीफ है कुछ हद तक कम हो गईl जब बच्चों को भरपेट खाना मिलने लगा दो वह सुकून से कुछ सोचने लगी!
अपनी कोठी को वापस छुड़ाने की एक तरकीब उसके दिमाग में आई l जिस पर वह जल्द ही अमल करना चाहती थीl