Aamchi Mumbai - 9 in Hindi Travel stories by Santosh Srivastav books and stories PDF | आमची मुम्बई - 9

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आमची मुम्बई - 9

आमची मुम्बई

संतोष श्रीवास्तव

(9)

बॉम्बे बैकवे की पहली उपनगरीय ट्रेन.....

गुज़रे ज़माने में कोलाबा पश्चिम रेलवे का टर्मिनस हुआ करता था | बॉम्बे बैकवे की पहली उपनगरीय ट्रेन ग्रांट रोड और बसीन रोड के बीच १ नवंबर १८६५ में चली | उपनगरीय इलाक़े जहाँ समुद्री खाड़ियाँ थीं, खाड़ियों को पाटकर समतल कर रेलवे ट्रेक बनायेगये | ३०जून १८७३ में बम्बई सरकार ने जब चर्चगेट और कोलाबा के पास पैसेंज रस्टेशन की डिज़ाइन को मंजूरी दी तो ससून डॉक के निकट समुद्र पाट कर कोलाबा स्टेशन खोला गया | कोलाबा से ही सबसे अधिक मछली की टोकरियाँ ट्रेनों में लादकर बाज़ार भेजी जाती थीं | ३१ दिसंबर १९३० के दिन कोलाबा से आख़िरी ट्रेन चली और कोलाबा स्टेशन बंद कर दिया गया |

मुम्बई के बाँद्रा उपनगर का रेलवे स्टेशन एकमात्र ऐसा स्टेशन है जिसका ढाँचा लंदन में बना और जहाज से लाकर १८६९ में यहाँ स्थापित किया गया | उस ज़माने की इसकी लोकप्रियता आजका यह आधुनिक ज़माना आज की लोकप्रियता सहित यहाँ दिनब दिन आने वाले पर्यटकों के द्वारा कहता नज़र आता है | पटरियों में कामआनेवाले लोहे के पुराने खंभों परटिकी मेहराबों में १८८८ का वर्ष झाँकता नज़र आता है | तब बांद्रा को उपनगरों की रानी की उपमा से नवाज़ा गया था | बांद्रा में ईसाई धर्मावलम्बियों का निवास ज़्यादा था | अंग्रेज़ों ने बांद्रा स्टेशन को बेहतरीन बनाने, सजाने सँवारने और अधिक सुविधाएँप्रदान करने की ओर विशेषपहल की | पहली तेज़गति की लोकल और पहला महिला प्रतीक्षालय भी यहीं बना | स्टेशन की साफ़ सफाई इतनी कि ‘नो स्मोकिंग’ की चेतावनी केबावजूद सिगरेट पीते पकड़े गये तो २० रु. जुर्माना | स्टेशन के बाहर पोर्च पर विक्टोरिया गाड़ियाँ खड़ी या चलती नज़र आती थीं | मुख्य द्वार के पोर्टिको के ऊपर वॉच टॉवर था | जैसे ही अँग्रेज़ साहबों की कोई ट्रेन आती थी, पोर्टर उस पर लगी बेल को बजाते और बाहर इंतज़ार करते कर्मचारी भागे आते | पिरामिड के आकार जैसी दिखती इसकी छतें, चौड़े लम्बे बरामदे, टाइलदार रूफ़ टॉवर वाला बांद्रा स्टेशन आज भी शहर के सबसे खूबसूरत साफ़ सुथरे स्टेशनों में से एक है | गोथिकऔर कालोनियल वर्नाकुलम इसकी सबसे बड़ी खूबी है जो इसे विशेष बनाती है शायद इसीलिए यह भारत की सोलह धरोहर इमारतों में से एक है |

पश्चिमरेलवे का टर्मिनस है मुम्बई सेंट्रल | यह १८ दिसंबर १९३० को मुम्बई के गवर्नर फेड्रिक साइक्स के हाथों लोकार्पित हुआ था | उस समय यह भारत का सबसे बड़ा स्टेशन था | बोलासिस रोड जो अब जहाँगीर बोमानी मार्ग कहलाती है पर बने इस विशाल टर्मिनस का डिज़ाइन क्लाउड बेटली ने तैयार किया था | यह तीन मंज़िली इमारत बगीचे के परिदृश्य में मुख्य सड़क से दूर है और इसका प्रवेश द्वार स्टेशन की ओर से आने वाली एक वीथिका के सिरे पर बनाया गया है जिसके दोनों तरफ़ बगीचा है | पार्श्व खंडों से बनी चतुष्कोणी इमारत रेल वास्तुकला का अप्रतिम नमूना है | पोर्टिको का डिज़ाइन परंपरागत है जबकि नींव मुग़लकालीन तर्ज़ पर रखी गई है | मुम्बई सेंट्रल की इमारत बेलासिस पुल के उत्तर की तरफ़ स्थित थी और लेमिंग्टन रोड की तरफ़ से इसका मुख्य प्रवेश मार्ग था | फिर लम्बा चौड़ा रास्ता केवल पदयात्रियों के लिए जिसके एक तरफ़ प्लेटफॉर्म और दूसरी तरफ़ प्रथम व द्वितीय श्रेणी यात्रियों के लिए प्रतीक्षालय, भोजनालय और अल्पाहार कक्ष है | यही सारी सुविधाएँ अन्य मंज़िलों पर भी हैं | इस भव्य स्टेशन की नींव के पत्थरों के नीचे राई अथवा कुंजनुमा स्थान में एक पीतल का सिलिंडर रखा गया था जिसमें इस कार्य से सम्बन्धित अधिकारियों के नाम तथा एक रूपया, अठन्नी, चवन्नी, दुअन्नीऔर इकन्नी तथा एक पैसे के नये सिक्के रखे गये | इमारत के निर्माण कार्य में १५.६ मिलियन रुपयों का ख़र्च आया | स्टेशनपरिसर में आज भी पूर्व की तरफ बगीचे में ‘लिटिल रेड हॉर्स’ नामक पुराने इंजन को देखा जा सकता है |

१९वीं सदी की शुरुआत तक मुम्बई में यात्रा के मुख्य साधन थे- रेकला यानी बैलगाड़ी, शिकरम्, इक्का यानी घोड़ागाड़ी और पालकी | कोलाबा, अपोलो बंदर, बी एम सी, पोर्चुगीज़ चर्च (पुर्तगाली चर्च) और लालबाग सहित२५ स्थानों पर इन गाड़ियों के स्टैंड थे | बैलगाड़ियों में तो सामान ढोया जाता था | एक किलोमीटर की बैलगाड़ी से यात्रा करनी हो तो तीन आने किराया लगता था | घोड़ागाड़ी का चार आने लगता ‘बॉम्बे कुरियर’ ने फोर्ट से सायन तक हॉर्स कोच सर्विस चलाने की घोषणा की | विक्टोरिया का ज़माना आया १८९२ में |

कोलाबा से परेल के बीच ९ मई १८७४ को पहली ट्रॉम चली जिसे छहसे आठ घोड़े खींच रहे थे | बहुत आश्चर्यजनक लगता है ट्राम में घोड़े जुते होना | हॉर्सट्रॉम सेवा १ अगस्त १९०५ को समाप्त कर दी गई और ट्रॉम बिजली से चलने लगी | ७ मई १९०७ को शाम साढ़े पाँच बजे सजी धजी पहली विद्युत ट्रॉम म्युनिसिपल ऑफ़िस से निकली और क्रॉफ़र्ड मार्केट तक चली | गति, आराम और किफ़ायती किराए के रूप में मुम्बई वासियों को मिली ट्रॉम | उनकी पहली सुखद यात्रा | फिर १९२० में डबल डेकर ट्रॉम चली जो बेहद लोकप्रिय हुई | १९६४मुम्बईमें ट्रॉम का आख़िरी साल था जब ३१ मार्च को ट्रॉम बोरीबंदर से दादर की अपनी अंतिम यात्रा पर रवाना हुई और मुम्बई के आम आदमी ने सड़कों पर क़तार लगाकर उसे अंतिम विदाई दी | १९११ में मुम्बई में मोटर टैक्सियाँ चलनी आरंभ हुईं |

१५जुलाई १९२६ को चली पहली ओमनी बस ने मुम्बई के ट्रांसपोर्ट को नए युग में पहुँचा दिया | बॉम्बे ट्रॉमवेकम्पनी ने अफगान चर्च से क्रॉफ़र्ड मार्केट तक इस सेवा की शुरुआत चार बसों के बेड़े से की | ट्रॉली बस सेवा, ओमनी सिंगल बस, डबल डेकर, लिमिटेडसर्विस, पॉइंटटु पॉइंट सर्विस, मिनी बस, लेडीज़स्पेशल, ओपन रूफ़ टूरिस्ट बस, एयर कंडीशंड सर्विस आदि बेस्ट की ऐसी सेवाएँ हैं जिन्होंने मुम्बई को गति दी और अलसाया शहर दौड़ के लिए तैयार होने लगा | बेस्ट की ऑल स्टैंडी बस, आर्टिकुलेटेड बस और कोच सर्विस ने अधिक से अधिक यात्रियों को मंज़िल तक पहुँचाने का ज़िम्मा लिया | ‘आर्टिकुलेटेडबस’ में इंजन बस से अलग होता था | १९६७ में ऐसी बस चलाने वाली बेस्ट देश की पहली परिवहन संस्था थी |

बेस्टका एक ट्रांसपोर्ट विंग भी है | सन् १९८१ से यह मार्वे से मनोरी के बीच एक फेरीबस सर्विस चला रही है | कभी कोंकण का और गोवा तक का समुद्री सफ़र बड़ी-बड़ी मोटर बोट्स से कराने वाला मझगाँव स्थित भाऊचा धक्का आज अपने सुनहले अतीत को बयाँ करता नज़र आता है | १९८०से इसे न्यू फेरी व्हार्फ केरूप में जाना जाता है | मछलियों के कारोबार के साथ छोटी बोट्स से मोरा और रेवस जैसी जगहों पर जाने के लिए यह आज भी लोकप्रिय है | गेटवे ऑफ़ इंडिया से एलिफेंटा की समुद्री सैर कराने के लिए आज भीमशहूर है यह |

आज मुम्बई मेट्रो युग में प्रवेश कर चुकी है | शानदार रेलवे स्टेशनों पर दौड़ती मेट्रो ने मुम्बईवासियों को पँख दे दिए हैं | अब जब रेलवे के शुरूआती दौर को देखती हूँ यानी अतीत में झाँकती हूँ तो लगता है यहाँ सदी ने करवट बदली है | उस वक्त बग़ैर बैलों या घोड़ों के भाप इंजनों द्वारा लम्बी-लम्बी गाड़ियों को खींचा जाता था तो मुम्बईवासियों को लगता था कि गोरे साहब ने किसी जिन्न को वश में कर लिया है | भाप के इस अग्निवाहन को चलता देख वे उसे प्रणाम करते थे, इंजन की धुआँ उगलती चिमनी पर लाल तिलक लगाते थे और पायदान प रप्रसाद व पैसे चढ़ाकर पटरियों की पूजा करते थे | मुम्बई में पहली ट्रेन के आगमन पर बहुत समय तक लोगों में यह डर फैला रहा कि ‘गाय भैंसें’ दूध देना बंद कर देंगी, बाज़ार नष्ट हो जाएँगे, कारोबार चौपट हो जाएगा | महामारियों का प्रकोप बढ़ जाएगा |

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