Adrashya Humsafar - 13 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 13

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अदृश्य हमसफ़र - 13

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 13

ममता तिलमिला उठी, कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां जैसे तालू से चिपक गयी और कुछ पल के लिए सकते में आ गयी। अनुराग से इस तरह के व्यवहार और इतनी उपेक्षा का अंदाजा भी नही था उसे। यद्धपि उसके जेहन से काफी हद तक अनु दा का भूत उतर चुका था लेकिन फिर भी कभी कभी यादों की लहरें उसके अन्तस् को भिगो जाती थी। रिश्ते की जड़ें बहुत गहरी थी भले ही उसमें जलन का मादा कुछ ज्यादा ही था। उसने कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसका सबसे करीबी रिश्ता उससे इस कदर दूर हो जाएगा। ममता का मन मानने को तैयार नही था कि हर बार यही सयोंग होता है। वह दो बार मायके आयी और दोनो बार अनु दा काम के सिलसिले में बाहर होते हैं। जरूर कोई तो विशेष कारण है लेकिन क्या हो सकता है?.

ममता की तन्द्रा टूटी जब बड़ी माँ ने उसे लिफाफा देते हुए कहा-" मुन्नी, बिटिया ये शगुन का लिफाफा है तुम्हारे लल्ला के लिए। अनुराग देकर गया है। कह रहा था अगली बार मिलूँगा मुन्नी और लल्ला से। माफी मांग रहा था तुमसे। सरकारी नौकरी है, कब किधर भेज दें नही पता। ले पकड़ जरा, सम्भाल ले।

ममता का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। मुंह बिचकाते हुए गुस्से में तेजी से बड़ी माँ के हाथ से लिफाफा छीनकर बिना देखे उसके चार टुकड़े कर दिए और हवा में उछाल दिए और लगभग चीखने वाले अंदाज में कहने लगी-" मेरा बेटा किसी के शगुन का मोहताज नही। खुद जो हम पर मोहताज रहा हो आज मेरे बेटे को शगुन देगा। धीरे धीरे सभी कुछ तो छीन लिया उसने मुझसे अब बाकी क्या रहा। एक बात और वह क्या शगुन देगा जो आशीर्वाद के लिए सिर पर हाथ तक न रख सका। कितना मान दिया मैंने उसे, लेकिन मेरे मान देने का क्या सम्मान रखा। "

ममता जैसे गुस्से से पगला गयी थी। सभी हतप्रद से उसे अपलक देखे जा रहे थे। किसी को कुछ नही सूझ रहा था कि उसे कैसे चुप कराएँ। उसकी चीखें सुनकर बाबा अपने कमरे से निकल कर आ गए थे।

"ममता"- बाबा ने गुस्से से उसका नाम पुकारा।

"बाबा"- ममता का स्वर एकदम से कातर हो गया था। उसकी आवाज भर्रा गयी थी और आंखों में मोटे मोटे आंसू अटखेलियां करने लगे थे।

बाबा-" ममता, ये क्या बदतमीजी है। कोई शगुन का ऐसे अपमान करता है भला? चुपचाप ये टुकड़े बीनकर मेरे हाथ मे दो। तुमसे यह उम्मीद नही थी मुन्नी कि बच्चे के प्रति प्रेम स्वरूप दिए गए शगुन का तुम ऐसे अपमान करोगी। "

ममता-" बाबा, क्या आपको अनु दा का कोई कसूर नजर नही आता। क्या उन्हें मुझसे मिलने के लिए रुकना नही चाहिए था। "

बाबा की डांट सुनकर ममता सकपका कर चुप हो गयी और बिखरे हुए फ़टे शगुन के रुपये बीनने लगी।

क्रोध की जगह अब गहन दुख ने ले ली थी। बाबा उसे ऐसे डांटेंगे, उम्मीद नही थी उसे।

ममता ने फटे नोट बाबा की हथेली पर रख कर मुट्ठी बन्द कर दी फिर धीरे धीरे कहा-" मेरा सब कुछ छीन लिया अनु दा ने, आपने मुझे कभी इस तरह से नही डांटा जैसे आज डांट लगाई है बाबा और वह भी अनुराग के पक्ष में। "

बाबा-" नही ममता, अनुराग का कोई दोष नही है। तुम उसे बिना वजह दोषी साबित करने पर तुली हो। बचपन से उसे सताती आई हो उसने कभी उफ्फ तक नही की और हमने भी तुम्हारा बचपना समझ कर कुछ नही कहा, अब तो शादीशुदा हो, एक बच्चे की माँ हो गयी हो अब तो समझो। क्यों उस बच्चे के पीछे बिना वजह पड़ी रहती हो। तुम्हें क्या लगता है क्या उसका मन न जलता होगा, लेकिन नही...तुमने हमेशा अपनी बात ऊपर रखी और अनु ने भी कभी सफाई भी नही दी। उसकी अंधी ममता का परिणाम है ये तुम्हारा जिद्दी स्वभाव। "

आज बाबा न जाने किस रौ में बहकर कहते चले गए बिना यह सोचे कि मुन्नी पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

मुन्नी -" ठीक है बाबा, अगर आपको अनु दा का व्यवहार मानवोचित लगता है तो अब मैं कुछ नही कहूंगी। एक सप्ताह के लिए आई हूँ उनका जिक्र तक नही करूँगी। वह मेरी बिदाई पर मेरे सामने नही आये, पगफेरे पर आई तो उनसे मिलना नही हुआ, मुन्ने के होने पर मुंबई नही आये, अब आई तो नदारद, मेरा कमरा तक आपने मुझसे सलाह लिए बिना उनको दे दिया लेकिन दोष फिर भी मेरा और जितना आज मुझे डांटा आपने ....सोचिए, क्या पहले कभी ऐसे गुस्सा किया था क्या मुझ पर? नही न"।

कहते कहते ममता बुरी तरह रोने लगी। ममता के जोर से रोने की आवाज से डरकर उसका बेटा भी रोने लगा।

मुन्नी-" बाबा मैं अनु दा से कभी बात नही करूँगी और तो और उनके ब्याह के लिए भी नही आउंगी। ममता ने एक सांस में कहकर बात खत्म की और मुन्ने को लेकर कमरे से बाहर निकल गयी।

बाबा ने ममता के बाहर जाते ही एक लंबी राहत की सांस ली। आखिर अनुराग की अपने ब्याह के लिए रखी शर्त के लिए आधार तैयार करने में कामयाब जो हो गए थे।

फिर ममता को सुनाने के लिए ऊंची आवाज में कहने लगे-" ममता की माँ, अगर इन दोनों की नही बनती तो इन्हें आपस में बात बन्द कर देनी चाहिए। कह दूंगा अनुराग को कि वापस अपने पिता के घर लौट जाए। ममता की आंख की किरकिरी दूर हो जाएगी। बेचारा कितना खटकता है इसकी आंखों में बचपन से ही, आखिर कहीं तो हद हो लेकिन मुन्नी की जलन की कोई हद नही। बचपन में तो चलो सहन कर लिया लेकिन अब बड़ी हो गयी तब भी नही समझती यह तो।

ममता ने जब सुना तो जल्दी से कमरे में वापस आयी और कहने लगी -" नही बाबा, अनु दा को वपिस मत भेजिए उनका मन आपके बिना कहीं नही लगेगा। मेरा क्या है, तीन साल बाद आना हुआ है आगे न जाने कब हो? जब मायके आना ही नही होगा तो शिकायतें भी नही होंगी। यकीन मानिए आज के बाद अनु दा के लिए कुछ नही कहूंगी।

ममता ने नजरें उठाकर बाबा की आंखों में झांका तो गहन संतुष्टि के भाव नजर आए। बाबा धीरे धीरे सहमति जताते हुए अपने कमरे की तरफ चले गए। उनके हाथ में अनुराग के दिये शगुन के रुपयों के टुकड़े थे।

ममता बड़ी असमंजस की स्थिति में फंस चुकी थी। समझ नही पा रही थी कि अनु दा से उसका रिश्ता खत्म करने की बात पर बाबा ने कोई विरोध नही किया, उनकी शादी में सम्मिलित होने से मना कर दिया तो उन्हें कोई बेचैनी नही अपितु उनकी आंखों में तो गहन संतुष्टि थी। आखिर यहाँ चल क्या रहा है?

पूरी रात ममता को नींद नही आई। बार बार करवटें बदलना चाहती थी लेकिन बेबस इतनी की करवटें भी नही बदल पाई। जरा सी आहट पर बड़ी माँ की आंख खुलने का डर था उसे। भोर के 5 बजे जाकर जरा झपकी आई। झपकी आई लेकिन सारी रात के रतजगे के बाद कब गहरी नींद के आगोश में जाती गयी, उसे पता नही चला। आंख खुली तो सूरज तपने लगा था। दोपहर के 12 बज चुके थे। एक बार फिर से चौंक उठी ममता कि किसी ने उसे उठाने की जहमत भी नही की। बगल में कुछ टटोला तो लल्ला भी नही था। अलसायी सी उठी और कमरे से बाहर निकली। बाबा के कमरे से फुसफुसाती आवाजें आ रही थी। बेसाख़्ता उसके कदम उधर की तरफ ही चल दिये।

क्रमश

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