भाग -6 से आगे-
मैंने शैलेन्द्र की उत्सुकता को देखते हुए ये तो समझ ही लिया कि शैलेन्द्र बिना पूरी कहानी जाने मानेगा नहीं और वैसे भी अपनी बहन के बारे में जानने का हक़ है उसे पर मैं सिर्फ कुछ समय के लिए ये सब टालना चाहता था। हमारे पास उस समय एक सवाल और भी था कि शैलेन्द्र आखिर वापिस कैसे आया। अगर एक बार ये पता चल जाये तो फिर पूरी कहानी को एक सूत्र में पिरो कर समझ और समझाया जा सकता है। मैंने शैलेन्द्र को दो पल रुकने को कहा और सुलोचना को बुलाया।
सुलोचना ने मुस्कुराते हुए पूंछा- क्या हुआ काका?
उसके चेहरे पर भाई के वापिस आने की खुशी साफ दिख रही थी वो इतनी खुश थी कि उसके शब्द भी मुंह से साफ साफ नहीं फूट रहे थे। आखिर अपना भाई जो वापिस आया था। अजीब सा संगम था दुख और सुख का पर आंसुओं का रंग तो होता नहीं और न ही खुशबू जो समझ सके कि किस वजह से निकल आये सुख के या दुख के। एक तरफ बहन के साथ हादसा और एक तरफ भाई की वापसी।
मैंने कहा- बेटा, एक काम करो वो जो तार आया था वो तो घर पर ही रखा होगा, जरा ले कर तो आना।
मैने मन में सोंचा कुछ तो है जो गलत है और जिस वजह से ये सब हुआ है।
सुलोचना बोली-रुको काका, मैं अभी लेके आयी, अंदर ही रखा है संभाल के। सुलोचना अंदर से तार लेकर आई और मेरे हाथ मे दिया। सभी लोग बड़ी उत्सुकता से मेरी तरफ देख रहे थे पर मेरे हाथ कांप रहे थे। मैंने तार खोल के देखा। उसपर लिखा था-
" Shri N. Singh, बहुत दुख के साथ सूचित कर रहे हैं कि आपका बेटा युद्ध के दौरान शहीद हो गया है।"
कागज़ पर छपा हुआ यह वाक्य मैंने अपने मन मे कई बार पढ़ा पर मुझे कुछ भी अटपटा नहीं लगा मैं उसको ध्यान से देख रहा था कि वो तार शैलेन्द्र ने मुझसे ले लिया और वो भी उसे घूरके पढ़ने लगा।
अचानक शैलेन्द्र ने अपने पिता से पूंछा- बापू, चौहान साहब का पूरा नाम क्या है?
नन्नू ने जवाब दिया- नाम तो पूरा याद नहीं पूरा गांव यातो ठाकुर साहब नहीं तो चौहान साहब ही बोलता है। अपने पोस्टमैन चाचा से पूंछो इनको पता होगा।
मैंने बोला- हाँ, उनका नाम है नरेंद्र सिंह...... नरेंद्र सिंह चौहान।
अरे, मर गया मैं तो। ये क्या कर डाला मैंने। मैंने इनका सब कुछ बर्बाद कर दिया। अब मुझे ये गांव वाले और चौहान तो जिंदा ही जला देंगे, बहुत मारेंगे। मेरी इस एक छोटी सी गलती से नन्नू का परिवार एक बार टूट कर शायद वापिस जुड़ जाएगा पर यह चौहान अब मुझे मार देगा क्यूंकि उस तार पर लिखा था
" Shri N. Singh, बहुत दुख के साथ सूचित कर रहे हैं कि आपका बेटा युद्ध के दौरान शहीद हो गया है।"
मैंने समझा N. Singh मतलब नन्नू सिंह पर ये तो सोंचा ही नहीं कि इसका मतलब नरेंद्र सिंह भी तो हो सकता है और उनका लड़का भी तो सेना में ही है। क्या कांड कर दिया मैंने। वो शहीद सेना का जवान कोई और नहीं चौहान साहब का बेटा शेखर था और हम अनपढ़ लोग न सही से तार पढ़े और न ही सही से पत्र व्यवहार किये। शेखर भी तो गायब है और उसकी कोई खबर भी नहीं मतलब वो शव जो सेना वाले लाये थे वह शेखर का था शैलेन्द्र का नहीं।
मैंने फौरन शैलेंद्र से कहा बेटा अंदर तुम्हारे डिपार्टमेंट से जो तुम्हारा सामान वाला बक्सा है वो लेके आओ जरा। शैलेन्द्र और नन्नू दौड़ के गए और बक्सा लेके आये।
बक्सा सामने देख मैंने पूंछा- नन्नू तुमने इसको खोल के नही देखा अब तक?
नन्नू ने जवाब दिया- नहीं, इतनी हिम्मत नहीं कर पाया कि इसको खोल सकू। बेटियों को तो संघर्ष से करते करते समय ही नही मिला।
मैंने बक्से को पीछे से जाके देखा तो फिर से हैरान रह गया बक्से पर अंग्रेज़ी में लिखा था- Hawaldar S. Singh S/O Shri N. Singh. यह सब देखकर मेरे होश उड़ गए क्यूंकि अब मैं समझ चुका था कि पूरी कहानी क्या है और इसी के साथ अब मुझे अपने परिवार की भी याद आने लगी थी क्यूंकि अब चौहान दिल्ली से वापिस आकर नन्नू को नहीं बल्कि मेरी जान लेगा। अब तो मरना तय है।
सामान से भरा बॉक्स देखकर शैलेन्द्र बोला -यह बक्सा मेरा नहीं है। सामान देखकर पता चलेगा कि यह किसका है और यहाँ पर कैसे आया।
शैलेन्द्र ने सामान खोलना शुरू किया। बक्से में महँगे कपड़े, कुछ किताबें, पुराने जमाने वाली शानदार घड़ी,दो चार छोटे छोटे बर्तन और कुछ अन्य सामान था। मुझे तो पता चल ही चुका था कि ये समान किसका है और लफड़ा क्या है।
बक्से के अंदर ही शैलेंद्र को कुछ पत्र मिले। पहले पत्र को खोलकर जैसे ही शैलेन्द्र ने पढ़ा- प्रिय पुत्र शेखर। वहाँ उपस्थित सभी लोगो के नीचे से जमीन निकल गयी सिवाय मेरे। क्यूंकि मेरी जमीन खिसकाने वाला दिल्ली गया था और वहाँ से पूरी खबर लेकर कभी भी आ सकता था। मैंने शैलेन्द्र के सामने हाथ जोड़ लिए और फूट फूट कर रोने लगा। मैंने नन्नू के भी हाथ जोड़े और कहा- नन्नू मुझे बचालो। ये चौहान मुझे मार देगा। मेरे परिवार का क्या होगा। नन्नू मुझे इस चौहान और इसके पागल लड़के से कैसे भी बचाओ।
नन्नू ने हैरान होते हुए पूंछा- अरे, साहब पर हुआ क्या ये तो बताओ? चौहान तुम्हे क्यूँ मार देगा वो तो मुझे और मेरे परिवार को खत्म करेगा सबसे पहले। ये सब देखकर शैलेन्द्र चिल्लाता हुआ मेरे पास आया और बोला- चौहान तो तुमको बाद में मरेगा चाचा , सच सच बतादो पूरी बात क्या है और क्या छिपा रहे हो मुझसे नहीं तो मैं ही तुमको मार दूंगा।
मैं पास की ही दीवार के सहारे बैठ गया, सुलोचना जल्दी से अंदर जाके मेरे लिए एक लोटा पानी लेकर आयी। मैं अपनी आंखों से आंसू पोछकर बैठ गया और बोला- गलती किसी की नहीं है पर आज सब मेरी वजह से ये भुगत रहे है पर अब ऐसा नही होगा। दरअसल उस दिन जब मैं तार देने आया तो मुझे आने घर वापिस जाने की जल्दी थी। मैंने ज़्यादा सोंचा नहीं। यह पता था मुझे कि तार अक्सर दर्द भरे संदेश लाते है पर पता नहीं उस दिन मैं ये भूल ही गया कि N. Singh सिर्फ नन्नू सिंह ही नहीं नरेंद्र सिंह भी हो सकता है। मैंने बिना कुछ सोंचे समझे तार लाके यहाँ दे दिया और सबने समझ लिया कि युद्ध मे शैलेन्द्र शहीद हुआ है। शेखर की तरफ किसीका ध्यान गया ही नहीं। दो दिन बाद जब सेना के जवान शेखर का शव देने गांव आये तो वो शव इतना छतिग्रस्त था कि कोई उसको पहचान ही नहीं पाया और गलत नाम के चलते गलतियां होती चली गयी। ऐसा इत्तफाक तो शायद ही कभी होता हो जो अभी हुआ है।
शैलेंद्र ने बहुत नाराज होके पूंछा- चाचा एक बात बताओ तुमको बहुत जल्दी थी घर जाने की तो उस दिन पर आप तो पूरे गांव को बरसों से जानते हो एक एक आदमी की पहचान है आपको। आपको लोगों को यह नही लगा कि शेखर बिल्कुल गोरा चिट्टा हूं और मेरा रंग साँवला है। आपलोग अगर उसदिन सामान का भरा हुआ बॉक्स खोलकर देख लिए होते तो भी ये इत्तफ़ाक़ होने से बच जाता। मेरे साथ जो हुआ वो तो आप लोगो ने सोंचा भी नहीं होगा। शेखर एक अच्छा दोस्त बन गया था मेरा। युद्ध से पहले हम दोनों एक ही बटालियन में थे पर उस दिन हम दो भाग में बंट गए थे। वो लोग लड़ते रहे और हम लोग लड़ते लड़ते बहुत आगे निकल गया थे। पता ही नहीं चला कि कब हमारे साथी कम होते चले गए और हम सीमा पार करके दूसरी तरफ चले गए। तीन लोगो को पाकिस्तान ने बंदी बना लिया उनमे से एक मैं भी था। दो दिन वहाँ बंदी रहने के बाद हम तीनों को छोड़ दिया गया। मैं डिपार्टमेंट के कार्यालय में पत्र देकर सीधा गांव आगया। मुझे तो पता ही नहीं कि शेखर का क्या हुआ। आप लोग ही बता रहे है कि ये सब हो गया। अब क्या होगा पता नहीं। मुझे किसी चौहान से डर नहीं लगता बापू पर उस बाप से जरूर डर लगता है जिसने अपने जवान बेटा खोया हो। उससे नज़रे मिलना आसान नहीं।
मैंने सोंचा अभी तो यह ऐसी बातें कर रहा है पर जैसे ही इसको अपनी बहन के साथ हुए हादसे और उत्पीड़न का पता चलेगा तब ये क्या करेगा पता नहीं। मैं ये सोंच ही रहा था कि शैलेन्द्र ने पूंछा- ये बड़ी जीजी को क्या हुआ?
मैंने बिन कुछ छिपाए बोला- तुम्हारे बारे में सुनने के बाद गांव का माहौल अज़ीब से ही हो गया था। सभी को तुमपर और तुम्हारे शहीद होने पर गर्व था। तम्हारी बड़ी बहन ने गांव का नाम तुम्हारे नाम पर और गांव के चैराहे पर तुम्हारी मूर्ति स्थापित करवाने की सोंची। गांव के कुछ ऊंचे वर्ग को यह पसंद नही आया कि एक नीची जाति के आदमी के नाम पर गांव का नाम रखा जाए और उसकी कोई मूर्ति भी स्थापित हो। तुम्हारी बहन मनोरमा ने इस बात का विरोध किया तो किसी ने उसकी ये हालात कर दी।
शैलेन्द्र चीख़ता हुआ बोला- किस कमीने ने मेरी बहन की ये हालत की बताओ मुझे मैं उसकी जान ले लूंगा। बताओ मुझे।
मैं बोला- चौहान साहब के बड़े बेटे और तुम्हारे दोस्त शेखर के भाई श्रीकांत ने।
वो यह सुनकर सन्न रह गया। उसका विश्वास ही जैसे डगमगा गया हो। वो बोला- उसने पर उसका और जीजी का क्या मेल और उसने किया क्या है जीजी के साथ?
ये सब सुनकर शैलेन्द्र की माँ फुट फूट कर रोने लगी और बोली- कमीने ने जीवन बर्बाद कर दिया मेरी बच्ची का। मुंह काला कर दिया इसका अब कौन ब्याह करेगा इससे और छोटी से। हम कैसे जिएंगे और कैसे किसी को शक्ल दिखाएंगे।
"सब ठीक हो जाएगा माँ सब ठीक हो जाएगा, अब मैं आ गया हूँ न, मैं सब कुछ सही कर दूंगा।"- शैलेंद्र ने अपनी रोती हुई माँ का सिर अपनी गोद मे रख और उसे समझाया। समझाते हुए उसकी आँखों मे भी आँसू आ गए। बहुत परिपक्व और समझदार लड़का था शैलेन्द्र पर फिर भी उसकी आंखें उसके आंसुओं को रोक न सकी।
शैलेन्द्र ने मुझसे पूंछा- काका, चौहान साहब अभी कहाँ है?
मैंने बताया- वो तो शेखर की खबर की खबर लेने दिल्ली गए है और उनका बड़ा लड़का श्रीकांत भी उनके साथ दिल्ली गया है। या पता नहीं यहीं कहीं छिपा है। एक बार जाके बड़ी जीजी से बात करके देखो शायद उसे कुछ पता हो कि उस रात घर से जाने के बाद क्या हुआ।
सब लोग मनोरमा के पास पहुंचे। वो बेचारी अपने चेहरे पर कपड़ा डालकर लेती हुई थी और हमारी बातें सुन रही थी। हमे आता देख उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घूम लिया। नन्नू ने बोला- बेटा, तुमने कोई गलती नहीं कि है जो अपना चेहरा छिपा रही हो बल्कि हम सभी को गर्व है तुम्हारी सोंच और तुम्हारी हिम्मत और भाई के लिए तुम्हारे प्यार की। तुम्हारी इज़्ज़त कहीं नही गयी बल्कि वो हमेशा से तम्हारे पास थी और साथ ही रहेगी। ये गंदी हरकत जो श्रीकांत ने तुम्हारे साथ कि है उसका हिसाब ऊपरवाला जरूर लेगा। अब देखो भगवान ने तुम्हारे प्यारे भाई को भी वापिस भेज दिया है।
यह सब सुनके मनोरमा में हिम्मत आई और फिर उसने अपना मन मजबूत करके उस रात हुई सारी दास्तान अपने परिवार और मुझे बताई की किस तरह श्रीकांत और उसके दोस्त ने उसको धोखा देके उसकी इज़्ज़त से खिलवाड़ किया और फिर वही जंगल मे मारने के लिए छोड़ गए। पर अब मेरा भाई घर आ गया है मुझे पता है सब कुछ ठीक हो जाएगा
उस दिन उस घर से किसी ने भी घर के बाहर कदम नही रखा। मैं भी अपने दो- चार पत्र गांव में बांट के वापिस नन्नू के घर ही आ गया। अब हम सभी को चौहान साहब के दिल्ली से वापिस आने का इंतजार था। क्यूंकि जब चौहान साहब दिल्ली से वापिस आएंगे तभी तो शेखर की पूरी दास्तान खुल कर सामने आएगा और तभी तो श्रीकांत और उनका दोस्त अपने बिल से बाहर निकलेंगे। नन्नू और शैलेन्द्र ने अपने अपने शिकार पहलव से ही सोंच रखे थे पर मैं सच मे घबराया हुआ था।
रात का समय भी आ गया ओर चौहान साहब दिल्ली से वपिस नही आये। मैं आने घर कानपुर वापिस चला गया। उस रात सभी ने बहुत दिनों के बाद मुस्कुराया और खाना खाया। सभी भगवान से शैलेन्द्र के जीवित होने का धन्यवाद किया और आगे सभी कुछ अच्छा हो इसकी कामना भी की। अगले दिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी गांव आने की क्योंकि मुझे पूरी उम्मीद थी कि चौहान अब तक वापिस आ चुका होगा पर मैं फिर भी हिम्मत करके गांव गया और सीधा नन्नू के घर गया। घर पहुंचा ही था कि गांव में फिर से एक बार हंगामा शुरू हो गया।
नन्नू के घर के बाहर चौहान साहब 20-25 आदमियों के साथ खड़े थे सभी न हाथ मे मोटी मोटी लाठियां थी और खुद चौहान साहब के हाथ मे बंदूक थी।
चौहान साहब बोले- अरे, नीची जाति वाले गंदे आदमी, बाहर निकल। आज तेरी पूरी नस्ल ही खत्म कर देंगे। तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे की चिता को अग्नि देने की। तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को हाथ लगाने की। ये सब तुम घटिया लोगो की चाल है। कुछ गलत हासिल करने की। वरना मेरे लड़के में तो ठाकुरों का लहू था वो मर नही सकता। तेरे लड़के ने ही उसको धोखा दिया होगा। अरे कमीनों, तम्हारे पास एक वक्त की रोटी के पैसे नही है तो तेरे शरीर मे बन्दूक उठाने की हिम्मत और ताकत कहँ से आई। तेरा लड़का भी अंदर चोरों की तरह छिप कर बैठा है। बाहर निकालो उस विश्वासघाती को।
नन्नू ने दरवाजा खोला और निकल कर सामने गया। पहली बार अपने जीवन मे उसके चौहान को देखकर झुककर सलाम नही किया। पहली बार इसने आंखों में आंखें डाल कर चौहान से बात करने की हिम्मत की। नन्नू अकेला बाहर खड़ा था पर मेरी बाहर निकलने की हिम्मत न हुई। शैलेन्द्र ने धीरे से अपने पिता नन्नू से पूंछा- बापू बाहर श्रीकांत है क्या? उससे जीजी का हिसाब पूरा करना है। मैंने शैलेंद्र को शांत किया। शैलेन्द्र शांत हो गया क्यूंकि बेटा खोने का दर्द उसने एक ही दिन में अपने घर पर देख लिया था। मन ही मन शैलेन्द्र चैहान साहब को माफ के चुका था पर श्रीकांत को नहीं। इसलिए वो अंदर बैठ कर श्रीकांत का इंतजार कर रहा था। थोड़ी सी देर में बात अधिक गंभीर लगी शोर बढ़ने लगा और पूरे गांव के सैकड़ो लोग आदमी औरते और बच्चे शोर सुनके वहाँ की इकट्ठा हो गए।
to be continued..... भाग-8 कहानी का अंत
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