अतीत
लगभग एक घंटा से स्थापना समिति की बैठक समाहर्ता कक्ष में चल रही थी।ज़िला के आला अधिकारी इसमें शामिल थे।प्रमुख प्रस्तावों में स्थानान्तरण-पदस्थापन एवं प्रोन्नति पर गहन समीक्षा चल रही थी।
श्यामल किशोर संबंधित संचिकाओं के साथ बैठक कक्ष में एक ओर खड़ा था। जिस संचिका की मांग होती वह अध्यक्षता कर रहे कलक्टर साहब के समक्ष रख देता और कुछ विषेष बिन्दुओं की ओर ध्यान आकृष्ट करा देता।
जिले के विभिन्न शाखाओं प्रखंडों, अंचलों, अनुमंडलों एवं समाहरणालय में वर्षो से जमे लिपिकीय संवर्ग के कर्मियों का प्रतिवेदन समिति के प्रत्येक सदस्य के सामने था। लगभग 75 लिपिकों के तबादला पर सहमति बन गयी थी जिसपर अन्तिम निर्णय चल रहा था।
** अचानक श्यामल किशोर का मन एक सजे संवरे कार्यालय कक्ष में चला गया। कक्ष में सुन्दर कालीन बिछी थी। बड़ी सी राउण्ड टेबुल पर शीशा था जिसपर पेन स्टैंड,रिंग वेल, प्लेनर इत्यादि रखे थे। बायीं ओर टेलीफोन था। टबुल के पीछे गोदरेज की लक्जरी चेयर थी जिस पर तौलिया रख कर आवृत किया गया था। उस सजे कक्ष में श्यामल किशोर कुर्सी पर बैठा स्थानान्तरण-पदस्थापन की संचिका में रखे प्रतिवेदन को गंभीरता से निरीक्षण कर रहा था। वह "डिप्टी पर्सनल मैनेजर"था। जिन कर्मियों के स्थानान्तरण पर विचार होना था उसकी सूची सामने थी
ग्यारह बजे के करीब वह मैनेजिंग डयरेक्टर टी॰ गोस्वामी के कक्ष में आया। टी॰ गोस्वामी भारतीयप्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। श्यामल अपने लिए निर्धारित कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद कमरे में चीफ एकाउंट आफिसर चन्द्रशेखर सिन्हा एवं पी॰ए॰टू मैनेजिंग डायरेक्टर इन्द्रानन्द झा भी अपना अपना स्थान ग्रहण कर लिया।कार्मिक शाखा के दो सहायक मथुरा प्रसाद एवं विनोद कुमार संबंधित संचिकाओं के साथ कमरे में उपस्थित थे। फाइनेन्सियल काॅरपोरेशन की स्थापना समिति की बैठक लगभग 5 घंटों तक चली। जिला स्थित वित्तीय निगम की शाखाओं में पदस्थापित प्रबंधकों एवं लेखापालों का स्थानान्तरण प्रस्ताव पर सर्वसम्मति से सदस्यों ने निर्णय पश्चात हस्ताक्षर कर दिये। श्यामलकिशोर स्थानान्तरित कर्मियों व पदाधिकारियों के स्थानान्तरण आदेश निर्गत करने के लिए ’’स्थानान्तरण-परस्थापना संचिका अपने साथ लेकर निकले।**
तभी स्थापना उपसमाहर्ता नीरज भारती की डांट सुनायी पड़ी ,श्यामल आपका ध्यान कहाँ है। यहाँ महत्वपूर्ण बैठक चल रही है कलक्टर साहब संचिका मांग रहे हैं और आप कहीं दूसरी दुनिया में सैर कर रहे है।
श्यामल किशोर नीरज भारती की डांट पर अचकचाया ।उसका ध्यान भंग हुआ। उसे तुरंत गलती का एहसास हुआ। तभी अचानक मुँह से निकला -"साॅरी सर।"आवाज डर से लड़खड़ा गयी थी। नीरज भारती ने प्रमोशन वाली संचिका और रिर्पोट की माँग की।
श्यामल ने फ्लैट फाईल में बंधी संचिका झट हाथ में थमा दी। कलक्टर सुधीर कुमार(भा॰प्र॰से॰) ने स्थापना उपसमाहर्ता से प्रश्न किया- रोस्टर तालिका में आरक्षित वर्ग की रिक्तियों दर्ज है या नहीं ?
हाँ सर! रोस्टर विन्दुओं को क्लिीयर करते हुए प्रोन्नति योग्य लिपिकों का नाम शामिल किया गया है। इसमें वरीयता का भी पूर्ण व्यौरा संलग्न है।
समाहर्ता ने संतुष्ट होते हुए कहा-ओ॰के॰। अब कर्मियों के नाम और चारित्रिक टिप्पणी बारी-बारी से प्रस्तुत कीजिए। सभी सदस्यों के सामने भी प्रतिवेदन था जिसे देखकर वे लोग संपुष्ट करने वाले थे। लगभग तीन घंटा लगातार खड़ा रहते हुए श्यामल ने समिति के समक्ष संचिका की सूचना देता रहा।उसकी टांगे दुखने लगी थी। एक समय तो ऐसा आया जब लगा कि वह डगमगा कर गिर जाएगा।
शाम में कार्यालय से छुट्टी के बाद घर वापस आया। रात में उसकी नींद आखों से गायब थी। वह अपनी उच्च पद पर नियुक्ति से लेकर साधारण सहायक बनने तक की अवनति का शिकार बन जिला स्थापना समिति की बैठक में संचिका के साथ खड़ा था। इस दारूण पल में स्वाभाविक रूप से उसका व्यथित मन उस क्षण को याद करने के लिए मजबूर किया जब वह भी स्थानान्तरण पदस्थापन समिति का एक सदस्य होता था और कार्मिक प्रबंधक की हैसियत से उनके प्रस्ताव पर सहमति की औपचारिक हस्ताक्षर होते थे। वह अपरसमाहर्ता के समकक्षीय वेतनमान में कार्यरत था। वह पर्सनल मैनेजमेंट करके कार्मिक प्रबंधक के पद पर नियुक्त हुआ था। अपनी दुर्भाग्य पूर्ण अवनति पर वह विहंगम अन्तर्दृष्टि डालकर सिसक पड़ा।
डसकी नियुक्ति वर्ष 84 में पर्सनल मैनेजर के पद पर हुई थी, उस वक्त उसका वेतन डिप्टीकल्कटर के वेतनमान के समरूप था। पंजाबी युनिवर्सिटी, पटियाला से पर्सनल मैनेजमेंट करने के बाद तुरंत उसका चुनाव वित्तीय निगम के पर्सनल मैनेजर के पद पर हुआ।पद के अनुसार चेम्बर एवं सारी सुविधाएं निगम द्वारा प्रदान की गयी।
सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा था। वित्तीय निगम बिहार का लाभ कमाने वाले उपक्रमों में एक था। परन्तु उद्योग के लिए प्रदान किये गये ऋण की वसूली नहीं होने तथा करोड़ो रूपये उद्योगपतियों के जिम्मे डूब जाने के कारण वित्तीय निगम की आर्थिक स्थिति चरमरा गयी। नौबत यहाँ तक आ गयी कि वित्तीय निगम घाटे में चलने लगा और कर्मचारियों का वेतन बंद हो गया।घाटे की मार झेल उसके कर्मचारीगण भुखमरी झेल रहे थे।
श्यामल किशोर भी नियति के हाथों ठगा गया। सात वर्षों की सेवा पूरी हो गयी थी यहाँ ।इस कारण सरकारी विभागों में नौकरी की उम्र भी समाप्त हो गयी। अब वह निजी संस्थानों में कार्य करने काे इच्छुक भी नहीं था। जब सरकारी उपक्रम असमय बंद होकर उसे बेरोजगार कर दिये तो निजी संस्थानों की क्या औकात। अब तो भविष्य दाँव पर लग गया था। दो वर्ष उम्मीद व आशा में बीत गये। परन्तु वित्तीय निगम की हालत में सुधार का कहीं कोई आसार नहीं दिख रहा था। अन्त में श्यामल किशोर ने प्रोविडेन्ट फंड की रकम को निकाल कर खर्च करने लगा, परन्तु वह भी कितने दिन चलता।यह राशि उसके पद के अनुरूप खर्चो को कब तक ढो पाता।फिर
श्यामल एक अखबार में स्तम्भकार बनकर फीचर लेख लिखने लगा। इसमें उसके एक दोस्त ने मदद की। हिन्दुस्तान में उस दोस्त का पिता जेनरल मैनेजर था।पाँच हज़ार पगार की जुगाड़ हो गया।
बिहार सरकार के एक अधिसूचना के आलोक में बंद पड़े निगमों के योग्य कर्मियों को चुनकर प्रतिनियुक्ति पर कार्य कराने का निर्णय लिया गया। सभी कर्मियों को सहायक के रिक्त पदों पर प्रतिनियोजन करना था। श्यामल को परिवार के बोझ और बड़े हो रहे बच्चों की शिक्षा -दीक्षा के व्यय अखबार की आय से पूरा नहीं हो पा रहा था।
इसलिए सरकार के अधीन श्यामलकिशोर तृतीय श्रेणी के "सहायक "पद पर कार्य करने के लिए तैयार हो गया। उसे समाहरणालय में प्रतिनियुक्ति पर योगदान दिलाया गया। पद तो कमीय था पर पूर्व वेतन का संरक्षण का लाभ सरकार ने दी थी। इसिलिए वेतन ठीक ठाक मिलने लगा।
कार्य में अपने अनुभव और निपुणता तथा पदाधिकारी स्वरूप गुण के कारण वो काफी तत्परता और बिना विलंब संचिकाओं को निबटाता लेकिन अपने प्रभारी पदाधिकारी और प्रधान सहायक को प्रणाम सर ,गुडमाॅर्निंग सर करता। कभी अपने पैतृक कार्यालय में सैकड़ों कर्मियों का वह बाॅस था, आज सबसे निम्न स्तर पर कार्य करने को विवश था।पहले दिन योगदान के बाद
रातभर वह कश्मकश में जगा रहा। क्या करूँ ? छोड़ दूँ नौकरी या इसी तरह अपमानित होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता रहूँ। इस अर्थयुग में पद की आकांक्षा में पेट की आग तो बुझ नही सकती। जरा सी चूक और नादानी भरा निर्णय एकबार फिर सड़क पर ला सकता है। यह सोचते ही श्यामल सिहर उठा और आगे सोचना बंद कर दिया। श्यामल समय के हाथों अपने को असक्त पाया।
परन्तु श्यामल की कार्यकुशलता काफी अधिक थी।वह धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता और लिखता। शुद्ध-शुद्ध अंग्रेजी एवं हिन्दी में लिखी गयी टिप्पणी, पर पदाधिकारियों की कलम रूक सी जाती। किसी बैठक या अयोजन में जब चर्चा में भाग लेकर श्यामल अपनी बात रखता तो उपस्थित उच्चस्थ पदाधिकारी दंग रह जाते। श्यामल जैसे योग्य सहायक की विद्वता के सभी कायल बन चुके थे। इसीलिए भरपूर आदर भी मिलता श्यामल को। कलक्टर तो अक्सर श्यामल से पत्र का प्रारूप बनवाते। पदाधिकारी उसे उच्च शिक्षित सहायक मानते थे। लेकिन असलियत तो यह थी कि श्यामल मूलरूप से एक पदाधिकारी ही था।सिर्फ बुलाये जाने पर ही अपने से ऊपर के पदाधिकारी के पास जाता और पूछे गये प्रश्नों का जवाब देकर अपनी कुर्सी पर आकार संचिकाओं में डूब जाता। जिस स्तर के कर्मी उसके सामने खड़ा होने की हिम्मत नही कर पाते थे वे ही उसके सीनियर बने बैठे थे।
कहा जाता है कि सोया भाग भी कभी न कभी जगता है। वही हुआ। बिहार लोक सेवा आयोग की सीमित प्रतियोगिता परीक्षा के द्वारा पदाधिकारियों के रिक्त पदों को भरने का विज्ञापन निकला। मौका हाथ आते ही श्यामल ने आवेदन भर दिया। प्रथम प्रयास में ही वह उत्तीर्ण हो गया और डिप्टी कलक्टर बन गया।जब श्यामल अपने पद पर योगदान देने जाने वाला था तो उसके सम्मान में सम्पूर्ण समाहरणालय के कर्मी एवं पदाधिकारियों ने एक विदाई समारोह का अयोजन किया। विदाई सभा में श्यामल ने जब अपना पूर्व का अतीत बताते हुए फ़फक कर रो पड़ा ।उसकी आपबीती सुनकर लगातार पाँच मिनट तक प्रशंसा में ताली बजती रही।
मुक्तेश्वर प्र० सिंह