Relationship to self in Hindi Classic Stories by Manjeet Singh Gauhar books and stories PDF | रिश्ता अपनो से

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रिश्ता अपनो से

आपने अब तक शायद सिर्फ़ ऐसे लोगों को ही देखा होगा जो ये कहते हैं कि ' मेरे परिवार में तो चार सदस्य हैं या पाँच सदस्य हैं या आठ, दस, बारह हैं।' जो परिवार के सदस्यों की गिनती कराता हो। 
लेकिन मैं आपसे ये कहूँ कि इस पृथ्वी पर ऐसे लोग भी निवास करते हैं जो पूरी मनुष्य ज़ाति को ही अपना परिवार समझते हैं।
हाँ.. मैं ये नही कह रहा हूँ कि बहुत ज़्यादा की तादात में ऐसे लोग हैं...नही, बिलकुल नही।
बल्कि मैं तो ये कह रहा हूँ कि सौ में से सिर्फ़ एक-दो प्रतिशत ही ऐसे सज्ज़न और महापुरूष मिलते हैं। बाकि अठानवे प्रतिशत लोग ऐसे ही हैं जो सिर्फ़ अपने परिवार और अपने रिश्तेदारों से ही मतलब रखते हैं।
ऐसे लोग जो सिर्फ अपने परिवार और अपने रिश्तेदारों को ही अपना समझते हैं उन्हें भी सिर्फ़ वही गिने चुने लोग जानते हैं।
लेकिन जो लोग संसार के सभी लोगों को अपना समझते हो, उन्हें अपनों के जैसा प्यार और सम्मान देते हों। तो उन लोगों को सारे संसार के लोग अपना समझते हैं। और उनके साथ अपनों के जैसा व्यवहार करते हैं।
इसको इस कहानी के द्वारा समझते हैं:-
...
एक गाँव में दो अलग़-अलग़ परिवार रहते थे। दोनों ही परिवार की अापस में कई बार छोटी-मोटी लड़ाईयां भी हुईं थी जिसके कारण उन दोनों ही परिवार में कभी भी बनती नही थी।
उन दोनो ही परिवारों के सदस्य प्रत्येक दिन आपस में बहस करते थे।
समय भी धीरे-धीरे गुज़र रहा था लेकिन उन दोनो परिवार वालों के बीच बहस का ये सिलसिला यूं ही ज़ारी रहा।
दोनों परिवारों में बच्चे शादी के लायक हो गये थे। और उनकी शादी भी हो गयी।
शादियों को हुए भी बहुत समय हो गया। और अब उन लोगों के भी बच्चे होने लगे। अब वो लोग बच्चे पैदा करने में भी बहस करने लगे। ये सोच कर कि जितने ज़्यादा बच्चे होगें, उतने ही लड़ाई में जीतने के चाँस ज़्यादा होगें।
एक परिवार में छ: बच्चे हुए। लोकिन दूसरे परिवार में तो सिर्फ़ एक ही बच्चा हुआ।
एक परिवार जिसमें छ: बच्चे थे। उस परिवार के लोग समझते थे कि उसकी तो सिर्फ़ एक ही औलाद है। उसे तो हमारे बच्चे अाने वाले समय में मार-पीट कर भगा ही देंगे।
अब चूकिं उस परिवार में छ: बच्चे थे, तो उस परिवार ने ये सोचा कि " इन बच्चों को पढाने से कुछ फ़ायदा तो है नही। क्योंकि पढाई में खर्चा बहुत अायेगा। और वैसे भी इन्सान पढाई किस लिए करता है। ताकि वो अपना जीवन खुशी से व्यतीत कर सके। हमारे पास तो काफ़ी ज़मीन है खेती करने के लिए। और फिर कुछ समय बाद उसकी भी ज़मीन जिसकी बस एक औलाद है  हमारे छःओं बच्चों की हो जाएगी। "
और इस प्रकार की सोच के साथ उस परिवार ने अपने बच्चों को नही पढाया।
लेकिन वहीं दूसरा परिवार जिसमें सिर्फ़ एक ही औलाद थी। उस परिवार ने अपने उस एक बच्चे को बहुत उच्च स्तर की शिक्षा का ज्ञान कराया। मतलब कि उसे अच्छे कॉलिज़ में पढ़ाया। 
अब चूकिं वो उस घर में इक्लौता वारिश था, तो वो सब लोगों का प्रिय था। और पढा-लिखा था, तो उसमें संस्कार भी बहुत थे। जिसके कारण परिवार के साथ-साथ बाहर गाँव में मौहल्ले-पडोस के लोग भी उसे बहुत प्यार करते थे। 
समय के साथ-साथ वो बच्चे बड़े हो गये। जो इक्लौता बच्चा था वो तो पढ़-लिख कर आई.पी.एस बन गया। और अपना जीवन सुख से व्यतीत करने लगा।
और उधर वो जो छः बच्चे थे, बहुत ही ज़्यादा परेशानियों में अपना जीवन यापन करने लगे। क्योंकि जिस समय ने उन लोगों को बड़ा किया था, उस समय ने ही महगॉंई को भी बढा दिया था।
जैसा कि मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि उन दोनों ही परिवारों में आपस में कभी भी बनती नही थी। हर दिन वो छः के छः भाई उस दूसरे परिवार के लोगों परेशान किया करते थे, ताकि वो अपनी जग़ह-ज़मीन छोड़कर चलें जाए। और वो छःओं भाई उनकी जग़ह-ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लें।
लेकिन वो दूसरा परिवार जिसका इक्लौता बेटा आई.पी.एस अॉफ़िसर था। वो भी बिना डरे उस परिवार को कड़ी टक्कर देता था।
वो अकेला उन छः पर भारी यूं था कि एक तो वो आई.पी.एस अॉफ़िसर था, और दूसरा यूं कि गाँव के सभी लोग उसे अपना समझते थे। और लड़ाई में सारे गाँव के लोग उसी की तरफ़ रहते थे। जिसके कारण वो अकेला ही उन छः का सामना कर लेता था।
आख़िरकार उन छः भाइयों को ही हार माननी पड़ी। और फिर वो बिना लड़े-झगड़े अपनी-अपनी ज़िन्दगी को जीने लगे।
..
तो देखा आपने कि अगर आप दूसरों को अपना समझोगे, उन्हें सम्मान दोगे... तो वो लोग भी आपको अपना समझेंगे और आपको प्यार और सम्मान देंगे। चाहे फिर वे गाँव के लोग हो, शहर के हो, देश के हो, या फिर संसार के लोग हों।

मंजीत सिंह गौहर