Adrashya Humsafar - 12 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 12

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अदृश्य हमसफ़र - 12

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 12

दोनो के मध्य खूब वाद विवाद हुआ। बाबा ने हर तरह से अनुराग को समझाने की कोशिश की लेकिन अनुराग की जिद के सामने उन्हें झुकना ही पड़ा। उनसे कमरे का सन्नाटा सहन नही हो रहा था तो वह लड़खड़ाते कदमों से धीरे धीरे अपने कमरे की तरफ जाने लगे। अचानक कुछ ज्यादा ही लड़खड़ाए और गिरने को हुए तो अनुराग कुछ सम्भले और दौड़कर बाबा को पकड़ लिया। अनुराग उनका हाथ पकड़ कर उनके साथ चलने लगा।

अनुराग-" मुझे माफ़ कर दीजिए बाबा, लेकिन मुन्नी के उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरा उससे दूर रहना बेहद जरूरी है। अगर एक बार भी मेरा उसका सामना हुआ तो उसकी सारी शिकायतें और सब गिले शिकवे दूर हो जाएंगें। वह फिर से मुझे अपनी आदत बनाने में ज्यादा वक्त नही लेगी और कोई पति यह बर्दाश्त नही करेगा कि उसकी पत्नी के जीवन मे किसी दूसरे पुरुष की भी अहमियत है भले ही वह किसी रूप में भी हो। मुझे अपनी जगह अच्छे से याद है। मुंन्नी इस घर की इकलौती और सभी की लाडली बेटी है जबकि मैं। "

एक क्षण को अनुराग चुप हो गए जानते थे कि अगर बात पूरी की तो बाबा आहत हो जाएंगे। उन्होंने क्या कभी भी किसी ने भूले से भी उसे परायेपन का अहसास तक नही होने दिया था। उसके बात को अधूरी छोड़ने की मंशा को बाबा भी अच्छे से समझ चुके थे। सहमति में गर्दन हिलाते हुए बाबा ने कहा-" तुम्हारी बातें मुझे निशब्द कर देती हैं अनुराग। एक तरफ तो मुझे खुशी है कि तुमने आखिर ब्याह के लिए रजामंदी दे दी तो दूसरी तरफ मुन्नी को तुम्हारे ब्याह में न्योता न देने की शर्त से व्यथित हूँ। सबसे बड़ी उलझन तो यह है कि मैं मुन्नी को क्या कारण दूँगा जब उसे तुम्हारे ब्याह का न्योता नही भेजा जाएगा।

अनुराग-" बाबा भले ही कुछ भी कहिये लेकिन यह स्थिति आप ही सम्भाल सकते हैं। वैसे भी मुन्नी किसी और को बख्शेगी नही और आपसे ज्यादा सवाल करेगी नही। "

बाबा धीरे धीरे सहमति में सिर हिलाते हुए अपने कमरे में चले गए।

घरवाले आश्चर्यचकित थे अचानक से अनुराग के एक सप्ताह के लिए घर से जाने पर लेकिन किसी ने कोई सवाल खड़ा नही किया। मुन्नी के ब्याह के बाद घर का माहौल ही बदल गया था। उसके रहने से जहाँ सारा दिन घर में चुहलबाजियां होती थी अब सब शांत रहते थे। मुन्नी जब अनु दा से अक्सर लड़ती रहती थी, भले ही कोई ठोस वजह हो या नही हो तो उसका आनंद सभी घरवाले उठाते थे और बीच बीच में बातों की फुलझड़ियां छोड़ते रहते थे लेकिन अब न कोई झगड़ा न झंझट और न ही कोई फुलझड़ी और धमाके। दोनो भाई शांत स्वभाव के थे तो शोर शराबे से कोई ताल्लुकात ही नही था। कभी कभी बड़ी माँ जरूर कहती थी, मुन्नी क्या ब्याही जैसे इस घर की तो रौनक ही चली गयी। सभी अनुराग के ब्याह के सपने देखने मे लगे रहते लेकिन अनुराग से कहने की जुर्रत सिवाय बाबा के कोई न करता।

मुन्नी के ब्याह के बाद से ही अनुराग की दुनिया भी बदल गयी थी। बस नौकरी और बाबा की सेवा। जीवन का ध्येय ही जैसे यही रह गया था।

बड़ी माँ कभी कभी कहती-" अनुराग, ए छोरे अब ब्याह कर ले। मुन्नी के जाने से घर सूना हो गया है कुछ तो रौनक लौटेगी। तेरे सिर पर सेहरा बंध जाए तो और बच्चों की सोचे। "

अनुराग हँसकर टाल देते थे-" क्या बड़ी माँ, घर की शांति नही सुहाती क्या? एक तूफानमेल गयी है अभी तो कुछ दिन तो शांति का आनंद लो। और क्या भरोसा कि आनेवाली रौनक ही लगाएगी। यह भी तो हो सकता है कि तालमेल न बिठाए। जान को और क्लेश। न बाबा न...मैं खतरा मोल न लूंगा। आप बड़े भैया का ब्याह कर दो। "

बड़ी माँ फिर अनुराग को खूब बढ़िया बढ़िया श्लोक सुनाती। अनुराग हंसकर उन्हें गले लगाते और वहां से खिसक जाते थे।

अनुराग ने अपना सामान उठाया और बड़ी माँ के पास पहुंच कर कहने लगा-" बड़ी माँ, सरकारी आदेश है। 7 दिन के लिए बाहर जाना है। आज ही निकलना होगा नही तो पहुंचने में देरी हो सकती है। "

बड़ी माँ-" पर छोरे, शाम तक मुन्नी आने वाली है। अपने लल्ला को लेकर। पहली बार आ रही है। तू मिलेगा न उससे। "

अनुराग-" नही बड़ी माँ, आप ये लिफाफा मुन्नी को दे देना। शगुन है उसके लल्ला के लिए। माफी मांग लेना मेरी तरफ से। अगली बार आएगी तभी मिलना हो पायेगा। मन तो मेरा भी बहुत है लल्ला के साथ खेलने का लेकिन क्या करूँ? मजबूरी है अम्मा। आप ही तो कहती हो न कि "हांजी की नौकरी और ना जी का घर। "

बड़ी माँ को सकते कि स्थिति में छोड़कर अनुराग घर से निकल गए। अनुराग ने ठान लिया था कि ममता के सामने तो लल्ला से भी नही मिलेगा। जानता था उसे गोदी में उठाया तो मन का पारा यकीनन पिघल जाएगा और फिर भावनाओं का तीव्र बहाव वह सह नही सकेगा। बेहतर है दोनो माँ बेटा से दूर रहकर एक हफ्ता सरकारी बंगलें में गुजारा जाए।

शाम होते होते घर की रौनक जैसे वापस आ गयी। मुन्नी के लल्ला के स्वागत के लिए पूरा घर तैयार था। जैसे ही मुन्नी की गाड़ी रुकी, सभी मुख्य दरवाजे की और दौड़ पड़े।
आरती और नजर उतराई के बाद काकी मुन्नी को बड़ी माँ के कमरे में ले गयी। मुन्नी के ठहरने का इंतजाम उन्ही के साथ था।

मुन्नी-" माँ, मेरा कमरा? मेरे कमरे को क्या किया जो मुझे बड़ी माँ के साथ ठहरा रही हो। "
माँ मुन्ने को निहारती रही जैसे कुछ सुना ही नही।

ममता ने फिर से थोड़ी तेज आवाज में अपना सवाल दोहराया तो माँ ने गर्दन उठाकर कहा-" मुन्नी, तुम्हारा कमरा अनुराग को दे दिया। अब देखो न तुम तो दो साल वाद आयी हो। अनुराग कब तक सूरज के कमरे में रहता। "

ममता के नथुने गुस्से से फूल गए।

"अनुराग… अनुराग… अनुराग… बस एक यही नाम रह गया है सभी की ज़ुबान पर। पहले घर में आया फिर आप सभी के दिल में और अब मेरा कमरा भी गया। "

"मुन्नी"- बड़ी माँ ने उसे टोका-" क्या बिगाड़ा है उसने तेरा जो इतना पीछे पड़ी रहती है। सभी का कितना ख्याल रखता है तुझे क्या पता। अब एक हफ्ते के लिए गया है देखना सभी परेशान हो जाएंगे उसके पीछे से। "

" क्या? अनु दा घर में नही हैं"- मुन्नी की आंखे विस्मय मिश्रित क्रोध से बड़ी और लाल हो गयी।

क्रमशः

***