"आई0 सी 0 यू 0 में पृथ्वी"
आर 0 के0 लाल
आधी रात में एक बार जब धारासार वृष्टि, बादलों की गरज, विद्युत की कौंध और झंझावात की विभिषिका अपनी पराकाष्ठा की सीमा स्पर्श कर रही थी तो दूर कहीं किसी नारी की करुण क्रंदन ध्वनि सो रहे एक दस वर्सीय बालक सुभाष के कानों में पड़ी। शुरू में तो उसे लगा कि शायद यह उसका वहम है परन्तु लगातार विलाप उसकी निंद्रा भंग कर चुकी थी। बहुत देर तक वह सोचता रहा कि कैसे वह इस गंभीर रुदन का पता लगाए। अगली बार जब उसे पुनः रोने की आवाज सुनाई दी तो वह अपने को रोक नहीं सका। एक स्काउट होने के नाते वह ऐसी बातों को कैसे बर्दाश्त कर सकता था। उसने स्काउट की वर्दी पहनी, हाथ में टॉर्च, चाकू और ठंडा लेकर अकेले ही घर से निकल पड़ा। रुदन के स्वर के सहारे वह घर से काफी दूर तक चला गया। जंगल की सीमा प्रारंभ हो चुकी थी। रात के 12:00 बज रहे थे। हवा सांय सांय करके दिल में एक दहशत पैदा कर रही थी। मगर सुभाष तो एक वीर बालक की तरह चलता ही जा रहा था। अचानक उसे आभास हुआ जैसे कोई खूबसूरत स्त्री एक पेड़ के नीचे बैठी रो रही है। उसने उस नारी को पुकारना चाहा मगर टॉर्च जलाते ही वह गायब हो गई। सुभाष डर सा गया। उसे फिर रोने की आवाज सुनाई दी। इस बार उसने टॉर्च नहीं जलाई जिससे वह नारी वहीं रही और गायब नहीं हुई। सुभाष ने उसने रोने का कारण पूछा । तब उसने कहा कि मैं पृथ्वी की बहन हूं। काफी दिनों से पृथ्वी की हालत काफी चिंताजनक है। उसे आई0 सी0 यू0 में भर्ती किया गया है और उसके ठीक होने का कोई उपाय नजर नहीं आता। सभी डॉक्टर हकीम हारते जा रहे हैं। किसी की दवा काम नहीं कर रही है। अगर वह मर जाएगी तो यह संसार नहीं रहेगा। मैं भी अनाथ हो जाऊंगी । फिर वह दहाड़ मार कर रोने लगी।
सुभाष की भी आंखें नम हो गई क्योंकि पृथ्वी सबकी माता है। उसने पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए। मैं उनकी सेवा करना चाहता हूं इसलिए मुझे आप उनके पास ले चलिए। काफी अनुनय विनय के बाद वह नारी सुभाष को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हुई। पलक झपकते ही सुभाष उस नारी के साथ पाताल लोक पहुंच गया जहां पृथ्वी आई0 सी0 यू0 में लेटी थी। उसके चेहरे पर ऑक्सीजन का मास्क चढ़ा था, उसके शरीर पर जगह-जगह चोट के निशान दिखाई पड़ रहे थे। उसकी सांस ठीक नहीं चल रही थी। रह - रह कर वह कांप उठती थी। डॉक्टर दवाओं की ड्रिप चला रहे थे। उस बालक ने देखा पृथ्वी लगभग बेहोश थी। उसके पास तमाम डॉक्टर मॉनिटर पर नजर जमाए थे। पास ही पृथ्वी के पिता ब्रह्मा जी भी बैठे थे। जब पृथ्वी को होश आता उनसे कहती कि मुझे बचा लो।
ब्रह्मा जी ने बताया कि इससे पहले भी पृथ्वी कई बार पीड़ित हो चुकी है। कभी कंस के भार से तो कभी रावण के कहर से। उसे बचाने के लिए भगवान को स्वयं अवतार लेना पड़ा था और उनका वध करना पड़ा था। मगर इस बार कुछ तो अनेकों असुर बड़े पैमाने पर उत्पात कर रहें हैं। उन्होंने बताया कि हमारी पूरी सेना इस बात का पता कर के आ गई है। हमारी पृथ्वी को कष्ट देने वाले एक दो नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में हैं। मुझे तो समझ में नहीं आता कि कितने भगवान को अवतार लेने की जरूरत पड़ेगी। तब तक तो पृथ्वी अपनी अंतिम सांसे ही ले लेगी यही रोना है। ब्रह्मा जी ने आगे बताया कि उनकी बेटी बहुत ही संवेदनशील है। जरा जरा सी बात से पीड़ित हो जाया करती है। कहा करती है कि मैं ऐसे मनुष्यों का भार वहन करने में सर्वथा असमर्थ हूं जो अपने धर्म और आचरण से रहित हैं, जो नित्य कर्म से हीन हैं जो माता पिता गुरु का सम्मान नहीं करते, झूठ बोलते हैं, जो मित्र द्रोही और देश द्रोही हैं, जो मेरे पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को मार डाल रहे हैं तथा लोभ और ज्यादा उत्पादन करने की प्रवृति से हमारे संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं। इन सब कारणों से पृथ्वी अक्सर डरकर कांपने लगती है और नतीजा भूकंप के रूप में हमारी प्रजा भुगतती है। हमारे बनाए हुए अनेक जीव जंतु की जीवन लीला समाप्त हो जाती है। अब तो उसके लिए दवाइयां भी काम नहीं कर रही है। पिछले कुछ दिनों में धरती के अलग अलग भूभाग पर, कहीं ज्वालामुखी फटने के रूप में, तो कहीं सुनामी, कहीं भूकंप और कहीं ऐसे ही किसी प्रलय के रूप में इस बात का ईशारा भी कर रही है हमारी पृथ्वी में कितना हाइपरटेंशन और बेचैनी बढ़ गई है। इसीलिए इसे आई0 सी0 यू0 में लाना पड़ा।
सुभाष भी वहीं बैठ गया और पृथ्वी के पैर दबाने लगा। उसने जानना चाहा कि पृथ्वी की पैथोलॉजीकल रिपोर्ट क्या कहती है? क्या उससे उसकी बीमारी का कारण नहीं पता चल सका?
वैद्य धन्वंतरी भगवान ने बताया कि सभी तरह की पैथोलॉजी रिपोर्ट आ गई है। थर्मामीटर से पता चला है कि पृथ्वी का ताप पहले से बहुत बढ़ गया है जो काफी चिंता का विषय है। पृथ्वी पर बढ़ते प्रदूषण स्तर ने ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर धरती का तापमान दो डिग्री से ऊपर बढ़ता है तो धरती की जलवायु में बड़ा परिवर्तन हो सकता है। जिसके असर से समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ना, बाढ़, जमीन धंसने, सूखा, जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं। वैज्ञानिक इसके लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को जिम्मेदार मानते हैं। ये गैस बिजली उत्पादन, गाड़ियाँ, फैक्टरी और बाकी कई वजहों से पैदा होती हैं।
उसके ब्लड रिपोर्ट से ज्ञात हुआ है कि पृथ्वी के शरीर में अनेकों तरह के प्रदूषण प्रवेश कर चुके हैं । उनके स्वशन तंत्र में काफी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की परतें जमा हो गई है जो मशीन से भी नहीं साफ हो पा रही है।
प्रदूषण स्तर ज्यादा बढ़ने के कारण पृथ्वी के फेफड़ों में संक्रमण व आंख, नाक व गले में कई तरह की बीमारियों की संभावना है जो धीरे धीरे पृथ्वी के ऊपर रहने वाले तमाम जीव जंतुओं में भी हो सकती हैं। वैसे तो इसके लिए ब्रह्मा जी ने पहले से ही पृथ्वी के चारों तरफ एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण कर दिया था जिसे पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है"आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी को उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करता है।
ब्रह्मा जी ने अपनी चिंता व्यक्त की कि लोग सोचते क्यों नहीं कि विकास मानव-जाति को विनाश की ओर ले के तो नही जा रहा है । क्या हरे-भरे क्षेत्रों का विनाश कर उसकी जगह सीमेंट के जंगल खड़े कर देना ही विकास है? विशेषज्ञों की रिपोर्ट है कि आज मानव के कार्यकलापों से प्रदूषण का साम्राज्य फैलता जा रहा है। सबसे चिंताजनक दशा तो हवा की हो गई है उसमें सल्फर डाइऑक्साइड नाइट्रो ऑक्साइड रासायनिक प्रदूषण फैल रहे हैं। इसके मुख्य कारण यातायात, उद्योग और औद्योगिक एवं घरेलू का ईंधन दहन प्रमुख है। विभिन्न औद्योगिक कचडो को खुले में फेंक दिया जाता है जिसे हवा दूषित हो रही है इसका दुष्प्रभाव पृथ्वी के पूरे शरीर पर पड़ रहा है । आप को दिखाई दे रहा होगा कि उसके शरीर पर बड़े-बड़े चकत्ते पड़ गए हैं। इससे न केवल मनुष्य मर रहे हैं बल्कि पेड़ पौधे भी सूख रहे हैं ।
एक डॉक्टर ने बताया कि पृथ्वी के शरीर का काफी डीहाइड्रेशन हो गया है जो जानलेवा हो सकता है। जल में भी काफी जल प्रदूषण का समावेश हो जाने के कारण पृथ्वी की किडनी भी सही ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है। डायलिसिस से भी बहुत ज्यादा फायदा प्रतीत नहीं हो रहा है।
वहां उपस्थित सभी लोग चिंता में थे। डॉक्टर ने बताया कि अगर लोग अब भी सुधर जाएं तो पृथ्वी को बचाया जा सकता है। बालक सुभाष में सभी को आश्वासन दिया कि वह भी इस कार्य में सहयोग देगा। उसने पूछा कि उसे क्या करना चाहिए तो ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि सबसे पहले तो मरीज को बचाने के लिए ध्वनि प्रदूषण को रोकना होगा। आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि प्रदूषण को बहुत बढ़ा दिया है।
सुधार के उपाय के रूप में उन्होंने बताया कि विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना जाए। कचरा और धुआं का व्यवस्थित निस्तारण किया जाए। अत्यधिक मात्रा में रासायनिक और कीटनाशकों के उपयोग के कारण भी पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है। सभी जगह साफ सफाई रखें।
प्रदूषण की शिकायत करने का प्रावधान सभी जगह होना चाहिए। कई जगह ऐसा प्रावधान है जैसे ध्वनि प्रदूषण की शिकायत टोल फ्री नंबर पर कर सकते हैं। सरकार द्वारा गठित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपना कार्य सही ढंग से करे। उसका प्रमुख दायित्व एवं कर्तव्य जल की गुणवत्ता बनाये रखना तथा नियंत्रित क्षेत्रों में वायु प्रदूषण रोकने, नियंत्रित करने, उसे कम करने के लिए व्यापक कार्यक्रम की योजना बनाना तथा उसका निष्पादन सुनिश्चित करना है।
सुभाष ने सभी मनुष्यों की तरफ से पृथ्वी को आश्वाशन दिया है इसलिए उसके लिए हमारी भी बराबर की जिम्मेदारी बनती हैं।
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