DASTANE ASHQ - 28 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क - 28

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दास्तान-ए-अश्क - 28

"बस करो रज्जो अब मुझसे और नहीं भागा जा रहा!"
पसीने से भीगे कपडों में उसे घबराहट हुई तो वो बोल उठी!
-कुछ देर कहीं बैठ जाते हैं!'
"नहीं मैडम जी मैं आप को गिरने नहीं दूंगी! मेरा हाथ पकड़ कर आप बस तेजी से चलते रहो!"
रज्जो मेडिकल से दवाइयां ले कर डॉक्टर लवलीन को दिखाने गई! तब डॉक्टर ने जो कुछ मैडम के लिए हिदायतें दी थी उसको वो स्ट्रिक्टली फॉलो कर रही थी!
"डॉक्टर मेम ने सख्त शब्दों में कहां है, आपको मॉर्निंग-इवनिंग डेईली वॉक करवाना है! आज पहला दिन है तो सिर्फ 1 किमी ठीक है!
"अरे बाप रे.. तु मुझे मार डालेगी!"
भारी कदमो से तेज चलते हुए वो बोली! उसके पैरों में काफी दर्द होने लगा! सांस फूल गई थी!
एक बड़ा राउंड लेकर जब दोनों घर पहुंचे तो थक कर वह चूर हो गई!
सोफे पर ढेर हो कर बैठ गई!
रज्जो ने फटाफट नींबू पानी बनाकर उसे पिलाया!
वो रज्जो को देखने लगी न जाने किस जन्म का ऋण चुका रही थी!
बच्चों के लिए मैं नाश्ता लगा देती आप भी नहा धोकर फ्रेश हो जाओ! बच्चों को स्कूल छोड़कर मैं झाड़ू पोछा और बर्तन साफ करुंगी तब आप को मेरी हेल्प करनी है किचन में..!"
" मतलब..?
पहले तो उसे रज्जो की बात समझ में ना आई फिर बोली!
"मैं थक गई हूं यार..! तुम आराम से कर लेना..!
"नहीं मेम आपको मैं हाथ पकड़कर किचन में ले जाऊंगी! मैं चाहती हूं अपने बच्चों के लिए आप ही खाना बनाएं!"
उसकी इन बातों का इंटेंस वो बाद में समझी थी! रज्जो जानबूझकर उसे फिर से अपने लड़खड़ाते वजूद से वही पुराने रूप में दोबारा लौटाना चाहती थी!
आखिरकार उसे किचन में खड़े रहकर खाना बनाना पड़ा बहुत सी बातें उसे याद आ रही है! कितने टाइम से वो किचन में नहीं आई थी! आज रज्जो की जीद ने उसे फिर से वहां लाकर खड़ा कर दिया!
उसके हाथों में हुनर था! अपनी स्वादिष्ट रसोई से पहले से ही वह सब में फेवरेट थी!
पर जिंदगी ने उसे पीछे धकेल दिया था!
सारा काम निपटा कर दोनों सोफे पर बैठी थी तब रज्जो ने उसके पैर दबाते हुए पूछा!
"अब मुझे बताएं मैम..? क्या हुआ था आपकी जिंदगी में मेरे जाने के बाद इन अंधेरों में आप कैसे डूब गई..? साब जी ने आप पर इतने जुल्म क्यो ठाये?"
"बहुत लंबी कहानी है रज्जो..! अपने दुखों को मैं जिंदगी से निकाल फेंकना चाहती हूं!
"निकाल फेंकना जरूरी भी है, क्योंकि समझ लो तुम्हारा ये दूसरा जन्म है!"
रज्जो इंसान को यह खोखले रिश्ते भीतर से बुरी तरह तोड़ देते हैं! लोहार की फुकनी को कभी देखा है तुमने ? उसमें जब तक हवा भरी जाती है उसकी धड़कने बरकरार रहती है! हवा भरना बंध तो सांसे भी बंध..!
कुछ रिश्ते ऐसे ही है जो फुकनी की धड़कनों की तरह साथ छोड़ देते हैं!
एक औरत की सबसे बड़ी पूंजी उसकी इज्जत है, और जब घर का मोभी ही उस इज्जत को तार-तार करना चाहता हो तो मरने के अलावा उसके पास और कोई चारा नहीं रहता! उस दिन भी वैसा ही हुआ था!
मेरे जेठ ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला तो मैंने फिनाइल पी लिया!
आनन-फानन में मुझे हॉस्पिटल पहुंचाया गया! डॉक्टर ने मुझे बचा तो लिया पर शरीर में काफी गड़बड़ी हो गई थी! ब्लड में खराबी हुई तो ब्लड बार-बार फिल्टर करना पड़ रहा था! एक दो बार पेट की सर्जरी हुई!
मेरा जेठ बहुत परेशान कर रहा था! छोटी-छोटी जरूरीयातों के लिए हम लोग उसके मोहताज हो गए थे!
इतने बड़े घर 'वों' वारिस होने के बावजूद बच्चे एक एक चीज के लिए तरस रहे थे!
तब मैंने उसको समझाया!
कुछ तो शर्म करो ! तुम्हारे बाप की मिल्कत में तुम्हारा भी हिस्सा है फिर भी तुम्हारे बच्चे एक एक पैसे के लिए ऐसे मायूस हो जाते हैं जैसे किसी बड़ी कोठी की दहलीज पर भीख मांगने खड़े हो!
अपना ख्याल ना करो तो ना सही अपने बच्चों के बारे में सोचो! कुछ भी करो मगर पापा की जायदाद में से हम अपना हिस्सा लेकर अलग हो जाये! फिर मैं कोई काम पकड़ लूंगी!
जिससे अपना अच्छे से गुजारा हो सके..! वरना तुम्हारे भाई हम सब का खून तक निचोड़ लेंगे!
पता नहीं क्यों पर उस दिन उसने मेरी बात मान ली!
शायद उसने सोचा होगा की अपने हाथ में मिलकत आएगी तो वो अपनी मनमर्जी से सब कुछ कर पाएगा!
बटवारे की बात सुनकर पहले तो इसके भाइयों ने साफ मना कर दिया था!
पर जब मैंने जिद की तो ईसके भाइयों ने एक चाल चली!
"कैसी चाल मेंम..? आपको हिस्सा दिया या नहीं..?"
नहीं उन लोगों ने सारी जायदाद को अपने नाम कर लिया और हमको गांव से बाहर बंजर जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा दे दिया!
हम अपनी कोठी से सीधे किराए के मकान में आ गए..! तभी भी ये मुझे ही ताने मारता रहा की अपनी ऐसी हालत के लिए मैं जिम्मेदार हू"?