अदृश्य हमसफ़र...
भाग 10
सुबह से ही घर में उत्सव का सा माहौल था। सभी साफ सफाई में जुटे हुए थे। माँ और काकी ने चौका सम्भाल रखा था। बड़ी माँ पूरे घर में निरीक्षण करती घूम रही थी।
बड़ी माँ( मुन्नी की दादी)-" मुन्नी और जमाई बाबू पहली बार आ रहे हैं। बड़की बहू कोनो कमी न रह जाये। मीठा जरूर बना ले। छोटकी बहु, चावल जरूर बना लीजो। शगुन होवे है। खाने में पहले चावल और घी बूरा ही देना बाबू को। उसके बाद सब्जी रोटी। भूलना नही। अभी बताए दे रही हूं, मगज मा धर ले।
चौके में माँ और काकी का उत्साह देखते ही बनता था। एक के बाद एक व्यंजन बनाये चली जा रही थी।
उधर ससुराल में मुन्नी ने सुबह ही मनोहर जी को कह दिया था कि जल्दी चलना है। लगभग दोपहर 12 बजे मुन्नी की गाड़ी घर के दरवाजे पर आकर लगी। एक पल भी गवाए बिना मुन्नी दरवाजा खोलकर दौड़कर घर में घुसने लगी कि बड़ी माँ की आवाज ने उसकी दौड़ पर लगाम कसी।
मुन्नी-" वहीं रुक जा छोरी। "
मुन्नी तड़प उठी -" क्यों बड़ी माँ "
तभी मुन्नी की नजर काकी पर पड़ी जो मुस्कुराती हुई आरती की थाल लेकर उसकी तरफ बढ़ रही थी।
दरवाजे पर मुन्नी और मनोहर जी की आरती के बाद नजर उतारने की रस्म अदा की गई तभी उन्हें घर में प्रवेश मिला। काकी, माँ, बड़ी माँ सभी मुन्नी को निहारने में लगे हुए थे। गुलाबी रंग की साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी मुन्नी। दो दिन में रंगत ही बदल गयी थी उसकी। सभी से जल्दी जल्दी गले मिलकर "मुन्नी बाबा, बाबा, " करती हुई अंदर जाने लगी। बाबा अपने कमरे में थे। मुंन्नी से सामना करने से बचना चाहते थे यह जानते हुए भी कि यह सम्भव नही। मुंन्नी कमरे में आई और दौड़कर बाबा से लिपट गयी थी बिल्कुल बावलों की तरह।
बाबा ने बड़े स्नेह से उसके सिर पर हाथ फिराया।
"आप ठीक हैं बाबा, अनु दा नही दिख रहे। " मुंन्नी ने सवाल किया।
बाबा जैसे शून्य में जाते जा रहे थे। जुबान भी तालु से चिपक गई। बस हामी में गर्दन हिला दी और कुछ न कह पाये। सोच में पड़ गए थे कि क्या जवाब दूँ मुन्नी को?
मुन्नी बाबा के कमरे से निकल कर पूरे घर में "अनु दा, अनु दा" चिल्लाती घूम रही थी। अब अनु दा कंही हों तो जवाब दें। मुन्नी बड़बड़ाती जा रही थी-" एक बार मेरे सामने आ जाओ अनु दा, आपके सारे बाल नही नोचे तो मेरा नाम ममता नही। जाने से पहले मेरे सामने भी नही आये। किस बात का बदला लिया आपने। आपको लगता था कि मुन्नी नाम की बला जैसे हमेशा के लिए गयी, नहीं जी...अनु दा"
........चिल्लाते चिल्लाते पूरे घर में घूम आई, दोनो भाई भी सहमे से आंगन में खड़े थे। किसी को कुछ नही सूझ रहा था कि मुन्नी को कैसे बताएं।
तभी बाबा बाहर आये-" मुन्नी"
थोड़ी तेज आवाज करते हुए कहा-" ये क्या बचपना लगा रखा है मुन्नी। धीरज और समझ से काम लो। दो दिन पहले तुम्हारा ब्याह हुआ है और जमाई बाबू भी घर में ही हैं। अनुराग कितनी मुश्किल से छुट्टी लेकर आया था। वापिस जाना पड़ा उसे। "
मुन्नी जैसे आसमान से गिरी, धीरे से बोली-" मुझसे मिले बिना ही" उसकी आंखें विस्मय से बड़ी हो गयी और आंसुओं से भर गई।
बाबा-" क्या करता, लगा हुआ है कोशिशों में कि अबकी जब तबादला आये तो अपने जिले में ही करवा लें। इसी वजह से अफसर से कोई बहस नही की उसने। अपने जिले में आ जायेगा तो फिर से सब साथ रहेंगे।
मुन्नी अवाक सी रह गयी। फिर किसी भी बात में उसका मन नही लगा। कहाँ तो पूरे रास्ते अनु दा से लड़ने की तैयारियां करती आई थी और ये अनु दा हैं, कि उस से मिले बिना चले गए। धीरे धीरे उदासी भयंकर गुस्से में तब्दील होती जा रही थी।
क्रमशः
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