film review Judgementall Hai Kya in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | ‘जजमेन्टल है क्या’ फिल्म रिव्यूः दमदार तो है, लेकिन…

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‘जजमेन्टल है क्या’ फिल्म रिव्यूः दमदार तो है, लेकिन…

विवादों में धिरी फिल्म ‘जजमेन्टल है क्या’ कहानी है ‘एक्यूट सायकोसिस’ नामके मानसिक रोग से ग्रसित लडकी बॉबी की. फिल्मों में डबिंग आर्टिस्ट का काम करनेवाली बॉबी अकेली रहेती है. अपनी मानसिक बीमारी के कारण वो लोगों पर विश्वास नहीं कर पाती, झूठ और सच के बीच का भेद परख नहीं पाती, बार बार गुस्से, मूड स्विंग, हेलूसिनेशन, इल्यूजन का शिकार हो जाती है. उलझी हुई इस लडकी के जीवन में खलबली तब मचती है जब उसके पडोस में एक कपल— केशव (राजकुमार राव) और रीमा (अमायरा दस्तूर)— रहने के लिए आते है. एक रात एक मर्डर हो जाता है और शक जाता है दो लोगों पर— केशव और बॉबी..! कहानी अजीबोगरीब मोड लेती जाती है और अंत में जब रहस्य खुलता है तो…

‘जजमेन्टल है क्या’ की सबसे बडी उपलब्धि है कलाकारों का अभिनय. कंगना रनौत और राजकुमार राव दोनों ने शानदार परफोर्मन्स दी है. कंगना की जितनी तारीफ करे उतनी कम है. मानसिक रोगी के किरदार में वो इस कदर घूस गई है की वो कब, क्या करेगी इसका अंदाजा भी दर्शक नहीं लगा सकते. उनकी बोडीलेंग्वेज, हावभाव, लूक सभी बहेतरिन है. अपने पात्र की बेबसी, डर, गुस्से, पागलपन, जूनून को कंगना ने अफलातून ढंग से दर्शाया है. वहीं राजकुमार राव भी बडा ही सटिक परफोर्मन्स देने में पूरी तरह से कामियाब हुए है. ये किरदार उनकी करियर के सबसे अच्छे किरदारों में से एक है. अपनी पीछली फिल्मों से वो काफी ज्यादा हेन्डसम भी लगे. अन्य कलाकारों में बॉबी के बॉयफ्रेंड बनें हुसैन दलाल का काम विशेषतः सराहनीय है. अमायरा दस्तूर, नुसरत भरुचा, सतीष कौशिक ने अपने पात्रों को अच्छा न्याय दिया है. जिम्मी शेरगिल ने ये फिल्म क्यों की इसका जबाव तो वही दे सकते है. उनका पात्र बहोत ही साधारण सा है.

इस ब्लेक कोमेडी फिल्म की कहानी के तानेबाने काफी अच्छे से बूने गए है, जिसका श्रेय जाता है लेखिका कनिका धिल्लों को. (उन्होंने फिल्म में ‘सीता’ का केमियो भी किया है, जिसमें वो काफी खूबसूरत लगीं.) मानसिक रोगी का व्यक्तित्व वास्तविक रूप में पर्दे पर दिखे एसे कई बढिया सीन उनकी लिखावट से सजे है. डायलोग्स भी कनिका ने ही लिखे है और वो भी इतने उमदा है की गंभीर सिच्युएशन में भी हंसी आ जाए.

फिल्म का डायरेक्शन किया है तेलुगु फिल्ममेकर प्रकाश कोवलामुदी ने. उन्होंने वाकई में ‘हटके’ फिल्म बनाई है, लेकिन कहीं कहीं मनोरंजन की कमी खलती है. फिल्म में रंगो का इस्तेमाल अच्छे से किया गया है और उसे पंकज कुमार के केमेरे ने और निखार के पेश किया है. गाने कुछ खास नहीं है लेकिन बेकग्राउन्ड म्युजिक तगडा है और फिल्म के रहस्य को और गहेरा बनाने में इसकी अहम भूमिका है. यहां रामायण के पात्रों को प्रतीकात्मक रूप में अच्छे से इस्तेमाल किया गया है.

गंभीर विषय होने के बावजूद ‘जजमेन्टल है क्या’ कहीं भी बोर नहीं करती. रहस्य आखरी सीन तक दर्शकों को उल्झाए रखने में कामियाब होता है. दूसरे हाफ को कांटछांट कर थोडा कम किया जा सकता था, लेकिन फिर भी फिल्म का एडिटिंग खासा दमदार है. हां, क्लाइमैक्स को थोडा ज्यादा बहेलाने की जरूरत थी. अंत को जल्दी जल्दी में निपटा दिया गया हो, एसा लगता है.

अच्छी होने के बावजूद ‘जजमेन्टल है क्या’ में टिपिकल हिन्दी फिल्मोंवाले मनोरंजन की साफ कमी है. अगर आप मनोरंजन पाने के लिए फिल्में देखते है तो आपको ये फिल्म इतनी अच्छी नहीं लगेगी, लेकिन अगर आप फिल्म के ओफबिट कन्टेन्ट से खुश होते है तो ये फिल्म आपको जरूर पसंद आयेगी. रनौत और राव के फैन्स के लिए तो ये फिल्म किसी तोहफे से कम नहीं है.

इस उलझी हुई, अलग सी फिल्म को मेरी ओर से 5 में से 3 स्टार्स.