Nai Subah in Hindi Moral Stories by Seema Singh books and stories PDF | नई सुबह

Featured Books
Categories
Share

नई सुबह

नई सुबह

“टन-टन...”

दीवार पर टंगी घड़ी ने समय बताया तो चौंक कर सिर ऊपर कर वैशाली बड़बड़ाई,

“उफ़.! आज फिर लेट हो गयी, ये क्लोजिंग का काम भी ना, कितना टाइम लग जाता है, इतना बड़ा स्टाफ है ! मगर एरिया मैनेजर हूँ ना, सबको फुर्सत मिल जाएगी मुझे नहीं. प्लीज़ आज भी घर छोड़ दोगे?” वैशाली ने अतुल से पूछा.

“नहीं”

अतुल ने सख्त चेहरा बनाते हुए कहा.

“कल भी तो छोड़ा था ना! पता भी है मेरे दिल पर क्या बीतती है जब तुम बाय बोल कर घर की तरफ चली जाती हो और मैं अकेला खड़ा रह जाता हूँ. नहीं!! मुझसे ना होगा! आज किसी और से कहो.”

अतुल ने अपना दाहिना हाथ सीने पर रखते हुए कहा.

“अतुल !”

वैशाली ने बनावटी गुस्से से अतुल की तरफ देखा.. और दोनों खिलखिला कर हँस पड़े .

”पागल हो यार ये कोई पूँछने कहने की बात है मैं तुमको अकेले जाने दे सकता हूँ ? कमाल करती हो कभी कभी... बस पांच मिनट दो.. ये सेव कर लूं फिर चलते हैं.” अतुल ने कहा तो वैशाली पास ही खड़ी हो कर टेबल का बिखरा सामान देखने लगी. चलो अतुल बोला और अपना कंप्यूटर बंद किया और उठ कर खड़ा हो गया . दोनों साथ में पार्किंग में आये अतुल ने अपनी बाइक निकाली स्टार्ट कर वैशाली को बैठने का इशारा किया. वैशाली के बैठते ही फुर्र से बाइक उड़ गयी.

“ तुमको पता है अतुल तुम्हारे पीछे बैठ कर हवा खाने का जो मज़ा है वो किसी भी चीज़ में नहीं है .”

“ जानता हूँ .”अतुल ने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा, “यार बहुत थकान लग रही है, एक एक कॉफ़ी हो जाए?”

वैशाली का जवाब सुने बिना ही अतुल ने अपने फेवरिट कॉफ़ी शॉप पर बाइक रोक दी.

“आज पहले ही लेट हैं,ज्यादा देर नहीं रुकेंगें.” वैशाली ने कहा. “ओके!”

अतुल बोला और उंगली में चाबी घुमाते हुए आगे बढ़ गया. “आओ न क्या सोच रही हो?”

“नहीं, कुछ नहीं.”

वैशाली ने कहा और अंदर आ गयी. खाली टेबल देख कर दोनों बैठ गए, वेटर को इशारा किया दो कप कॉफी का ... कॉफी की चुस्कियां लेते हुए अचानक अतुल ने सवाल किया,

“ तो कब घर पर बुला रही हो?”

अचानक आए सवाल से वैशाली हड़बड़ा गयी... कॉफी छलक गयी उसकी.

“ओके सॉरी बाबा, मत बुलाओ, मत मिलवाओ”.. अरे नहीं “ऐसा कुछ नहीं है बस मेरा ध्यान कहीं और था.”. वैशाली ने खुद को सम्हालते हुए कहा.

“वही तो, हमारे साथ हो और ध्यान कहीं और!क्या चक्कर है?”

आवाज़ में पूरी शरारत भरते हुए अतुल बोला.

“तुम भी ना! चलो देर हो रही है, मुझे छोड़ दो.”

वैशाली ने अतुल को डपटते हुए कहा.

मगर अतुल पर तो जैसे मस्ती सवार थी,

“ प्लीज़ जान ये शब्द मत यूज़ करो मैं तुमको दिलो जान से चाहता हूँ कैसे छोड़ दूँ, जी नहीं सकता तुम्हारे बिना.”

“ अतुल हम रोड़ पर हैं, प्लीज़. अब चलो भी.”

“ चलतें हैं,चलतें है,यार ऐसी भी क्या जल्दी है!”

अतुल ने कहा और बाइक निकाल ली.

“आओ चलो,!”

“देखा! आठ बज गए हफ्ते भर से बहुत लेट पहुँचती हूँ माँ परेशान हो जाती है उनको क्या पता मैं अकेली नहीं होती हूँ.” “तो बता दो ना!”अतुल ने फिर कहा.

“नहीं प्लीज़ टाइम आने दो मैं खुद मिलवाउंगी प्रॉमिस,बस यहीं रोक दो आगे मैं चली जाउंगी…”वैशाली ने कहा और आगे उसके बोलने से पहले ही अतुल बोल पड़ा, “हाँ हाँ पता है.. मै नहीं चाहती कोई हमें साथ देखे और बात घर तक पहुँच जाए!” अतुल ने दोनों हाथ नचाते हुए कहा तो वैशाली खिलखिलाए बिना रह ना सकी... “चलो जाओ! अब बाय”

“ बाय” बोल कर अतुल भी तेज़ी से घर तरफ निकल पड़ा.

पिछले सात आठ महीने से यही तो रुटीन था अतुल का, ऑफिस से निकल कर वैशाली को ड्रॉप करना और फिर वापस अपने रूम पर जाना. नहा कर फ्रेश होकर नीचे जाकर डिनर करना और सो जाना. इतने बड़े शहर में सिर्फ वैशाली को ही तो जानता था वह. करीब एक साल पहले ट्रांसफर हो कर यहाँ आया था, इस ऑफिस में, प्रमोशन मिला था तो घर से इतनी दूर आना खला भी नही. पहले ही दिन से वैशाली भा गयी थी उसे भोला सा चेहरा, बड़ी बड़ी आँखें, कमर को छूते बाल, लम्बा कद कुल मिलाकर अपनी छाप छोड़ता व्यक्तित्व.अतुल भी सुदर्शन था मगर उस से भी ज्यादा गुणी, अपने फन का माहिर. अपनी कार्य कुशलता से ही तो मन मोह लिया था वैशाली का. नहीं तो वैशाली उन लड़कियों में से नहीं थी जो सहज ही किसी की तरफ खिच जाये. काम की बातचीत से शुरू हुयी दोस्ती गहरे रिश्ते में बदल चुकी थी. ऑफिस में सब जानते थे उनके बारे में ना तो ऐसी बातें छुप पाती हैं और ना ही उन दोनों ने कोई कोशिश की अपना रिश्ता छुपाने की. वैसे भी आज के इस व्यस्त दौर में अपने बारें में सोचने की फुर्सत नहीं है कोई दूसरे की क्या परवाह करे.

वैशाली सुबह उठ कर किचन में गयी तो देखा माँ तो पहले से ही वहाँ थी...

“कब तक चलेगा तेरा क्लोजिंग का काम?”

चाय का कप उसकी ओर बढते हुए माँ ने पूछा.

“बस दो चार दिन का और है.” अपनी अपनी चाय लेकर माँ बेटी दोनों बाहर आ गयी. वैशाली अखबार में हेडलाइन देखने लगी.

“तूने जवाब नहीं दिया बेटा?”

“किस बात का?” वैशाली ने सर नीचे किये हुए पलट कर पूछा. माँ चुप रह गयी तो जैसे याद आया,

“माँ क्या जवाब दूँ? मैंने खुद को बड़ी मुश्किल उन सब चीज़ों से दूर किया... मैं अपने मन में एक याद तक नहीं रखना चाहती तो जवाब देने का क्या मतलब”

और अखबार फेंक कर अपने कमरे में चली गयी.. और रेडी होकर ही बाहर निकली.

“ माँ मैं जा रही हूँ आज भी लेट हो जाउंगी.”

“ पता है!”माँ जैसे मन ही मन बुदबुदाई...

“पूरी उमर पड़ी है इस के आगे मैं कब तक बैठी रहूंगी... ऐसी भी क्या जिद... कोई मेरी सुनें तब ना.”

माँ से सुबह की बहस ने वैशाली का मूड खराब कर दिया था, “क्यों लगता है माँ को कि मैं उस प्रणव से कोई रिश्ता रखना चाहूंगी. जवाब!! माई फुट! ये सब तो उसी दिन खत्म कर आई थी जब आधी रात बिना कुछ सुने मुझे घर से बाहर खड़ा कर दिया था सिर्फ अपनी माँ के कहने पर अब इतने साल बाद याद आ रही है मेरी... नही मैं हरगिज़ पलट कर नहीं देखूंगी.”

बड़े झटके से वैशाली ने सर हिलाया, तो जैसे अपने आप में वापस आई... आज काम में मन नहीं लगा पा रही थी लंच में भी उखड़ी सी रही वो तो अतुल ने ज्यादा नोटिस नहीं किया नहीं तो क्या बताती उसको. इतना समय साथ बिताने के बाद भी वो आज तक अतुल को अपने अतीत के बारे में बताने की हिम्मत नहीं कर सकी शायद मन के किसी कोने में डर है अतुल को खो ना बैठे. ऑफिस का काम निपटा कर वैशाली ने अतुल से कहा “मुझे आज जल्दी जाना है सात बजे तक भी पहुँच जाऊं तो काम हो जायेगा”

“. ऐसा भी क्या है चलो मैं छोड़ देता हूँ.”और अतुल ने सच में सात से भी दस मिनिट पहले ही छोड़ दिया. “वैसे काम क्या है बताया नहीं.”अतुल ने पूछा.

“बस थोडा सा माँ के साथ काम है. कुछ खास नहीं. चलो कल मिलतें हैं बाय.”

और वैशाली तेज़ी से घर की तरफ बढ़ गयी. रोज से जल्दी वापस आया देख कर माँ ने पूछ बैठी, “आज काम जल्दी निबट गया?”

“नहीं माँ सर में दर्द है थोडा सोना चाहती हूँ प्लीज़ मुझे खाने के लिए मत बुलाना.” कह कर वैशाली अपने रूम में चली गयी.

कमरे में आकर भी चैन नहीं आया वैशाली को, यादें है कि पीछा ही नहीं छोड़ती... बीती ज़िन्दगी की यादें फिल्म के सीन की तरह आँखों के सामने घूमने लगी. बीए का रिजल्ट निकला था बहुत खुश थी वैशाली तब तो पापा भी थे... अब आगे क्या करना है? पापा ने पूछा, वैशाली कुछ कहती, उस से पहले माँ की आवाज़ सुनाई दी कुछ नहीं करना है हो गयी बहुत पढ़ाई... “आगरा वाले मामा जी ने एक रिश्ता बताया है चलो हम मिल कर देख लें कैसे लोग हैं.“

“बस अब मुझे अपनी बिटिया की शादी करनी है ये अपने घर जाए और हम गंगा नहाएं.” कितनी खुशामद की थी माँ की, पापा से भी ज़िद की, मगर माँ के आगे एक न चली. माँ पर तो प्रणव का ऐसा जादू सवार हुआ कि और किसी की बात समझ ही नहीं आई .

“लड़का इंजीनियर है और कोई मांग भी नहीं है.” बस फिर क्या था तीन महीने में रिश्ता तय होने से लेकर शादी तक की सारी रस्में हो गयी और वैशाली पहुँच गयी ससुराल. नया घर नए लोग सब बहुत अटपटा सा लग रहा था वैशाली को. सबसे ज्यादा खटक रहा था प्रणव का व्यवहार. दो दिन में मुश्किल से पांच मिनिट पास रहा होगा. धीरे धीरे सब मेहमान चले गए और घर में बाकी रह गए वैशाली, प्रणव, उसकी माँ और प्रणव के बड़े भाई और भाभी. कुल जमा पांच लोग. मगर प्रणव का वही ढंग ना नयी नवेली पत्नी की परवाह ना कोई फिक्र.

एक दिन झिझकते हुए वैशाली ने प्रणव से पूंछ ही लिया, “मुझसे कोई गलती हुई है?”

“अरे नही,” बड़े आराम से जवाब दिया उसने.

“फिर?” वैशाली ने आगे पूंछा.

अपनी ऑफिस की फ़ाइल समेटते हुए प्रणव उसकी ओर देखा. “फिर ? फिर क्या ? किसी चीज़ की कमी है क्या इस घर में, कुछ चाहिए हो तो माँ से मांग लेना.” इतना कह कर प्रणव कमरे से निकल गया.

“मेरा पति... वो कहाँ है, वो किस से मांगू ?” वैशाली बोलती रह गयी मगर सुनने वाला कोई नहीं था. बहुत रोई वैशाली. पापा लिवाने आये थे उसी दिन उन के साथ वापस अपने घर आ गयी. रास्ते में उसकी उदासी का कारण पापा ने जानना चाहा तो बड़ी सफाई से टाल गयी. उसी रात वैशाली के पापा की अचानक हालत बहुत खराब हो गयी हॉस्पिटल लेकर भी गए मगर तब तक पापा जा चुके थे.वैशाली और उसकी माँ को छोड़ कर...पहला अटैक आखिरी बन गया था. वो समय नहीं था माँ को कुछ कहने का, तो वैशाली माँ से कुछ नहीं कह पाई और सास के बुलावे पर चुपचाप अपनी ससुराल चली गयी.

माँ ने भी अपनी भाभी को बुला लिया अपना अकेलापन बांटनें के लिए.

पापा की मौत से वैशाली खुद ही बहुत दुखी थी. उस पर प्रणव कि बेरुखी उसकी समझ से परे थी. मगर कब तक सहती पहले जेठानी और फिर सास से पूछ ही लिया.

“ये प्रणव मुझसे इतना दूर दूर क्यों रहतें हैं...?”

“वो तुझसे शादी नहीं करना चाहता था.”

सास ने कहा, सन्न रह गयी वैशाली.

“मगर क्यों ?आपने मेरे घरवालों को क्यों नहीं बताया...फिर मुझसे शादी क्यों करवा दी? मैंने आपका क्या बिगाड़ा था जो इस तरह मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी.”

रोते हुए कमरे में भाग गयी थी वैशाली. बाद में जेठानी से बातों में पता चला कि वो किसी और से शादी करना चाहता था. मगर लड़की दूसरी जाति की होने के कारण माँजी राजी नहीं थी. वैशाली ने निश्चय कर लिया,” मेरा इस घर में रहने का कोई सेंस नहीं बनता मैं अपने घर जाउंगी.”

उसकी इस सहज सी प्रतिक्रिया को प्रणव की माँ ने कितने बड़े तूफ़ान का रूप दे दिया.

“इस घर में किसी की इतनी हिम्मत नहीं हुई जो मुझे पलट कर ऐसा जवाब दे.”

सास गुस्से से चिल्ला रही थीं.

“और जो आपने मेरे साथ किया है वो? उसके मुकाबले में तो ये कुछ भी नहीं है.”

प्रणव ने बाकी तो और कुछ सुना था या नही, मगर वैशाली की बात जरूर सुन ली. आव देखा न ताव वैशाली की बांह पकड़ कर दरवाज़े से बाहर खड़ा कर दिया.

“ निकल जाओ मेरे घर से... और कभी इधर मुंह भी मत करना.”

प्रणव चिल्लाता हुआ भडाक से दरवाज़ा बंद करके अंदर चला गया.. पूरी रात रोती रही वैशाली मगर किसी का दिल न पसीजा और सुबह बस पकड़ कर माँ के घर पहुच गयी.

इस तरफ अचानक बेहाल बेटी को आया देख माँ कितनी घबरा गयी थी.मगर बड़ी मामी, उन्होंने तो दुनिया देखी थी, न कुछ पूछा न माँ को पूछने दिया और वैशाली को घर के भीतर ले गईं. दो चार दिन में जब वैशाली कुछ ठीक दिखी तब पूरी बात पता की...कितना बिगड़ी थी बड़ी मामी वैशाली की माँ से भी और उन शादी करवाने वाले दूर के रिश्तेदार से भी... मगर क्या हो सकता था.. जो हो गया बिना हुआ तो नहीं हो सकता था.... मगर उन्होंने वो किया जो अब भी हो सकता था... सबसे पहले तो टूटती हुई वैशाली को सम्हाला और फिर उसका साहस बढ़ाया... जो करना चाहती है कर बेटा...ज़िंदगी कितनों को दूसरा मौका देती है. तुझे मिला है संवार ले अपना जीवन..तेरी ताकत तेरी पढ़ाई है कुछ कर बेटा...सच में मामी के शब्दों का जादू था या वैशाली की लगन का असर ... जो आज इस मक़ाम तक पहुँच सकी...बस एक कसम खायी थी वैशाली ने.

“मै प्रणव को तलाक नहीं दूंगी किसी भी हाल में.”

भर आये ज़ख्मों को माँ ने फिर ताजा कर दिया...वैशाली की आँखों से आंसू बह चले..तभी माँ ने कमरें में प्रवेश किया.

बेटी की मानसिक दशा माँ से छुपी नहीं थी. माँ के मन में ग्लानि भी थी,

“ सच से कब तक भाग सकतें हैं. तू साइन कर दे ना बेटा.. क्यों नहीं पीछा छुडा लेती इन सब से, ठीक है उन लोगों ने तेरे साथ गलत किया, उनकी करनी उनके साथ मगर तू खुद अपने साथ क्यों गलत कर रही है...माफ ना कर के अपने दिल में ही तो बिठा रखा है उन सब को...कभी उस कड़वे अनुभव से अलग होकर देख तो सही दुनिया कितनी खूबसूरत है.. अच्छे लोग भी है यहाँ ...मै तो बस यही चाहती हूँ कि तेरी ज़िंदगी में खुशियाँ वापस आ जाएँ. जल्दबाज़ी में शादी करके मुझसे बड़ी गलती हुई... मगर तू भी उस रिश्ते से छुटकारा ना लेकर गलत ही तो कर रही है जो सजा तू प्रणव को देना चाहती थी वो खुद भी तो भुगत रही है.”

वैशाली की पीठ पर हाथ फिराते हुए माँ ने फिर से कहा,

“ज़िंदगी पीछे मुड़ मुड़ कर देखना नहीं है. ज़िंदगी तो आगे बढते रहने का नाम है… पिछला छोडेगी नहीं तो नयी राह नयी डगर कैसे पकडेगी... आगे बढ़ और अपनी नयी डगर पर चल और अपने मन से अतीत की सारी कड़वाहट को मिटा दे.”

माँ बोलती चली गयी. माँ ने जो भी कहा वो तो उसने कभी सोचा ही नहीं अपनी नाराज़ी का यह पक्ष तो वैशाली के लिए भी अनजाना था.

“माँ उन लोगों ने हमें बेवजह कितनी तकलीफ दी है और आप चाहती हो मैं उसको मुक्ति दे दूँ?”वैशाली ने माँ से कहा.

“बेटा तुझे नहीं लगता उसके साथ तू खुद भी कितनी सज़ा भुगत चुकी है अब और नहीं .”

कुछ पल रुककर माँ ने फिर से बोलना शुरू किया,

“एक बार ठन्डे दिमाग से फिर से सोच बेटा... तेरी ज़िंदगी है तेरा ही फैसला होगा..चल बहुत रात हो गई अब सो जा.. मेरी बात पर तसल्ली से विचार करना और फैसला करना…”

माँ कह कर उठ कर कमरे से बाहर चली गई..वैशाली भी सोच में डूबती तैरती कब सो गई पता नहीं चला ... अलार्म की तेज आवाज़ से चौंक कर जागी तो सर में बहुत दर्द था ऑफिस जाने का मन नहीं था मगर जाना जरूरी था. सो मजबूरी में उठ गई. रात का तनाव चेहरे पर साफ़ दिख रहा था. माँ के भी और वैशाली के भी. वह चुपचाप बिना कुछ कहे ऑफिस के लिए निकल गई.

ऑफिस में भी उसकी बेचैनी कम ना थी.. अतुल ने नोटिस भी किया मगर बात करने का मौका नहीं था तो चुप रह गया जैसे ही लंच में वैशाली कैंटीन में पहुंची अतुल लपक कर पास आया और बोला,”क्या बात है तुम ठीक तो हो?”

वैशाली कुछ कह ना सकी बस उसकी आँखे भर आईं.. ये देख कर थोडा हड़बडा गया अतुल... उसने वैशाली को कभी कमज़ोर होते देखा ही नहीं था. हाथ पकड़ कर कोने वाली टेबल पर ले गया और बोला,

“ बैठो यहाँ, अब कहो बात क्या है?”

वैशाली का तो जैसे बरसों का बांध टूट गया. उसने एक एक शब्द कह डाला अतुल से.अपनी पूरी ज़िंदगी उलट रख दी अतुल के सामने. अतुल अवाक सा देखता रह गया..अपनी बात खत्म कर के वैशाली जैसे खुद को हल्का सा महसूस कर रही थी.

“मै कभी हिम्मत ही ना जुटा सकी तुमको अपने बारे में बताने की अतुल.. हो सके तो मुझे माफ कर देना...तुम्हारा जो भी फैसला होगा मुझे मंजूर होगा अतुल.”

अतुल भी जैसे किसी सदमे में था. होता भी क्यों ना, जिस वैशाली को वो इतना चाहने का दम भरता था वो तो उसको ठीक से जानता तक ना था. वैशाली की जिंदगी के इतने बड़े हिस्से से अनजान था.. दोनों चुपचाप बाहर निकल आये. वैशाली तो अतुल की ओर देखने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रही थी.. और अतुल.. वो तो जैसे अब भी सदमें में ही था... दोनों एक दूसरे को बिना देखे ही अपने अपने केबिन में घुस गए.. ऑफिस ऑफ होने पर जब वैशाली घर जाने को निकली तो सामने अतुल को खड़ा पाया.. वही चिर परिचित मुस्कान लिए,

“चलें...?” सवाल उछाला वैशाली की ओर, और हमेशा की तरह बिना जवाब सुनें चल पड़ा पार्किग की तरफ. वैशाली गहरी सोच में थी अब भी. यंत्रवत पीछे पीछे चल दी. रास्ते में अतुल ने पूछा,

“तो ये वजह थी आज तक घर ना ले जाने की?”

वैशाली कुछ न बोली. घर के पास पहुँच कर भी वैशाली को पता ही ना चला कि घर आ गया अतुल के बोलने से चौंक कर देखा और बाइक से उतर पड़ी. फींकी सी मुस्कान के साथ अतुल से कहा, “आओ, अंदर चलो.”

अतुल ने कहा “आज नहीं फिर कभी.”

घर में माँ वैशाली का ही इंतज़ार कर रही थी. माँ को देखते ही वैशाली दौड़ कर माँ से लिपट गई,

“आप सही कहती हो माँ,मैं खुद को इस बंधन से मुक्त कर लूंगी.... जिस इंसान से कोई नाता नहीं है उसके नाम का बोझ भी क्यों उठाना. मैं प्रणव को तलाक दे दूंगी…”

माँ ने खुश होकर वैशाली को गले लगा लिया,

“ हां बेटा यही सही फैसला है ...मै तेरे हर फैसले में तेरे साथ हूँ. हम कल ही जा कर कानूनी कार्यवाही पूरी करवा लेते है...तू ऑफिस से एक दो दिन की छुट्टी ले लेना..”

“ ठीक है माँ..”वैशाली ने कहा.

“और सुन!”माँ ने पुकारा..

वैशाली ने मुड़ कर पूछा, “क्या माँ ?”

“उस मोटरसाईकिल वाले को भी बता देना कि हम बाहर जा रहें हैं नहीं तो बेचारा बेकार में परेशान हो जाएगा…”

कह कर माँ जोर से हँस पडी, वैशाली के चेहरे पर भी गुलाबी आभा फ़ैल गई.वो भी आने वाले दिनों की कल्पना से मुस्कुरा उठी.

***