Himadri - 3 in Hindi Horror Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | हिमाद्रि - 3

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हिमाद्रि - 3

    
                        हिमाद्रि (3)


कुमुद की मेडिकल रिपोर्ट ने सबको चौंका दिया। रिपोर्ट के हिसाब से कुमुद पर बलात्कार के कोई निशान नहीं थे। ना तो उसके गुप्तांग पर जबरदस्ती प्रवेश के निशान थे। ना ही योनि में शुक्राणु पाए गए। अन्य किसी प्रकार के यौन शोषण के भी कोई निशान नहीं थे। गगन चौहान ने उमेश को बुला कर इस विषय में बात की। 
"मि. सिन्हा आपकी पत्नी की मेडिकल रिपोर्ट किसी तरह के बलात्कार की पुष्टि नहीं करती है। उन्होंने अपने बयान में किसी प्रेत को इसका ज़िम्मेदार ठहराया है। आप बताइए हम क्या किसी प्रेत को संदिग्ध बनाएं।"
"चौहान साहब मैं आपको बता चुका हूँ कि कुमुद पर इस हादसे का गहरा असर हुआ है। इसलिए वह ऐसा कह रही है। वह बहुत घबराई हुई है।"
"ठीक है पर मेडिकल रिपोर्ट बलात्कार साबित नहीं करती है।"
"चौहान साहब मैं आपको यह भी बता चुका हूँ कि मैं एक वकील हूँ। अपने पिता की लॉ फर्म में काम कर चुका हूँ। कानून जानता हूँ। कई बार ऐसा होता है कि जब औरत के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाया जाता है तो वह भय से या बेहोशी के कारण विरोध नहीं कर पाती है। ऐसे में गुप्तांग पर जबरदस्ती के निशान नहीं मिलते हैं। आपको रिपोर्ट दर्ज़ करनी पड़ेगी।"
"ठीक है.....पर हम अपनी जाँच किस आधार पर शुरू करें। किसी व्यक्ति पर शक तो जताया नहीं गया है। आपकी पत्नी प्रेत का नाम ले रही हैं। प्रेत को कहाँ तलाश करें।"
"कैसे... कहाँ....तलाश करना है यह पुलिस का काम है। मैं बस यह कहूँगा कि जो भी था वह इंसान है। आप इस आधार पर अपनी जाँच शुरू करें।"
उमेश थाने से चला गया। उसके जाने के बाद सब इंस्पेक्टर अचला ने कहा।
"सर केस तो पेचीदा है। सचमुच हम किसे और कैसे ढूंढ़ेंगे।"
गगन चौहान ने गंभीरता से कहा।
"यह तय करना हमारा काम है। क्योंकी पीड़िता किसी का नाम नहीं ले पा रही है। इसलिए हमें अपने अंदाज़े से बढ़ना होगा।"
"पर सर अंदाज़ लगाएंगे कैसे ?"
"देखो....या तो गुनहगार कोई चोर हो सकता है जो चोरी के इरादे से घुसा और मिसेज़ सिन्हा को अकेला पाकर उसने यह हिमाकत कर डाली। बाद में घबरा कर बिना चोरी किए भाग गया।"
"और कौन हो सकता है सर ?"
"या फिर हिमपुरी आया कोई सैलानी। जो मदद मांगने आया हो लेकिन यह घिनौना काम कर भाग गया हो।"
"लेकिन सर हो सकता है कि इन दोनों में से कोई ना हो। कोई जान पहचान वाला हो। मिसेज़ सिन्हा तो वैसे भी अजीब सी मानसिक स्थिति में हैं। बता ना पा रही हों।"
"मैंने इस बिंदु पर भी विचार किया था। मेरी मि. सिन्हा से बात हुई थी। वो लोग अभी दो महीने पहले ही दिल्ली से यहाँ आए हैं। यहाँ किसी को नहीं जानते। ना ही बंगले पर कोई आता जाता था।"
गगन चौहान सब इंस्पेक्टर अचला की तरफ देख कर बोला।
"कुछ भी हो....हमें एक बिंदु से शुरुआत करनी पड़ेगी। पहले चोर वाले बिंदु से चलते हैं। तुम ज़रा पता करो कि कौन कौन हैं जो चोरी के धंधे में हैं। उनमें से कौन उस रात बंगले वाले इलाके में था।"
"ओके सर.....मैं पता करती हूँ।"

कुमुद हनुमान जी की छोटी सी प्रतिमा को हाथ में लिए गुमसुम सी बैठी थी। उस दिन थाने से आने के बाद नहा धोकर उसने भगवान की पूजा की। पूजा के बाद उसने मंदिर में रखी हनुमान जी की प्रतिमा उठा ली। यह प्रतिमा उसे उसकी माँ ने दी थी। तब से वह हर समय प्रतिमा को अपने साथ रखती थी। 
उमेश उसके पास जाकर बैठ गया। कुमुद अभी भी अपने में ही खोई हुई थी। उसने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह डर कर चौंक गई।
"कुमुद....अब संभालो अपने आप को। पुलिस जल्द ही उस कमीने का पता कर लेगी। फिर मैं उसे कानून के शिकंजे में कस लूँगा। वह बचेगा नहीं।"
कुमुद ने उमेश की तरफ देखा। फिर बहुत ही गंभीर आवाज़ में बोली।
"ना पुलिस उसे पकड़ सकती है। ना कानून उसका कुछ बिगाड़ सकता है। वह एक प्रेत है....."
उसकी बात सुन कर उमेश उत्तेजित हो गया।
"कुमुद.... क्या प्रेत प्रेत लगा रखा है। मैं समझ सकता हूँ कि तुम्हारे साथ जो हुआ उससे तुम्हें बहुत तकलीफ हुई। पर हिम्मत तो करनी पड़ेगी। खुद को संभालो। याद करके देखो उस रात क्या हुआ। कौन था वह ? तुम उसे पहचानती ना हो। पर उसके बारे में कुछ तो बता सकती हो जिससे पुलिस आसानी से उसका पता कर सके। याद करने की कोशिश करो।"
कुछ क्षणों तक कुमुद उसे देखती रही। उसके बाद दृढ़ता से बोली।
"मैं जो कह रही हूँ वही सच है। मुझे उस रात क्या हुआ सब याद है। मैंने उसका स्पर्श महसूस किया। पर वह दिख नहीं रहा था। वह एक प्रेत था।"
कुमुद की आवाज़ में अपनी कही बात के लिए जो दृढ़ता थी उससे उमेश भी सहम गया। कुछ पलों तक उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। फिर खुद पर काबू पाकर बोला।
"कुमुद मैं भूत प्रेत पर बिल्कुल भी यकीन नहीं करता हूँ। लेकिन तुम्हारी बात को भी नहीं नकार रहा हूँ। तुम कहती हो कि उस रात जो हुआ तुम्हें सब याद है। तो मुझे भी बताओ उस रात क्या हुआ।"
दुर्गा बुआ वहीं खड़ी थीं। कुमुद ने उनकी तरफ देखा। उन्हें लगा कि शायद वह उनके सामने कुछ कहना नहीं चाहती है। वह चुपचाप जाने लगीं। 
"रुकिए बुआ....आप यहीं बैठिए। आप भी जानिए कि उस दिन मैंने क्यों जबरदस्ती आपको क्वार्टर भेज दिया। मेरी एक भूल कैसे मेरे लिए इतनी कष्टदायक हो गई।"
बुआ पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गईं। कुमुद ने अपनी आपबीती बतानी शुरू की.......

कुमुद को रहस्य व रोमांच से भरी कहानियां बहुत अच्छी लगती थीं। जब पहली बार उसने इस बंगले को देखा तो वह इससे आकर्षित हो गई। यह बहुत कुछ उपन्यासों में पढ़ी रोमांचित कर देने वाली कहानियों के बंगले की तरह था। 
वह बहुत खुश थी कि ऐसा शानदार बंगला उसके नसीब में आया था। उसे बंगले की हर वस्तु बहुत पसंद थी। खिड़की, दरवाज़े, दीवारों पर किया गया लकड़ी का काम। हर कमरा बड़ा व खुला हुआ था। नीचे हॉल के साथ लगा हुआ डाइनिंग एरिया था। वहाँ एक बड़ी सी डाइनिंग टेबल थी। एक स्टडी थी। ऐसा उसने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था। 
वह और उमेश अक्सर शाम की चाय बंगले के लॉन में बैठ कर पीते थे। चाय पीते हुए जब वह चारों ओर फैली प्राकृतिक सुंदरता को देखती थी तो मंत्रमुग्ध हो जाती थी। 
कुमुद एक मध्यमवर्गीय परिवार से थी। उसकी शादी उमेश से हुई जो एक अमीर घराने से था। जब वह विवाह कर सिन्हा परिवार में आई तो वहाँ की रईसी देख आश्चर्य चकित रह गई। वह घर की इकलौती बहू थी। अतः हर चीज़ पर उसका अधिकार था। 
जब वह अपनी ससुराल आई तो उसने देखा कि यहाँ दुर्गा बुआ का बहुत मान है। घर से संबंधित हर फैसले में उनकी राय बहुत मायने रखती थी। कुमुद को यह ठीक नहीं लगता था। अतः कई बार उसने उमेश से इस विषय में बात की थी। उमेश ने उसे समझाया था कि उसकी माँ के जाने के बाद बुआ ने ही उसे पाला। इस घर को संभाला। सारे काम उन्हीं की देखरेख में होते हैं। अतः उन्हीं से सलाह ली जाती है। पर इससे कुमुद के अधिकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
कुमुद ने दुर्गा बुआ से सीधे सीधे कभी कुछ नहीं कहा। लेकिन अपने व्यवहार के ज़रिए वह उन पर यह जाहिर करने से नहीं चूकती थी कि वह इस घर की मालकिन है। बुआ एक धीर गंभीर व समझदार महिला थीं। कुमुद के मन के भाव को समझ कर उन्होंने खुद ही हर मामले से स्वयं को अलग करना शुरू कर दिया।
इसी बीच उमेश ने हिमपुरी आकर बंगले को होटल में बदलने का फैसला किया। कुमुद ने भी साथ जाने की इच्छा जताई। उमेश मान गया। इस पर उमेश के पिता ने कहा कि यदि बहू को लेकर जाना है तो दुर्गा बुआ को भी साथ ले जाओ। कुमुद को अच्छा नहीं लगा। पर वह कुछ नहीं बोली। इसलिए बुआ ने बंगले में रहने की जगह क्वार्टर में रहने की बात कही।
बंगले को होटल में बदलने के लिए क्या आवश्यक बदलाव करने हैं इसके लिए उमेश ने राजेश आहूजा नाम के एक आर्किटेक्ट से बात की। कुछ दिन पहले ही वह आकर बंगले का मुआयना कर गया था। उसने एक नक्शा तैयार किया था। उमेश से उस पर चर्चा करने के लिए ही उसने उमेश को बुलाया था। 
दरअसल जब राजेश आहूजा बंगले का मुआयना कर रहा था तब वह बेसमेंट में भी गया था। उन लोगों ने तय किया था कि बेसमेंट को किचन से संबंधित आवश्यक सामग्री के स्टोर के तौर पर प्रयोग किया जाएगा। उस दिन वह भी उनके साथ बेसमेंट में थी। तब उसकी निगाह वहाँ रखे कुछ पुराने सामान पर पड़ी थी। लेकिन तब उसने सही से देखा नहीं। उसके बाद उसे बेसमेंट में आने का मौका नहीं मिला। वह और उमेश अपने होटल के बारे में ही बातचीत करते रहते थे। उमेश का कहना था कि होटल से संबंधित सारी कानूनी प्रक्रियाएं तथा अन्य काम वह संभाल लेगा। उसने कुमुद को होटल से संबंधित वित्त की व्यवस्था तथा सारा हिसाब किताब देखने की ज़िम्मेदारी दी थी। उनका मानना था कि वो लोग होटल खुलने के बाद ज़रूरत के हिसाब से कर्मचारी रख लेंगे। 
उमेश के जाने के अगले दिन कुमुद बंगले के बेसमेंट में गई। उसने वहाँ के सामान का निरिक्षण करना शुरू किया। बहुत सा सामान तो बिल्कुल बेकार था। लेकिन बेसमेंट की एक चीज़ पर उसका ध्यान अटक गया। दीवार पर आदमकद आईना लगा था। उसके पास ही पुराना ईज़ल था। जिस पर चित्रकार कैनवास लगा कर पेंटिंग करते हैं। वहीं पास में ही एक पुरानी पेंटिंग रखी थी। जो अधूरी सी लग रही थी। कुमुद पेंटिंग के पास गई। ध्यान से उसे देखा तो वह एक पुरुष का चित्र था। पेंटिंग में उसका चेहरा स्पष्ट था। चौड़ा माथा, नीली आँखें, लंबे बाल, सुडौल लंबी नाक और घनी नुकीली मूंछें। देख कर लग रहा था कि जिसका भी यह चित्र था वह बेहद खूबसूरत व आकर्षक रहा होगा। कुछ क्षणों तक वह पेंटिंग को देखती रही। ऐसा लग रहा था कि जैसे उस चित्र में कोई सम्मोहन हो। 
पेंटिंग से ध्यान हटा कर वह दीवार पर लगे आदमकद आईने को देखने लगी। वह समझ नहीं पा रही थी कि बेसमेंट की दीवार पर इतना बड़ा आईना लगाने का क्या मतलब हो सकता है। आईना दीवार में जड़ा था। इसका अर्थ था कि कहीं और से लाकर बेसमेंट में नहीं रखा गया था। वह सदा से यहीं लगा था। पुराना हो जाने के कारण उस पर अक्स ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था। 
आईने के फ्रेम में सुंदर नक्काशी की गई थी। उस नक्काशी को देख कर कुमुद का मन ललचा गया। वह सोंचने लगी कि इस फ्रेम में नया आईना लगवा कर वह अपने ड्रेसिंगरूम की दीवार में लगवाएगी। वह यह देखने लगी कि क्या फ्रेम दीवार से निकाला जा सकता है। उसने आईने के पीछे झांक कर देखा तो वहाँ सांस थी। शायद आईना किसी हुक के सहारे लटका था। साथ ही उसे पीछे की तरफ एक अजीब सा दरवाज़ा जैसा दिखा। ऐसा जिसमें से केवल झुक कर ही पीछे जाया जा सकता था।
कुमुद सोंच रही थी कि आईने को हटा कर दरवाज़े का निरीक्षण करे। तभी नीचे से आता दुर्गा बुआ का स्वर सुनाई पड़ा। वह बहूजी बहूजी करके पुकार रही थीं। दुर्गा बुआ घर के लिए कुछ ज़रूरी सामान लाने पास के बाज़ार में गई थीं। वहाँ से लौट कर कुमुद को कहीं ना देख पुकार रही थीं। कुमुद अपनी रहस्यमई खोज के बारे में उन्हें नहीं बताना चाहती थी। अतः आवाज़ सुनते ही ऊपर चली गई।