Adrashya Humsafar - 8 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 8

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अदृश्य हमसफ़र - 8

अदृश्य हमसफ़र

भाग 8

बाबा की चीख सुनकर सभी घरवाले बाहर गली में निकल आये। अनुराग को गिरा देख कर सभी का मन शंकित हो उठा।

"क्या हुआ?"

"कैसे हुआ?"

बाबा के मुंह से एक शब्द नही निकला।

काका ने थोड़ी फुर्ती दिखाई और बड़े भैया और सूरज भैया से अनुराग को उठाकर अंदर लाने को कहा।

दोनो भाइयों ने मिलकर अनु दा को उठाया था और अंदर बैठक में बिछे पलंग पर लेटाया।
तब तक काकी पानी ले आयी थी। ठंडे पानी के छींटे उनके चेहरे पर डाले तो थोड़ी थोड़ी आंखे खोली उन्होंने।

आंखे खुलते ही उनका पहला और इकलौता शब्द था "मुन्नी"

अनुराग के होश में आते ही बाबा ने राहत की सांस ली। उन्होंने सभी को जाकर आराम करने को कह दिया और खुद अनुराग को उठाया और उसका हाथ पकड़कर धीरे धीरे अपने कमरे की तरफ चल दिये।

माँ अपने आँचल में मुंह छिपाकर लेटी हुई थी। बाबा के आने की आहट से उन्होंने आहट की दिशा में गर्दन उठाकर देखा। बाबा के साथ अनुराग को देख कर चौंक गयी।

बाबा-" मुन्नी की माँ, तुम बड़ी माँ के पास चली जाओ आराम करने। आज मुन्नी के न होने से उन्हें भी उदासी ने घेर रखा होगा। मुझे कोई तंग न करना, अनुराग के साथ कुछ जरूरी हिसाब किताब लिखने में वक़्त लगेगा। "

"जी"- माँ हामी भरते ही उठी और कमरे से निकल गयी।

बाबा ने अनुराग को कुर्सी पर बैठाया और कमरे की चटकनी लगा दी।

बाबा पलट कर अनुराग के सामने आए। बड़ी गहरी गहरी नजरों से अनुराग को देख रहे थे।
अनुराग उनकी आंखों की तीक्ष्णता को सहन नही कर पाए और नजरें झुका ली। इतना तो समझ ही गए थे कि आज कुछ तो होने वाला है।

बाबा ने गहरी सांस लेते हुए अनुराग की तरफ देखा और कहना आरम्भ किया-" अनुराग, तुम्हें मैंने या किसी भी घरवाले ने बाहर का कभी नही समझा। अपने बच्चों से ज्यादा तुम पर विश्वास रहा हमारा। समझ नही पा रहा हूँ कि इतनी बड़ी बात मेरी नजरों से कैसे छुपी रही। "

बाबा अनुराग से कहते कहते कमरे में चहलकदमी करते जा रहे थे।

अनुराग जुबां से खामोश थे मगर दिमाग मे तूफान मचल रहे थे। मन ही मन अपनी इष्ट दुर्गा माँ को याद कर रहे थे।

बाबा ने फिर कहना आरम्भ किया-" मुझे इस बात पर यकीन है अनुराग, मैं जो कह रहा हूँ तुम वह सब समझ रहे हो। मुझसे तो कहा होता कम से कम। "

अनुराग-" बाबा आप क्या कह रहे है। "

बहुत हिम्मत करके कह तो दिया अनुराग ने लेकिन गर्दन झुकी की झुकी रही। आज तक हांजी बाबा के इतर एक शब्द अनुराग ने नही बोला था उनके सामने।

बाबा-" मैं जात पात में विश्वास नही रखता अनु बेटे, रखता तो शायद तुम हमारे घर के सदस्य नही बनते। तुम्हारे छोटेपन से ही तुम्हारी शालीनता, बुद्धि कौशल के सबसे बड़े प्रशंसक रहे हैं हम। तुम बहुत अच्छे से जानते भी हो लेकिन आज बहुत दुख पहुँचा है हमें कि इतनी बड़ी बात तुम छुपा गए। आज अहसास हो रहा है कि शायद कहीं कोई चूक हुई है हमसे। कहो बेटे, यकीन मानो हम नाराज नही होंगें। "

अनुराग को थोड़ी राहत के साथ हिम्मत भी मिली।

कुर्सी से उठ खड़े हुए और सबसे पहले बाबा को आराम कुर्सी पर बैठाया।

फिर कमरे से बाहर चले गए। कुछ पल बाद वापस आये तो उनके हाथ में बाबा का पीतल का गिलास था। बाबा मुस्कुराए बिना न रह पाये।

"अनु, बेटा ठंडा केसरी दूध लाये हो। तुम कितना ध्यान रखते हो मेरे बच्चे। मेरे पिछले जीवन के असख्यं पुण्यों के प्रतिफल के रूप में तुम मुझे मिले हो। "

अनुराग-" बाबा आपने बहुत देर से कुछ नही लिया है। मैं सब कहूँगा लेकिन आप सबसे पहले ये दूध पी लीजिये नहीं तो कलेजे में पित्त बनना आरम्भ हो जाएगा। "

बाबा ने खूब आशीर्वाद देते हुए गिलास को पकड़ लिया।

बाबा धीरे धीरे दूध गटक रहे थे और अनुराग अपने कथ्य के लिए भूमिका सोच रहे थे।

जब बाबा ने गिलास खाली कर के रख दिया तब अनुराग ने कहना शुरू किया।

अनुराग-" बाबा, आप ठीक समझे हैं। मैं मुन्नी को बहुत चाहता हूँ। अपनी जान से भी ज्यादा। मेरा बस चलता तो तमाम उम्र उसे अपनी पलकों पर बिठाकर रखता। उसका नौकर बनकर रहने में भी मुझे कोई गुरेज न थी। "

"फिर चुप क्यों रहे"- बाबा ने उसे टोकते हुए नजरें उठाकर देखा तो अनुराग ने नजरें झुका ली।
झुकी नजरों और भर्राए गले से फिर कहना आरम्भ किया-" बाबा, आपकी और मुन्नी की इज्जत की खातिर।

मैं जानता था यदि आपसे कहता तो आप इस रिश्ते को भी स्वीकार कर लेते लेकिन समाज आपके विरोध में खड़ा हो जाता। एक ठाकुर की लड़की का रिश्ता ब्राह्मण के बालक सँग होता, इसे दोनो थोक बर्दाश्त नही करते। खून की नदियां बह जाती गांव में। बहुतेरे घरों का सुख शांति सब चौपट हो जाता । मुन्नी के चरित्र पर उंगलियां उठती कि लड़की का चालचलन बचपन से ही खराब था। ये बात मैं कभी नही सह सकता था। "

अनुराग ने बदस्तूर कहना जारी रखा-" मुन्नी का ह्रदय एकदम बच्चे की मानिंद निश्छल है, उसे तो यह भी नही पता कि मेरी भावनाएं उसके प्रति कब और कितनी बदली। फिर कैसे मैं उस पर उंगलियां उठने देता।

वह मुझे अनु दा बुलाती है। बड़े भैया से ज्यादा मुझे अपने करीब माना उसने तो कैसे उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाता। आप यकीनन मान जाते इस रिश्ते के लिए लेकिन "मुन्नी" वह तो शोर मचाकर दिन रात एक कर देती। जीवन में कभी किसी को "दा" नही कह पाती।

एक और भी मुख्य कारण रहा मेरे चुप रहने का। बचपन से आपके घर में रहा हूँ। अपने बच्चों की तरह मुझे रखा आपने। इतना प्यार और सम्मान दिया जिसकी कभी कल्पना भी नही कर सकता था यहाँ तक कि मुझे अपने जनक और जननी भी याद नही आये। हमारी आर्थिक स्थिति आप बखूबी जानते हैं। यदि आप नही लेकर आते तो आज कहीं मन्दिर में पुजारी ही बना बैठा होता। अपने सुख के लिए मैं गद्दार नही कहलाना चाहता। नही चाहता था कि जीवन भर मुझे यही बात कचोटती रहे कि जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया। "

अनुराग की आवाज का कम्पन बाबा बखूबी समझ पा रहे थे। बाबा अपनी कुर्सी से उठे और अनुराग के दोनो कंधे पकड़ लिए। फिर एक हाथ से उसकी झुकी गर्दन उठायी तो दोनो आंखों से गंगा जमुना की पवित्र धाराएं बहती दिखी। बाबा ने उसके आंसू पोंछे और सीने से लगा लिया। धीरे धीरे अनुराग की पीठ सहलाने लगे। अनुराग के भावों का बांध टूट गया और वह दहाड़ मारकर रोने लगे।
बाबा ने पीठ सहलाते हुए ही सांत्वना देते हुए कहा-" जी भर कर रो ले मेरे बच्चे। आज बहने से इस खारे पानी को। तुम्हारे कहे हुए एक एक शब्द से तुम्हारे मन की सच्चाई झलक रही है। आह....कितनी पुण्य घड़ी थी वह जब मैँने पहली बार तुम्हारी उंगली पकड़ी थी। "

अनुराग बाबा के सीने से कसकर लिपट गए।

जब जी भर कर रो चुके तो थोड़ा सा कसमसाये।

बाबा ने उन्हें अपने सीने से अलग करके पास की मेज पर रखा पानी का गिलास उठाया और अनुराग को जबरदस्ती पिलाया। पानी पीने से या फिर बाबा के सीने लगकर रोने से, कारण चाहे जो भी रहा हो लेकिन अनुराग खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहे थे।

अनुराग की बातों से बाबा के चेहरे पर गहन संतुष्टि के भाव आ गए। उन्हें अनुराग की सच्चाई पर पूरा विश्वास था। फिर से एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने एक आखिरी सवाल दाग दिया।

" अनु, एक बात और बता दो बेटा कि जब तुम मुन्नी से इतना प्रेम करते थे तो जाते जाते उसे दुख क्यों दिया?उससे मिलने क्यों नही आये?"

"इसका भी कारण है बाबा, बताता हूँ। "

क्रमशः

***