नैनीताल जाने का दिन आ गया है। हम सब कार से जाने वाले है। हमने तेरह सीटर टाटा विंगर कार एक हफ्ते के लिए बुक करवाई थी। बडी कार इस लिए लीं के पिछे की सीट पर कोई आराम करना चाहे तो लंबे होकर सो सके। हमारे साथ रविभाई और अवि भी थे। मेरे नसीब में दो जासूस (मिताभाभी और काव्या)? कम थे जो तिसरा भी उसमें शामिल हो गया। मेरि स्थिति तो वो सिरियल है न "जीजाजी छत पर है" कि एक्ट्रेस "करू" उसकी तरह हो गई। जिसमें उसका तकिया कलाम है "मेरे तो भाग ही फूट गए"?।
हम सब के घरवालों ने ढेर सारी इंस्ट्रक्शन देकर हमें विदा किया। मीना और काव्या ने शादी में पहनने के लिए अपने घर से कपड़े और ज्वेलरी मंगवा लिए थे। मैंने कुछ ज्वेलरी मेरी और कुछ दोनों भाभीयों की ली थी। घर में दूसरी लेडिज होने का फायदा ही यही है हम सब एक-दूसरे की चीजें पहन सकते हैं। जब भाभीया नहीं थी तब एसा लगता था कि दो भाई के बदले मेरे एक भाई और एक बहन होनी चाहिए थी। जिससे मैं अपनी बातें, अपनी चीजें या अपनी ड्रेस एक्सचेंज कर सकती। पर भाभीयों के आने से यह कमी भी पूरी हो गई। आज पहली बार में अपनी फेमिली के बगैर कही जा रही थी। वैसे एसा तो नहीं कह सकती, मेरा एक फेमिली मेंबर तो है ही साथ में रविभाई। वह तो मेरे दोनों भाई से थोड़े से strict है। हमेशा कहते रहते हैं, पाखि तु ये मत कर तू वो मत कर। वो यह सब क्यूं कहते हैं मैं जानती हूं। एक बहन खो जाने के बाद दूसरी को खो नही सकते थे। और मुझे भी अच्छा लगता है, हर वक्त मेरा ख्याल रखने वाला कोई है। इन सबमें जिसको सबसे ज्यादा जलन होती थी वो है "निशु"।
कहती हैं,- में बचपन से इसके साथ हुं पर ध्यान वो तेरा ज्यादा रखता है।
तब मैं भी कहती थी,- क्यो? तेरा अविभाई तेरा ध्यान रखता है तब कुछ नहीं??
इसी बात पर हम दोनों की तू-तू-मैं-मैं हो जाती है। लडते झगड़ते पांच मिनट मैं 'जैसे थे' हो जाते हैं। वैसे निशु सच ही कह रही थी रविभाई के बारे में, मैं उन्हें कितनी भी निशु के बारे में हींट देने की कोशिश करती हुं पर वो समझते ही नहीं। बेचारा भोला मेरा भाई।?
कार में आगे की सीट पर साकेत बैठा था। दूसरी ओर रविभाई और अवि थे। उनके पिछे क्रमशः मैं और निशु, काव्या और मीना और सबसे पिछे हमारे लव बर्डस थे दिशा और राजा।? सुबह पांच बजे सब निकले थे। अगली रात को काव्या और मीना मेरे घर आ गए थे। रिधिमा एक हफ्ता पहले ही नैनीताल चली गई थी। सब टाइम से रेडी थे तो दिल्ली से निकलने में वक्त नहीं लगा। हमने पहला स्टोप गढ़मुक्तेश्वर के पास एक रेस्टोरेंट में लिया। दिल्ली से निकलने के बाद सब सो गए थे। रात तक सामान की पेकींग और सुबह जल्दी उठने से सब को निंद आ गई थी। ड्राईवर ने जब कार को रोका तब ही सब जागे।
कार से उतरकर सब फ्रेश होने चले गए। फिर सब ने चाय नाश्ता किया। नाश्ता भाभी ने यह कहकर भर दिया कि,- बाहर का खाकर किसी की तबियत बिगड़ी तो शादी का मजा किरकिरा हो जाएगा। इस बात को मान्य रखके सब ने घर का नाश्ता ही खाया। कोई भी अपनी एंजोयमेन्ट गंवाना नहीं चाहता था। आधे घंटे के बाद फिर से सवारी निकल पडी नैनीताल। Jim Corbett museum तक रस्ता सीधा ही था। बीच-बीच में थोड़ी देर रुकते थे फ्रेश होने। जैसे म्युजिअम का रास्ता खत्म हुआ और नैनीताल का रास्ता शुरू हुआ तों उस रास्ते से मेरी तो हालत खराब होने वाली है। किसीको बताया नहीं था पर टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर मुझे वोमीट का प्रोब्लेम है। वैसे कविभाई ने मुझे दवाई तो खीला ही दी थी कार में बैठ ने से पहले। मैं भले ही डाक्टरी पढ़ रही हुं पर दवाई खाने की चोर हुं। हरबार कविभाई सर पे खड़े रहकर ही दवाई पिलाते हैं। वरना मैं दवाई फेंक देती हुं।?
अभी तीन घंटे बाकी थे नैनीताल आने में। टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर आधे घंटे बाद मैंने ड्राइवर से कहके कार रुकवाई और जल्दी नीचे उतरकर रोड के एक साइड पर उल्टीया करने लगी। रविभाई तपाक से पानी की बोतल लेकर मेरे पास आ गए और पीठ पर हाथ पसारने लगे। सब कार से नीचे आ गए।
रविभाई- तु ठीक है पाखि? पहले क्यों नहीं बताया ऐसे रास्ते में प्रोब्लेम होती है? ठहर मेरे पास दवाई है अभी देता हुं।
मैं- कविभाई ने दी थी दवाई।
रविभाई- कितने बजे?
मैं- सुबह कार में बैठने से पहले।
रविभाई- अब चार- साढ़े चार घंटे बित गए हैं तो दूसरी दवाई खाले।
अवि- तु संभाल इसे मैं दवाई लाता हुं।
मैं एक पत्थर पर बैठ गई। निशु और दिशा भी पास आ गए।
दिशा- चलो सिनियर डाक्टर साथ होने का कुछ तो फायदा हुआ।
निशु- अभी कहा बन गए हैं? डिग्री तो हाथ में आने दे।
दिशा- तुझे तो ऐसा बोलना ही नहीं चाहिए। मीना की तरह तेरा भाई भी तो फर्स्ट आता है हमेशा। और वो भी रिकॉर्ड तोड़कर। इस कोलेज की हिस्ट्री में सबसे ज्यादा पर्सेंट लाने वाला तेरा भाई ही है।
अवि को आता देख दिशा मेरे कान में कहती हैं- नब्ज चेक करवाले अवि से।
मैं- तु मार खाएंगी दिशा।?
पता नही पर वो हमेशा अवि को देखकर मुझे चिढ़ाने लगती है।उसका कहना है अवि चोरी छिपे तुम्हें देखता है और मैं वह बात कभी नहीं मानती। उसका कहना है,- अवि कोलेज की सीढीयो पर अपने ग्रुप के साथ तुझे देखने ही बैठता है। कोलेज में जाते वक्त तु नजरें जमीन में गाड़े चलती है पर मेरी नजर हर जगह रहती है। वो चोरी छिपे तुम्हें ही तांकता रहता है।
मैं कहती थी- चल तु अपने दिमाग के घोड़े मत दौड़ा। ऐसा कुछ नहीं है। और में तेरी तरह प्यार में नहीं पड़ने वाली समझी।
अवि ने आकर रविभाई से पानी की बोतल लेकर मुझे दवाई खिलाई। पास में खड़ी दिशा ने तुरंत मुझे अपनी कोहनी मारी और आंखों से इशारे करने लगी। सबका ध्यान मेरे पर था तो अच्छा था, दिशा के इशारे पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। वरना काव्या जासूस सौ सवाल कर लेती। पांच मिनट बाद सब कार में चडे। एकाद घंटे बाद फिर से वोमीट के लिए कार रोकनी पड़ी। मेरी हालत खराब हो रही है अब। जैसे तैसे दोपहर एक बजे हम नैनीताल पहुंच गए, तबतक मुझे बुखार? भी चढ़ गया था। कार में मैं पिछली सीट पर लेटी हुई थी। मेरे सिरहाने पर रविभाई बैठकर मेरा सिर सहला रहे थे। बिच में कहीं कहीं रुक कर मुझे निंबु शर्बत पिलाते आए थे। नैनीताल पहुंचकर हमने रिधिमा को फोन किया। उसने हमें एक रिसॉर्ट का अड्रेस दिया हम वहीं चले गए। दरअसल शादी इसी रिसोर्ट में ही होने वाली थी। गिने-चुने नजदिक के लोगों को ही यहां पर रूम दिया गया था। बाकी के रिश्तेदार यही के थे। हम सब को यहां पर्सनल रूम दिए गए थे। यह रिसोर्ट रिधिमा के पापा का ही है। रिधिमा ने हमारी सब अरेंजमेंट यहां अच्छे से कर दी थी। यहां पहुंचने के बाद सबने अपने अपने घर फोन कर दिया।
काव्या- इसने अलग-अलग कमरे क्यो करवाएं? दो-दो लोग साथ में होते तो भी चलता। मैं तो अकेले नहीं रहुंगी।
मिना- में भी, एक काम करते हैं हम दोनों साथ में रहते हैं।
काव्या- ठीक है। और किसीको रूम शेयर करना है?
हम में से किसीको रूम शेयर नहीं करना था। सब को अकेले सोने की आदत थी तो साथ रहने की जरूरत नहीं थी।
रिसेप्शन से हम सब ने चाबी ली और दो बेलबोय हमारे सामान के साथ लिफ्ट में सेकंड फ्लोर पर हमारे कमरो तक आए। सबने अपना अपना सामान अपने कमरे में रखवाया। लंच करने का किसी का भी मूड नहीं था तो सब अपने कमरे में जाकर सो गए।
शाम पांच बजे रिधिमा आई मेरे सिवा सब को जगा दिया उसने। मेरी हालत के बारे में काव्या ने उसे पहले ही बता दिया था। वो अपने साथ दो कोरियोग्राफर्स लेकर आई थी। सब काव्या के रूम में इकठ्ठा हुए।
रिधिमा- welcome to Nainital my friends! उम्मीद है आप सब अब तक फ्रेश हो गए होंगे। मेरे साथ यह रोकी एंड मौनी है, दोनों बहुत अच्छे कोरियोग्राफर्स है। पिछले चार दिनों से हम इन्हीं से डांस सिख रहे हैं। और अगले चार दिन बाद संगीत का फंक्शन है। हम सब स्टेज डांस करने वाले हैं और साथ में आपको भी करना है।
दिशा- हां-हां मैं तो रेडी ही हुं राजा के साथ।
राजा धीरे से फुसफुसाता है- मर गया।?
मीना- रिधिमा बुरा मत मानना पर जर्नी के दौरान मेरे पैरों में सुजन आ गई है और दर्द भी हो रहा है तो मैं डांस नहीं कर पाउंगी सोरी।
रिधिमा- दवाई खा लेना यार। बहुत मजा आएगा।
मीना- जानती हु पर फिर शादी एंजॉय नहीं कर पाउंगी। तु मुझे रहने ही दे।
निशा- क्या यार पार्टीसिपेट करना, मैं तेरे पैरों में मालिश कर दुंगी।
मीना- सोरी निशा मन तो मेरा भी है पर दुखते पैरों के साथ...। वापस दिल्ली भी तो जाना है।
रिधिमा- ठीक है मीना, मैं तेरा शादी का मजा किरकिरा नहीं करुंगी बस। और कौन कौन है जो परफोर्म नहीं करना चाहता।
अवि ने धीरे से हाथ उपर किया।
रिधिमा- अविनाश सर, आपको क्या प्रोब्लेम है? आप के पैरों में भी तो दर्द नहीं है न?
अवि- ऐसी कोई बात नहीं है। बस ऐसे ही...।
रिधिमा- (थोड़ा नाराज़ होते) और कोई है?
रवि- पाखि को पुछ के बताउंगा उसकी तबियत देखकर।
रिधिमा- ठीक है तो तय रहा। अभी में यही हुं, हम सबको डिनर के लिए घर जाना पड़ेगा। बाद में हम सब यही वापस आएंगे रिहर्सल के लिए। और हां मैं कार लेकर ही आईं हुं तो आप सब मेरे साथ ही चलना। मौनी तबतक आप इन लोगों के लिए कोई सोंग सिलेक्ट करके उसकी कोरियोग्राफी सेट कर दे। ताकि जल्दी से डांस सिखना शुरू सके।
मौनी- ठीक है पर कितने लोग हैं वह पता चलता तो उस हिसाब से डांस स्टेप सेट करें।
रिधिमा- बस एक को ही पुछना है, ये सब तो है ही।
रोकी- ठीक है, हम देखते हैं।
वो दोनों बाहर चलें गए। सब बातें कर रहे थे।
रवि अवि से कहता है- में पाखि को उठाकर आता हुं वैसे भी छः बज चुके है।
अवि- सो रही होगी वरना अबतक तो बाहर आ जाती।
रवि- मैंने उसके रूम की चाबी अपने पास रखली थी। निंद के कारण उठा ने पर उठ न सकी तो खामखां दरवाजा पिटते रहते।
अवि- smart boy...!
रवि- by born?
दरवाजे का लोक खोलकर रवि अंदर गया।
रवि- पाखि अभी तका सो रही है, बुखार चेक करता हु इसका पहले। (सर पर हाथ रखकर देखा) बुखार तो उतर चुका है। इसको उठाता हुं। पाखि... पंखुड़ी... उठ जा अभी रात होने को है।
मैं- सोने दो ना भैया। वैसे भी रात को सोना ही है न, तो मैं continue करती हुं।
रविभाई- तु पहले यह बता कि तेरी तबियत कैसी है?
मैं- मैं अब बिल्कुल ठीक हुं। अच्छी निंद से सब ठीक हो गया अब।
रविभाई- अच्छा सुन, काव्या के रूम में रिधिमा आई है तु मिलेगी अभी?
मैं- हां क्यों नहीं। मैं थोड़ा फ्रेश होकर आती हुं।
रविभाई- तबियत ठीक लगे तो ही आना वरना मैं सबको यही बुला लेता हुं।
मैं- मैं ठीक हूं भैया आप चिंता न करें। अब आप यहां से जाइए तो मैं तैयार होऊंगी।
रविभाई- सच में ठीक...
मैं (बिच में ह रोकते हुए)- भैया...?
रविभाई के जाते ही मैं बाथरूम में फ्रेश होने चली गई। सुबह का नाश्ता भी निकल गया था और अब तो भुख भी जोरो से लगी थी। मैं काव्या के रूम में आई तब सब गप्पे लड़ा रहे थे। दरवाजे पर मुझे देख रिधिमा मेरे पास आई और गले लगा लिया।
क्रमशः
आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी जरूर बताएं। आपकी रेटिंग्स एवं समीक्षाओ का इंतजार रहेगा।