वह पेड़ जो हमें जीवनदायक ऑक्सीजन देता है , जो हमें आश्रय व भोजन देती है , वह प्रकृति , जो हमें दूध व अन्य विभिन्न वस्तुएं देते हैं वे पशु हमारी अनदेखी का शिकार हो रहे हैं ।
तब मेरे मन में एक प्रश्न यह भी जन्म लेता है कि क्या यह औधोगिकीकरण गलत है ?......continue
Part-4
Nature in Danger
जीवन के सभी पहलुओं को देखने पर समझ आया की औद्योगिकीकरण गलत नही है । इसके कारण ही तो समाजिक जीवन में सुधार आया है । अतः औद्योगिकीकरण अति आवश्यक है । बस इतना ध्यान रखना चाहिए कि मुनाफ़े के चक्कर में पर्यावरण से खिलवाड़ न हो । जो कोई भी उद्योग धंधे लगाता है उसको चाहिए कि वह प्रदूषक पदार्थों को रोकने का उचित प्रबंध करे । वास्तव में ऐसा होता नही है , अधिकतर लोग सिर्फ कागजी स्तर तक पर्यावरण प्रोटेक्शन करते हैं । वहाँ काम करने वाले कर्मचारी , वर्कर सब कुछ जानते हुए भी उसकी शिकायत नही करते । क्योंकि नौकरी बचानी है , दूसरी बात एक समस्या यह भी है कि उनको पता भी नही के कहाँ शिकायत की जाए । पर्यावरण संरक्षण का लम्बा-चौड़ा भाषण देने वाले भी केवल भाषण तक सीमित रहते हैं । स्वयं कोई जिम्मेदारी नही लेते , अगर भूले-बिसरे कोई इन तक या किसी जिम्मेदार अधिकारी तक शिकायत लेकर पहुंच भी जाता है , तो सिर्फ कागजी कार्यवाही और कुछ जुर्माना , घूस-घसोट करके मामले को रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाता ।
ऐसे लोगों को उदाहरण मान कर भोले-भाले मूर्ख जो स्वयं को बुद्धिमान समझते हैं , चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे रहते । अगर मान लिया जाए कि ईश्वर है उसने सब कुछ बनाया है , तो कम से कम जो उसने जो कुछ दिया है पहले उसे तो बचा लिया जाए फिर और अधिक कि उम्मीद करें तो ठीक । पर्यावरण संरक्षण पर भाषण देने वाले आला अफसर सुनिश्चित करें कि उनके अधिकारी व कर्मचारी घूसखोरी न करें । पर्यावरण प्रदूषण से सम्बंधित किसी भी प्रकार की सूचना पर ध्यान दिया जाए । उचित प्रचार प्रसार के द्वारा आम नागरिकों के लिए शिकायत दर्ज करवाने की प्रक्रिया को आसान और सुविधाजनक किया जाए ।
कभी-कभी सोंचता हूँ बड़ी अजीब दुनिया है । उससे भी ज्यादा अजीब है हिंदुस्तान जिसके हर कोने में डरे सहमे लोग निवास करते हैं । इस डर के कारण उसने अजीब से दिखनेवाले भगवान बना रखे हैं । यहाँ आदमी खुद ही भगवान बनाता है , बेंचता है , खरीदता है और फिर उसके आगे मिन्नतें करता है । है न अजीब बात जिस भगवान को वह 10 , 20 , 50 ,100 या कुछ रुपयों में खरीद सकता है । वह पत्थर उनकी क्या मदद कर सकता है । इससे भी ज्यादा अजीब बात तो यह है कि जिसको वह खरीदकर लाया है उसके आगे 21, 51 251, या और कुछ रुपये रखकर लाखों करोङो के काम करवाने की बिनती करता है । अब यह समझ नही आता कि वह बिनती करता है या घूस देकर काम करवा रहा है । मानलिया जाए कि वह बिनती करता है तो फिर 21,51 देने का क्या मतलब ? कहीं वह भगवन के काम का मेहनताना तो नही दे रहा ? अगर यह मजदूरी मान ली जाए तो आदमी की अक्लमन्दी की दाद देनी पड़ेगी । इतना सस्ता मजदूर मिलना तो मुश्किल ही है । लेकिन जब कोई मजदूर इतने कम में काम करने को तैयार नही होता तो फिर भगवान क्यों करे ? हाँ यह हो सकता है कि जब वह आदमी का खरीदा हुआ है तो भोजन पानी के बदले ही काम कर दे । नही करेगा तो कहीं भाग भी तो नही सकता ! अगर आदमी द्वारा दी गई धनराशि को घूस समझ लिया जाए तो सर्वविदित है कि आजकल इतने कम में तो कोई फ़ाइल भी खोल के नही दिखता काम करवाना तो दूर की बात है ।
वैसे आदमी की होशियारी का पता इस बात से चलता है कि वह इसे मजदूरी या घूस नही कहता , इसे कहते हैं चढ़ावा । वाकई में आदमी बड़ा होशियार है । इससे अच्छा क्या हो सकता है तमाम शक्तियों वाला भगवान पहले खुद बनाओ , बेंचो और खरीदो फिर बड़ी चालाकी से बड़े बड़े काम करवा लो । इस तरह उनका भी कम चल गया जो भगवान बनाना जानते हैं और जो नही जानते । इस तरह डरा सहमा आदमी बड़ी चतुराई से भगवान को बेवकूफ बना कर अपना काम निकाल लेता है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस मनुष्य के बस का कुछ नही वह सर्वशक्तिमान भगवान का निर्माण कर देता है , उसे बेंच देता है , और खरीद भी लेता है । इतना सब करने के बाद भी कहता है मैं कुछ नही कर रहा सब उसकी मर्जी से हो रहा है । तो भइया जब सब कुछ उसकी मर्जी से हो रहा है तो उसको अपनी मर्जी करने दो न । क्यों घूस में मँहगे-मँहगे तोहफे देकर अपना काम पहले करवाने की फिराक में रहते हो ? आदमी की चालाकी तो देखो एक तरफ कहता है सब तेरी मर्जी दूसरी तरफ चढ़ावा देकर कहता है भगवान मेरा ये काम बन जाये तो कुछ और दूँगा । आदमी को नौकरी चाहिए तो , बच्चे चाहिए तो , व्यवसाय में तरक्की चाहिए तो जितना धनी आदमी उतनी ज्यादा घूस ।
तब तो बड़ा आश्चर्य होता है जब किसी अमीर आदमी के घर में चोरी हो जाती है और चीख-चीखकर कहता है भगवान मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था । जरा सी बात है जो समझ नही आती , हो सकता है चोर ने ज्यादा चढ़ाव चढ़ाया हो । आखिर उसके पास भी तो खरीदा या चुराया हुआ कोई भगवान होगा ही । कुछ चोर तो खुद भगवान को ही चुरा लेते हैं । जब वह खुद के चोरी होने पर , बेंचे जाने या खरीदे जाने पर आपत्ति नही करता तब फिर वह चोर को क्यों रोकेगा । जब आप उसे बेंचते हैं या खरीदते हैं तब भी तो उसका अपमान होता ही है । वाकई वह बड़ा दरियादिल है कि अपने अपमान का घूँट बिना कुछ कहे पी जाता है ।
मैंने कुछ लोगों से यही प्रश्न किये और तर्क दिया तो क्रोधित हो उठे कहने लगे तुम नास्तिक हो । मैंने पूछा भाई अगर उसको कुछ कहने पर उसे दिक्कत नही तो तुम क्यों आसमान उठाते हो ? उसको कोई दिक्कत होगी तो आके मुझसे कहेगा । इस बात पर और भड़क उठे जैसे कि आग में घी डाल दिया हो मैंने । चीखकर बोले तुम्हारे जैसे पापियों से भगवान बात क्यों करेगा ? मैंने कहा भाई जो उसकी खरीदफरोख्त करता है , जो उसे घूस देता है या मजदूरी देकर काम करवाता है वह पापी नही तो भला मैं पापी कैसे हुआ ? उसके ऊपर पेशाब करने वाला कुत्ता पापी नही , उसके घर में चोरी करने वाला पापी नही तो फिर मैं कैसे पापी हो सकता हूँ ? वह तो इतना दरियादिल है कि उसके मंदिर में उसके सेवक किसी बच्ची का बलात्कार भी करते हैं तो वह चुपचाप बैठा रहता है । आगर बलात्कार करना पाप नही है तो क्या सिर्फ उस पर प्रश्न करना ही पाप है । वास्तव में भगवान एक चालक लोगों के द्वारा रचा गया वह शब्द जिसका डर दिखा कर वे अपना धंधा करते हैं । अगर ऐसी कोई चीज होती तो अपने ऊपर लगे प्रश्नों का उत्तर स्वयं देती ।
बड़ी बिडम्बना है हमारे देश की कि जिसको पता ही नही भगवान क्या है ? कौन है ? जिसने उसे कभी नही देखा वह कुम्भार उसकी मूर्ति बनाता है । जो भगवान को जानने का दावा करता है वह पुजारी उसे बना नही पता । गज़ब माया है भगवान तेरी ! इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि उस भगवान को बनाना वाला कुम्भार इस देश में नीच जाति का माना जाता है । जबकि उसका सेवक , पुजारी ऊँच कहलाता है । मतलब की जन्म देने वाला अछूत और सेवा करने वाला ऊँच ! वाह गज़ब की लीला है , भगवान की । जो अपने जन्मदाता के छूने से परहेज करता है और सेवक या दास के संग भोजन करता है । हम ऐसे भगवान की पूजा करके अपने वंश को क्या शिक्षा देंगे ? जो भगवान स्वयं के जन्मदाता को भूल गया वह हमारी क्या मदद करेगा ? कुछ ऐसे ही प्रश्न घूम रहे थे उस दिन मेरे मन में ।