अभी अभी चुनाव ख़तम हुए है. नई सरकार आ चुकी है. मुझे कुछ दिनों पहले रिलीज़ हुई अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन की फिल्म बंटी और बबली याद आ रही है . इस फिल्म में अभिषेक बच्चन का किरदार ताजमहल को बेचने की कोशिश करता है . जब वो लोगों के सामने खड़ा होता है , और कोई मुद्दा नहीं मिलता है , तो वो जोर जोर से चिल्लाने लगता है , अंग्रेजों भारत छोड़ो ? अंग्रेजों भारत छोड़ो ? और आश्चर्य की बात ये थी कि लोग उसके पीछे पीछे ये नारा भी लगाने लगते हैं . एक ऐसा मुद्दा जिसका ताजमहल की चोरी से कोई लेना देना नहीं था.
बिल्कुल इसी तरह की घटना भारतीय जनतंत्र में घट रहीं है . जब चुनाव नजदीक आते हैं तो मंदिर -मस्जिद का नारा आकाश चुमने लगता है . नेता कान में जनेऊ लगाकर मंदिर जाने लगते हैं , तो कोई गुफा में जाकर ध्यान लगाने लगता है . मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि किसी नेता को जय श्री राम के नारे से चिढ़ होने लगती है . तो कोई ब्राह्मण पंडित पंजाब में जाकर गुरूद्वारे में माथा टेकने लगता है.
क्यों जनता का मत अली और बजरंग बली से प्रभावित होता है ? ये मेरी समझ में नहीं आता.
अभी भी सरकारी स्कुलों में पढाई की हालत खस्ता है . प्राइवेट स्कूल काकरोचों की तरह फैलते चले जा रहें हैं. प्राइवेट स्कूलों की फी बढ़ती जा रही है . जनता को ये दिखाई क्यूँ नहीं पड़ता. आखिर सरकारी होस्पिटलों में ईलाज की स्थिति आज कितनी खराब है , ये सब जानते हैं , और प्राइवेट होस्पिटलों में ईलाज करवाना आम जनता के बस की बात नहीं . पेट्रोल के दाम आसमान छु रहें है . लोग नेता से आखिर ये क्यूँ नहीं पूछते कि सरकारी स्कुलों में पढाई की हालत इतनी खस्ता क्यूँ है? लोग नेताओं से ये क्यूँ नहीं पूछते कि सरकारी होस्पिटलों में ईलाज सुलभ क्यूँ नहीं हैं ? आधे मरीज तो लाइन में हीं मर जाते हैं .
नेता हर साल महंगाई कम करने की बात करते हैं , पर चुनाव के समय ये मुद्दा नहीं बनते. वादों और वादों से जनता को फुसला कर सत्ता में आ तो जाते हैं , पर सत्ता में आ जाने के बाद सब कुछ भूल जाते हैं . क्या इन नेताओं को भारतीय संविधान झूठ बोलने का मोलिक अधिकार प्रदान करता है . इन नेताओं के झूठे चुनावी वादे करने पे रोक क्यूँ नहीं है . क्यूँ इनकी जिम्मेदारी नहीं बनती . क्या झूठ बोलना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है ?
पिछड़ों की राजनीति करनेवाले नेता तो अमीर हो गए अलबत्ता पिछड़े और पिछड़े होते चले गए. अभी भी जाति और धर्म आम जनता के लिए अफीम का काम करती है , जिसे नेता बुरी तरीके से भुनाते हैं.
भारतीय जनतंत्र की बहुत बड़ी विडंबना है कि अली और बजरंग बली नौकरी तो प्रदान नहीं कर सकते , अलबत्ता भारतीय सरकार को बदलने की क्षमता रखते हैं . ये दुर्भाग्य है भारत का. आखिर लोग समझते क्यों नहीं , कि मंदिर मस्जिद आपके मुहल्ले में सड़क पक्की नहीं करवा सकते , पानी उपलब्ध नहीं करवा सकते , नौकरियां प्रदान नहीं कर सकते , स्कुल और होस्पिटलों की फी कम नहीं करवा सकते.
जबतक लोगो को अली और बजरंग बली दिखते रहेंगे , पर स्कूलों और होस्पिटलों की बढ़ी हुई फी दिखाई नहीं पड़ती रहेंगी तब तक भारतीय जनतंत्र इसी तरह घुटनों के बल रेंगता रहेगा. अपनी बदहाली के ये जनता की आँखों पर चढ़ी हुई धर्म और जाति की पट्टी जिम्मेदार है , जो इनको अँधा बना देती है . जब तक जनता को अली और बजरंग बली दिखाई पड़ना बंद न होगा और जब तक विकास , रोजगार , स्कूलों और होस्पिटलों की बढ़ी हुई फी चुनावी मुद्दे नहीं बनेगे तब नेताओं के लिए झूठ बोलना जन्मसिद्ध अधिकार बना रहेगा.
अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित