Dastane Ashq - 27 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क - 27

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दास्तान-ए-अश्क - 27





"मुझे मेरी उम्मीद से ज्यादा मिला अय जिंदगी

अब कभी मुस्कुराने की गुस्ताखी नहीं करनी मुझे..?



"मैडम जी आप कहां हो..?"
रज्जो की आवाज सुनकर उसका दिल उछल पड़ा! अपनी बेड से वह संभलकर उठी!
पास ही बैठी गुड़िया ने ममा का हाथ पकड़ लिया! अपनी मां के पास बैठा सारंग दरवाजा खोलता उससे पहले तो अपने हाथों से डोर खोलकर रज्जो घर में आ गई!
सामने दीवार के सहारे खड़ी अपनी मैडम को देख कर वो अवाक रह गई!
यह कैसे हो गया? उसे अपनी आंखों पर यकिन नहीं हुवा! करीब आकर रज्जो ने मैडम जी के बाजुओं को पकड़ा!
मैम ये कैसे हो गया..? आप की ऐसी दुर्दशा..? इतना भारी शरीर..? ऐसी हालत के आपको किसी सहारे की जरूरत पड़े..? कैसे हुआ यह सब.?आपने मुझे पहले क्यों नहीं बुलाया..?"
कितनी फरियादे उठी रज्जो के भोले से मन में..!"
क्या बोलती वो उसकी आंखें बरस पड़ी!
उसने रज्जो को गले लगा लिया!
"आप फिकर ना करो मैडम जी..! अब मैं आ गई हूं ना..! आप देखना आपको पहले की तरह चलता फिरता ना कर दिया तो मेरा नाम भी रज्जो नहीं..! बहुत नमक खाया है आपका..! मैं आज तक नहीं भुली, मेरी प्रीति के लिए दूध से लेकर स्कूल का बस्ता तक आप ने दिलाया है! मेरी तनख्वा से ज्यादा मुझे पैसे दिए हैं! कभी अपने घर से मुझे भूखे नहीं जाने दिया..! हमेशा अपने पास बिठाकर खिलाया है मुझे..! कैसे भूल सकती हूं मैं मैडम जी की एक नौकरानी को कभी आपने अपनी बहन से कम समझा ही नहीं..!"
रज्जो बोले जा रही थी और उसकी आंखें आषाढ़ श्रावण की तरह झार-झार थी!
होश में आते ही उसने पहला काम किया प्रीति की मां रज्जो को बुलाने का..! एक वही थी जिस पर वो आंखें मूंद कर भरोसा कर सकती थी!
रज्जो ने उसे बेड पर बिठाया!
"बहुत लंबी कहानी है रज्जो तुम्हें बताऊंगी.! फिलहाल अपने घर पर फोन करके बोल दे आज से तुझे मेरे साथ रहना है! मेरी.. गुड़िया और सारंग की देखभाल की जिम्मेदारी आज से मैं तुझे साँंप रही हुं!
"ठीक है मैं घर पर फोन करके बहू को बोल दुंगी!"
मैं घर का सारा काम निपटा लेती हूं! और एक बात मैडम जी..!! बहुत भारी झटका लगा है मुझे! ज्वाइंट फैमिली में पूरा घर अकेले हाथ संभालने वाली औरत आज खड़े होने के लिए मोहताज हो गई है, बहुत बुरी बात है!"
"रज्जो.. मैंने जानबूझकर अपनी जिंदगी को खत्म करना चाहा था! पर बच्चों की हालत देखकर मैंने जीने का फैसला कर लिया है! तू देखना मुझे कुछ नहीं होगा मेरा मनोबल चट्टान की तरह है!
ऐसा कर फटाफट बच्चों के लिए कुछ खाना बना दे! फिर मुझे ले चल डॉक्टर लवलीन सब्बरवाल के पास..! वो डॉक्टर कम मेरी अच्छी दोस्त भी है!"
"ठीक है आप बैठ जाओ मैं फटाफट कुछ बना लेती हूं!"
गुड़िया और सारंग को पूछ कर दोनों के मनपसंद का खाना रज्जो ने बनाया!
लंबे अरसे के बाद बच्चे खुश थे..!
भूख मर चुकी थी फिर भी रज्जोने एक रोटी उसे जबरदस्ती खिलाई!
तब जाकर रज्जोने भी खाया!
फिर उसने घर की तिजोरी का कोना कोना छान मारा..! उसके अपने सारे गहने गायब थे ! तकरीबन 40 तोला सोना था! जो वो दहेज में लेकर आई थी!
हालात को शायद वो पहले से ही भांप चूकी थी! तभी मानसिक रूप से वो पहले से तैयार थी!
जब उसकी अपनी जिंदगी बिखर गई थी फिर दौलत और गहनों के बिखरने का वो क्या गम करती..?"
हाथों में पहने हुए कंगन को गिरवी रखकर वह रज्जो को लेकर अॉटो से डॉक्टर लवलीन के क्लिनिक पर पहुंची!
"मैं जान सकती हूं तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हुई..?"
डॉक्टर लवलीने उसकी आंखों को चेक करते हुए पूछा!
मुझे कुछ भी याद नहीं है डॉक्टर..! हा मैने कुछ साल पहले फिनाईल पी लिया था!
डॉक्टर ने मुझे बचा तो लिया पर उसके बाद मेरी हालत खराब होती गई..!
"मुंह खोलो.. तुम्हारा..! जबान बहार निकालो..!"
डॉक्टर जैसा-जैसा कहती गई वो वैसे वैसे करती रही!
"अब क्या होता है तूम्हे ये बताओ..?"
सर फटा जा रहा है! पूरी बोडी के स्नायु झकडे गये है! बदन टूट रहा है! सर पर वजन है.. चक्कर बहोत आ रहे है! और बिना सहारे के चलना मुश्किल है!
'कौन सी दवाई खा रही हो.?"
दो दीन से बंद कर दी है..! सोचा जब तक आपको दिखा न दु तब तक नही लूंगी!
"दवाई दिखाओ मुझे..!"
उसने अपने पास रखी दवाईयां को डॉक्टर लवलिन के सामने रख दिया!
Larpose 2 नामकी टेब को देखकर डोक्टर लवलिन को झटका लगा..!
तूम ये दवाई ले रही थी..? किस ने लिखकर दी तूम्हे..?
मुझे कुछ भी याद नही है मेम..! मेरा धरवाला मुझे देता था..! जब वो नही होता था तो धर की नोकरानी दे देती थी..!! "
"ओह माय गोड..!!
डॉक्टर के माथे पर सल पड गये!
ईस दवाई की एक बूंद अगर खांसी की दवाई के साथ दी जाए तो ईन्सान तीन दिन तक बेहोश रहता है!
"पिछले डेढ साल से वो मुझे रोज ये दवाई देता था.! जब वो घर पर नही होता था तो उसने ये दवाई का डोझ हर 3 दिन बाद देने की हिदायत नोकरानी को दी थी..!"
"किस ने..?" डॉक्टर को भी बडा झटका लगा!
"मेरे पति ने..! और किसने..?"
"पर तूम्हारी जिंदगी से ईस तरह खेलने की वजह..? "
दौलत डॉक्टर साहिबा..! यह दौलत अच्छे अच्छे इंसानों का ईमान खराब कर देती है!
और मेरे मां बाप ने मेरी शादी के वक्त कोई कमी नहीं रखी थी मेरे पूरे बदन को गहनों से लदा था! ससुराल में हिस्से में आई सारी मिलकत पर मेरे रहते हुए वह आसानी से कब्जा नहीं कर सकता था , क्योंकि शुरुआत से ही उसका मिजाज रंगीन रहा है ! वह पैसा कहां उड़ाता है आज तक मैं नहीं समझ पाई..! डॉक्टर साहिबा पूरा 1 साल मेरी जिंदगी से गायब हो गया है..! ऐसी नशीली दवाइयां देकर उन्होंने मेरी जिंदगी से पूरा एक साल मुझसे छीन लिया..!! इसकी फरियाद में किसको करु..? क्या कोई ला सकता है जो वक्त मेरी जिंदगी से ब्लैक गुजर चुका है वो..! मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ हुआ है पूरी तरह मुझे नशे में रखकर मारने की कोशिश की गई है जुल्म ढाया है मुझ पर !"
"हे वाहेगुरु मेरी समझ में नहीं आ रहा , कोई इंसान अपनी पत्नी के साथ इतना घिनौना अत्याचार कैसे कर सकता है..? इतना निर्दई कैसे हो सकता है..?"
"सब अपनी अपनी किस्मत है डॉक्टर साहिबा..!"
"मैं तुम्हें जो जो दवाइयां लिख कर देती हूं ! उसे तुम्हें कंटिन्यू लेनी है! तुम्हारा मनोबल देख कर मैं दावे के साथ कहती हूं तुम इस नशे की आदी नहीं हो बहुत जल्द ईस नशे से मैं तूम्हे मुक्ति दिला दूंगी..! तुम फिर से अपनी नॉर्मल जिंदगी जिओगी..! गर्व है मुझे तुम पर अपने बच्चों के लिए जीने का ईतना हौसला झुटाया है! भूल कर भी इस जहरीली टेबलेट को हाथ ना लगाना..!!
अब ऐसा कभी नहीं होगा मेम..! मैं बस धोखे में रह गई थी!
"फिर ठीक है तुम्हारा इलाज आज से शुरू है!" इतना बोल कर डॉक्टर लवलीन ने कुछ दवाइयां लिख कर दी!
"ये दवाइयां शुरू कर दो और हर हफ्ते मुझे दिखाना है!"
दवाई की पर्ची हाथ मे लेकर रज्जो उसका हाथ थामे मेडिकल की ओर आगे बढी!
(क्रमशः )