Running away in Hindi Classic Stories by Mukteshwar Prasad Singh books and stories PDF | पलायन

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पलायन


" पलायन "
​गंगा दियारा के गाँव रामपुर में आग लग गयी थी। कुछ ही देर में गाँव के कई घरों से तेज लपटें उठने लगी। आकाश में लाल लपटें और धुएं के गुबार ने भयावह दृश्य पैदा कर दिये थे ।आग तो मानो दौड़-दौड़ कर एक घर से दूसरे घर को लील रही थी। फूस-खपरैल का घर वैशाख की तेज धूप में ज्वलनशील पदार्थ बन गया था। आग की ’’धू-धू’’ और लोगों के चीख-चित्कार से वातावरण में अजीब डर व्याप्त था।
​ गाँव के एक सामाजिक सेवक सुमन ने अपने मोबाईल फोन से अग्निशामक विभाग के नियंत्रण कक्ष को खबर दी। अग्निशामक निरीक्षक द्वारा गाँव पहुँचने का मार्ग व सम्पूर्ण पता नोट कर लिया गया एवं शीघ्र पहुँचने का आश्वासन दिया गया। हालाँकि फायर ब्रिगेड को बेगूसराय जिला मुख्यालय से रामपुर गाँव आने में 35 कि॰मी॰ की दूरी तय करनी थी। यानी रामपुर पहुँचने में कम से कम ५० मिनट लगनी थी।इतनी देर में सम्पूर्ण गाँव को स्वाहा हो जाने का ख़तरा मँडरा रहा था।
​ आग की लपटें देख शीघ्र ही अगल बगल के गाँव के सैकड़ों लोग रामपुर पहुँच गये थे। जिसको जो उपाय सूझ रहा था, आग बुझाने में लगे थे। कई धूल और बालू बाल्टियों में भरकर फेंक रहे थे तो कोई गड्ढे से पानी बाल्टी में भरभर कर दूर से ही आग की ओर फेंक रहे थे।पर सभी प्रयास नाकाफी थे क्योंकि आग की तेज उठती लपटों से उन सबों को काफी दूरी पर रहना पड़ रहा था। वहाँ एकत्रित लोगों के बीच यही निर्णय हुआ कि आग से बचे घरों के समानों ,बूढ़े बुढ़ियों ,बच्चों व खूँटे से बँधे भेड बकरियों को तुरंत बाहर सुरक्षित जगह पर रखी जाय जिससे माल, मवेशियों व जान माल की रक्षा की जाय।
आग पर काबू पाना उनसबों के वश से बाहर था। गाँव में कुआं के पानी उपलब्ध नहीं थे। चापाकल से पानी भर कर लाने में समय लग रहा था।
​ सूचना देने के करीब डेढ़ घंटे बाद अग्निशाम टैंक पहुँची। तबतक तीन चैथाई गाँव के घर ख़ाक हो चुके थे। अब शेष बचे घरों को बचाना ही एक मात्र विकल्प था, सो उन बचे घरों के पास ही अग्निशाम गाड़ी के पाइप टंकी के पानी के फव्वारों से निकटवर्ती जलते घरों को बुझाना शुरु कर दिया।
​उस दिन मानों अरूण और वरूण देवता अपना क़हर बरपाने में लगे थे।पछुआ तेज हवा चल रही थी। तेज पछुवा हवा के कारण पूर्वी छोड़ की तरफ तेजी से आग बढ़ रही थी। पूर्वी टोले के घरों पर आग पकड़ने का अंदेशा था जो लगने से बचे थे। बढ़ती आग की लपटें घरों को जलाती जा रही थी।
​ दोनों अग्निशामक दस्तों के प्रयास से बाकी घरों को बचाया जा सका।
बीच में एक समस्या और आ गयी थी। एक अग्निशामक का टैंक पानी से खाली हो गया था। जिसे पुनः पानी से भरने के लिए गाँव में एक भी कुंआ नहीं था। अगल-बगल कोई जलाशय ,पोखर-तालाब भी नहीं थे। अग्निशामक दस्ता पानी कहाँ से लाए ? आखिर में उसे तीन किलोमीटर दूर दूसरे गाँव जाकर कुंआ से पानी भरकर लाना पड़ा। जब तक एक दस्ता लौटा दूसरा अग्निशामक का भी पानी ख़त्म हो गया।इस तरह आग से क़रीब १० घरों को ही बचाया जा सका था।

शाम होते होते पदाधिकारियों के दल भी एक के बाद एक पहुँचने लगे। सबसे पहले साहेबपुर के अंचलाधिकारी, फिर बलिया के अनुमंडल पदाधिकारी दिवाकर शुक्ल तत्पश्चात बेगूसराय के जिला पदाधिकारी एन॰लाल एवं कई पुलिस पदाधिकारी जले-उजड़े रामपुर गाँव पहुँच गये।
गाँव के मुखिया ,पंचायत समिति सदस्य, वार्ड सदस्य संयोग से प्रखण्ड में होने वाले एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में गये हुए थे, वे लोग भी हाँफते, कांपते आधे से अधिक जल चुके गाँव पहुँचे।
​ गाँव पहुँचते ही जले घरों की जान-माल की जांच शुरु हुई। चलने फिरने से लाचार 4 बूढ़े, 10 बच्चे, तथा दर्जनों बकरियाँ एवं गायें जो खूंटे से बंधी थी जलकर मौत के मुंह में पहुँच गये थे।
​ तुरत फुरत डीएम नर्मदेश्वर लाल के सामने उपलब्ध जानकारियाँ प्रस्तुत की गयी। आपदा प्रबंधन की ओर से राहत कार्य चलाने का निर्देश डी॰एम॰ से मिला।
अंचल अधिकारी को कैम्प कर रात दिन राहत मुहैया कराने का आदेश दिया गया। मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, वार्ड सदस्यों को राहत कार्य चलाने में मदद देने का आग्रह स्वंय जिला पदाधिकारी लाल ने किया। साथ ही गाँव के बचे लोगों को इकठ्ठा कर अपने ही सामने जान-माल की क्षति का ब्यौरा सूची बद्ध कर लेने अनुमण्डल पदाधिकारी दिवाकर शुक्ल को प्रतिनियुक्त कर दिया।
​ रात होने पर खाक हुए घरों के अन्दर लाल-लाल अंगारे अभी भी लहर रहे थे।
​ गैस लाइट का इन्तजाम हुआ, कुर्सियों व टेबुलों का इंतजाम बगल के गाँव से किया गया। गाँव के सभी परिवार की सूची बनने लगी। परिवार के लोगों का नाम नोट किया जाने लगा तो सिर्फ महिलाओं बच्चों और बूढ़ों के अतिरिक्त अधिकांश घरों में मर्दों की गिनती नगण्य थी।
डीएम सूची बद्ध आंकड़े पर चौंक उठे।गाँव की आबादी में पुरुषों की संख्या मात्र 20 प्रतिशत थी। उन्होंने मुखिया को बुलवाकर कारण पूछा।
मुखिया ने बताया - गाँव के अधिकांश युवक और प्रौढ़ गाँव छोड दिल्ली ,पंजाब ,गुजरात और बंगाल जाकर मजदूरी इत्यादि कर रहे हैं। गाँव में खेती बाड़ी से प्राप्त अनाज से तीन-चार माह से अधिक पेट नहीं पाल पाते हैं। भुखमरी से बचने के लिए यहाँ के लोगों के पास एक ही रास्ता बचता है गाँव से पलायन। गाँव में इस कारण मात्र महिलाएं, बूढ़े-बूढ़ियों एवं बच्चों की संख्या ही रह जाती है।
डीएम ने कहा यह सही नहीं है।सरकार रोज़ी रोज़गार मुहैया कर रही है।रियायती दर में ग़रीबों को खाने के अनाज,स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मध्याह्न भोजन,किताब,पोशाक व सायकिल दी जाती है।वृद्धावस्था पेंशन,घर ,शौचालय पानी,बिजली ,गैस रियायत में ,मनरेगा से काम,बैंक से लोन ,बीज पानी ,कृषियंत्र में सब्सिडी दी जाती है।इसके अलाने भी अनेक योजनाएं हैं।
मुखिया ने बताया इस बार डीजल की कीमतें बढ़ जाने से प्रति घंटा सिंचाई के दाम भी प्राइवेट पम्पसेट वालों ने बढ़ा दिये थे। खाद्य के ऊँचे दाम, ट्रैक्टर से मंहगी जुताई के बाद जब गेहूँ में बालियाँ आयी तो दाने नदारद थे। प्रमाणित बीज से फूटी बालियों में दानें नहीं, इतना बढ़ा सदमा कैसे कोई बर्दास्त कर सकता है। साल भर के भोजन के अनाज आंखों के सामने ही गायब हो गये। इसी कारण कमाने के लिए गाँव छोड़ गये हैं।
​ वास्तविकता जानकर डीएम के रोंगटे खड़े हो गये। उन्होंने मौके पर उपस्थित कृषि पदाधिकारी से जानकारी ली।
प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी ने घटना को सच बताया और जिला कृषि पदाधिकारी के पास रिपोर्ट भेजने की बात बतायी।
जिलाधिकारी मौन हो गये।
सुबह से बचाव में लगे समाज सेवी युवक सुमन लगातार बचाव में लगा था,अग्निशाम आफिस में फोन कर दमकल बुलवाया था,काफ़ी मुस्तैदी से राहत कर्मियों की भी मदद कर रहा था।डीएम ने अपने निकट बुलबाया।शाबासी दी।
सुमन ने वेझिजक डीएम को कहा,यदि गाँव में कुएं या तालाब होते तो और भी घर जलने से बचाये जा सकते थे। इस गाँव में सिर्फ चापाकल ही हैं। दमकल का पानी बीच में ख़त्म हो जाने पर दमकल दस्ते को आग बुझाने हेतु पानी नहीं मिला। दूसरे गाँव जाकर पानी लाना पड़ा। इससे समय नष्ट हुआ और कई घर बचाने से पहले ही जल गये। पोखर-तालाब होता तो आज इस आपदा के दिन काम आते। पर संचित पानी के ऐसे साधन उपलब्ध नहीं होने से भी आग का तांडव चलता रहा और स्थिति गंभीर बन गयी।समाज सेवी युवक की बातों में तथ्य छिपा था।
डीएम नर्मदेश्वर लाल ने सहमति जतायी। । पहले तो गाँवों में कुंए का पानी पीने का प्रचलन था।पर इस गाँव में एक भी कुंआं नहीं है ,यह तो बिल्कुल नयी बात है। प्रखंड स्तर पर भी कुंआं खोदा जाता था।
​ यह नया नया बसा गाँव है सर। गंगा कटाव में जमीन घर कट जाने के कारण ये सभी विस्थापित होकर यहाँ बसे हैं। इसलिए खर-फूस के घर हैं और पेय जल के लिए चापाकल की व्यवस्था अधिकांश परिवारों ने अपने ही खर्चों से किया है। कुंआ खुदने में तो काफी खर्च आता है।
देर रात एक पैकेज की योजना मन में लिए नर्मदेश्वर लाल कुंछ ज़रूरी हिदायत सरकारी कर्मियों को देकर देकर प्रस्थान किये।
शेष पदाधिकारी वहीं तैयार खाने पीने के पैकेट वितरण तथा टेंट इत्यादि की व्यवस्था में जुट गये।
पलायन किए गाँव के लोगों का लौटने का सिलसिला शुरू हो गया।
इस बीच विभिन्न विभागों के पदाधिकारियों की बैठकों के बाद एक फूलप्रूफ योजना लेकर डीएम नर्मदेश्वर लाल गाँव लौटे थे।सरकारी ज़मीन की पैमाइश हुई और तालाब बनाने का आदेश ज़िला मत्स्य को मिला ।गाँव में पम्पसेट का स्थान चिन्हित कर बीस हार्स पावर का समरसिबल मोटर लगाने का कार्य लघु सिँचाई विभाग ने शुरू किया।प्रधानमंत्री आवास योजना से घर बनाने की अनुमति जले घरों के बदले दी गयी।डीएम ने गाँव वालों की सभा बुलवायी।और स्पस्ट कहा-कोई भी व्यक्ति गाँव से पलायन नहीं करेगा।सब को यहीं कमाने का साधन दिया जायेगा।

मुक्तेश्वर प्र० सिंह