शाम से ही कल्याणी देवी की कोठी में हवन की तैयारी चल रही थी। कोठी में केवल शोर उन्हीं का शोर सुनाई दे रहा था। सभी मुलाजिम बड़ी ही तत्परता से घर के सारे काम निपटा रहे थे। कल्याणी देवी उतर प्रदेश के गाँव की सबसे धनी तथा संपन्न परिवार की महिला है। समूचे गाँव में सिर्फ उन्हीं की कोठी थी, इसलिए गाँव के लोग उन्हें 'कोठी वाली मालकिन' कहकर बुलाए थें। उनके पति जिले की कचहरी में वकील लगे थें। वह मरणोपरांत काफी ज़मीन-जायदाद छोड़ गए थे।
तभी मनोहर आकर बोला, "मालकिन सारी तैयारी हो चुकी है। सभी यजमानों का भोजन शुद्धता से पकाया जा चुका है। " "एक बात बोले मालकिन" मनोहर की आवाज़ में डर साफ़ झलक रहा था। हाँ, बोल! पहले इस घर में कितनी रौनक थी। अब बस आप और सोमेश बाबू ही रह गए हैं, इस बगीचे में कोयल तक नहीं कूकती।" कल्याणी देवी ने मनोहर को घूरकर देखा और कहा "तभी तो घर की सुख शांति के लिए अब साल में दो-तीन बार हवन करवाती हूँ। चल जा अपना काम कर।" "कृपा तो तभी नहीं हो रही" दबी आवाज में कहकर मनोहर चला गया।
"माँ कहाँ हो तुम? पंडितजी शिवप्रसाद की पत्नी गंभीर रूप से बीमार है उन्होंने आने से मना कर दिया और गाँव के सभी उच्च कुल के पंडित भी अष्टमी का हवन करवाने के उद्देश्य से व्यस्त है।" सोमेश एक ही सांस में बोल गया। "क्या! पूरे गाँव में हमारा इतना रसूख है।" "मैं अभी स्वयं जाकर एक उच्च कुल के ब्राह्मण पंडित को लेकर आती हूँ" कहकर पैर पटकती हुई कल्याणी देवी चली गई।
मंदिर पहुँचकर भी कोई उच्च कुल का ब्राह्मण नहीं मिला। एक गरीब ब्राह्मण पंडित दिखा जो भगवान राम की मूर्ति के आगे रामायण पढ़ रहा था। "पंडित जी राम-राम मुझे तो आप जानते होंगे मैं कल्याणी देवी। आज घर में हवन करवाना है चलिए।" "माई मैं गरीब ब्राह्मण मेरे राम के सिवा न मुझे कोई जानता न मैं किसी को जानता आपने ही मुझे प्रथम हवन करने का न्यौता दिया है।" ब्राह्मण ने कहा।
आपका कुल या जाति क्या है? कल्याणी देवी ने आश्चर्य से पूछा। "जी मैं तो अनाथ था मुझे मेरे पिता केशवचंद ने गोद ले लिया था तभी से ब्राह्मण कुल में आ गया था।" 'चले माताजी' ब्राह्मण यह कहकर उठ खड़ा हुआ। "आप रहने दो। वैसे भी घर में शांति नहीं है। और सारा सुख चैन खत्म हो जाएगा। पूरा घर भ्रष्ट हो जाएगा। गुस्से में बोलती हुई वह जाने लगी तो ब्राह्मण ने कहा, "कि माई सुख-शांति तो मन की होती है। हवन तो केवल एक संतुष्टि है उसका सुख शांति से क्या लेना देना है। जीवन भी एक हवन है जिसमे आहुति अपने मलिन विचारों की तथा संक्रीण सोच की डालो ताकि रात को नींद भी आये और बगीचे में चिड़िया भी चहचहचाहए।"
कल्याणी देवी अवाक ये सब बातें सुनकर भारी कदमो से घर ायी और आज कोई हवन नहीं हुआ। वह यही सोचती रह गयी कि क्या वह सुदामा ब्राह्मण सही कह रहा था। दो सालों से रंजना बहू ने केस डाला हुआ है कारण बेटे का बात-बात पर पीटना उसे विवश कर गया घर छोड़ने के लिए। बेटी सुप्रिया ने अंतरजातीय विवाह कर लिया।हालांकि दामाद विशाल अच्छा था समझदार बेटी और नाती को अच्छे से रख रहा था।उनकी भी इज़्ज़त करता था पर फिर भी बेटी से सारे सम्बन्ध तोड़ दिए। अपनी गरीब नौकरानी की बेटी की पढ़ाई की ख़िलाफ़त की। अपने बगीचे से गली के बच्चो को हमेशा नीच कहकर कभी आम नहीं दिए। साफ़-सफाई के चक्कर में गौरैया का घोंसला तोड़ दिया। अब कोई चिड़िया नहीं आती। देवर के मरने के बाद उसके दिल की बीमारी से जूझते शंकर को जायदाद का हिस्सा नहीं दिया। जोकि उसके पति उसके नाम कर गए थे। और इन्ही चिंताओं के चलते एक साल से हर बीमारी की दवाई खा रही है।और नींद की गोलियाँ खाए बिना रात को नींद नहीं आती है।
आज पूरे एक साल बाद फिर घर में चहल-पहल है हवन हो रहा है। पर इस बार घर की बहू ने सब ज़िम्मेदारी संभाल ली। जिसे कल्याणी देवी माफ़ी मांगकर और अपने बेटे को एक थप्पड़ रसीद करकर पत्नी की इज़्ज़त करना सिखा दिया। बेटी-दामाद से बातचीत शुरू कर दी। नौकरानी की बेटी नंदा का स्कूल में दाखिला करवा आई तो लगा गंगा नहा आयी है। गली के बच्चे बगीचे में खेलने लग गए हैं। चिड़ियाँ भी आँगन में चहकती है तो लगता है बुढ़ापा आसानी से कट जायेंगा। शंकर भी परिवार के साथ आया हुआ है। नाते-नातियों, पोते-पोतियों तथा सभी रिश्तेदारों के बच्चों से घर भरा-पूरा लग रहा है। और हवन वही ग़रीब सुदामा के हाथों संपन्न होगा, जो कल्याणी देवी को यह समझा चुका है कि हवन में आहुति की सामग्री क्या होती है।