Adrashya Humsafar - 6 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 6

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अदृश्य हमसफ़र - 6

अदृश्य हमसफ़र

भाग 6

अपने मृदुल और हँसमुख स्वभाव की वजह से अनुराग सभी घरवालों का दिल जीतता जा रहा था। पढ़ाई में होशियार तो था ही साथ ही किसी भी काम के लिए उनके पास न नही थी।

ममता असहाय सी देखती रहती लेकिन कुछ न कर पाती। धीरे धीरे ममता में अनुराग के प्रति ईर्ष्या बढ़ती जा रही थी। दिन रात उधेड़ बुन में रहती, इस बला से कैसे छुटकारा पाया जाए। सभी को तो अपने मोह में बांध लिया इस पिद्दी से लड़के ने। ऊपर से बाबा का हुक्म कि अनुराग से इज्जत से बात किया करो।

फिर अचानक एक दिन उसने एक योजना बनाई। उस रात ममता अपनी शरारत को अंजाम देने के लिए बराबर तरकीबें सोचती रही।

रविवार का दिन था । अमूमन देर से सोकर उठती थी लेकिन उस दिन जल्दी उठ गई या कहना चाहिए कि सुबह के इंतज़ार में शायद सोई ही नही। सुबह सुबह घर के पीछे बने बगीचे में पहुंच गई और सड़क की तरफ खुलने वाले दरवाजे को खुला छोड़ आई।

थोड़ी ही देर आवारा मवेशियों की भीड़ लग गयी और उन्होंने ढेर सारी खेती नष्ट कर डाली। घरेलू जरूरतों के हिसाब से सब्जियों और फलों के पेड़ थे जिन्हें आवारा पशुओं ने कुछ खाया कुछ कुचल डाला। जब तक घरवाले जाकर उन्हें भगाते वह काफी नुकसान कर चुके थे।

बगीचे को संभालते सम्भालते दोपहर हो चुकी थी । सभी थक कर चूर हो चुके थे और मन भी खिन्न थे।

नहा धोकर बैठक में बैठे तो काका ने सवाल दाग डाला--" आखिर बाड़ा किसने खोला। उसे तो हमेशा बन्द रखते हैं। "

कोई जवाब देता उझसे पहले ही मुन्नी मैडम उछल कर बीच मे आ गयी और उंगली अनुराग की तरफ उछाल दी।

सभी की गर्दन एक साथ अनुराग की तरफ घूम गयी।

मुन्नी के मन का मयूर नाच उठा कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। अब तो कड़ी सजा मिलेगी इसे। मन ही मन कुलबुलाती जा रही थी। "हुंह, आये थे बड़े । ममता को मुन्नी बना दिया और चंडी कहा। अब तो देखना बाबा इसे वापस छोड़ ही आयेगें। "

इधर ममता के मन मे लड्डू फूट रहे थे तो उधर अनुराग को काटो तो खून नही। चेहरे की गुलाबी रंगत पल में हल्दिया पीली पड़ गयी। हलक सूख गया लेकिन मुंह से ज़बान न निकली। बस गर्दन झुका कर खड़े हो गए और अपराध को अपनी मौन स्वीकृति दे डाली।

बाबा एक पल को चुप रह गए फिर उठे और अनुराग को अपनी तरफ खींचकर सीने से लगा लिया।
बाबा ने सांत्वना देते हुए कहा-" कोई बात नही बच्चे, ये गलती तो किसी से भी हो सकती थी फिर तुम तो अभी अभी रहने आये हो। घर के नियम कायदे भी अच्छे से नही जानते। अपनी स्वीकृति देकर तुमने अपना बड़प्पन दिखाया और तुम माफी के हकदार हो। आगे से ध्यान रखना मेरे बेटे। "
कहते हुए बाबा ने अनुराग को फिर से गले लगा लिया।

ममता के मुंह का स्वाद बिगड़ कर कसैला हो गया। कहाँ तो अनुराग को डांट लगवाना चाहती थी उल्टे ये तो बाबा की गोदी का हकदार बन गया।

ममता से सहन नही हुआ और दौड़कर बाबा की गोदी में चढ़ गई। उसकी इस हरकत पर बैठक में बैठे सभी परिवारजन हंस पड़े और ममता ने अपना मुंह बाबा की छाती से चिपका लिया।

सब्जियों और फलों के नष्ट होने की बात आई गयी हो गयी। ममता रोज नित नयी शरारत करती, इल्जाम उठाने के लिए अनु दा आगे आ जाते। धीरे धीरे घरवाले भी ममता की असुरक्षा की भावना से अवगत हो चुके थे अतः अनुराग को कोई कुछ न कहता। ममता कुढ़ कर राह जाती थी।

अनु दा तीनों बहन भाइयों की पढ़ने में मदद करते, खेलते वक़्त तीनो का ध्यान रखते, खाने के वक़्त तीनो को खिलाकर फिर खुद खाते। ममता में तो उनके प्राण अटके रहते थे। ममता का ऐसे ध्यान रखते जैसे उनकी जिंदगी में ममता से बढ़कर कोई नही। ऐसे ही खेलते कूदते चारों बच्चे बड़े हुए।

अनु दा का परिवार वहीं गांव में ही रहता था लेकिन अनु दा इस परिवार में ऐसे रमे की लौट ही नही पाये। बाबा का भरोसा भी अटल था अनु दा पर। बाबा की हर बात अनु दा के सर माथे पर रहती।

अनु दा स्नातक परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर चुके थे और अब सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर रहे थे। ममता 12वीं पास करके कालेज के सपनों में खोने लगी थी। दोनो भाई भी स्नातक हो चुके थे और उन्होंने बाबा के व्यापार में हाथ बटांना आरम्भ कर दिया था।

अनु दा ने परीक्षा पास की और वह द्वितीय श्रेणी के अधिकारी चुन लिए गए, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें ट्रेनिंग के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा।

इधर ममता के स्नातक होते ही उसके लिए मनोहर जी पसन्द कर लिए गए थे। अनु दा लड़ झगड़ कर छुट्टी लेकर आये थे ममता के ब्याह के लिये। ख़ूब भाग भाग कर हर एक काम को अंजाम दे रहे थे अनु दा। ममता की तो आदत बन चुके थे अनु दा। हर काम के लिए अनु दा पर निर्भर रहने की आदत थी उसे और अनु दा, उनकी तो जिंदगी का मकसद ही जैसे ममता को खुश रखना था। ममता के मुंह से बात निकलने की देर थी लेकिन अनु दा के पूरा करने में नही। ममता कितना भी लड़ती झगड़ती लेकिन उफ्फ तक नही करते थे अनु दा बस मुस्कुरा भर देते थे।

बाबा कभी कभी कहते थे अनु दा से-" अनुराग, एक तो यह लड़की पहले ही हम सभी की सिर चढ़ी थी ऊपर से तुमने इसे बिगाड़ कर रखा है। ससुराल में कैसे निभाएगी ये रिश्तों को। "
अनु दा मुस्कुरा कर कहते-" बाबा, आप कतई चिंता न करे। हाथों में राजयोग लेकर पैदा हुई है हमारी मुन्नी। सुंदर है, सुशील है, पढ़ने में तेज है, घरेलू कामों में दक्ष है, आखिर लाखों में एक है। माना बचपना है थोड़ा अभी लेकिन यह कोई बुरी बात तो नही। कितनी निश्छल है ये । देखिएगा आप ससुराल में भी सभी इसके आगे पीछे घूमेंगे। महारानी बनकर रहेगी हमारी मुंन्नी।

मैं हूँ न....आप मुन्नी की बिल्कुल चिंता न कीजिये। "

अनु दा की बातों से बाबा के चेहरे पर संतुष्टि के भाव स्पष्ट लक्षित होते थे।

एक एक करके दिन बीतते जा रहे थे और अंततः वह दिन भी आ पहुंचा जब मुन्नी को मायका छोड़ ससुराल की दहलीज में कदम रखना था।

क्रमश

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