Ek Kadam aatmnirbharta ki aur - 4 in Hindi Women Focused by डॉ अनामिका books and stories PDF | एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - 4

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एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - 4

चांदनी को अनामिका तब से जानती थी जब चांदनी चौथी कक्षा में पढती थी। तब अनामिका स्वयं 11र्वीं कक्षा में पढती थी। पढते हुए पढाना इतना आसान काम नहीं। जब उसने घर में नौकरी करने का प्रस्ताव रखा तो घर वाले उसके विरोध में हो गए। उस समय कोई भले ही युग आधुनिकता की अंधी दौड़ में अंधों की तरह भाग रहा है पर सोच वही संकीर्णता की बलिवेदी पर अपनी हविष चढाये जा रही थी। लोग भले ही अपने पंख पसार कर ऊंची उडान उड़ ले लेकिन अपना विस्तार वह स्वतंत्रता से नहीं कर सकता था। खासकर के Female person, उनके लिए नियम कानून के शिकंजे हथकियों के समान थे जो समय समय पर जकड़ जाया करते थे, फिर अनामिका कैसे बच सकती थी?
पर अनामिका ने भी मन ही मन में प्रण कर लिया था कि वह कुछ न कुछ ऐसा रास्ता निकालेेेगी जिससे नौकरी भी करेेेगी और ऊंची शिक्षा भी आसानी से प्राप्त करने में सफल हो जाएगी। वो कहते हैं न " जहाँ चाह वहाँ राह " या फिर " रास्ता उनका अवरुद्ध होता है जो दुसरो ं के बनाए रास्ते पर चलते हैं "। पर अनाामिका को बने बनाए रास्ते पसंद नहीं था।
कुछ ही दिनों में अनामिका ने अपना रास्ता बना लिया। वह सुबह स्कूल में पढाने जाती और दोपहर को college.पढने जाती...। समय इस तरह कुछ गुजरा कि समय को भी नहीं पता चला। इसी क्रम उसकी मुलाकात चांदनी हुई थी। वह भी कुछ इस तरह। स्कूल में Paper खत्म होने के कुछ ही दिनों के बाद Open house रखा गया। अनामिका तब कक्षा चौथी की वर्ग शिक्षिका थी। शनिवार का दिन था, paper...8 बजे सुबह से 10 बजे तक ही दिखाया जाना था। अत: अनामिका ने सारे paper's अनुक्रमणिका के अनुसार लगा लिया। ताकि पेपर दिखाने में आसानी हो। अब सारे पालक एक एक करके आने लगे अचानक एक आदमी लगभग शोर मचाते हुए वहाँ पहूँचा और बड़बडा़ते हुए कहा, " कहाँ पेपर देखना है? कौण हैए सांदनी (चांदनी) रो टिसर (टिचर) " पढाई लिखाई कोणी करै.. आन घडी घडी सकूल ने कैंय बोलावा भेजे है? " जा सडेलो पेपर शेपर हूँ देख के काय करो?
इस प्रकार की उटपटांग बात से पूरा क्लास रूम स्तब्ध रह गया। वहाँ बैठे सब पालक भी हैरान थे। कौन है ऐसा उदंड जो इसतरह फजूल की बातें कर रहा है? और पूरा स्कूल उसकी आवाज से डिस्टर्ब हो गया? बेचारी चांदनी कोने में दुबकी हुई चुपचाप खडी़ रही। अनामिका ने चांदनी के पेपर उसके पिता को दिखा दिया। पर उसके पिता की प्रतिक्रिया को देखकर वो हैरान हो गई। उसका पिता लगभग उसे स्कूल के कंपाउंड से घसीटते हुए और मारते ले गया। और अपशब्दों की तो लडी ही लगा रखी थी उसने। इस दृश्य से अनामिका ही नहीं सभी शिक्षक हैरान थे। स्कूल के प्यून जब चुप रहने को कहा तो चांदनी का पिता और फट पड़ा। इसलिए सब चुप ही रहे। अनामिका को कुछ गड़बड़ लगा। उसने महसूस किया की कोई भी बच्चा, अपने पिता से इस कदर नहीं डरता, चांदनी की आंखों में एक विचित्र खौफ था। रात भर अनामिका सो न सकी, इसी सोच में की कल सवेरे वो चांदनी को विश्वास में लेकर उसकी समस्या पूछेगी।
दुसरे दिन जब चांदनी स्कूल आयी तब अनामिका ने उसे अपने पास उसे बडे़ प्यार से बुलाया और पूछ ताछ की लेकिन चांदनी से ज्यादा कुछ पता न लगा सकी। ऐसा लगता था कि चांदनी का मूंह जबरदस्ती किसी ने बांध रखा है। कभी कभी चांदनी खुश दिखती और कभी कभी एकदम चुप। इस बीच अनामिका ने बहुत प्रयास किया की चांदनी कुछ बता दे पर नहीं, चांदनी ने ठान ही लिया था कि कुछ नहीं बताना है।
धीरे-धीरे समय आगे की ओर बढता गया। अब चांदनी आठवीं कक्षा में पढ रही थी। एक दिन की बात है चांदनी जब कक्षा में आयी तो बहुत उदास थी। पूछने पर वह कुछ बताती तो थी नहीं इसलिए उस दिन अनामिका ने पूछा नहीं। लेकिन उस दिन से उसने नोटिस किया की चांदनी के शरीर में अजीबोगरीब परिवर्तन आने लगा। कभी चांदनी के होठ और आंखों के नीचे छिला और कटा रहता था। वह अब washroom भी बार बार जाती थी। पर अनामिका के पूछने पर भी कुछ न बताती।मानो चांदनी ने ,न बोलने की कसम खा रखी थी। एक ही वाक्य बार बार दुहराती, " मैडम जी मैं एकदम ठीक हूँ आप परेशान न हों".। अब अनामिका भी 14कक्षा में आ चुकी थी इसलिए उसने अपना ध्यान पढाई में लगा दिया। उन दिनों चांदनी की कक्षा में अनामिका सिर्फ हिंदी पढाने जाया करती थी, अब फाइनल इयर आने वाला था अत: उसे स्कूल छोडना पडा। पर स्कूल की कुछ छात्राओं ने अनामिका का नंबर ले रखा था। कुछ लड़कियाँ बहुत मिलनसार थीं उसे आज भी उनका नाम याद है... रिंकल, श्वेता, संगीता, अंजू, संजू, जया, डिंपल, नंदनी इत्यादि... स्कूल में लडके भी पढते थे पर किसी का नाम याद नहीं। खैर, वक्त गुजर गया.. बहुत तेज गति से, अब अनामिका ने एम ए में एडमिशन ले लिया था। college का टाइम बहुत ज्यादा था 10 से 3 इसलिए अनामिका को अब नौकरी से अलविदा कहना पडा और वह पढाई में ध्यान लगाने लगी।
लगभग दो साल तक तो स्कूल की लडकियाँ अनामिका से बात करतीं रही उनसे ही चांदनी के बारे में पता लगा लेती थी। समय पंख लगाकर उडता रहा स्कूली लडकियों की एक एक करके शादी हो गई। अनामिका निश्चिंत हो गई उसे लगा की चांदनी की भी शादी हो गई होगी, लेकिन एक दिन मुंबई के लोकल ट्रेन में चांदनी मिल गई।
अनामिका ने बडे़ प्यार से उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा कैसी हो बेटा? मैंने तो तुमसे मिलने की उम्मीद ही छोड़ बैठी थी मुझे लगा तुम्हारी भी शादी हो गई होगी.....
इतना कहना था कि चांदनी का रोना शुरू हो गया। अनामिका फौरन चांदनी को लेकर अंधेरी स्टेशन उतर गई। वह एक रेस्टोरेंट में बैठकर उसे समझाना चाहती थी और ऐसा किया भी। इस सहानुभूति की उम्मीद चांदनी को नहीं थी। चांदनी जब शांत हुई तब उसने सारा किस्सा कह सुनाया। उसने कहा, "मैडम जिसे आपने उस दिन विद्यालय में देखा था वो मेरा पिता नहीं... मेरा चाचा है मेरे पिता के गुजर जाने के बाद मेरा दादा जी ने मेरी माँ पर रहम खाकर उनसे शादी करवा दी। जब मैं दुसरी कक्षा में थी तब से ये चाचा मेरे खाने में कुछ नशीला पदार्थ मिला कर मुझे खाना खिलाया करता था वह भी अपने हाथ से। और रोज मेरा बलात्कार करता था। तब मुझे कुछ समझ नहीं आता था सिवाय पीडा़ के लेकिन जब मैं चौथी कक्षा में गई, तब नशीली गोलियों का उपयोग किए बिना इसने बलात्कार करना शुरू कर दिया। जब भी मैं बचाव के लिए चिल्लाती और किसी से बताने का प्रयास करती वह उसे जान से मारने की धमकी देता। न जाने कई
बार ऐसा लगा मेरी माँ को भी यह बात मालूम है। क्योंकि जब जब मैने उसे बताने का प्रयास किया उसने मेरी बात अनसुनी की...
एक दिन तंग आकर मैने चाचा को धमकाया, " हूँ थारे हे कुकर्म रो कहानी सबको बता दूँगी....
देख जैसी वा बाततने किसी ने कही",... तो उसको भी जान से मार देने दूंगा...
मैडम आपके चले जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली हो गई थी। मेरी सभी सहेलियों की शादी हो गई... लेकिन ये राक्षस मेरी शादी नहीं कराने देता है... वह मेरी माँ से हमेशा कहता है, "जो थारी बेटी को ससुराल में मिलेगा.. वो चिज मै यही ं दिला देता हूँ तो काहे कि शादी वादी...... "
फिर जोर जोर से हंसता है... यही कारण है मैडम आपके लाख पूछने पर मैं आपको कुछ बता न सकी...
क्या आप मुझे इस नर्क से छुटकारा दिलवा सकतीं है ं.... मैं जीना चाहती हूँ मरना नहीं... प्लीज आप मेरी मदद करें......
अनामिका हैरान हो गई... पूरा वाकया सुनकर....
लेकिन वह स्वयं अपरिपक्व थी... सोच में पड गई कैसे चांदनी की मदद करे... वह तुरंत एक मानवाधिकार के कार्यालय में ले गई जहाँ से चांदनी को एक बलात्कारी से मुक्ति दिलवा सके... उसी ज्ञान अनामिका ने प्रण किया की वह स्वयं एक संस्था बनाएगी... "एक कदम आत्म निर्भरता की ओर ".....
जिसमें पिडित नारी को न्याय मिल सके...........
आज अनामिका अपने इस कार्य में संलग्न है....