Adhura prem - 2 in Hindi Love Stories by Suresh Maurya books and stories PDF | अधूरा प्रेम - भाग 2

Featured Books
Categories
Share

अधूरा प्रेम - भाग 2

वहां जाकर वो क्या कि एक बहुत पूराना टुटा फुटा खण्डर महल है उसके चारों तरफ कि पेड़ पौधे सूख गए है ।वह महल के अंदर गया क्योंकि आवाज अंदर से आ रही थी।वह महल का दरवाजा खोला तो तमाम पारसी फड़फड़ाते हुए बाहर उड़े !वह अन्दर गया ,कौ ,कौन है यहां पर ; वह चीखता हुआ चारों तरफ देख रहा था। वहां पर दिखा तो कोई नहीं मगर उसे बहुत सुंदर, सुनहरे रंग के एक स्त्री कि मुर्ती दिखाई दी।वह पास गया , कुछ देर तक ध्यान से देखता रहा ।कमाल है!इतने पूराने महल में सिर्फ ये प्यारी सी मुर्ती है,सच में अचम्भव वाली बात है किसने बनाया होगा इसे , ये कहते हुए मुर्ती के चेहरे पर अपना हाथ रखा । उसनेे जैसे ही मुर्ती को स्पर्श किया , आशमान जोर से गर्जने लगा , बिजली भी चमकने से पीछे नहीं हटी , हवा का इक झोंका आया और झोंके के साथ निर्जीव मुर्ती एक अतिखूबसूरत, रूपवान राजकुमारी के रूप में परिवर्तित हो गई । वह स्त्री इतनी खूबसूरत थी, ऐसा लग रहा था कि अंबर से कोई परी आ गई है । उसके साथ - साथ पूराना महल एक बड़ा राजमहल में बदल गया, पेड़ पौधे हरियाली के साथ फूलों से महकने लगे। लेकिन एक बात समझ में नहीं आयी उस राजकुमारी के काली आंखों से आंसू क्यों आ रही थी , ऐसा लग रहा था कि मानो बहुत दुखयारी हो वह एकटक नज़रों से उसे देख रही थी ।उसे देख कर वह युवक डर के पीछे हटने लगा । राजकुमार अंगध्वज आप आ गये !रोते हुए वह स्त्री बोली ।
युवक - कौ , कौन हो तुम ? कौन अंगध्वज , कौन राजकुमार ! दूूर रहो , पास मेरे आओ ।
स्त्री - ये कैसी बातें कर रहे हो आप ! मुझसे पूूंंछ रहे हो कौन हूं मैं क्या आप मुझे नहीं जानते , अपनी चंद्रकिरण को नहीं पहचानते ? आप इस महल के राजकुमार अंगध्वज है। युवक - आपको धोखा हो रहा है , मैं कहीं का राजकुमार नहीं हू ! और न ही अंगध्वज , मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है में अकेेला मुझे अपने माता-पिता के बारे में नहीं पता।तो आपको कैसे पहचानूंगा ।देखो मुझे जाने दो ! मैं फिर दोबारा यहां पर नहीं आऊंगा , मुझे माफ़ कर दो
स्त्री - बस करो अगर आप यही बार बार कहोगे कि मैं तुम्हें नहीं जानता तो प्राण निकल जायेंगे । तुम्हें मालूम नही कि हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे । यहां तक कि हम दोनों कि शादी हो रही थी ।लेकिन भगवान को शायद मंजूर नहीं था , और शादी बर्बादी में बदल गई।आज तुम 500साल के बाद वापस आये हो तो कहते हो कि मैं तुम्हें नहीं जानता हूं ।देेखो उस तस्वीर को (
दीवार पर कुछ तस्वीरें दीखाते हुए) क्या अब भी तुम कहोगे कि मैं तुम्हें नहीं जानता।
तस्वीर को देखकर उसे पिछले जन्म कि सारी बातें याद आ गई । चंद्रकिरण मुझे सबकुछ याद आ गया मैं ही अंगध्वज हूं और तुम मेरी चंद्रकिरण हो । (फिर चंद्रकिरण दौड़कर अंगध्वज के गले से लग गई "कहां चले गए थे मुझे छोड़कर" अब हम कहीं नहीं जायेंगे !चलो उस काम को पूरा करें जो छोड़ कर गए थे। फिर उनदोनो शादी कर लिए )। दोस्तों आज कि कहानी यहीं तक
फिर अगले भाग में मिलेंगे ।
* Suresh Maury *