Us - Badnaam Galiya in Odia Poems by Apurva Raghuvansh books and stories PDF | उस - बदनाम गलियों

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उस - बदनाम गलियों

जो वक्त बीतने पर नहीं है आए

आज कहते हैं कि हम वक्त पर है

उनसे अब क्या उम्मीद रखें

जो कसमें खाते हैं रोज

आज भी वो झूठे वादे कर कर

अपनी बदनाम गलियों में चले गए

उन्हें लगता है कि हमें कुछ मालूम नहीं

यह उनका नहीं वक्त का दोष है

हमने उन्हें कभी बताया ही नहीं

तूने बदनाम गलियों से हम वाकिफ बहुत हैं

किस तरह रोज बिकती है

दो रोटी पर

आबरू रोज

और कहते हैं कि वह बदनाम गलियां नहीं

हमारे जीने का अंदाज है

उनसे अब हम क्या कहे

आपके जीने के अंदाज में

कईयों घर रोज उजड़ जाते हैं

कईयों की खुशियां मिट्टी में दफन हो जाती है

कईयों तो सदियों तक

प्यासे भूखे मर जाते हैं

उन बदनाम गलियों की

सिफारिश जो तुम आज करते हो

उनकी कहानियां तो बड़ी पुरानी है

बड़ी निराली है

कभी वक्त मिले तो

सुनने नहीं जरूर आऊंगा

पर आपकी एक ही बात हमें समझ नहीं आती

कि आप उन बदनाम गलियों में

बार-बार क्यों जाते हो

शोहरत की गर्मी

अगर आप में बहुत है

तो आओ मैदान में

हम भी देखते हैं कितना दम है

बाजुओं में

चलो तुम यही कर देना

कि

किसी एक का भला कर देना

हम समझेंगे कि तुम जीत गए

हम हार गए

पर मैं जानता हूं

कि तुमसे यह नहीं हो पाएगा

क्योंकि तुम्हें तो आदत है

सामने पैसा फेकने कि

जो तुमसे लेने आएंगे

फेंके हुए पैसे नहीं उठाएंगे

भले उनमें हो कमजोरी पर

उनकी अस्मिता नहीं है छोटी

तुम भले बड़े हो

पर वह नहीं है छोटे

वह कभी किसी से कहते नहीं

बस सुनते हैं

क्योंकि उनमें है एक शक्ति

जो लड़ सके तुम जैसे भूखे दरिंदों से

जो दो रोटी के लिए

आबरू लूटते हो

और मंचों पर चढ़कर

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे लगाते हो

यह कौन लोग हैं

जो इन गलियों से निकल कर

तुम तक पहुंच नहीं पहच पाते

क्योंकि इनमें वह नहीं है

जो तुम में है

भले ही इनके कपड़े फटे हैं

चप्पल टूटी हुई है

बदन से बू आती हो

नाखून गंदे हो

और ओठ सूखे और काले

पर

दिल तो हीरे की तरह होता है

कुछ चंद यथार्थवादी

जन्म लिए हैं इस संसार में

वह कहते हैं

भला दिल को देख पाते हैं कौन

दिल चाहे जितना गंदा है

तन पर माएल नहीं होनी चाहिए

तन पर ब्रांडेड कपड़े होनी चाहिए

पर इन्हें ब्रांडेड कपड़े देगा कौन

पूछने पर मौन धारण कर लेते

यह नहीं बोलेंगे क्योंकि

हमारे हिस्से के कपड़े और खाने तो

इनके जीजा और साले खाते हैं

आराम की जिंदगी की आदत हो गई है

और हम भी कुछ कम नहीं

इनको आराम की जिंदगी

हर पंचवर्षीय योजना में दे देते हैं

कहते हैं भला मेरे एक वोट से क्या होगा

पर हम यह नहीं जानते है

जब मिला निनानबे में एक

तभी हुआ है सौ

नहीं तो वह रह गया है

नीनानबे ही

लेकिन भैया हमें क्या है

इन सब से

हमें तो उन बदनाम गलियों की आदत है

बस दुख होता है उनके हालात को देखकर

जो बिकती है रोज बाजारों में