Kahan gai tum naina - 15 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कहाँ गईं तुम नैना - 15

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कहाँ गईं तुम नैना - 15

 
             कहाँ गईं तुम नैना (15)


नैना भावुक हो गई। उसकी आँखें नम हो गईं।
"मैं नहीं जानती थी कि संजय के फ्लैट में जाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित होगी। आने वाले नारकीय दिनों से बेखबर मैं आने वाले जीवन के बारे में सोंचने के लिए वहाँ चली गई।"
आदित्य ने उठ कर उसे संभाला। ढांढस पाकर नैना ने आगे कहना शुरू किया....

नैना संजय के फ्लैट में पहुँच गई। यहाँ किसी तरह का बंधन नहीं था। वह अपने हिसाब से उठ बैठ सकती थी। अब वह सामान्य महसूस कर रही थी। उसे संजय के फ्लैट में आए चार दिन हो गए थे। नैना अपने फैसले पर पहुँच गई थी कि वह आदित्य के पास जाकर उससे अपने किए की माफी मांगेगी। रात के साढ़े आठ बजे थे। अगली सुबह ही निकलने के इरादे से वह जाने की तैयारी करने लगी। 
फ्लैट की डोरबेल बजी। उसने दरवाज़ा खोला तो सामने संजय को देख कर आश्चर्य में पड़ गई। संजय ने बताया कि कोर्स समाप्त होने पर उसने सोंचा कि चल कर तुम्हारा हाल पूँछ लूँ। तुम्हें किसी चीज़ की ज़रूरत तो नहीं। नैना ने उसे अपने फ्लैट में रहने देने के लिए शुक्रिया अदा किया। उसने संजय को बता दिया कि वह कल सुबह ही आदित्य के पास जा रही है। संजय ने उसके फैसले पर खुशी जताई। 
संजय और नैना बैठ कर बातें करने लगे। करीब दस बजे नैना ने सोने जाने की इच्छा जताई। इस पर संजय ने कहा कि वह कुछ देर और बैठे। वह कॉफी बना कर लाता है। उसके आदित्य के पास जाने के बाद दोनों को बैठ कर बात करने का मौका मिले या ना मिले। नैना मान गई। कुछ ही देर में संजय कॉफी के दो मग लेकर आया। एक मग उसने नैना की तरफ बढ़ा दिया।
एक बार फिर दोनों बातें करने लगे। नैना ने संजय से पूँछा कि विपासना सेंटर में उसका अपना अनुभव कैसा रहा। संजय ने कहा कि वह अभी कुछ कह नहीं सकता। बाद में हो सकता है कि कुछ फर्क लगे। फिर इधर उधर की बातें करते हुए नैना ने कहा।
"तुम्हारा फ्लैट तो शानदार है। हर किसी के नसीब में लग्ज़री अपार्टमेंट में फ्लैट लेना नहीं होता। यू आर लकी..."
"लकी होता तो तुम मेरे प्यार को क्यों ठुकरातीं। हम इस फ्लैट में अपना संसार बसाते।"
संजय ने नैना की तरफ देखा। वह समझ नहीं पा रही थी कि संजय अचानक ये बात क्यों करने लगा।
"अभी भी सोंच लो नैना। आदित्य को छोड़ कर मुझे अपना लो। खुश रहोगी।"
संजय की बात सुनते ही नैना तमतमा गई। कॉफी का खाली मग मेज़ पर पटक कर बोली। 
"तुमको मैं पहले ही समझा चुकी हूँ कि यह सपना मत देखो। अब तो मुझे आदित्य के पास जाने से कोई रोक नहीं सकता। मैं सुबह नहीं अभी निकल रही हूँ।"
कह कर नैना जैसे ही उठी लड़खड़ा कर सोफे पर गिर गई। वह बेहोश हो गई। 
होश में आई तो खुद को बेडरूम में पाया। उसके हाथ पांव बंधे थे। संजय उसके सामने बैठा था। नैना उसकी इस हिमाकत पर चिल्लाने लगी। 
"क्या करूँ तुमने ही मजबूर किया। मैं तो तुम्हें प्यार देना चाहता था। दुनिया का हर सुख तुम्हारे कदमों में रखना चाहता था। पर जानता था कि तुम मानोगी नहीं। इसलिए कॉफी में बेहोशी की दवा मिला दी। अब तुम कहीं नहीं जाओगी।"
"पागल हो तुम कब तक मुझे यहाँ रख पाओगे। आदित्य को खबर लगेगी तो वह मुझे लेने ज़रूर आएगा। मैंने चित्रा को उसका नंबर दिया है। तब मुझे लगता था कि कोई और मेरी जान के पीछे पड़ा है। पर अब लगता है कि वह धमकियां तुम दिला रहे थे।"
"सही पहचाना तुमने। पहले तो नहीं लेकिन जब तुमने मेरा प्यार ठुकराया तब मैंने तुम्हें कमज़ोर करने के लिए धमकियां दिलाईं। तुमने कमज़ोर होकर दोबारा मुझसे दोस्ती कर ली।"
"मुझे नहीं पता था कि तुम इतने नीच हो। पर कुछ भी कर लो। मैं तुम्हारी बात कभी नहीं मानूँगी।"

नैना की बात सुन कर संजय उत्तेजित होकर चिल्लाने लगा।
"कैसे नहीं मानोगी तुम ? मानना ही होगा तुमको। तुम औरतें क्या समझती हो मुझे। जब चाहो मुझे ठुकरा दोगी। तुम, सागरिका और वो भावना तुम सब मेरी भावनाओं से खेलोगी।"
संजय सोलह साल का था। उसके क्लास में भावना घोष पढ़ती थी। भावना की सुंदरता ने उसके किशोर मन में पहले प्यार का बीज बो दिया। वह देखने में ठीक ठाक था। अमीर घर से था। जबकी भावना के पिता सरकारी दफ्तर में बाबू थे। 
संजय क्लास में बैठा सिर्फ उसे ही देखता रहता था। पढ़ाई से ध्यान हटने के कारण क्लास टेस्ट में उसके नंबर कम आने लगे थे। जबकी भावना हमेशा अव्वल रहती थी। सभी उसकी तारीफ करते थे। लड़के उसके आसपास मंडराने के बहाने तवाशते थे। इसका भावना को बहुत घमंड था। 
संजय चाहता था कि वह अपने मन की बात भावना को बता दे। लेकिन जब भी वह इरादा कर भावना के पास जाता उसकी हिम्मत जवाब दे जाती थी। 
भावना के सामने अपनी बात ना कह पाने के कारण वह मन ही मन बहुत परेशान रहने लगा था। उसके शिक्षक हों या माता पिता सभी फिक्रमंद थे। पर वह किसी को कुछ बता नहीं सकता था। बहुत सोंच कर उसने भावना से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक तरीका ढूंढ़ निकाला।
रात भर जाग कर उसने अपने हाथ से एक कार्ड बनाया। उसमें अपने दिल का हाल लिख दिया। रीसेस के समय उसने वह कार्ड भावना को दे दिया। 
संजय बाहर ग्राउंड में बैठा था। उसे भावना आती दिखाई पड़ी। उसके हाथ में कार्ड था और चेहरे पर मुस्कन। संजय खुश हो गया। उसे लगा कि जो कुछ उसने लिखा उसे पढ़ कर भावना को बुरा नहीं लगा। वह पास आती भावना को देखता रहा। 
संजय के पास आकर भावना मुस्कुराई। उसके बाद आसपास के लोगों को संबंधित कर बोली।
"दोस्तों मुझे आपसे कुछ कहना है। ज़रा पास आइए।"
संजय समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करने वाली है। सब आसपास इकठ्ठे हो गए। थे। भावना ने संजय की तरफ देख कर कहा।
"क्लास के सबसे फिसड्डी श्रीमान संजय घोषाल ने क्लास की टॉपर यानि कि मुझसे अपने प्यार का इज़हार किया है। देखिए कितना रंग बिरंगा कार्ड बनाया है।"
कह कर उसने कार्ड लहरा कर सबको दिखाया। 
"अब संजय मोशाय मेरा जवाब सुनने को तरस रहे होंगे। तो देती हूँ मैं जवाब..."
यह कह कर भावना ने कार्ड के टुकड़े टुकड़े कर संजय के मुंह पर मार दिए। एक ज़ोरदार ठहाका गूंज उठा। उसके बीच से भावना दंभ में भरी चली जा रही थी। 
जीवन में पहली बार संजय को अपना अस्तित्व बहुत हीन लग रहा था। उसे लग रहा था कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे वह सबकी नज़रों से ओझल हो जाए। 
भावना के उस व्यवहार ने संजय को बहुत चोट पहुँचाई थी। बहुत समय लगा उसे इस चोट से उबरने में। लेकिन इस घटना ने उसके व्यक्तित्व के एक हिस्से को बुरी तरह कुचल दिया था। लड़कियों के प्रति उसके मन में एक प्रकार का गुस्सा घर कर गया था। वह लड़कियों से दूर रहने लगा था। चाहें वो उसकी कज़िन्स ही क्यों ना हों।
जब तक वह कॉलेज में नैना से नहीं मिला और उसके दोस्ताना व्यवहार ने संजय के दिल पर मरहम नहीं लगाया। तब तक यह सिलसिला चलता रहा। नैना की दोस्ती ने फिर से उसके मन में प्यार का फूल खिलाया। लेकिन वह उसे अपने दिल में संजोए चुप रहा।