Adrashya Humsafar - 2 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 2

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अदृश्य हमसफ़र - 2

अदृश्य हमसफ़र

भाग 2

आज उसे मनोहर जी की बहुत याद आ रही थी। 5 बरस पहले अचानक ह्र्दयगति रुकने के कारण मनोहर जी ममता को सदा के लिए छोड़कर चले गए थे। उनके जाने के एक महीने बाद रस्म निभाने की खातिर मायके आयी थी। ममता की दोनों भाभियों का रो रोकर बुरा हाल हो गया था। दोनो भाई न रो पाए और न चुप रह पाए। ममता उनकी मनस्थिति को बखूबी समझ पा रही थी। बड़ी भाभी कहती जा रही थी --" ममता ये सूनी मांग देखी नही जा रही। इतनी सजी धजी रहने वाली मेरी बन्नो का ये सादा रूप मेरी रूह को कचोट रहा है। "

वह खुद पर किसी तरह काबू किये जा रही थी जानती थी उसका रोना तो वहाँ तूफान ला देगा। छोटी भाभी उठकर अंदर गयी और वापस आकर एक छोटी सी बिंदी ममता के माथे पर लगा दी।

छोटी भाभी के उठाये इस कदम ने वहाँ बैठी बड़ी बुढियों को बोलने का अवसर से दिया।

"ये विधवा हो चुकी है, बिंदी का हक़ नही रहा इसे। "

"कुलच्छनी, ये क्या कर डाला?"

लेकिन छोटी भाभी टस से मस न हुई।

जिद्दी तो आरम्भ से ही थी लेकिन उसकी ज़िद हमेशा सही कामों को लेकर होती थी। यही एकमात्र कारण भी था कि उसकी ज़िद पूरी की जाती थी। जब छोटी भाभी का विरोध बढ़ने लगा तब बड़ी भाभी बीच मे आई और दोनों भाई भी साथ मे खड़े हो गए और कहने लगे -"सुनीता(छोटी भाभी) ने कुछ गलत नही किया है। धर्म शास्त्र भी पुरुषों ने ही लिखे हैं जिसमें उनका बस चलता तो महिलाओं से जीने का हक़ भी छीन लेते। हमारी बहन ठीक वैसे ही रहेगी जैसे जीजाजी के सामने रहती थी। मनोहर जी कहीं नही गए वह आज भी हमारी मुन्नी के साथ यहीं मौजूद है। कोई इस बात का विरोध नही करेगा। जिज्जी बिंदी लगाएगी। '

बड़े भैया ने जैसे मुनादी कर दी थी। उनकी बात काटने की हिम्मत न घर मे किसी की थी और न ही मोहल्ले में। उस पल ममता उठी और भाई के गले से लगकर जो रोइ तो सारी भड़ास निकलने के बाद ही चुप हो पाई।

" मुन्नी" अचानक उसके कंधे पर पीछे से किसी ने हाथ रखा तो चिहुंक कर वर्तमान में लौटी।

ममता ने मुड़कर देखा तो उसके अनुराग दादा खड़े थे।

ममता-" क्या अनु दा आपने तो डरा दिया। "

बड़े ही शिकायती लहजे में गर्दन को झटकते हुए ममता सोफे से उठ खड़ी हुई।

ममता ने गौर से देखा तो अनुराग का चेहरा पीला पड़ चुका था। आंखे अंदर की और धंसी हुई थी। कभी भरे भरे रहने वाले गाल अब पिचक कर अंदर धंस चुके थे। चेहरे पर मुस्कुराहट थी मगर बेहद फीकी।

ऐसा लगा उसे जैसे या तो जीने की उमंग खत्म हो चुकी थी या फिर एक बहादुर योद्धा अनवरत जंग से थक कर टूट चुका था।

ममता की आंखें आश्चर्य से फैल सी गयी। हाल कुछ ऐसा था कि अगर आवाज से नही पहचान पाती तो चेहरे से शायद ही पहचानती।

"ये क्या हाल बना रखा है आपने अनु दा?"-- ममता की आवाज में दर्द था।

अनुराग ने अपने अंदर उठती दर्द की लहर को पीने की कोशिश की लेकिन दर्द था जो अब छिपना नही चाहता था और कोशिशों को नाकाम कर चेहरे पर झलक आया।

बड़ी कठिनाई ने कह पाये --" मुन्नी, लगता है दिन पूरे हो गए हैं मेरे। अगली दफा जब मायके आओगी तो शायद नही मिलूँगा। सोचा आखिरी बार दर्शन कर लूँ। "

ममता की आत्मा तड़प उठी ये बात सुनकर। तुरन्त कह उठी--"नही दा, ऐसे न कहिये।

ममता अनुराग से पूरे 32 साल बाद मिल रही थी। अपनी शादी में उन्हें भाग भाग कर काम करते देखा था, उसके बाद जब भी मायके आयी अनुराग उसके सामने नही आये। हर बार किसी न किसी काम का बहाना करके छुप जाते थे। ममता भी समझ नही पाती थी कि उससे ऐसी क्या गलती हुई जो उसके अनु दा उससे मिलने ही नही आते।

अचानक संगीत की तेज धुन से ममता होश में आई अन्यथा अनुराग की बातों से सकते में आ चुकी थी। उसने तुरंत अनुराग का हाथ पकड़ा और सहारा देकर सोफे पर बैठा दिया। खुद एक कुर्सी लेकर उनके सामने बैठ गयी।

शादी की गहमागहमी मची थी। बारात जयमाला के लिए ड्योढ़ी पर आने ही वाली थी। भतीजी अनु सँग हर पल ममता को रहना था और ऊपर से अनु दा की बातें। सुलझी और समझदार ममता भी पूर्णतः उलझ कर बैठ गयी।

"हे रामजी, ये अनु दा क्या कह रहे हैं?"

"आखिरी हुआ क्या है इनको?"

मंथन मथने पर उतारू था और माहौल की रौनक बढ़ती जा रही थी। तभी बड़े भैया ममता के पास पहुंचे और कहने लगे-" जिज्जी, आप ड्राइवर के साथ जाइये और अनु को पार्लर से ले आइए। जयमाला में देर नही है अब। अनु का फोन आ चुका है वह भी तैयार हो चुकी है। "

ममता--" जी भाई, बस जाकर आती हूँ। "

फिर अनुराग की तरह मुखातिब होते हुए कहने लगी -"अनु दा, अभी बातों का वक़्त नही है। अनु की बिदाई के बाद आपके सामने बैठ कर फुर्सत से सुनूँगी। "

अनुराग ने हल्की मुस्कान के साथ हाँ में गर्दन हिला दी।

ममता ने तुरन्त ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहा और घर के अंदर चली गयी। अंदर पड़ौस की चाची को किसी से कहते सुना कि अनुराग को कैंसर है और वह भी लास्ट स्टेज का। चाची बड़ी दयनीय आवाज में अनुराग की हालत बयां करती जा रही थी जिसे सुनकर ममता जड़ होती जा रही थी। ममता को लगा जैसे उसके घुटने खुद ब खुद मुड़ते जा रहे हैं औऱ उनकी जान खत्म हो चली थी लेकिन वक़्त ने ममता को बहुत हिम्मती बना दिया था। खुद को जल्दी से संभाल ममता भाभी से अपना पर्स ले गाड़ी की तरफ लगभग दौड़ पड़ी।

अनु के ब्याह की खुशी पर अनुराग की बीमारी की चिंता हावी हो चुकी थी।

गाड़ी में बैठी ममता अतीत के पन्ने पलटती जा रही थी। मानसिक अवसाद घेरने लगा था उसको और उसकी आंखें बंद हो चली थी।

आंखों के पटल पर उभरी तस्वीर अनु दा की, जब पहली बार उसके घर में कदम रखा था। महज 7 साल की उम्र थी ममता की। घर भर की लाडली औऱ अव्वल दर्जे की शरारती थी। एक जना किसी बात पर नाराज होता तो दूसरा हिमायती खड़ा हो जाता। संयुक्त परिवार का पूरा पूरा फायदा ममता को मिलता था।

नाज और नखरे ऐसे---एक से बढ़कर दूजा जैसे।

बाबा ने जब कहा कि आज से अनुराग हमारे साथ रहेगा तो उसने ऊपर से नीचे तक मुआयना कर डाला था। गोरा रंग, तीखे नयन नख्श, मोटी मोटी आंखें, घुंघराले बाल,

चेहरे पर बहुत हल्की बारीक सी मूंछों की परछाई सी, चेहरा मासूमियत और शराफत से भरपूर और इकहरा बदन।

कुल मिलाकर बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे अनुराग।

"ये हमारे घर क्यों रहेगें बाबा ?"

"क्या इनका अपना घर नही है?" ममता के सवाल को बालसुलभ जिज्ञासा समझ बाबा ने टाल दिया।
अनुराग के लिए सूरज भैया के साथ उनके कमरे में रहने की व्यवस्था कर दी गयी।

माँ ने पूछा था कि क्या कारण है अनुराग को लाने का तो बाबा ने कहा--" होनहार बच्चा है, पढ़ने में बहुत तेज है।

गांव में बिजली जाती रहती है हमारे घर में फिर भी जनरेटर का इंतजाम है। सूरज को भी पढ़ने में मदद मिल जाया करेगी। गरीब ब्राह्मण का बच्चा है। जिंदगी बन जाएगी इसकी। "

अनुराग की भोली सूरत भी माँ के मन मे बस गयी और अनुराग ब्राह्मण बालक होकर ठाकुर परिवार का सदस्य बन गया।

क्रमशः

***