Jang-A-Jindagi - 8 in Hindi Love Stories by radha books and stories PDF | जंग-ए-जिंदगी - 8

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जंग-ए-जिंदगी - 8

जंग ए जिंदगी 8




"सरदार वीरप्पन" डाकू रानी की प्रतिज्ञा से बहुत ही गुस्से हो गया।नाराज हो गया। इसलिए "पलट साम्राज्य" पर उसने अपना कहर दुगना कर दिया। ताकि कोई प्रजा सरदार वीरप्पन के सामने अपना सर उचाना करें।


लेकिन सरदार वीरप्पन के एक आदमी वह  सरदार वीरप्पन का "दाया हाथ" है वह 35 साल का परमचंद्र यह सब देख नहीं सका उसने सोचा सरदार वीरप्पन कभी ऐसे आदमी नहीं थे तो फिर ऐसा क्यों? उसने क्यों स्त्री या बच्चे और वृद्ध लोगों पर अपना कहर बरसाना शुरू किया?


हमने पहले से ही तय किया हम चाहे जिंदगी भर लोगों को पीटते रहे मारते रहे कहर बरसाती रहे मगर हमारे बीच हमारे काम के बीच "ना हम बच्चों को स्त्रियां और वृद्ध लोगों को बीच नहीं लाएंगे" मगर सरदार वीरप्पन मति मर गई उसने बच्चे स्त्रियां और वृद्ध लोगों पर कहर बरसाना शुरू किया







मुझे लगता है अब सरदार वीरप्पन का सूर्यास्त होने को है वरना उसकी मति कभी नहीं मरती वह ऐसा कभी नहीं करता फिर भी मैं अपने सरदार को सूचित करूंगा उसे समझाउगा यह सब ठीक नहीं है




तुम्हें समझआ रहा है ना बेटा  वीरचंद्र। फिर वीर चंद्र बोला बापू हमें सब कुछ समझ आ रहा है लेकिन क्या आपको लगता है कि सरदार आपकी बात सुनेंगे?


आजकल उसका बड़ा साथी डाकू "नरोत्तम" है और "नरोत्तम एक नालायक हलकट और नीच कक्षा का आदमी है"।वह स्त्रियों को युवतियों को बुरी नजर से देखता है और हर बार उससे अपने शारीरिक इच्छा पूरी करने के बारे में सोचता है



उसने पूरी तरह से सरदार को अपनी बातों में ले लिया है सरदार के मन को जुठ्ठी बातों से पकड़ कर रखा है ऐसे में अगर आप सच्चाई कासामना सरदार को करवाएंगे? फिर भी मुझे नहीं लगता कि सरदार आपकी बात को समझेंगे आपकी बात को मानेंगे उल्टा वह आप पर बरसेंगे








मुझे सब कुछ पता है वीर चंद्र फिर भी मैं अपने सरदार के साथ गद्दारी नहीं करूंगा मैं उसे असलियत सच्चाई बता कर रहूगा वीर चंद्र बोला ठीक है बाबू अगर आप चाहते हैं तो ऐसा कीजिए फिर भी मैं आपके साथ रहूंगा क्योंकि मुझे ना डाकू नरोत्तम पर भरोसा है ना ही सरदार पर। फिर परम चंद्र बोला ठीक है तू मेरे आस-पास रहेगा मगर छुप कर मेरी सुरक्षा के लिए वीर चंद्र बोला जैसी आपकी इच्छा बापू। मैं ऐसा ही करूंगा फिर परम चंद्र और वीर चंद्र सरदार को मिलने चले








पलट साम्राज्य की राज महल में सरदार वीरप्पन के कक्ष में परम चंद्र ने प्रवेश किया परम चंद्र ने सरदार वीरप्पन को अपना प्रणाम किया सरदार वीरप्पन ने भी अपने मित्र और बहुत पुराने दोस्त को साथी को प्रणाम किया और बोले तुम मुझे कुछ बताना चाहते हो ऐसा मुझे लगता है



परम चंद्र परम चंद्र बोला जी सरदार मैं आपको कुछ बताने वास्ते ही यहां पहुंचा हूं बस आप मेरी बात ध्यान से सुनना और उस पर सोच समझकर निर्णय लेना तभी डाकू नरोत्तम और दूसरे साथी परम चंद्र और सरदार की बातें छिपकर सुन रहें







परम चंद्र बोला आप मेरे सरदार है और मेरे मित्र भी है इसलिए मैं आपसे यह बात बताने की हिमाकत करता हूं आप मेरे सरदार है मैंने आप का अन्न खाया है मैंने सोचा मैं आपके साथ गद्दारी नहीं कर सकता हूं

इसलिए मैंने बड़ी सोच समझकर यह बात आपको बताने के लिए अपने मन को तैयार किया है





तभी सरदार वीरप्पन बोले तुम मेरे दोस्त हो और तुम ऐसे कैसे कह सकते हो कि तुमने मेरा अन्न खाया है तुमने भी उतनी ही मेहनत की है जितनी मैंने मेहनत की है तुम इस  साम्राज्य पर आधे हिस्सेदार हो और मैं इस बात से मुंह नहीं मोड़ सकता हु  फिर भी तुम मुझे अपना सरदार मानते हो यही मेरा बड़भाग है लेकिन मैं तुम्हें अपना परम मित्र समझता हूं





डाकू नरोत्तम और उसके साथी यह सब कुछ सुन रहे उसने अपने साथी मित्र को छिपकर आवाज किए बिना खड़े रहने के लिए कहा फिर




परम चंद्र बोला सरदार आजकल आप डाकू नरोत्तम के साथ रहते हैं मुझे उनसे कोई एतराज नहीं है ना ही मुझे कोई जलन है और ना ही मुझे कोई शिकवा है ना ही कोई गिला है फिर भी आजकल आप वह कर रहे हैं जो नहीं करना चाहिए




सरदार बोले ऐसा मैंने क्या कर दिया कि तुम इतनी संदिग्धता से बात को ले रहे हो



परम चंद्र बोला सरदार आजकल पलट साम्राज्य में स्त्रियों पर अत्याचार हो रहा है बच्चों को भूखा और नंगा धूप में भीख मंगवाई जा रही है वृद्ध पर कहर बरसाया जा रहा है वह गलत है वह सरासर गलत है



हमने पहले ही तय किया था कि हमारे इस डाकू के पेशे में न स्त्रियां आएगी ना बच्चे आएंगे और ना ही वृद्ध आएंगे वह सब हमारे लिए आदरणीय होंगे फिर भी पलट साम्राज्य में ऐसा क्यों हो रहा है?




तभी डाकू नरोत्तम ने प्रवेश किया और बोले सरदार छोटा मुंह बड़ी बात लेकिन आपका परम मित्र जो बोल रहा है वह ठीक नहीं है आपने इस नियम का पालन किया इस प्रतिज्ञा का पालन किया आज तक ताकि आपके सामने कोई सर ऊंचा करने वाला नहीं था




लेकिन अब आपके सामने सर ऊंचा कर लिया है भानूपुर की राजकुमारी ने वह खुद आप को पराजित करने के लिए डाकू रानी बन चुकी है वह कड़ी से कड़ी तालीम ले रही है उसने राजकुमारी की सभी वैभव का त्याग कर दिया है वह एक सैनिक की भाती तालीम ले रही है वह खुद को इतना दुखी कर रही है ताकि वह कभी पीछे हटना सकें और




सुनने में आया है कि जब वह भागी तब उसके साथी 200 थे लेकिन अब उसके साथ 500 लोग हैं उसकी सेना दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है 6 महीने में 300 लोग उसके साथ जुड़ गए अगर इसी तरीके से राजकुमारी दिशा के साथ लोग जुड़ते रहेंगे तो 1 दिन सच में डाकू रानी यानी भानु पुर की राजकुमारी दिशा की प्रतिज्ञा पूरी हो जाएगी और




वह सच में इस दुनिया से डाकुओं के अस्तित्व को खत्म कर देंगे और ऐसे ही सर हमारे सामने ऊंचे होते रहेंगे फिर हम क्या करेंगे ?




इसीलिए सरदार यह सब करना बहुत आवश्यक है हम वृद्धों पर कहर बरसायेगे बच्चों पर अत्याचार करेंगे स्त्रियों की इज्जत के साथ खेलेंगे तभी सभी युवान हमारे सामने आने से पहले एक बार नही सो बार अपने  माता-पिता के बारे में उसके बच्चे के बारे में उसकी पत्नी के बारे में सोचेंगे उसकी बहन के बारे में सोचेंगे और वह डाकू के सामने अपना सर कभी नहीं उठेगा




तभी परम चंद्र बोला सरदार यह सब गलत है ऐसा नहीं करना चाहिए डाकू नरोत्तम हवस खोर है और स्त्रियों को अपना निशाना बनाता है अपनी हवस  की इच्छा पूरी करने के लिए और स्त्री और युवती की इज्जत के साथ खेलना नाइंसाफी है



ऐसा नहीं करना चाहिए यह गलत बात है आप ही सोचिए सरदार हमने जो तय किया था उसके मुताबिक हम काम नहीं हो रहा  हैं और अगर नरोत्तम ने हमारी प्रतिज्ञा को तोड़ने की कोशिश की तो हम उसे जीवित नहीं छोड़ेंगे फिर उसने अपनी तलवार निकाली फिर





सरदार बोले बस करो परम चंद्र






डाकू नरोत्तम जो कह रहा है वह सच है हमने जो प्रतिज्ञा ली तब हमारे सामने सर ऊंचा करने वाला कोई नहीं था लेकिन अब राजकुमारी ने हमारे सामने सर ऊंचा कर लिया है 6 महीने में उसने बहुत सारे लोगों को अपने साथ जोड़ लिया है






जब वह भागी तो 200 लोग थे और अब  500 है अगर ऐसे ही राजकुमारी दिशा की गिनती बढ़ती गई तो वह सच में अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लेंगी और इस दुनिया से डाकुओं के अस्तित्व खत्म कर देंगी।




इसलिए यह सब करना बहुत आवश्यक है और मैं तुम्हें इजाजत देता हूं कि तुम जो सोच रहे हो वह सच है तुम ऐसा ही करो स्त्रियों और युवतियों के साथ उनके शरीर के साथ उनकी इज्जत के साथ खेलो ताकि कोई भी युवान लहू खोलने से पहले वह सौ बार सोचे कि उसके घर में उसकी बूढ़े मां बाप है उसकी एक बहन है उसकी पत्नी भी है और बच्चे भी है उसका क्या हाल होगा?



और इसी तरह कहर बरसाते रहो ताकि कोई युवान लहू हमारे सामने और हम से टकराने से पहले सौ बार सोचे और सौ बार जीते जी मर जाए






फिर परम चंद्र बोले सरदार में यह कहर  नहीं होने दूंगा मैं नरोत्तम को जिंदा जमीन में गाड़ दूंगा लेकिन मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूंगा जैसे ही परम चंद्र ने अपनी तलवार नरोत्तम पर रखी परम चंद्र को डाकू ने घेर लिया परम चंद्र अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहा है और उस में कामयाबी हो रहा है





उसने तीन चार लोगों को गिरा दिया तीन-चार लोगों को घायल भी कर दिया फिर भी डाकू के सामने टक्कर नहीं मिल पाए दूसरे 2/3 डाकू ने उसे घायल कर दिया तभी उसका बेटा वीरचन्द्र आया और जांबाज सिपाही जांबाज डाकू अपने बापू की रक्षा के लिए दोनों हाथों से तलवार चलाने शुरू की और एक के बाद एक के बाद एक बहुत सारे डाकुओं को मार गिराया और




सरदार वीरप्पन और उनके नई साथी नरोत्तम के सामने अपने बापू को ले गया और यह भी कह गया "याद रखना वीरप्पन नरोत्तम में अपने बापू के साथ जो हुआ उसका बदला में अवश्य लूंगा" और





वीरप्पन तो ऐसा नहीं समझना कि तू यहां तक पहुंचा वह तुम्हारी मेहनत है। वह मेरे बापू की मेहनत थीं। वह मेरे बापू की इमानदारी थी और वह मेरे बापू की प्रतिज्ञा थी सच्चाई का साथ था इसीलिए इसलिए तो यहां तक पहुंचा




लेकिन यह सब अब "गुजर" गया अब "था" हो गया इसलिए अब ना तुम्हारे साथ सच्चाई है ना बाबू की सच्ची प्रतिज्ञा है अब आज से तुम्हारा सूर्यास्त शुरू। अपनी गिनती शुरू कर दो मैं वापस आऊंगा और इस पलट साम्राज्य पर डाकुओं के साम्राज्य विनाश कर दूंगा



वीर चंद्र अपने बापू को लेकर घने जंगल में भाग गया वह भागते भागते  इतना भागा इतना भागा उसके पीछे डाकू की 4/5 टुकड़ी है वह अपने बापू को बचाते बचाते घोड़े पर सवार लूह से लथपथ भागने लगा जब उसका घोड़ा और असक्षम हो गया तब उसने अपने बापु को अपने कंधे पर ले लिया और फिर वह भागने लगा घने जंगल में छुपते छुपाते सैनिकों से आंख मिचोली खेलते खेलते वह बहुत दूर तक पहुंच गया और फिर दोनों बेहोश हो गए और वह बेहोश हुए वहां डाकू रानी का अड्डा है।