किसी समय में सभी को अपना समझने वाले इस पूरे संसार के लोग अब इतने ज़्यादा मतलबी हो गये हैं कि कुछ कहा नही जा सकता।अब ऐसा समय आ गया है कि, अगर कोई मर रहा हो, कोई डूब रहा हो, तो लोग उसकी जान नही बचाएंगे। बल्कि उसे डूबने देंगे ताकि उसकी डूबते हुए की वीडियो रिकॉर्ड कर सकें।
मनुष्य पर बुरा समय आने पर उसके ख़ास अपने लोग भी उस मनुष्य का साथ छोड़ देंते हैं। तो इस दुनिया से तुम क्या उम्मीद कर सकते हो। जो हमेशा अपने आपको बदलती रहती है, किसी कामयाब इन्सान के लिए। अगर मैं अपने जीवन में बहुत कामयाब शख़्स हूँ तो पूरी दुनिया मेरी तरफ़ हो जाएगी। क्योंकि मेरे पास सब कुछ है और मैं एक कामयाब व्यक्ति हूँ।
और यदि मुझ पर बुरा समय आ जाए तो ये दुनिया पल भर मेरा साथ छोड़ देगी। क्योंकि दुनिया के लोग ये बात बहुत ही अच्छे से जानते हैं, कि बुरे वक़्त में व्यक्ति मदद् का ग्राहक होता है। और ये दुनिया वाले उस व्यक्ति को मदद् देना ही नही चाहते। क्योंकि उस व्यक्ति पर उस बुरे समय में सिवाय मदद् मांगने कुछ और नही होता है।
इस बात को और भी ज़्यादा अच्छे से समझने के लिए इस कहानी को पढ़ते हैं-:>
क़रीब दो वर्ष पहले की बात है। जब मैं कक्षा बारहवीं की बोर्ड परिक्षा दे रहा था। और मेरे हाथ में चोट लगी हुई थी। वो दरअसल परिक्षा शुरू होने से चार दिन पहले दिवाली का त्यौहार था। प्रत्येक बार की भांति उस बार भी दिवाली के त्यौहार पर मैं और मेरे परिवार ने ख़ूब मज़े किये।
सब चीज़ अच्छे से होने के बाद मैं रात को क़रीब साढे ग्यारह बजे अपने एक साथी के साथ एक अाख़िरी पटाखे को फोड़ने घर से कुछ दूर खाली स्थान पर चला गया। और वहॉं जाकर हमने जैसे ही उस पटाखे को फोडने के लिए उसके सिरे में आग लगाई, तो मेरे भागने से पहले ही वो पटाखा फट गया। और मैं उस पटाखे की चपेट में आ गया। जिसके कारण मेरे हाथों में थोड़ी बहुत चोट लग गई। मेरे साथ जो मेरा दोस्त था, उसे बम-पटाखों से बहुत डर लगता था। इसलिए वो दूर खड़ा होकर पटाखे का फटने का इन्तज़ार कर रहा था।
उसने ये देखा कि मैं उस पटाखे से चोटिल हो गया हूँ। तो वो तुरन्त मेरे पास आया, और मेरा मज़ाक उड़ाने लगा। कहने लगा कि ' क्यों अब क्या हुआ। और फोड़ पटाखे।' और ज़ोर-ज़ोर से मुझ पर हसँने लगा।
मुझे विश्वास नही हो रहा था, कि मुझ पर संकट आने पर मेरा अपना ख़ास दोस्त बजाय मेरी मदद् करने के, उल्टा मुझ पर हँस रहा है।
मेरे हाथों में चोट लगने से मैं कुछ नही कर पा रहा था। और बद्क़िस्मती से चार दिन बाद मेरी परिक्षा शुरू होने जा रही थीं। और मैं बहुत परेशान था ये सोचकर कि परिक्षा में लिखूँगा कैसे.?
परिक्षा का दिन भी आ गया। लेकिन हाथ अभी भी ऐसे ही थे।
परिक्षा शुरू होने से पहले मैने सभी से विनती की, कि कोई मेरी परिक्षा की कॉपी पर लिखाई कर दो। हर प्रश्न का उत्तर मैं दूँगा। तुम्हे बस लिखना ही है। मेरे हाथों में चोट लगने के कारण मैं लिखाई नही कर सकता।' लेकिन किसी ने भी मेरी मदद् नही की। और परिक्षा में कुछ नही लिखने के कारण मैं फ़ेल हो गया।
उस दिन मुझे महसूस हुआ कि ' परेशानी में अपना हो या पराया कोई भी काम नही आता।'
मुसिबत में सभी 'सगे-सम्बंधी' साथ छोड़ देते हैं।
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मंजीत सिंह गौहर