vaishya vritant - 8 in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | वैश्या वृतांत - 8

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वैश्या वृतांत - 8

छेड़छाड: एक प्रति -शोध प्रलाप

 यशवन्त कोठारी

आज मैं छेड़छाड़ का जिक्र करूंगा। छेड़छाड़ हमारी सांस्कृतिक विरासत है, जिसे बेटा बिना बाप के बताए भी सीख और समझ जाता है। मुछों की रेख आई नहीं कि लड़का छेड़छाड़ संबंधी अध्ययन में उलझ जाता है और यह लट तब तक नहीं सुलझती, जब तक कि लड़के विशेष की शादी विशेष नहीं हो जाती। कुछ मामलों में यह शादी नामक घटना या दुर्घटना हवालात में भी संपन्न होती है।

साबुन की किसमों की तरह छेड़छाड़ की भी कई किसमें होती है। जैसे बाजारू छेड़छाड़, घरेलू छेड़छाड़, दफ्तरी छेड़छाड़, फिल्मी छेड़छाड़ साहित्यिक छेड़छाड़, आर्थिक छेड़छाड़, राजनीतिक छेड़छाड़, पारिवारिक छेड़छाड़ और पाठकीय छेड़छाड़ बगैरह, वगैरह।

मैं चाहूं तो इस प्रत्येक छेड़छाड़ पर एक-एक निबंध अलग से लिख सकता हूं मगर मैं ऐसा नहीं करूंगा।

अब आप पूछ सकते हैं कि छेड़छाड़ क्या है ? तो सीधा-सा जवाब ये है मेरे भाई, कि आपस में हंसी-ठिठोली, नोक-झोंक, वाक-बाणों का आदान-प्रदान आदि। लेकिन यदाकदा मामला आगे बढ़ जाता है और जैसा कि आपने फिलमों में देखा होगा, छेड़-छाड़ का परिणाम चप्पलीकरण तथा सें डलीकरण भी हो जाता है। वैसे खाकसार को इस विशेष छेड़छाड़ का कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है छेड़छाड़ इस जंबू द्धीप में ही नहीं, समस्त संसार में अनादिकाल से चली आ रही है। आदम और हव्वा ने एक-दूसरे को छेड़ा और परिणाम है आज की सृष्टि।

रामायण में सूर्पणखा ने लक्ष्मण और राम को छेड़ा था, परिणामस्वरूप सूर्पणखा को अपनी नाक कटानी पड़ी। रावण ने सीता को छेड़ा। परिणामस्वरूप राम-रावण युद्ध हुआ। त्रेता युग से आगे चले तो द्वापर युग आता है और इस युग में कृष्ण सबसे बड़े छेड़ने वाले मशहूर हुए। कृष्ण ने पनघट पर गोपियों को छेड़ने का जो सिलसिला चलाया वो आज तक चल रहा है। रासलीला के रूप में कृष्ण ने गोपियों को छेड़ा और अनंतकाल तक छेड़ते रहे। गोपियां तंग आ कर नाराज हो गई। तभी से यह गाना भी मशहूर हो गया-‘मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे।‘

कृष्ण अपनी रसिक छेड़छाड़ में ही व्यस्त रहे हो , ऐसा नहीं है। द्वापर में ही महाभारत में द्रौपदी ने अपने देवर दुर्योधन को छेड़ा। इस छेड़छाड़ से मामला द्रौपदी के चीरहरण तक बढ़ा और परिणामस्वरूप महाभारत हुआ।

अब आया कलिकाल सो इस काल में छेड़ने की कला में संख्यात्मक विस्तार हुआ और गुणात्मक हास हुआ। कबीर जैसे संत ने पूरे समाज को छेड़ा और इतना छेड़ा कि समाज की बोलती बंद कर दी। सूरदास ने अपने श्याम सलोने से छेड़छाड़ की। अकबर ने बीरबल से छेड़छाड़ की। महाराणा प्रताप ने अकबर को छेड़ा। शिवाजी ने औरंगजेब को छेड़ा। गांधीजी ने अंग्रेजों को छेड़ा और उनको देश छोड़ना पड़ा।

लेकिन आजकल प्रकृति से की जा रही छेड़छाड़ से पर्यावरण नाराज है और पृथ्वी के विनाश की संभावना बढ़ गई है। सूखा, बाढ़, अकाल, महामारी, गैस रिसाव आदि की छेड़छाड़ प्राकृतिक है। विकसित देश विकासशील देशो से छेड़छाड़ करते रहते हैं। पड़ोसी पड़ोसी से छेड़छाड़ करता है। राजनीतिक दल आपस में छेड़छाड़ करते रहते हैं। सरकार जनता से छेड़छाड़ करती हैं और जनता पांच वर्षों में एक बार सरकार से ऐसी छेड़छाड़ करती है कि सरकार चारों खाने चित्त गिरती है। अखबार वाले भी छेड़छाड़ करते रहते हैं।

छेड़छाड़ शोध के सिलसिले में मैंने और भी अनेक अध्याय लिखे हैं, इन में प्रमुख है पारिवारिक छेड़छाड़ का अध्याय। एक कर्कशा पत्नी जब पति से छेड़छाड़ करती है तो नजारा अलग ही होता है। नए ब्याहता जोड़े जो छेड़छाड़ करते हैं, उसे केवल अनुभव किया जा सकता है। वैसे जीजा-साली की छेड़छाड़, ननद-भौजाई की छेड़छाड़, सलहज-ननदोई की छेड़छाड़ का भी अपना एक रंग और मिठास है। देवर-भाभी की छेड़छाड़ के बारे में एक महिला का कहना है कि देवर जो दे वर का काम। क्या ख्याल है आपका जनाब ?

छेड़छाड़ का एक और पहलू है सास, बहू की तकरार जो घर को नरक और घर वालों को स्वर्गवासी बनाने की हिम्मत रखती है। फागुन का मौसम छेड़छाड़ के लिए श्रेष्ठ माना गया है। वैसे मकर संक्रांति से सीजन शुरू हो जाता है फिर वसंत पंचमी और फिर होली पर तो छेड़छाड़ एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की तरह की जाती है।

वैसे छेड़छाड़ में वास्तविक स्थिति तब है जबकि छिड़ने वाला व्यक्ति बात का मजा ले। ये नहीं की ठूंठ की तरह खड़ा रहे। कभी-कभी अफसर भी अपने मातहत को छेड़ते हैं और सी.आर. के मौसम में यदि कोई अफसर किसी बाबू को कलम से छेड़ तो बेचारा बाबू जिंदगी भर रोता रहता है। कभी-कभी छेड़छाड़ के लिए तबादले रूपी अस्त्र का भी प्रयोग किया जाता है। दफ्तरी छेड़छाड़ का एक और नमूना है- महिलओं को छेड़ना। बॉस उनहें चैंबर में बुलाता है, कॉफी पिलाता है, शाम को पिक्चर के लिए आमंत्रित करता है और कुछ दिनों के बाद महिलाकर्मी की प्रमोशन हो जाती है। महिलाओं की आपसी छेड़छाड़ सुनने का अपना ही मजा होता है। अक्सर वे सिर जोड़ कर हल्के फुसफुसाहट वाले स्वर में जो बातें करती हैं वे अश्लील छेड़छाड़ के अंतर्गत आती है। सड़क पर चलती लड़की को छेड़ने वाले बाजारू छेड़छाड़ करते हैं। कलेजे से एक सिसकारी निकलती है और पान की दुकान तक चली जाती है, लेकिन यह छेड़छाड़ अक्सर महंगी पड़ती है।

अक्सर सड़कों पर गुजरने वाली लड़कियां, महिलाओं को इस ‘इव टीजिंग’ का सामना करना पड़ता है। खुशवंत सिंह ने चिकौटीबाज जैसी शानदार कहानी इसी पर लिखी है। छेड़छाड़ के लिए कोई सीटी बजाता है, कोई आंख मटकाता है, कोई पासमें हेलो कह कर निकल जाता है, कोई बार-बार मुस्कराता है और कोई शरीफ बेचारा नमस्कार करता है।

महिलाओं को छेड़ना कुछ लेाग अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। वे इसे लोक-कला का दर्जा देते हैं, मगर कुछ महिलाएं ऐसी होती हैं जिन्हें छेड़ने की हिम्मत अछों-अचछो में नहीं होती और यदाकदा ये महिलाएं ही किसी को छेड़ती हैं और छिड़ने वाला पुरुष भी उस गली में फिर नजर नहीं आता।

सरे राह चलते-चलते यूं ही किसी का मिल जाना, आंहें भरना, फिकरे कसना, शेरोशायरी का ऊंची आवाज में आलाप लेना आदि छेड़छाड़ के आधुनिक तरीके हैं। और अक्सर छेड़ने वाले कृष्ण कन्हैया चप्पलों , सैंडलों से सत्कार पाते हैं। छेड़छाड़ पर शोध के सिलसिले में मैंने एक पुलिस अफसर से बातचीत की। वे एक अलबम बना रहे हैं, जिसमें शहर के सभी शोहदों की तस्वीर हो। बसों में छेड़छाड़ करने वालों को भी वे थाने में भर्ती करने की सोच रहे हैं। एक मनोचिकित्सक के अनुसार पिछड़े वर्ग का भारतीय मानस छेड़छाड़ से अपना पिछड़ापन दूर करता चाहता है, मगर उसके सर के बाल दूर हो जाते हैं।

वैसे थोड़ी बहुत छेड़छाड़ दिल को सुकून देती है। मन को प्रफुल्लित करती है और होली का मजा दुगुना कर देती है।

आप तो जानते ही हैं, हम व्यंग्यकार तो साल भर छेड़छाड़ करते ही रहते हैं, न करें तो खाएं क्या। {मगर आप गलत समझे} हम तो पापी पेट के लिए छेड़छाड़ करते हैं-कभी संपादक से कभी पाठकों से और कभी अपने आप से।

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यशवन्त कोठारी 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-302002 फोनः9414461207