जून की चिलचिलाती धूप में सुधा अभी घर के बाहर पहुँची ही थी कि उसे घर के अंदर से कुछ आवाजें सुनाई दीं । उसकी जेठानी और पड़ौसन बैठी उसी की बातें कर रही थीं । उसकी जेठानी कह रही थी – “अरे बहन क्या बताऊँ, नई देवरानी तो कुछ काम ही नहीं करती है । महारानी सुबह फैशन करके सात बजे निकल जाती है और शाम को सात बजे घर पधारती है । ये सुनते ही थकी हारी सुधा का मन मसोस कर रह गया ।
सुधा की शादी हुए अभी एक महीना ही हुआ था । उसका ऑफिस घर से काफी दूर था । आने-जाने में ही लगभग चार घंटे लग जाते थे और ऊपर से घर का कामकाज । थक कर चूर हो जाती थी । अपने घर की लाडली, संस्कारों में पली सुधा बहुत ही सुलझी, पढ़ी -लिखी लड़की थी । इक बार तो मन हुआ कि बैठक में जाकर, उनकी बात का जबाब दे । पर फिर माँ – बाप के दिए संस्कार आड़े आ गए । चुपचाप अपना पर्स अपने कमरे में रख, वह रसोई की तरफ़ शाम का चाय – नाश्ता बनाने और रात के खाने की तैयारी करने को चली गयी ।
सुधा के परिवार में यूँ तो सभी अच्छे थे, पर सास के न होने कारण घर की बागडोर उसकी जेठानी के हाथ में थी जोकि कम पढ़ी-लिखी और झगड़ालू किस्म की महिला थी । सुधा के मिलनसार और पढ़ी-लिखी होने की वजह से उसकी जेठानी की कुण्ठा और बढ़ गयी थी । वह घर में किसी न किसी बहाने लड़ाई का माहौल बनाए ही रखती थी । घर की शान्ति बनाये रखने की खातिर, उसके जेठ, ससुर और ननद भी हर बात पर चुप्पी साधे रहते थे ।
इस प्रकार के माहौल की आदत न होने के कारण और अत्याधिक कामकाज के बोझ से सुधा की सेहत भी गिरने लगी । सुधा के पति समीर दूसरे शहर में नौकरी करते थे और सप्ताह के अंत में ही घर आ पाते थे इसलिये सुधा अपने मायके भी न जा पाती थी । तीन – चार महीने बाद जब वह मायके गई तो उसके माता-पिता भी उसका चेहरा देख कर हैरान रह गए । बेटी के घर के मामले में दखल देना उन्हें सही न लगा, पर जाते वक़्त उन्होंने सुधा को किसी से भी अन्यथा न दबने की सलाह दी और उसे विश्वास दिलाया कि उसके किसी भी कदम में वे सदा उसके साथ हैं ।
समीर भी समझदार थे और अपने घर के हालात से भलीभाँति परिचित थे । उन्होंने सुधा को समझाते हुए कहा भी कि काम उतना ही करो जितना सम्भव है और अगर कोई बात गलत लगे तो उसका विरोध करो वरना हालात और खराब हो जायेंगे । पर सुधा पर तो आदर्श बहू बनने का भूत समाया था । उसे लगा कि शायद उसका अच्छा व्यवहार उसकी जेठानी को भी बदल ले ।
इधर घर में सुधा की जेठानी की ज्यादतियां भी बढ़ने लगीं । वह लगातार बीमारी का बहाना लिए सुबह – शाम सोई रहती या इधर – उधर घूमने निकल जाती । बात -बात पर ताने देना, रिश्ते – नातेदारों के सामने सुधा को नीचा दिखना उसकी आदत में शामिल हो गया था । हद तो तब हो गई जब एक दिन उन्होंने सुधा पर हाथ उठा दिया । पर वो शायद सुधा की बर्दाश्त की इंतिहा थी । उसी तेजी से झन्नाटेदार आवाज़ के साथ सुधा का हाथ भी अपनी जेठानी के मुँह पर पड़ा और उसके साथ ही उसका ऊँचा स्वर सुनायी दिया – “मेरे चुप रहने को मेरी कमजोरी समझना आपकी भूल थी । मैं जो इज्जत आपको दे रही थी, आप उसकी हकदार ही न थी । अगर आगे से गलती से भी मुझे परेशान किया, मैं पुलिस में कम्प्लेन कर दूँगी । ”
घर के सभी लोग सुधा का ये नया रूप देख कर हैरत में पड़ गये और सोच रहे थे कि अगर सुधा ने शुरूँ में ही गलत व्यवहार का विरोध किया होता तो शायद उसकी जेठानी की इतनी हिम्मत न बढ़ती ।
और सुधा सोच रही थी कि अगर घर वाले शुरु से ही उसका साथ देते, तो शायद घर के हालात इतने बुरे न होते ।
जिस घर की शान्ति बनाए रखने के लिए सुधा ने इतना सहा था, वो पल भर में ख़त्म हो गयी थी ।
आखिर गलती किसकी थी ?
अंजु गुप्ता