The Author Sarvesh Saxena Follow Current Read पागल By Sarvesh Saxena Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books किताब - एक अनमोल खज़ाना पुस्तक या मोबाइल "मित्र! तुम दिन भर पढ़ते रहते हो! आज रविवार... अपराध ही अपराध - भाग 7 (अध्याय 7) पिछला सारांश- कार्तिका इंडस्ट्रीज में नौकरी लगी ह... जिंदगी के पन्ने - 8 रागिनी का छोटा भाई अब एक साल का होने वाला था और उसका पहला जन... जंगल - भाग 12 ( 12) ... इश्क दा मारा - 26 MLA साहब की बाते सुन कर गीतिका के घर वालों को बहुत ही गुस्सा... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share पागल (19) 1.9k 8.3k 2 अभी कुछ ही देर हुई थी मुझे दुकान खोले कि बच्चों का शोर, सीटी और तालियां सुनाई देने लगी, दुकान से बाहर आकर देखा तो फिर वही रोज की कहानी, ये आजकल के बच्चे भी ना जरा भी भावनाये नहीं होतीं इनमे और बच्चे ही क्यों उनके साथ बड़े तो और भी ज्यादा l सब रोहित के पीछे भाग भाग के तरह तरह की बातें करते चले आ रहे थे, कुछ तो छोटी कंकड़ी चलाते कुछ एकदम से पीछे भागते और रुक जाते तो कुछ अजीब अजीब आवाज निकालते जिनसे रोहित परेशान होकर चिल्लाता और अजीब अजीब हरकतें करता और तब उस पर सब हंसते और मजा उड़ाते l रोहित.. उसका वह भोला भाला चेहरा और खामोश नज़रें मुझे अब भी याद हैं, अक्सर दुकान पर सामान लेने आया करता और बस इतना ही कहता था, "भैया नमस्ते, यह सामान दे देना" और फिर वह चाहे जितनी देर खड़ा रहता है लेकिन उसके अलावा कोई कभी दूसरी बात नहीं करता, चुपचाप खड़ा रहता l मुझे तो याद करके आज भी हंसी आती है कि कितनी मुश्किल से उसने मुझे सौम्या के बारे मे बताया था, हजार कसमें ली थीं और बताते बताते उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था, कितनी सादगी से परिपूर्ण था l वो तो भला हो जो उसे सौम्य के प्यार ने बोलना सीखा दिया, अब रोहित पहले से ज्यादा हंसने बोलने लगा था और बहुत खुश रहने लगा था, मुझे भी एक अच्छा मित्र मिल गया था धीरे धीरे घरवाले भी मान गए और शादी की तैयारियां होने लगीं, मैंने अभी भी उसकी शादी का कार्ड संभाल के रखा है जिसमे बड़े स्टाइल मे रोहित ने लिखवाया था "?रोहित संग सौम्या ?" l लेकिन फिर उस दिन सौम्या ने रोहित को फोन किया और बिना कुछ बोले जोर जोर से रोने लगी, रोहित घबरा गया उसके बहुत पूछने पर सौम्या ने बताया, " कि मुझे कैंसर है, अब मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती रोहित, मुझे माफ कर दो" l ये सुनकर रोहित स्तब्ध हो गया और जोर जोर से चिल्लाने लगा, "ऐसा नहीं हो सकता तुम फिकर न करो मै अभी आता हूँ" l ये कहकर वो तुरंत ही बाइक से सौम्या के घर के लिए निकला लेकिन कभी पहुंच नहीं सका, हाँ रास्ते मे रोहित का एक्सिडेंट हो गया, सौम्या अपनी भूल पे बहुत पछता रही थी कि उसने रोहित से अप्रैल फूल का मज़ाक किया था, लेकिन अब कुछ भी किसी के हाथ मे नही था l मां-बाप के जाने के बाद रोहित का कोई सहारा नहीं रहा, सर पर गहरी चोट लगने से उसकी दिमाग की हालत बिगड़ चुकी थी, अब उसे सिर्फ ताने और मजाक चिड या जरा सी दया के अलावा कुछ नहीं मिलता हां एक नई चीज जरूर मिली थी उसे जो था उसका नया नाम" पागल", lबस एक मैं ही हूं जो अभी तक उसका नया नाम याद नहीं कर पाया उसे देखकर मेरे मन में यही सवाल आता है कि क्या हमें किसी से ऐसा मजाक करना चाहिए जो उसकी जान ले ले ऐसी प्रथाओं को तुरंत ही खत्म कर देना चाहिए जो किसी की जान के साथ खेलें या फिर किसी के जीवन को ही मजाक बना दें और यदि किसी से मजाक करना भी है तो ऐसा करें जिससे उस व्यक्ति को कोई हानि ना हो l? समाप्त ?कहानी पढ़ने के लिए आप सभी मित्रों का आभार lकृपया अपनी राय जरूर दें, आप चाहें तो मुझे मेसेज बॉक्स मे मैसेज कर सकते हैं l?धन्यवाद् ?? सर्वेश कुमार सक्सेना Download Our App