Mom-Butti ke aanshu in Hindi Short Stories by Saadat Hasan Manto books and stories PDF | मोम-बत्ती के आँसू

Featured Books
Categories
Share

मोम-बत्ती के आँसू

मोम-बत्ती के आँसू

ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था। मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी।

मोम पिघल घुल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने पर ज़िद करने और रोने लगी। तो उस की माँ ने मोमबत्ती के इन जमे हुए आँसूओं को एक कच्चे धागे में पिरो कर उस का हार बना दिया। नन्ही लाजो इस हार को पहन कर ख़ुश होगई। और तालियां बजाती हुई बाहर चली गई।

रात आई.... मैल भरे ताक़चे में नई मोमबत्ती रौशन हुई और उस की कानी कानी आँख उस कमरे की तारीकी देख कर एक लम्हे के लिए हैरत के बाइस चमक उठी। मगर थोड़ी देर के बाद जब वो इस माहौल की आदी हो गई। तो उस ने ख़ामोशी से टकटकी बांध कर अपने गिर्द-ओ-पेश को देखना शुरू कर दिया।

नन्ही लाजो एक छोटी सी खटिया पर पड़ी सो रही थी। और ख़्वाब में अपनी सहेली बिन्दू से लड़ रही थी कि वो अपनी गुड़िया का ब्याह इस के गुड्डे से कभी नहीं करेगी। इस लिए कि वो बदसूरत है।

लाजो की माँ खिड़की के साथ लगी, ख़ामोश और नीम रौशन सड़क पर फैली हुई कीचड़ को हसरत भरी निगाहों से देख रही थी, सामने भटयारे की बंद दुकान के बाहर चबूतरे पर अँगीठी में से कोयलों की चिनगारियां ज़िद्दी बच्चों की तरह मचल मचल कर नीचे गिर रही थीं।

घंटाघर ने ग़ुनूदगी में बारह बजाय,बारह की आख़िरी पुकार दिसंबर की सर्द रात में थोड़ी देर तक काँपती रही और फिर ख़ामोशी का लिहाफ़ ओढ़ कर सो गई..... लाजो की माँ के कानों में नींद का बड़ा सुहाना पैग़ाम गुनगुनाया। मगर उस की अंतड़ियां इस के दिमाग़ तक कोई और बात पहुंचा चुकी थीं।

दफ़अतन सर्द हवा के झोंके से घुंघरूओं की मद्धम झनझनाहट उस के कानों तक पहुंची। उस ने ये आवाज़ अच्छी तरह सुनने के लिए कानों में अपनी समाअत की ताक़त भरनी शुरू करदी।

घुंघरू रात की ख़ामोशी में मरते हुए आदमी के हलक़ में अटके हुए सांस की तरह बजना शुरू होगए, लाजो की माँ इत्मिनान से बैठ गई। घोड़े की थकी हुई हिनहिनाहट ने रात की ख़ामोशी में इर्तिआश पैदा कर दिया। और एक ताँगा लालटेन के खंबे की बग़ल में आ खड़ा हुआ। ताँगा वाला नीचे उतरा। घोड़े की पीठ पर थपकी दे कर उस ने खिड़की की तरफ़ देखा। जिस की चक उठी हुई थी। और तख़्त पर एक धुँदला साया भी फैला था।

अपने खुरदरे कम्बल को जिस्म के गिर्द अच्छी तरह लपेट कर तांगे वाले ने अपनी जेब में हाथ डाला। साढ़े तीन रुपय का करयाना था। इस में उस ने एक रुपया चार आने अपने पास रख लिए। और बाक़ी पैसे तांगे की अगली नशिस्त का गद्दा उठा कर उस के नीचे छुपा दिए ये काम करने के बाद वो कोठे की सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ा।

लाजो की माँ चन्दू सनयारी उठी और दरवाज़ा खोल दिया।

माधव तांगे वाला अंदर दाख़िल हुआ और दरवाज़े की ज़ंजीर चढ़ा कर इस ने चन्दू सनयारी को अपने साथ लिपटा लिया।

“भगवान जानता है, मुझे तुझ से कितना प्रेम है……….. अगर जवानी में मुलाक़ात होती तो यारों का ताँगा घोड़ा ज़रूर बिकता!” ये कह कर उस ने एक रुपया उस की हथेली में दबा दिया।

चन्दू सनयारी ने पूछा। “बस?”

“ये ले.....और।” माधव ने चांदी की चवन्नी उस की दूसरी हथेली पर जमा दी। “तेरी जान की क़सम! बस यही कुछ था मेरे पास!”

रात की सर्दी में घोड़ा बाज़ार में खड़ा हिनहिनाता रहा। लालटेन का खंबा वैसे ही ऊँघता रहा।

सामने टूटे हुए पलंग पर माधव बेहोश लेटा था। उस की बग़ल में चन्दू सनयारी आँखें खोले पड़ी थी और पिघलते हुए मोम के इन क़तरों को देख रही थी जो गीले फ़र्श पर गिर कर छोटे छोटे दानों की सूरत में जम रहे थे। वो इका ईकी दीवाना वार उठी और लाजो की खटिया के पास बैठ गई। नन्ही लाजो के सीने पर मोम के दाने धड़क रहे थे। चन्दू सनयारी की धुँदली आँखों को ऐसा मालूम हुआ कि मोमबत्ती के इन जमे हुए क़तरों में उस की नन्ही लाजो की जवानी के आँसू छुप कर बैठ गए हैं। इस का काँपता हुआ हाथ बढ़ा और लाजो के गले से वो हार जुदा होगया।

पिघले हुए मोम पर से मोमबत्ती का जलता हुआ धागा फिसल कर नीचे फ़र्श पर गिरा और उस की आग़ोश में सो गया... कमरे में ख़ामोशी के इलावा अंधेरा भी छा गया।