कहाँ गईं तुम नैना (13)
इंस्पेक्टर अभिनव कनौजिया से मिलने पर उन्हें कुछ और बातें पता चलीं। इंस्पेक्टर अभिनव ने संजय के फ्लैट में काम करने वाली मेड से बात कर कई बातें निकलवाई थीं।
संजय के फ्लैट में मीना नाम की एक मेड ने कुछ ही दिन पहले काम करना शुरू किया था। मीना ने बताया कि फ्लैट में एक बंगाली माता जी और उनकी बहू रहते हैं। माता जी का बेटा कभी कभी आता है। माता जी की बहू को कोई दीमागी बीमारी है जिसके चलते उसे कमरे में ही बंद रखना पड़ता है। दवाओं के असर से वह नींद की हालत में ही रहती है। बहू के कमरे में रोज़ सफाई नहीं करनी पड़ती है। दो एक दिन में माता जी अपनी मौजूदगी में सफाई कराती हैं।
मीना का कहना था कि माता जी ने सख्त हिदायत दी है कि उनकी बहू की बीमारी के बारे में बाहर किसी से कुछ ना कहे। उनका कहना था कि लोग समझेंगे नहीं बल्कि मज़ाक उड़ाएंगे।
मीना ने जो कुछ बताया था उससे स्पष्ट था की नैना संजय के फ्लैट में ही थी। अब देर करने से कोई लाभ नहीं था। संजय भी लखनऊ आ चुका था। उसे रंगे हाथों पकड़ा जा सकता था।
सादी वर्दी में दोनों इंस्पेक्टर अपार्टमेंट में पहुँचे। फ्लैट में घुसने के लिए उन्होंने मीना की मदद ली। जब उसने काम करने के लिए दरवाज़ा खुलवाया तो इंस्पेक्टर नासिर और अभिनव के साथ आदित्य भी अंदर घुस गया। संजय की माँ यह देख कर घबरा गईं।
"आप लोग ऐसे कैसे घुस आए ?"
इंस्पेक्टर अभिनव ने जवाब दिया।
"हम पुलिस हैं...।"
शोर सुन कर संजय भी आ गया। इंस्पेक्टर नासिर को देखते ही चिल्लाने लगा।
"आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? मैंने कहा था कि नैना के बारे में मुझे कुछ नहीं पता।"
इंस्पेक्टर नासिर ने उस पर अपनी गन तान दी।
"नैना इसी फ्लैट में है। उसे निकालो।"
फ्लैट में घुसते ही आदित्य सीढियां चढ़ कर ऊपरी हिस्से में गया। मीना के मुताबिक माता जी की बहू ऊपर वाले कमरे में थी। उसने नैना का नाम लेकर पुकारना शुरू किया।
नैना अपनी नींद से कुछ समय पहले ही होश में आई थी। इतने दिनों से संजय के फ्लैट में कैद वह भावनात्मक रूप से भी कमज़ोर हो गई थी। उसे बेहोशी की दवा दी जाती थी। ताकी वह शोर ना मचा सके। होश में आने पर वह बिस्तर में पड़ी अपनी स्थिति के बारे में सोंच कर दुखी हो रही थी। तभी उसे लगा जैसे आदित्य उसे पुकार रहा है। पहले तो उसे यह अपने मन का भ्रम जान पड़ा। पर जब दोबारा आवाज़ आई तो उसे यकीन हो गया कि वह आदित्य ही है। उसने अपने शरीर की सारी शक्ति समेटी। बिस्तर से उठी और दरवाज़े को पीटने लगी।
दरवाज़े के पीटे जाने की आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा। आदित्य दरवाज़ा खोलने की कोशिश करने लगा। इंस्पेक्टर नासिर संजय को गन प्वाइंट पर लेकर ऊपर चढ़ने लगे। इंस्पेक्टर अभिनव संजय की माँ के साथ पीछे पीछे चलने लगा। ऊपर पहुँच कर इंस्पेक्टर नासिर ने दरवाज़ा खोलने का हुक्म दिया। संजय की माँ ने दरवाज़ा खोल दिया।
नैना आदित्य के सामने थी। इतने दिनों से वह नैना को एक झलक देखने को तरस रहा था। अब जब वह उसके सामने थी तो उसे देख कर उसका दिल धक से रह गया। नैना बहुत ही कमज़ोर लग रही थी। उसने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया। नैना कस कर उसके सीने से चिपट गई। बिना एक शब्द बोले वह बस रोए जा रही थी। आदित्य भी चुपचाप उसे सीने से लगाए सांत्वना दे रहा था।
इंस्पेक्टर नासिर संजय और उसकी माँ को गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले गए। नैना का बयान हुआ। उसने कहा कि संजय और उसकी माँ ने जबरन उसे कैद कर रखा था। उसे बेहोशी की दवा दी जाती थी। नैना के बयान के आधार पर संजय व उसकी माँ के विरुद्ध केस दर्ज़ कर लिया गया।
नैना को वापस पाकर आदित्य बहुत खुश था। उसने सबसे पहले नैना के मिलने की खबर मिसेज़ चटर्जी को दी। उन्होंने ही उसे नैना के लापता होने की जानकारी दी थी। उसने मिसेज़ चटर्जी से कहा कि वह नैना को लेकर अपने पिता के फ्लैट में जा रहा है। मिसेज़ चटर्जी के बाद उसने अरुण अंकल को यह खुशखबरी दी। शीरीन और चित्रा को भी उसने नैना के मिल जाने के बारे में बता दिया।
आदित्य जब नैना को लेकर अपने फ्लैट में पहुँचा तो देख कर हैरान रह गया। वहाँ अरुण अंकल, रमेश, मिसेज़ चटर्जी, शीरीन और चित्रा सभी मौजूद थे। नैना के स्वागत की अच्छी खासी तैयारी की गई थी। मिसेज़ चटर्जी ने नई बहू की तरह नैना का फ्लैट में प्रवेश कराया। अरुण अंकल ने आदित्य और नैना को सदा एक साथ रहने का आशीर्वाद दिया।
आदित्य के प्यार और सबकी देखभाल के कारण नैना कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गई। नैना से जुड़े सभी लोग जानने को उत्सुक थे कि आखिर वह संजय के चंगुल में कैसे फंस गई। एक दिन नैना ने सबको एकत्र कर अपनी आपबीती सुनाई।
आदित्य से अलग होने के बाद नैना बुरी तरह टूट गई थी। उसे किसी के सहारे की आवश्यक्ता थी। पर उसके आसपास अपना कहने लायक कोई नहीं था। माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी। छोटी बहन जॉब के सिलसिले में लंदन गई थी। वह वहीं शादी कर बस गई थी। उससे कोई संपर्क भी नहीं था।
अपने अकेलेपन से नैना जूझ रही थी तभी उसकी मुलाकात चित्रा से हो गई। उसने भी दुनिया न्यूज़ चैनल ज्वाइन किया था। वह रहने के लिए सही जगह तलाश रही थी। नैना ने उसे अपने साथ रहने का प्रस्ताव दिया। चित्रा के साथ रहते हुए उसका मन कुछ हल्का हुआ। लेकिन चित्रा अपने ब्वायफ्रेंड के साथ रहने चली गई। नैना फिर अकेली पड़ गई।
पोल खोल शो के कारण नैना को धमकियां मिल रही थीं। जिसके कारण वह परेशान रहती थी। अपनी उलझन में बार बार आदित्य की बेवफाई को याद कर वह और अधिक दुखी होती थी। उसके लिए अपने निजी व प्रोफेशनल जीवन के बीच संतुलन बनाना कठिन हो रहा था। उसे लगता था कि वह किसी भी पल टूट कर बिखर जाएगी।
इस कठिन समय में अवार्ड फंक्शन में संजय के साथ मुलाकात होना नैना के जीवन में उस सुखद झोंके की तरह आया जो मरुथल में भटक रहे किसी व्यक्ति को राहत देता है। इसलिए संजय और उसकी दोस्ती के पुनः आरंभ होने में देर नहीं लगी। दोनों के बीच फोन पर बात होने लगी। संजय के दिल्ली आने पर दोनों अक्सर ही एक दूसरे से मिलने भी लगे।
संजय ने नैना को बताया कि वह भी उसकी तरह अकेला है। उसकी पत्नी सागरिका उसे छोड़ कर चली गई है। पिता के मरने के बाद उसने माँ को अपने साथ रहने के लिए बुला लिया है।
दोनों खुले दिल से अपना दुख एक दूसरे के साथ साझा करने लगे। दिल की बात किसी से कर लेने का असर यह होता है कि व्यक्ति सामान्य रूप से सोंचने की हालत में रहता है। अन्यथा अपने दुख में ही डूबा रहता है। नैना और संजय भी अब सामान्य हो गए थे। अब फिर से कॉलेज के दिनों की भांति अलग अलग मुद्दों पर बात करते थे।
संजय का कहना था कि बंगाल में उसकी बहुत सी पुश्तैनी संपत्ति है। उसके पिता ने भी अपने प्रकाशन व्यवसाय से इसमें इज़ाफा किया। अब वह भी ठीक ठाक कमा रहा है। इसलिए उसकी इच्छा भविष्य में अपना न्यूज़ चैनल खोलने की है। उसने नैना से कहा था कि वह भी इस काम में उसकी सहयोगी बने। नैना ने कहा कि वह वक्त आने पर सोंचेगी।
अपने दुख से उबरने के बाद नैना अपने काम पर सही तरह से ध्यान दे पा रही थी। फुलवारी केस में तो जमुना प्रसाद बच गया था। लेकिन वह चाहती थी कि उसे उसके कर्मों की सजा दिलाए। उसने बसंत को उसकी जासूसी में लगा दिया। बसंत ने उसे सूचित किया था कि वह अपने उद्देश्य के करीब पहुँच गया है। लेकिन उसके बाद अचानक वह गायब हो गया। उससे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था। नैना उसको लेकर परेशान थी। उसने सारी बात संजय को बताई। उसने समझाया कि वह धैर्य रखे। हो सकता है कि बसंत ने अपनी हिफाज़त के लिए खुद को कुछ दिनों के लिए छिपा रखा हो। इन कामों में खतरा बहुत होता है। उसकी बात मान कर नैना शांत हो गई।