Jindgi kuch haseen kuch gamgeen - 2 in Hindi Fiction Stories by Nilakshi Vashishth books and stories PDF | जिंदगी कुछ हसीं कुछ ग़मगीन - 2

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जिंदगी कुछ हसीं कुछ ग़मगीन - 2

पिछले अंक मैं आपने पढ़ा कैसे कनिका इतनी डर गयी...अब क्या होगा अब पढ़िए aage

माँ को पता चल चूका था की मां मेरे साथ गलत काम करते हैं मैं भोत ज्यादा डर गयी की अब पापा को पताचलेगा तो पापा तो मुझे मार ही डालेगे/// पर माँ ने ऐसा कुछ भी नहीं किया उन्होंने पापा को कुछ भी नहीं बताया बल्कि उन्होंने पापा के दोस्त जो हमारे घर आते थे उन्हें सब कुछ बताया क्योकि वही थे जो सब समज़ते थे वो सिर्फ पापा क दोस्त नहीं हम सबके गाइड भी थे जो हमें सिखाते थे जब हमारे अपने परिवार ने हमें छोड़ दिया था तब वो हमारे साथ खड़े हुए थे वो हमारे लिए सब कुछ करते थे जो एक बाप को करना चाहिए क्यों ????? पता नहीं पर वो हमसे भोत प्यार करते थे उन्हें हमसे भोत लगाव था ... उन्होंने भी मुज़से की पर मैं कुछ बता ही नहीं पा रही थी इसी बीच माँ का मामा से भोत बड़ा झगड़ा हुआ मुझे लेकर और माँ का उनके घर जाना छूट गया अब माँ अपने मायके नहीं जाती थी वो बस घुटकर रह गयी .... वो जब तब देखो मुज़से भोत अजीब सवाल करती जो मुझे समाज भी नहीं आते थे ... जिनसे मैं उनके पास अकेले बैठने से भी डरने लगी थी मुझे समाज नहीं आता था की म की आकृ टूट टी जा रही थी मैं दिन पर दिन ....

पर अब हम काफी आगे निकल चुके थे अब तक पापा में भी काफी सुधर ा गया था अब सब कुछ बदल रहा था मैं ८थ क्लास में आ गयी थी....

९/१२/२००७

कल सुबह हमारे नए घर का मुहृत था हम सब तयारी करने मैं लगेहुए थे अंकल जी (पापा क दोस्त ) वो भी जा चुके थे वो रोज़ दिन में दो बार हमारे यह आते थे उन्होंने हमारा मकान बनाने में भी भोत मदद की थी हर प्रकार से फिर चाहे वो पैसे हो या म्हणत या भावनात्मक सहायता हम उनके भोत ाबरी थे ... शाम क ८ बज चुके थे और पापा जी घर क मुहूर्त क लिए सको न्योता देने गए हुए थे की अचानकक अंकल जी वापिस आये वो अक्सर कभी शाम को जाने क बाद वापिस नहीं आते थे पर उस दिन कुछ अजीब हुआ मैं और माँ बहार गए तो वो माँ को पापा जी क एक्सीडेंट क बारे में बता रहे थे मैं तो बसअचानक रोने लगी और जब पापा जी तब तो सब क सब्र का जैसे बाँध ही टूट गया हो.....

अगले दिन घर का मुहूर्त तय था तो उसे न करना काफी मुश्किल लग रहा था तो हमने उसे ऐसा ही करने का सोच ...

सुबह घर का मुहूर्त ठीक थक निपट गया पापा जी को काफी चोट आयी थी तो वो अभी कुछ महीने काम पर नहीं जा सकते थे और माँ को भी उनकी देखभाल और ह्जार शिफ्ट होने तक बिलकुल फियरसट नहीं थी /// पर मेरी दादी उन्हें तो जल्दी से चाचू क यहां जाना था क्योकि उनके व्हा पर काम था या यु कहु वो हमारे घर रुकना ही नहीं च्चती थी .///////

उस दिन मेरे दिल एक बहुत बुरी तीस उठी और मेरी दादी क प्रति मेरा प्यार मेरे उसी गुस्से में जल कर रह गया .... मेरा छोटा सा दिल जो अभी तक प्यार क आलावा कुछ करना नहीं जनता था अब अचानक से नफरत करना सीख गया था.....

और उस दिन क बाद मैंने कभी अपनी दादी को पसंद नहीं किया ....

अब हमारी जिंदगी आगे और मुश्किल होने वाली थी क्योकि अभी घर बना होने की वजह से हाथ भी बहुत तंग था ऊपर से पापा जी की चोट की वजह से पाप का काम भी छूट गया था अब हमारा एक मात्र सहर अंकल जी थे अब वही हमें सपोर्ट कर रहे थे उन्होंने ही सब चीजों में हमरी हेल्प की....

मेरे भाई ने ८ कक्षा की छुट्टियों से ही काम करना शुरू कर दिया हम बहुत मुश्किल से अपनी लाइफ गुज़र रहे थे धीरे धीरे हम सब अपनी लाइन पर वापिस आ रहे थे मम्मी ने भी थोड़ा थोड़ा थोड़ा काम करना शुरू कर दिया था //// मैं भी अपने साथ हुए वाकये को लगभग भूलने लगी थी [पर शायद अभी और भी मुश्किलें बाकि थी...... क्या थी वो मुश्किलें क्या होना था अभी और की हुआ जानने क लिए पढ़ते रहिये कुछ हसीं कुछ ग़मगीन ---जिंदगी