Achchaaiyan - 24 in Hindi Fiction Stories by Dr Vishnu Prajapati books and stories PDF | अच्छाईयां – २४

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अच्छाईयां – २४

भाग – २४

सूरजने दोपहर तक तो सब दोस्तों को फोन से बात कर ली थी | उस टेलीफोन बूथवाले को बता भी दिया था की मैं रात को ग्यारह बजे कोल करने आऊंगा अपनी दूकान खुली रखना | मोबाइल तो अभी कुछ लोगो के पास ही दिखाई देने लगा था | ज्यादातर लोग लेंडलाइन पर ही निर्भर थे, इसलिए उसवक्त सड़क पे रखे गए ऐसे बूथ पे भी भीड़ रहती थी |

‘फोरेन कोल है ?’ उस बूथवाले को पता था की रात को देर से होनेवाले कोल्स परदेश के होते थे और उसवक्त रात को किये जानेवाले कोल्स पे कम दाम लगते थे |

सूरजने कोई जवाब नहीं दिया क्यूंकि यदी वो कहता की लोकल कोल है तो वो शायद देर रात तक रुकेगा भी नहीं |

अब रात ढल चुकी थी | वैसे तो सूरज रेल्वे स्टेशन से पासवाले सस्ते गेस्ट हाउसमें रुका था | जेलमे किये हुए काम से उसको जो भी पैसे मिले थे उससे उसका गुजरा चल रहा था | सूरज की अब तो एक ही ख्वाहिश थी की कोलेज को फिरसे उसकी उंचाईओ तक ले जाऊ | जो गुन्हा मैंने किया ही नहीं था उसकी सजा तो अब मैं काट चूका हू फिर उसकी शिकायते सबसे क्यूँ करू ? एकबार कोलेज फिर से पुरी दुनियामे अव्वल आ जाएगा तो दादाजी को शायद लगे की सूरज सही था |

रात को ठीक ग्यारह बजे सरगम को उसने दिए गए नंबर पर फोन लगाया | सामने सरगम मानो इंतज़ार मैं ही बैठी थी |

‘हेल्ल्लो.. सरगम..!’ सूरजने बात शुरू की |

सरगमने मीठी आवाजमें कहा, ‘हां.. सूरज... मैं इंतज़ार कर रही थी |’

‘मैं भी तो इंतज़ार ही कर रहा था... सालो से...!’ सूरजने जैसे जवाब दिया तो सरगम को अच्छा लगने लगा |

‘सूरज आज मैंने इसलिए तुमसे बात करना चाह की तुम्हारे जाने के बाद हमारे साथ क्या हुआ उसकी सच्चाई बताऊ |’ सरगम जो बात कोलेजमें कह नहीं पाई वो शायद अब कहना चाहती थी |

‘हम्म... मैंने तो कुछ और ही सोचा था...!’ सूरजने रोमांसभरे स्वरमें कहा |

‘सूरज अभी मैं जो कहने जा रही हूँ वो ज्यादा जरुरी है...!’ सरगमने सूरज के मस्तीभरे मुड को बदलते हुए कहा |

‘हां तो कहो...!’ अब सूरज सुनने के लिए तैयार था |

‘तो... अब ध्यान से सुनो..... मैं तुमसे मिलने के लिए मुंबई आई थी | उसवक्त मैं तुम्हे कई सारी सच्चाइया बताना चाहती थी की तुम वापिस कोलेज आओ उससे पहले यहाँ क्या हुआ वो अच्छी तरह से जान लो | मगर तुम नहीं मिले | हमारा मिलना भी उस दिन हुआ जब मैंने तुम्हे उस लडके के साथ भागते देखा जिसको पुलिस ड्रग्स के आरोपमें ढूंढ रही थी तो मेरा विश्वास भी टूट गया...!’

‘सरगम वो छोटू था और मैं उसे पुलिस से बचा रहा था...! मेरे पास वक्त भी नहीं था की वहां तुमको ये बात समजाऊ |’ सूरजने फोन पर ही अपनी बेगुनाही पेश की |

सरगम कुछ देर खामोश रही और बोली, ‘मुझे पता है की तुम गलत काम नहीं कर शकते मगर तुम्हारे पकडे जाने के बाद तुम्हारी रूम से जो ड्रग्स मिला उससे यहाँ की पुलिस की परेशानी और कोलेज की बदनामी से हम हैरान हो गए थे |’

‘वो किसीने करवाया था की मैं बुरी तरह से फंस जाऊ |’ सूरजने कहा |

‘मगर कौन ऐसा करेगा..? और इससे किसका फायदा होगा ?’ सरगम या सूरज दोनों में से कोई ये राझ नहीं जानता था |

‘मुझे वो कहां मालूम था | मैं तो सालो तक जेल में तुम्हारे या किसी के आने का इंतज़ार करता रहा | मगर फिर मुझे लगा की मैं तो अनाथ हूँ मेरी किसको फ़िक्र होगी...?’ सूरज आज सालो बाद अपने दर्द को सरगम के सामने कहने लगा |

सरगम भी बिच में बोली, ‘ ऐसा नहीं था सूरज...., हम भी तुम्हारी सजा कम करवाना चाहते थे मगर उस देश में हमारा कुछ नहीं चला | वहां ड्रग्स के कायदे सख्त थे इसलिए किसीने तुम्हारा इस्तमाल किया था | इधर दादाजी भी परेशान हो गए थे | उसवक्त श्रीधरने गुंजा से कोर्ट में शादी की, हालाकि दादाजी उससे भी नाराज हुए थे | तुम्हे पता नहीं होगा की गुंजा का असली नाम गुलशन था, वो मुस्लिम थी | दादाजीने श्रीधर को काफी समजाया था मगर श्रीधरने कहा की गुलशन उसके बच्चे की माँ बननेवाली है तो फिर श्रीधर के मम्मी पापा याने मेरे चाचा चाची और दादाजीने नाराजगी से साथ आखीरमें गुलशन को बहू बना ली | हमारी गुंजा अच्छी थी मगर उसके पिताजी सूलेमान इस शहरमें ड्रग के साथ दूसरे कालेधंधे करते थे |’

‘ये बात श्रीधर को पता होगी ?’ सूरजने बीचमें ही कहा |

‘वो तो श्रीधरने हमें कभी नहीं बताया | हम तो उसवक्त काफी परेशान थे | श्रीधर का जिस दिन एक्सीडेंट हुआ उसके कुछ दिन पहले वो मेरे पास आया था वो मुझे कुछ बताना चाहता था | उसवक्त दादाजी की नाराजगी की वजह से मैं भी उससे भी दूर रहने लगी थी | एकरात वो मुझ से मिलने चुपके से आया था और वो उसवक्त काफी परेशान था | मैंने भी उसको काफी बुरा भला कहा | गुंजा के लिए उसको मुस्लिम धर्म को अपनाना पड़ेगा वरना सुलेमान तो गुलशन और उसके पेटमें पल रहे बच्चे को मार देगा ऐसी धमकी देने लगा था | वो मेरा चचेरा भाई था और हम ब्राह्मिन... दादाजी को यदी ये पता चला की श्रीधर अब मुस्लिम धर्म स्वीकार करने जा रहा है तो वो तो श्रीधर को कभी माफ नहीं करेंगे इसलिए वो मुजसे माफी माँगने आया था और कह रहा था की मैं उस मोड़ पर पहुँच चूका हूँ की यहाँ से कहाँ जाउ पता नहीं चलता.... शायद उस वक्त उसको हमारी जरुरत थी मगर मैंने भी उसे उसदिन हमारे कुल का नाम मिटटीमें मिला देगा.... और वैसे भी हमारी परेशानी कम नहीं थी की तु भी नइ परेशानी बनकर आया है ? ये कहकर उसे वहां से चले जाने को कहा था | वो कुछ देर तक रोता रहा मगर मैंने भी उसका साथ नहीं दिया इसलिए वो जाने लगा.... मगर जाते जाते उसने मुझे ये भी कहा था की सूरज आये तो उसे भी कहना की मुझे माफ़ कर दे और उसने उसकी प्यारी बांसुरी मुझे दी थी और कहा था की ये सूरज आये तो उसे दे देना |’

‘श्रीधर तो वो अपनी प्यारी बांसुरी अपने पास ही रखता था और वो क्यों मुझे देना चाहता होगा ?’ सूरजने बिचमें कहा |

‘वो तो मुझे पता नहीं मगर उसने ये भी कहा था की यदी कल से मैं अपना धर्म बदल दूं तो ये समजना की मैं संगीत भी छोड़ दूंगा.... मुझे माफ़ करना... मैं गुंजा को छोड़ के आ जाऊ तो वो लोग मुझे ही नहीं मगर शायद मेरे मम्मी पप्पा को भी मार डालेंगे... वे लोग अच्छे नहीं है | वो डरा हुआ था या शायद उसपे दबाव था...’ सरगम आज अपनी बात जो इतने सालो तक किसीको नहीं बताई थी वो सूरज को बता रही थी |

‘ओह्ह्ह... यानी उन्होंने शायद श्रीधर को परेशान किया होगा ? या शायद गुंजा यानी गुलशन भी श्रीधर को छोड़ना नहीं चाहती होगी इसलिए वो अपना संगीत भी छोड़ने के लिए तैयार हो गया था... ये श्रीधर का गूंजा के प्रति बेहद प्यार ही था जिसके लिए वो खुद को मिटाने चला था |’ सूरजने भी सरगम की बाते सुनकर कहा |

उस वक्त टेलीफोन बूथवाला सूरज के पास आया और बोला ‘साब... बारह बजने आया है ? मुझे बूथ बंध करना है वरना पुलिस आयेगी तो लफडा हो जाएगा |’

सूरजने उसको इशारे से कुछ मिनिट रुकने को कहा और सरगम की बात सुनने लगा | सरगम कह रही थी, ‘ हां... तूम सही हो सूरज वो खुद को मिटाने ही चला था | इसके दूसरे दिन ही दोनों का एक्सीडेंट हुआ | वो दोनों एकसाथ थे, श्रीधर वही पर मर चूका था मगर गुंजा को उस एक्सीडेंट में काफी खून बह गया था, वो शायद बेहोश हो गई थी... उसको हॉस्पिटल ले जाया गया, पेट से ओपरेशन करके बच्ची को बचाया गया उसके बाद गूंजा उस बेहोशी में ही मर गई | उसवक्त सुलेमान या उसके कोई रिश्तेदार भी उसकी मौत पे नहीं आये थे | और उनकी निशानी सुगम अब हमारे पास है |’

‘यानी उस रात गुंजा और श्रीधर के बीच कुछ हुआ होगा | वो तुम्हे शायद कुछ बताने भी आया होगा मगर उसकी हिंमत नहीं होगी.....| या तुम्हारी नाराजगी के कारन वो बिना कहे निकल गया होगा..!’ सूरज कह रहा था तभी दूरसे पुलिसवान की सायरन सुनाई दी और उस टेलीफोनवाले ने तुरंत फोन कट करने को कहा |

‘मुझे लगता है की दोनों की मौत एक्सीडेंट से नहीं मगर उनके सर के पीछे लगी गहरी चोट से हुई थी, क्यूँकी मैंने देखा था की दोनों के सर पर कुछ ठोस चीज से मारा गया था |’

सरगमने ये बात कही तो सूरज तुरंत बोला, ‘ओह्ह.. माय गोड....!! ये बात पोस्टमोर्टम में लिखी होगी या पुलिस को पता होगी ?’

सरगमने कांपते हुए स्वर में कहा, ‘ मैं दो तीन बार पुलिसथाने पे गई थी.. वहां के इन्स्पेक्टर तेजधारसे मिली मगर वो तो गन्दा और कमीना था.. उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया और मुझे सताने भी लगा....!!’

‘साल्ला.... कमीना...!’ सूरज के मूंह से गाली निकल गई |

‘सूरज... हम सब काफी परेशान हो गए थे और तुम्हारी वजह से वो पुलिसवाला हमें और भी परेशान करने लगा था और इसलिए दादाजी तुमसे नफ़रत करते है....! हमारी कोलेजमें गुंडे आते सबको परेशान करते और यदी वो मैं पुलिस को कहती तो वो पुलिसवाला मुझसे अकेले में बुला के बदतमीजी करने लगता....’ सरगमने जब ये कहा तो उसकी आँखोंसे आंसू निकल रहे थे...

सूरज कुछ पलके लिए सोचमे डूब गया की मेरे गुन्हा की सजा तो यहाँ भी सबको मिली है... अब तो इन सबको मैं छोडूंगा नहीं... |

‘साब... ये पुलिस....!’ उस बूथवालेने आखिरमें अपना हाथ जोड़ के सूरज को विनती की |

‘मैं कल तुम्हे कोलेज में मिलूँगा... रात हो गई है पुलिस आ रही है... और हां कल हमारे सारे दोस्त आ रहे है | तुम सबको कुछ दिन रुकने का इंतजाम कर देना, अभी फोन रखता हूँ....!’

‘सूरज...!!’ सरगम आगे कुछ कहना चाहती थी |

‘हाँ...!!’ सूरजने कहा |

‘आई लव यूं....!’ सरगम के ये शब्द सूरज की कानो तक आने से पहले उस बूथमालिकने फोन की लाइन काट दी थी क्यूंकि पुलिस की जीप अब बहार सड़क के किनारे रुक गई थी |

सूरज के हाथोमे रिसीवर यूँ ही रह गया | वो सून नहीं पाया की सरगम आखिर में क्या कहना चाहती थी | वो बूथ से बहार निकला तो सामने इन्स्पेक्टर जीप से डंडा निकलकर उतर रहे थे |

‘क्यों ****** !! तेरे लिए सरकार अलग से क़ानून बनायेगी ****** ? बंध कर ******वरना ******!’ उसकी जुबान से गालिया और मुंह से शराब की बदबू निकल रही थी |

‘साब... बंध करता हूँ...!’ सूरजने जितने भी पैसे दिए उसने बिना गीने जेबमे रख दिए |

उस इन्स्पेक्टर की आँखे अब सूरज को बारबार देख रही थी, ‘ क्यों बे ****** इसने कहाँ फोन लगाया था ?’

‘लोकल कोल था साब...!’ उसने अपनी दूकान बंध कर दी थी और जाने लगा | मगर उस इन्स्पेक्टरने अपना डंडा उसके गले पर रख कर उसे रोक लिया |

‘इस ****** ने दुबई तो कोल नहीं लगाया ? मेरा नाम इन्स्पेक्टर तेजधार है और मेरे पीने की और जीने की धार काफी तेज रहती है |’ वो इन्स्पेक्टर पूछ तो उस दुकानवाले से रहा था मगर उसकी तेज नजरे सूरज पे थी |

‘नहीं साब... लोकल कोल था...! ये देखो बिल...!’ उसने फोन का बिल दिखाया |

सूरजने उस इन्स्पेक्टर का नाम सुनते ही सरगमने जो कहा था वो याद आने लगा | वो यही कमीना था जो सरगम को परेशान करता था | ‘तेजधार’ यही तो नाम सरगमने अभी अभी फोन पे बताया था | उसकी वर्दी पर लगे बेझ पे वो नाम सूरज पढ़ चूका था | तगडा शरीर, बड़ी हुई तोंद, आधा टकला, उसके दोनों गाल बड़े थे और आँखे अंगारे की तरह लाल थी वो शायद उसकी दारु की आदत से हुई होगी | उसको बड़ी मुछे रखने का उसे शौख था या दूसरो को डराने के लिए रखता होगा | उसकी नजरे कातिल थी | उन्होंने इतनी पी रखी थी की कोई भी अपना होंश खो दे मगर फिर भी वो खुद को अच्छी तरह से संभाल पाता था |

‘तु जा यहाँ से ****** और कल इतनी देर तक तेरी ये फटे पेंट जैसी दूकान खुली देखी तो तुम्हारी पेंट को और ये दुकान दोनों फाड़ दूंगा ******....!’ तेजधार की जुबान गंदी और तेज थी |

वो तो दो हाथ जोड़े,’ अच्छा साब... नहीं होगा...माफ़ कर दो...!’ इतना कहकर वो निकल गया |

सूरज को लगा की अभी कोई लफडा नहीं करना इसलिए वो भी उस इन्स्पेक्टर से अपनी नज़रे चुराते हुए चलने लगा तभी इन्स्पेक्टर बोला, ‘ क्यूँ ****** तुम्हे इतनी रात को जरुरत पडी.. !! वो संगीत बजानेवाली को फोन किया था...? साली हमें तो भाव देती नहीं और तुमसे रात को घंटे तक बात करती है |’ उसकी तेजधार उस बिल पर भी जिसपे फोन नंबर और उसका वक्त भी लिखा था |

सूरज उसकी गंदी जुबान सुनकर गुस्से से अपनी मुठ्ठी बंध कर के खड़ा रहा |

‘तु वही सूरज है न ****** जो संगीत के साथ ड्रग्स भी बेचता है...!!’ वो बात कर रहा था या गालिया दे रहा था वो उसकी बातो से पता ही नहीं चलता था |

‘तेरी फाईल जब मेरे पास खुलेगी तो देखना ये तुम्हारी पेंट ढीली पड़ जायेगी |’ वो इन्स्पेक्टर तेज दिमागवाला और शातिर भी लगता था |

सूरजने उसकी एक भी बात पे ध्यान नहीं दिया तो उसने अपनी जीप से एक व्हीस्की की बोतल ली और खोल के सीधी अपने मूंह से लगा ली और आधी बोतल खाली करके बोला, ‘ ये नशा उतर जाता है तो मेरी जबान अच्छी अच्छी बाते करना भूल जाती है...!’ कुछ देर के बाद उसकी हिचकी शुरू हुई और फिर कहा, ‘देख.. बड़ा धंधा करना है तो मुझसे मिलकर कर... नाम तेरा... काम मेरा... बोल मंजूर...!’

‘क्या काम..?’ सूरजने अपने गुस्से को संभालते अपनी जुबान से दो शब्द निकाले |

‘वही जो तू पहले करता था.... ड्रग्स...!’ वो तेजधारने सूरज के बिलकुल करीब आ के कान में कहा | हालाकि उसने ही पुरी सड़क खाली करवाई थी यदी वो चिल्लाता तो भी कोई सुन नहीं पाता...! उसकी मुंह से आती हुई बदबू इतनी तेज थी की सूरज का दिमाग घुमने लगा |

सूरजने कोई जवाब नहीं दिया तो उसने वहां खड़े खड़े उस टेलीफोनबूथ के दरवाजे पे पेशाब करना शुरू किया और बोला, ‘मेरे क़ानून नहीं माननेवालो के घर घर जा के पेशाब करने की ताकत रखता हूँ.....! ये .... कल अपनी दूकान खोलेगा तो मेरी बदबू से पता चलेगा की ये तेजधार की मूतधार की बदबू थी... यहाँ सब मेरी बदबू पहचानते है... ’ वो सूरज को डराना चाहता था |

‘तो काम कैसे करना है...?’ सूरजने कुछ सोच के उसकी पेंट की आधी खुली हुई झिप और आगे गीली पेंट को देखके कहा |

तेजधार को अंदाजा नहीं था की सूरज इतनी जल्दी हां कहेगा इसलिए वो कुछदेर तक उसे कातिल नजरो से देखने लगा | थोदीदेर बाद वो उसके पास आया और उसके जेबमें एक परचा रख दिया | ये मेरा पर्सनल नंबर है रात को बारह बजे के बाद ही लगता है......

‘मगर इतनी रात को मैं कहाँ से कोल करू ? तुम तो सारे बूथ बंध करवा देते हो....!’ सूरज की इस होंशियारी पे वो हंस पड़ा और बोला कल तुम्हे अपना मोबाइल मिल जाएगा...!!

क्रमश: .....